
पारुल
स्वागत है. ये जिस हैडिंग को आप देख आए हैं, इससे ही क्लीयर है कि आपके अंदर घूमने वाला कीड़ा प्रबल है और इंडिया से आपको मुहब्बत भी = है. एंड इट इज परफेक्टली राइट. तभी तो दी लल्लनटॉप आपके लिए लाया है नक्शेबाज सीरीज. आज इस सीरीज की 5वीं किस्त आप पढ़िए. वास्कोडिगामा के बारे में सामान्य ज्ञान की किताब बचपन से बता ही रही है. पर अब जरा डिटेल में बात कर ली जाए. कहना न होगा कि ये सीरीज हमारे लिए पारुल ने लिखी है.

वास्कोडिगामा
ये पुर्तगाल के थे. ट्रैवलर और एक्स्प्लोरर. पंद्रहवीं सेंचुरी में घूमने निकले थे. ये पहले ऐसे इंसान थे जो यूरोप से सीधा भारत आया हो, वो भी समुद्र के रास्ते. इन्हीं की वजह से यूरोप और एशिया सीधे समुद्र के रास्ते से जुड़ पाए थे. और इन्ही की वजह से सैकड़ों सालों तक कितना कुछ हुआ. धंधे से शुरू होकर ग्लोबलाइजेशन और कोलोनाइज़ेशन तक.ड्राइविंग फ़ोर्स:
राजा का आदेश. हां, ये वो वक़्त था जब यूरोप के हर बड़े देश के राजा चाहते थे कि एशिया पहुंचने का सीधा रास्ता मिल जाए. जिससे उनके लिए बिज़नेस, खासकर मसालों का बिज़नेस करने में आसानी हो. अफ्रीका के रास्ते मसाले मंगवाना बड़ा महंगा पड़ता था. बस इसीलिए वास्कोडिगामा को भेजा गया था.
फैमिली बैकग्राउंड/इनकम लेवल:
वास्कोडिगामा खुद पुर्तगाल में सिविल गवर्नर थे. इनके पापा मिलिट्री में ऊंचे ओहदे पर थे. यौद्धा भी थे. मतलब ये भी एलीट क्लास में ही आते थे. वास्कोडिगामा ने मैथ्स के साथ-साथ नेविगेशन की पढ़ाई भी की थी. मतलब पहले से ही नाव, समुद्र इन सब के बारे में अच्छी-खासी जानकारी थी इन्हें.
ट्रेवल रूट/जगहें:
पुर्तगाल की राजधानी लिस्बन से वास्कोडिगामा 170 लोगों के साथ निकलें. तारीख थी 8 जुलाई 1497. कुल 4 नावें थीं इनके पास, जिनमें से सिर्फ 55 लोग वापस पहुंचे. वो भी दो नाव लेकर. ये लोग अफ्रीका होते हुए भारत के कोझीकोड पहुंच गए. तारीख बदलकर 20 मई 1498 हो चुकी थी. वहां इनका स्वागत किया गया. इन्होंने बिज़नेस शुरू कर दिया. काफी दिनों तक सब कुछ सही चला. फिर एक गड़बड़ हो गई. राजा चाहते थे कि वास्कोडिगामा भी आम व्यापारियों की तरह टैक्स दें. वास्को द वास्कोडिगामा इस बात पर चिढ़ गए और कुछ लोगों को ज़बरदस्ती उठा ले गए. लेकिन ये भूल कर भी मत सोचना कि उनको ज़रा भी घाटा लगा होगा. इस पूरे सफ़र में जितने खर्चे हुए, उसका 6 गुना फायदा हुआ था सामानों की ख़रीद-फ़रोख्त से.

वास्कोडिमागा का रूट, लिस्बन से इंडिया
कुछ दिन बाद वास्कोडिगामा फिर से भारत आए. तब तक पुर्तगाल भारत में कॉलोनी बनाने की पूरी तैयारी कर चुका था. फिर तीसरी बार जब वास्कोडिगामा भारत आए, तो पुर्तगाल भारत में कॉलोनी बना चुका था. और वास्कोडिगामा को भारत में पुर्तगाली गवर्नर बना दिया गया था.
मुश्किलें:
ऐसा नहीं है कि वास्कोडिगामा के सामने मुश्किलें नहीं आई थीं. नाव ले कर कई बार भटक गए ही होंगे. उनके साथ के काफी लोग मर भी गए थे. बाकी ट्रैवलर भी अक्सर मुसीबतों में फंस जाते थे. लेकिन वास्कोडिगामा अधिकतर दूसरों के लिए मुसीबत खड़ी कर देते थे. इन्होंने दूसरी बार भारत आने पर व्यापारियों और लोकल लोगों के साथ बड़ा बुरा सलूक किया. इसी वजह से भारत में इनकी इमेज अच्छी नहीं रही. वास्कोडिगामा ने अपनी बेवकूफी से भी एक मुसीबत पैदा कर ली थी. भारत से लौटते वक़्त मानसून की हवाओं और उसके असरों को बिलकुल नज़रंदाज़ कर दिया. और इसी वजह से समुद्र में काफी दिनों तक फंसे रह गए थे.
आउटपुट:
वास्कोडिगामा ने कोई ट्रेवल अकाउंट तो नहीं लिखा. लेकिन खूब सारे ईनाम बटोरे. जागीर में लंबी-चौड़ी ज़मीन भी मिली इन्हें. खूब सारे पैसे भी. उसके बाद ये भारत में गवर्नर भी बना दिए गए.
वास्कोडिगामा ने जब भारत तक पहुंचने का समुद्री रास्ता खोज लिया तो पुर्तगाल की चांदी हो गई. ट्रेड में खूब फायदा होने लगा. तब देखा देखी कई देशों से एक्सप्लोरर भेजे गए. और भारत रिसोर्सेस बटोरने के कॉम्पिटिशन का अखाड़ा बन गया.गोवा में बंदरगाह और स्पोर्ट्स क्लब से लेकर ब्राज़ील में तीन स्पोर्ट्स क्लब, पुर्तगाल में शहर, पुल और यहां तक की चांद का एक गड्ढा, ढेर सारी चीज़ों का नाम वास्कोडिगामा के नाम पर है. पता नहीं क्यों! या शायद पता भी है.