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दिल्ली के प्रदूषण पर 'हाय-हाय' ठीक है, लेकिन पूरे देश का हाल भी जान लें

ये संकट पूरे भारत में फैल चुका है. देश में ऐसा एक भी ज़िला नहीं है जो ग्लोबल एयर क्वालिटी के मानक पर खरा उतर पाए. करीब 60 प्रतिशत ज़िले ऐसे हैं जहां PM2.5 का सालाना औसत नेशनल लिमिट से ज्यादा है.

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दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के बीच CREA की रिपोर्ट जिसमें भारत के 749 ज़िलों का आकलन किया गया है. (फोटो-आजतक)

देश की राजधानी दिल्ली तो प्रदूषण से घुट ही रही है. लेकिन असल में ये संकट पूरे भारत में फैल चुका है. देश में ऐसा एक भी ज़िला नहीं है जो ग्लोबल एयर क्वालिटी के मानक पर खरा उतर पाए. करीब 60 प्रतिशत ज़िले ऐसे हैं जहां PM2.5 का सालाना औसत नेशनल लिमिट से ज्यादा है. सेंटर फॉर रिसर्च ऑन एनर्जी एंड क्लीन एयर यानी CREA ने हर ज़िला और राज्य स्तर पर PM2.5 का आकलन किया है. नई बात नहीं है कि दिल्ली इस लिस्ट में नंबर एक पर है. लेकिन हालात दूसरे राज्यों में चिंताजनक हैं. रिपोर्ट में नॉर्थईस्ट को नया प्रदूषण हॉटस्पॉट बताया गया है.  

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CREA ने 25 नवंबर को ये रिपोर्ट छापी थी. उसने बताया कि हाई-रेजलूशन सैटेलाइट तकनीक की मदद से भारत के कई ज़िलों की तस्वीरें खींची गईं. इन तस्वीरों से भारत के 749 ज़िलों की एयर क्वालिटी का आकलन किया गया. इनमें 28 राज्य और 5 केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं. लद्दाख, लक्षद्वीप और अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को प्रॉपर डेटा ना होने की वजह से शामिल नहीं किया गया. 

रिपोर्ट में बताया गया कि 749 ज़िलों में से एक भी जिला ऐसा नहीं है जो विश्व स्वास्थय संगठन (WHO) के प्रदूषण संबंधी निर्देशों का पालन करता हो. WHO के मुताबिक़ PM2.5 का एनुअल लेवल 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (μg/m³) होना चाहिए. लेकिन भारत के 447 ज़िलों के प्रदूषण ने NAAQS (National Ambient Air Quality Standards) के मानक को भी पार कर दिया है. NAAQS के मुताबिक़ PM2.5 का वार्षिक औसत 40 μg/m³ से अधिक नहीं होना चाहिए. NAAQS के मानक भारत में CPCB (Central Pollution Control Board) तय करता है. 

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किन राज्यों में कितना प्रदूषण?

रिपोर्ट के मुताबिक़, हर राज्य का कम से कम एक जिला ऐसा ज़रूर है जो NAAQS के दायरे से बाहर है. खुद को साफ-सुथरा बताने वाले राज्य भी इस लिस्ट से खुद को बाहर नहीं रख पाए. दिल्ली तो 'प्रदूषण विजेता' है. यहां की हवा में PM2.5 मिलने का सालाना औसत 101 μg/m³ रिकॉर्ड किया गया है, जो राष्ट्रीय मानक से ढाई गुना और WHO के मानक से 20 गुना ज्यादा है.

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ज़िला स्तर पर प्रभाव: दिल्ली, असम, बिहार और हरियाणा के कुल 50 ज़िले सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. इनमें दिल्ली और असम बराबरी पर हैं. दोनों के 11-11 ज़िलें ज़हरीली हवा से जूझ रहे हैं. ये दोनों भारत के कुल प्रदूषण स्तर का 50 प्रतिशत हिस्सा हैं. बाक़ी 50 प्रतिशत में बिहार और हरियाणा के 7-7 ज़िले, उत्तर प्रदेश के 4, त्रिपुरा के 3, राजस्थान और पश्चिम बंगाल के 2-2, चंडीगढ़, मेघालय और नागालैंड के 1-1 जिला सबसे ज्यादा प्रभावित हैं.

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राज्य स्तर पर प्रभाव: दिल्ली, पंजाब, हिमांचल प्रदेश, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर राज्य की हवा सबसे ज्यादा ख़राब है क्योंकि इन राज्यों में हर ज़िले का PM2.5 लेवल NAAQS की लिमिट से बाहर है.

रिपोर्ट के मुताबिक़, दक्षिण राज्य प्रदूषण के मामले में तुलनात्मक रूप से बेहतर हालत में हैं. मसलन पुडुचेरी में PM2.5 सालाना  25 μg/m³ रिकॉर्ड किया गया है जो राष्ट्रीय मानक के अंदर आता है. इसके बाद तमिलनाडु, कर्नाटक, तेलंगाना, केरल और आंध्र प्रदेश आते हैं.

CREA की रिपोर्ट में दिए गए इस मैप के ज़रिए आप बेहतर समझ पाएंगे. लाल रंग वाले ज़िले NAAQS के PM2.5 मानक को पार कर चुके हैं, जबकि बाकी हल्के नारंगी वाले ज़िले WHO और NAAQS के मानक के बीच आते हैं.

 

CREA REPORT
CREA ने अपनी रिपोर्ट में भारत के 749 ज़िलों की एयर क्वालिटी को स्टडी किया. 
Airshed के आकलन में क्या निकला?

CREA ने सैटेलाइट इमेज की मदद से एयरशेड का आकलन किया है. एयरशेड यानी वो भौगोलिक क्षेत्र जहां प्रदूषकों को प्रतिबंधित किया जाता है. यह कम प्रदूषण वाले छोटे भौगोलिक क्षेत्र से लेकर बड़े महानगरीय समूह तक फैला हो सकता है. इसके आकलन से पता लगाया जाता है कि किस क्षेत्र में कितना प्रदूषण है और उसकी दिशा क्या है.

सिंधु-गंगा एयरशेड सबसे ज्यादा दूषित है. इस एयरशेड में पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान और पश्चिम बंगाल शामिल है. लेकिन रिपोर्ट में चिंता का विषय है- नॉर्थईस्ट एयरशेड, जिसमें असम और त्रिपुरा की हवा सबसे दूभर है. और ये केवल एक मौसम की बात नहीं है, साल भर इन राज्यों में PM2.5 का स्तर बढ़ा ही रहता है.

रिपोर्ट के लेखक मनोज कुमार ने कहा,

सरकार को एयर शेड को ध्यान में रखकर काम करना होगा. नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम में सैटेलाइट डेटा की मदद लेनी होगी. एमिशन को कंट्रोल करना होगा. वर्ना करोड़ों लोग ऐसे ही साफ़ हवा के लिए तरसते रहेंगे और दूषित हवा से जूझते रहेंगे.

नॉर्थईस्ट प्रदूषण हॉटस्पॉट कैसे बना?

अप्रैल, 2025 में द असम ट्रिब्यून ने असम की खराब हवा पर एक रिपोर्ट छापी. रिपोर्ट के मुताबिक़, 'गेटवे टू नार्थईस्ट' कहा जाने वाला असम, साल 2023 में सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों की लिस्ट में दूसरे पायदान पर था. PCBA (Pollution control board of assam) के चेयरमैन अरूप कुमार मिश्रा ने इसके पीछे कुछ कारण गिनाए हैं.

उनके मुताबिक़, गुवाहाटी में इंडस्ट्री की वजह से हवा खराब नहीं है, बल्कि बड़े पैमाने पर चल रहे निर्माण कार्य की वजह से है. रिपोर्ट में बताया गया कि असम के कुल 106 अर्बन क्षेत्रों का मुआयना किया गया जिसमें ये बात सामने आई कि असम की हवा डस्ट की वजह से खराब है. डॉ. मिश्रा ने बताया,

गुवाहाटी की हवा में मैकेनिकल प्रदूषक हैं जिसमें ज़्यादातर डस्ट पार्टिकल्स हैं. मुंबई और गुजरात जैसे बड़े महानगरों में केमिकल प्रदूषक ज्यादा हैं, लेकिन असम में हवा डस्ट और सैंड की वजह से ख़राब है. 

गुवाहाटी से 14 किलोमीटर दूर बर्नीहाट असम का दूसरा सबसे ज्यादा प्रदूषित शहर है. लेकिन इसकी अपने एक कहानी है. ये असम और मेघालय दोनों से बॉर्डर शेयर करता है. डॉक्टर मिश्रा बताते हैं कि 1970 के दशक में बर्नीहाट पानी और ज़मीन के साफ़ रिसोर्स के तौर पर जाना जाता था. मगर आज ये प्रदूषण हॉटस्पॉट बन गया है. इसका ज्यादातर हिस्सा असम में आता है जहां कुल 39 इंडस्ट्रीज हैं. इनमें से 18 रेड कैटेगरी (सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलानेवाले) और 16 ऑरेंज कैटेगरी में आते हैं. 

समस्या का समाधान

CREA की रिपोर्ट से एक बात तो साफ़ हो गई है कि भारत को अपनी पॉलिसी पर काम करने की सख्त ज़रूरत है. अब बात सिर्फ एक शहर या राज्य की नहीं है. वायु प्रदूषण पूरे देश के लिए चिंता का विषय है. डाउन टू अर्थ ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि अब तक केवल 131 शहरों पर ध्यान दिया जा रहा था जो लगातार NAAQS की तयशुदा लिमिट से बाहर जा रहे थे. लेकिन सिंधु-गंगा एयरशेड और पूरे देश के क्राइसिस से डील करने के लिए और ठोस कदम उठाने होंगे. 

शोधकर्ताओं ने अपनी रिपोर्ट में कुछ उपाय भी सजेस्ट किए हैं-

  • प्रदूषण के नए हॉटस्पॉट्स की पहचान करनी चाहिए, जिला स्तर पर इन इलाकों की पहचान कर एक्शन लेना चाहिए. 
  • सैटेलाइट से मिली इमेज को NCAP के तहत चल रहे प्रोग्राम में इस्तेमाल करना चाहिए.
  • एयरशेड के हिसाब से प्लान ऑफ़ एक्शन होना चाहिए. ख़ास ध्यान सिंधु-गंगा और नॉर्थईस्ट एयरशेड पर होना चाहिए. यहां पर हो रहे आधारभूत उत्सर्जन को रोकने का प्रयास करना चाहिए. 
  • राज्य स्तर पर सैटेलाइट इमेज और ग्राउंड डेटा का इस्तेमाल कर काम करना चाहिए जिससे PM2.5 लेवल को कंट्रोल किया जा सके.
  • एयरशेड एक स्थायी जगह का डेटा नहीं देता, इसमें कई राज्य या अलग-अलग राज्यों के ज़िले शामिल हो सकते हैं. इसके लिए जॉइंट एक्शन प्लान तैयार करना होगा.

CREA की इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया कि प्रदूषण हॉटस्पॉट्स को उनकी परिस्थितियों के हिसाब से डील करना होगा. क्योंकि अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग पैटर्न देखने को मिलते हैं. शार्ट-टर्म गोल, जैसे GRAP लागू करने से काम नहीं चलेगा. इसके लिए ठोस समाधान की ज़रूरत है.

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: डेटा ने खोल दिया दिल्ली में प्रदूषण का सच!

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