राज से स्वराज. 2014 तक बस 7 एम्स खोले गए थे. जबकि मोदी सरकार के 48 महीनों के कार्यकाल में 13 एम्स और एम्स जैसे संस्थानों को हरी झंडी दी जा चुकी है.

ये बीजेपी के उस ट्वीट का स्क्रीनशॉट है. ट्वीट के साथ जो कार्ड है, उसमें बाईं तरफ कांग्रेस का कार्यकाल दिखाया गया है. दाहिनी तरफ बीजेपी ने अपने कार्यकाल की उपलब्धि दिखाई है.
2014 के चुनाव से पहले बीजेपी ने क्या वादा किया था? इस ट्वीट के साथ एक कार्ड भी था. एक तरफ कांग्रेस के 48 सालों का शासन. दूसरी तरफ मोदी सरकार के 48 महीनों का शासन. आप इस कार्ड को गौर से देखिए. इसमें मोदी सरकार वाली साइड में लिखा है- एम्स या एम्स जैसे संस्थान. इसके ऊपर एक स्टार बना है. जैसे बीमा के कागजों में होता है. नीचे एक शब्द में उस स्टार की व्याख्या है- अनाउंस्ड. यानी, इनकी घोषणा की जा चुकी है. पहली नजर में शायद आप इस स्टार वाले 'इंस्टिट्यूशन्स' पर गौर न करें. 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ने से पहले बीजेपी अपना चुनावी घोषणापत्र लाई थी. उसमें वादा किया गया था-
बीजेपी मेडिकल और पारामेडिकल कॉलेजों की संख्या बढ़ाएगी. ताकि मानव संसाधन के क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाया जा सके. बीजेपी हर एक राज्य में एम्स जैसा संस्थान खोलेगी.

दिल्ली के अलावा भोपाल, भुवनेश्वर, रायपुर, जोधपुर, पटना और ऋषिकेश में भी एम्स हैं.
RTI से मालूम चला, सरकार का दावा कितना सच्चा है भारत के अंदर मेडिकल फील्ड में एम्स एक मील का पत्थर है. न केवल इलाज के मामले में. बल्कि आम लोगों तक इलाज पहुंचाने के नजरिये से भी. और मेडिकल क्षेत्र से जुड़े रिसर्च के मामलों में भी दिल्ली वाले एम्स की बड़ी इज्जत है. एम्स की संख्या बढ़ाने और हर राज्य में एक एम्स खोलने के पीछे दो खास मकसद हैं. एक तो ये कि दिल्ली वाले एम्स पर से मरीजों का बोझ कम किया जाए. और दूसरा ये कि हर राज्य के पास एक एम्स हो, तो इससे वहां के लोगों को इलाज में सहूलियत मिलेगी. मोदी सरकार भले अपना चुनावी वादा पूरा न कर पाई हो, मगर 13 एम्स (या एम्स जैसे संस्थान) खोलना भी बड़ी बात है. मगर क्या ऐसा सच में हुआ है? सरकार के दावे की असलियत जानने के लिए इंडिया टुडे
ने 'राइट टू इन्फॉर्मेशन' का इस्तेमाल किया. स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के पास RTI आवेदन भेजा. जो जवाब मिला, उससे कुछ बड़े काम की बातें मालूम चली हैं. क्या पता चला, नीचे पॉइंट्स में जान लीजिए-

ये नई दिल्ली के AIIMS की इमारत है. यहां देशभर से मरीज आते हैं. महीनों नहीं, बल्कि सालों बाद का तक का नंबर मिलता है उनको.
एम्स उत्तर प्रदेश
कहां बनना है: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं योगी आदित्यनाथ. इनका इलाका है गोरखपुर. यहां महादेव नाम की जगह है. झारखंडी इलाके में कुल लागत: 1,011 करोड़ रुपये अभी तक कितना फंड जारी हुआ: 98.34 करोड़ रुपये है डेडलाइन: मार्च 2020
कुल लागत का महज 10 फीसद अभी तक दिया गया है. प्रॉजेक्ट पूरा होने की डेडलाइन बस 21 महीने दूर है. इतने वक्त में काम पूरा हो जाना मुमकिन तो नहीं लगता.
एम्स आंध्र प्रदेश
कुल लागत: 1,618 करोड़ रुपये अभी तक कितना फंड जारी हुआ: 233.88 करोड़ रुपये डेडलाइन: अक्टूबर 2020
इस मियाद में यहां एम्स बनना नामुमकिन ही लग रहा है.
एम्स पश्चिम बंगाल
कहां बनना है: कल्याणी कुल लागत: 1,754 करोड़ रुपये अभी तक कितना फंड जारी हुआ: 278.42 करोड़ रुपये डेडलाइन: अक्टूबर 2020
अगर काम तेज किया जाए, तो हो सकता है कि तय वक्त में प्रॉजेक्ट पूरा कर लिया जाए.
एम्स महाराष्ट्र
कहां बनना है: नागपुर कुल लागत: 1,577 करोड़ रुपये अभी तक कितना फंड जारी हुआ: 231.29 करोड़ रुपये डेडलाइन: अक्टूबर 2020
एम्स असम
कहां बनना है: जालाह गांव, कामरूप जिला कुल लागत: 1,123 करोड़ रुपये अभी तक कितना फंड जारी हुआ: 5 करोड़ डेडलाइन: अप्रैल, 2021
एम्स पंजाब
कहां बनना है: बठिंडा कुल लागत: 925 करोड़ रुपये अभी तक कितना फंड जारी हुआ: 36.57 करोड़ रुपये डेडलाइन: जून, 2020
एम्स जम्मू-कश्मीर
कहां बनना है- जम्मू में: विजयपुर, सांबा कश्मीर में: अवंतीपोरा, पुलवामा
कुल लागत: इसके लिए कोई फंड तय ही नहीं किया गया. फंड से जुड़ी कोई मंजूरी ही नहीं मिली. अभी तक कितना फंड जारी हुआ: कुल लागत तय नहीं हुई. पैसा आवंटित नहीं किया गया. लेकिन 90.84 करोड़ रुपये जारी भी हो गए. डेडलाइन: अभी कुछ तय ही नहीं हुआ.
एम्स हिमाचल प्रदेश
कहां बनना है: बिलासपुर कुल लागत: 1,350 करोड़ रुपये अभी तक कितना फंड जारी हुआ: एक भी रुपया नहीं डेडलाइन: दिसंबर, 2021
एम्स झारखंड
कहां बनना है: देवगढ़ कुल लागत: 1,103 करोड़ रुपये अभी तक कितना फंड जारी हुआ: 9 करोड़ रुपये डेडलाइन: 2021
एम्स बिहार 2015-16 के बजट में इस प्रॉजेक्ट का जिक्र था. तीन साल बीत चुके हैं. अब तक कोई जगह तय नहीं हुई. न कोई फंड दिया गया. न कोई डेडलाइन ही तय हुई. सब हवा में है. वैसे बिहार की राजधानी पटना में एक एम्स है.
एम्स तमिलनाडु बिल्कुल बिहार जैसा केस है. साइट तय नहीं. फंड दिए नहीं गए. न कोई डेडलाइन.
एम्स गुजरात बिहार और तमिलनाडु जैसी हालत है. सब हवा में है. न साइट मिली, न फंड दिया गया, न समयसीमा ही तय हुई.
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