माउंटबेटन योजना की चर्चा से पहले भारत में साम्प्रदायिक विभाजन की बुनियाद पर रोशनी डालते हैं. अंग्रेजों ने भारत विभाजन की नींव 1909 में ही रख दी थी, जब मोर्ले-मिंटो सुधार के नाम पर भारत में साम्प्रदायिकता की बुनियाद रख दी गई. तब मार्ले भारत सचिव थे, जबकि लार्ड मिंटो भारत के गवर्नर जनरल था. इन दोनों ने एक ऐसी योजना प्रस्तुत की, जिसके तहत हिंदुओं और मुसलमानों के लिए अलग निर्वाचन का प्रावधान था.
ऐसा इसलिए किया गया था, ताकि भारत की साम्प्रदायिक एकता को छिन्न-भिन्न किया जा सके. यानी 'फूट डालो और राज करो' की नीति को अमलीजामा पहनाया गया. इसे ही संक्षेप में 'मोर्ले-मिंटो सुधार' कहते हैं.
दरअसल, सुधार के नाम पर साम्प्रदायिकता का बीज बोया गया था. हालांकि 1919-21 के असहयोग और खिलाफत आंदोलन के दौरान जबरदस्त हिंदू-मुस्लिम एकता देखने को मिली थी. लेकिन इसके बाद धीरे-धीरे साम्प्रदायिकता का जहर फैलने लगा.
# 1930 में मुस्लिम लीग के इलाहाबाद सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए उर्दू कवि इकबाल (जिन्होंने कभी 'सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा' लिखा था) ने कहा था-
उत्तर पश्चिम भारत में एक संगठित मुस्लिम राज्य का निर्माण ही मुझे मुसलमानों की अंतिम नियति प्रतीत होती है.

अल्लामा इकबाल (फोटो: ट्विटर)
# 30 के दशक में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के एक छात्र चौधरी रहमत अली ने मुसलमानों के लिए अलग देश बनाने की वकालत करते हुए 'पाकिस्तान' शब्द का पहली बार प्रयोग किया. उसने पंजाब, अफगान क्षेत्र, कश्मीर, सिंध और बलूचिस्तान को मिलाकर मुसलमानों के लिए एक अलग देश बनाने की अवधारणा सामने रखी.
# 1937 के चुनावों में मुस्लिम लीग को बहुत सफलता नहीं मिली. इसके बाद मोहम्मद अली जिन्ना ने महात्मा गांधी पर हिंदू राज्य स्थापित करने का आरोप लगाकर साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काने का काम शुरू किया. इसी समय से जिन्ना द्विराष्ट्र सिद्धांत की बात करने लगे. इस वक्त तक जिन्ना एक प्रभावशाली नेता के तौर पर उभर चुके थे. एक बार तो उन्होंने यहां तक कह दिया-
हम न तो अंग्रेजों को और न ही गांधी को मुसलमानों पर शासन करने देंगे. हम स्वतंत्र होना चाहते हैं.# 1939 में मुस्लिम लीग ने इस्लामिक देश के निर्माण के संबंधित अलग-अलग प्रस्तावों की जांच के लिए एक कमिटी का गठन किया. फजल हसन और हुसैन कादिरी को इस जांच कमिटी का सदस्य बनाया गया. अलीगढ़ में इस कमिटी ने अपनी बैठक करनी शुरू की और चार पृथक राष्ट्र- पाकिस्तान, हिंदुस्तान, बंगाल और हैदराबाद बनाने का सुझाव दिया.
# 22-23 मार्च 1940 को मुस्लिम लीग का लाहौर अधिवेशन हुआ, जिसकी अध्यक्षता मुहम्मद अली जिन्ना ने की. इसी अधिवेशन में मुसलमानों के लिए अलग राष्ट्र का प्रस्ताव पारित हुआ, लेकिन उसमें 'पाकिस्तान' शब्द का कोई जिक्र नहीं था.
# 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हो गया और ब्रिटेन को इसमें ब्रिटिश इंडिया के सहयोग की सख्त जरूरत थी. इसी उद्देश्य से ब्रिटिश कैबिनेट के सदस्य सर स्टेफोर्ड क्रिप्स 1942 में भारत आए. उनके भारत दौरे को क्रिप्स मिशन के नाम से जाना जाता है. भारतीयों का सहयोग पाने के मकसद से भारतीय नेताओं के सामने उन्होंने डोमिनियन स्टेटस और संविधान सभा का प्रस्ताव रखा.
लेकिन इसी संविधान सभा वाली बात में वे एक ऐसी बात कर गए, जिसे पाकिस्तान की मांग करनेवालों को पहली सफलता दिख गई. दरअसल क्रिप्स ने यह प्रस्ताव रख दिया था कि जो लोग 'प्रस्तावित संविधान सभा' में भाग नहीं लेना चाहते, उनके लिए अलग से संविधान सभा गठित की जायेगी. यहीं मुस्लिम लीग को वो रोशनी दिख गई, जिसका वे इंतजार कर रहे थे.

मोहम्मद अली जिन्ना (फोटो: एएफपी)
इसके बाद पाकिस्तान की मांग तेज और हिंसक होती चली गई. इसे सुलझाने की कोशिशें भी शुरू कर दी गई. इन कोशिशों में दो का जिक्र प्रमुखता से किया जाता है.
1. राजाजी फॉर्मूला
मद्रास प्रेसिडेंसी से आनेवाले कांग्रेसी नेता चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ने 1944 में एक प्रस्ताव पेश किया, जिसमें राज्यों की अधिकतम स्वायत्तता पर बल देते हुए एक ढीले-ढाले केन्द्र (जिसके पास रक्षा, विदेश मामलों और संचार जैसे कुछेक मामले ही हों) की वकालत की गई थी. इस प्रस्ताव को कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने नकार दिया.
2. वैवेल प्लान
तत्कालीन वायसराय लार्ड वैवेल ने 1945 में शिमला में भारत के सभी पक्षों/दलों की बैठक बुलाई. इस बैठक में उन्होंने अधिकतम स्वायत्तता देने से संबंधित एक प्रस्ताव रखना चाहा, लेकिन मुस्लिम लीग ने एक असंभव सी मांग कर दी-
इस बैठक में मुस्लिम लीग को ही मुसलमानों का इकलौता प्रतिनिधि माना जाए.इस मांग को स्वीकार करने के लिए कोई भी तैयार नही हुआ था, क्योंकि तब कांग्रेस के पास भी मौलाना आजाद जैसे बड़े मुसलमान नेता मौजूद थे और संयोगवश वे कांग्रेस के अध्यक्ष भी थे. दूसरी ओर कांग्रेस स्वतंत्रता से कम किसी भी फॉर्मूले पर सहमत नहीं थी. नतीजतन वैवेल प्लान भी असफल हो गया.
इस बीच जुलाई 1945 में ब्रिटेन में लेबर पार्टी की सरकार बन गई. लेबर पार्टी को भारतीयों के प्रति उदार रख रखने वाला माना जाना था. सत्ता में आते ही लेबर पार्टी नेता और नए प्रधानमंत्री लार्ड एटली ने घोषणा कर दी-
जून 1948 तक हम इंडिया की सत्ता पूरी तरह से इंडियन्स को सौंप देंगे.एटली की इस घोषणा के बाद भारत में खुशी की लहर दौड़ गई. सबको यह आभास हो गया कि अब आजादी ज्यादा दूर नहीं है. इस बीच 1946 में बंबई, कराची और कुछ अन्य जगहों पर नेवी के जवानों का विद्रोह हो गया और इसे दबाने के लिए वायसराय लॉर्ड वैवेल को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी. यहां तक की कांग्रेस के नेताओं का भी सहयोग लेना पड़ा.
इस घटना के बाद ब्रिटेन में भी यह महसूस किया जाने लगा कि शायद लार्ड वैवेल शांतिपूर्वक सत्ता हस्तांतरण करवाने में कामयाब नही हो पाएंगे. इन सब परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए एटली सरकार ने 22 मार्च 1947 को लार्ड माउंटबेटन को वायसराय बनाकर दिल्ली भेजा.
दिल्ली पहुंचते ही माउंटबेटन ने आजादी के फॉर्मूले पर सभी पक्षों से बातचीत शुरू कर दी. एक तरफ कांग्रेस के नेता (खासकर जवाहरलाल नेहरू) विभाजन के सख्त खिलाफ थे, वहीं मुस्लिम लीग पाकिस्तान की अपनी मांग से पीछे हटने को तैयार नहीं थी. इस मुद्दे पर देश के विभिन्न हिस्सों में दंगे भी भड़क उठे थे. हालात इतने बदतर हो गए थे कि कांग्रेस के अंदर भी विभाजन को एक 'न टाली जा सकने वाली सच्चाई' के तौर पर देखने वाले लोगों की संख्या बढ़ने लगी.
वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन भी इस बात को समझ चुके थे कि अब विभाजन ही एकमात्र रास्ता बचा है. इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बाद 3 जून, 1947 को लॉर्ड माउंटबेटन ने आजादी से पहले विभाजन की एक रूपरेखा प्रस्तुत की, जिसके अनुसार-
1. ब्रिटिश भारत का विभाजन कर दो देश बनाए जायेंगे.
2. दोनों देशों का संविधान अलग होगा और संविधान निर्माण के लिए संविधान सभा भी अलग-अलग होगी.
3. देशी रियासतों को इस बात की आजादी होगी कि वे अपनी मर्जी से चाहें तो स्वतंत्र रहें अथवा भारत या पाकिस्तान, किसी एक में सम्मिलित हो जाएं.
4. बंगाल और पंजाब के मुस्लिम बहुल जिलों को मिलाकर दो अलग राज्य गठित करने की सिफारिश की गई.
5. उत्तर-पश्चिम सीमांत क्षेत्र (NWFP जहां से कपूर खानदान, दिलीप कुमार, शाहरुख खान समेत कई फिल्मी सितारे आते हैं) और असम के सिलहट जिले में जनमत सर्वेक्षण कराने की सिफारिश की गई.

लार्ड माउंटबेटन (फोटो: एएफपी)
14 जून 1947 को कांग्रेस की कार्यसमिति (AICC) ने बहुत बोझिल मन से भारत विभाजन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी, क्योंकि उस वक्त तक जैसे हिंसक और साम्प्रदायिक हालात पैदा हो गए थे, उसमें इस प्रस्ताव को स्वीकार करने के सिवा और कोई विकल्प भी नहीं बचा था. 4 जुलाई 1947 को ब्रिटेन की संसद ने भी भारत विभाजन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी.
इसके बाद ब्रिटेन से बैरिस्टर, जो नक्शा बनाने के काम में भी रुचि रखते थे और जिनका नाम सिरिल रेडक्लिफ था, उनको दिल्ली भेजा गया. 8 जुलाई 1947 को वे दिल्ली पहुंचे. उन्हें '3 जून प्रस्ताव' (माउंटबेटन प्रस्ताव) के अनुरूप दोनों प्रस्तावित देशों- भारत और पाकिस्तान का नक्शा बनाने का काम सौंपा गया.
अब रेडक्लिफ साहब के सामने दो बड़ी चुनौती थी. पहला यह कि समय बेहद कम था. दूसरा ये कि इतने कम समय में सीमावर्ती इलाकों का निर्धारण करने के लिए धार्मिक जनसंख्या के बीच किस प्रकार बीच का रास्ता निकाला जाए. एक तो इतना बड़ा देश और ऊपर से इतना हिंसक वातावरण.
भारत आने के बाद रेडक्लिफ साहब ने पूर्वी भारत का केवल एक हवाई सर्वेक्षण किया और इसके बाद दिल्ली में बैठकर ही कागज पर लकीरें खींच कर सीमा निर्धारण का कार्य पूरा कर दिया. इस सीमा निर्धारण के बाद बंगाल में जहां अबतक छिटपुट दंगे हो रहे थे, वहां अब साम्प्रदायिकता का रौद्र रूप सामने आना शुरू हो गया. पंजाब में भी दंगे शुरू हो गये. हजारों लोग मौत के घाट उतार दिए गए. नौबत यहां तक आ गई कि दंगों को शांत कराने के लिए महात्मा गांधी को बंगाल के नोआखली में कैंप करना पड़ा था.

सिरिल रेडक्लिफ
अब बात रेडक्लिफ साहब के बनाए नक्शे की
रेडक्लिफ ने अपने बनाए नक्शे में पंजाब के दो इलाकों - फिरोजपुर और गुरदासपुर को पाकिस्तान के हिस्से में रख दिया. जब यह खबर इन दोनों इलाकों तक पहुंची, तब माउंटबेटन ने रेडक्लिफ को आदेश दिया कि इन दोनों इलाकों को वापस भारत के नक्शे में शामिल किया जाए. तब जाकर इन इलाकों को भारतीय क्षेत्र में सम्मिलित किया गया.
पूर्वी क्षेत्र में रेडक्लिफ ने एक ऐसी न सुधारी जा सकने वाली गलती कर दी, जिसकी वजह से भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र स्थल अवरुद्ध हो गया. उन्होंने हिंदु बहुल चटगांव के इलाके को पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) को सौंप दिया, जबकि विभाजन का आधार ही धर्म के आधार पर जनसंख्या के प्रतिशत को बनाया गया था.
खैर, माउंटबेटन प्लान के तहत 14 अगस्त 1947 की रात पाकिस्तान को स्वतंत्रता दी गई, जबकि उसके अगले दिन यानी 15 अगस्त को भारत आजाद हुआ. आजादी के दो दिन बाद 17 अगस्त को रेडक्लिफ द्वारा तैयार भारत और पाकिस्तान का मानचित्र जारी किया गया.
क्या रेडक्लिफ को अपने किए पर कोई मलाल था?
वरिष्ठ पत्रकार और ब्रिटेन में भारत के उच्चायुक्त रहे कुलदीप नैयर को 50 के दशक में सिरिल रेडक्लिफ से मिलने का मौका मिला था. बकौल कुलदीप नैयर-
रेडक्लिफ लंदन के अपने छोटे से अपार्टमेंट में अकेले रहते थे. जब मैं उनसे मिलने पहुंचा, तो उनकी बातों से साफ लग रहा था कि उन्हें इस बात का बहुत दुख था कि उनकी वजह से, उनके बनाए नक्शे की वजह से इतना बड़ा कत्लेआम हो गया.रेडक्लिफ ने नैयर से यह भी कहा-
मैं तो लाहौर इंडिया को देना चाहता था, क्योंकि वहां हिंदुओ की जमीनें ज्यादा थीं. लेकिन दिक्कत यह थी कि पाकिस्तान के हिस्से कोई बड़ा शहर नहीं आ रहा था.अब 15 अगस्त, 1947 के तत्काल बाद की परिस्थितियों पर लौटते हैं
आजादी के तत्काल बाद दोनों देशो के सामने रिफ्यूजी समस्या सबसे बड़ी समस्या के तौर पर सामने आई. दोनों तरफ से बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक आबादी का पलायन हुआ. हालांकि भारत से होने वाले पलायन और पाकिस्तान के क्षेत्रों से होनेवाले पलायन में अंतर था.
पाकिस्तान से साम्प्रदायिक हिंसा का शिकार हुए लोग भारत आ रहे थे, जबकि भारत से पाकिस्तान जाने वाले वे लोग थे, जो पाकिस्तान को मुसलमानों की जन्नत समझ रहे थे और स्वेच्छा से जा रहे थे.
भारत का एकीकरण
1948 तक सरदार पटेल की कार्यकुशलता और नेहरू द्वारा पटेल पर दिखाए गए विश्वास के कारण भारत की भौगोलिक सीमा के दायरे में आने वाले सभी देशी रियासतों के भारत में विलय के साथ दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की नींव रखी गई.
ये स्टोरी हमारे साथी अभिषेक ने लिखी है.