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मिर्चपुर कांडः जब एक दलित बाप-बेटी को ज़िंदा जला दिया गया था

क्योंकि दलित का एक कुत्ता 'ऊंची' जात वाले पर भौंक दिया था.

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मिर्चपुर दलित हिंसा के बाद दिल्ली में प्रदर्शन करते दलित गुट. (फोटोःपीटीआई)
इंसान का सबसे पुराना दोस्त है कुत्ता. ऐसा जानवर जो प्यार जताना जानता है. और गुस्सा भी. नाराज़गी भी. सब इतना मानवीय कि हम सोचते हैं कि काश ये जानवर हमारी ज़बान में बात करता. तो कितनी बातें होतीं.
लेकिन कभी-कभी कुत्ता राहगीर पर भौंक देता है. कभी राहगीर किनारे से निकल जाता है तो कभी पत्थर उछाल देता है. अगर मैं आपको बताऊं कि इस बात पर 17 साल की एक लड़की और 60 साल के उसके पिता को ज़िंदा जला दिया गया तो आपको कैसा लगेगा. हरियाणा के हिसार में एक गांव मिर्चपुर में ऐसा ही हुआ था. दलितों की एक पूरी बस्ती जला दी गई. लूटपाट हुई. 150 से ज़्यादा दलित परिवार अपने ही देस में रेफ्यूजी की ज़िंदगी जीने को मजबूर हुए.
दिल्ली हाईकोर्ट ने इस मामले में 20 और लोगों को सज़ा सुना दी है. पहले से सज़ा पाए 13 लोगों की सज़ा बरकार रखते हुए कुछ की सज़ा बढ़ा भी दी है. तो सज़ा पाए लोग हुए कुल 33. इनमें से 12 लोगों को उम्रकैद की सज़ा हुई है. अब ये लोग जेल जाएंगे या अपील करेंगे. कानूनी प्रक्रिया चलेगी. इसे एक तरह का क्लोज़र माना जा सकता है. कि न्याय हुआ. लेकिन लल्लनटॉप को लगता है कि आपको ये कहानी जाननी चाहिए. कि आपका वो दंभ टूटे कि जाति अब नहीं रही. सब बढ़िया चल रहा है. रामराज्य आ गया है.
क्या हुआ था उस दिन?
हिसार में ही पड़ता है नारनौंद पुलिस थाना. इस थाने में दर्ज एफआईआर नंबर 166 के मुताबिक 19 अप्रैल, 2010 को राजिंदर पाली नाम का एक जाट लड़का मिर्चपुर की वाल्मीकि कॉलोनी से होते हुए जा रहा था. वाल्मीकि दलितों में आते हैं. इस लड़के ने शराब पी रखी थी. रूबी नाम की एक कुतिया ने राजिंदर की ओर देखकर भौंक दिया. राजिंदर ने एक ईंट रूबी की ओर उछाल दी. ये सब देख रहे योगेश ने राजिंदर को टोका. योगेश वाल्मीकि समाज से आता था. दलित समाज से इसके बाद बहस हुई और मारपीट. एक वाल्मीकि और एक जाट के बीच मारपीट. हमारे मुल्क में ये किसी बड़े कांड के लिए पर्याप्त भूमिका है. एक तरह का टाइम बम, जो कभी भी फट जाए.
सांकेतिक तस्वीर. हरियाणा में दलितों के खिलाफ हिंसा का लंबा इतिहास रहा है. कई बार ये हुआ कि पूरी की पूरी दलित बस्तियां जला दी गईं. (फोटोःपीटीआई)
सांकेतिक तस्वीर. हरियाणा में दलितों के खिलाफ हिंसा का लंबा इतिहास रहा है. कई बार ये हुआ कि पूरी की पूरी दलित बस्तियां जला दी गईं. (फोटोःपीटीआई)

कुछ लोग एक किस्सा और सुनाते हैं. कि मिर्चपुर कांड की भूमिका रूबी के भौंकने से कहीं पहले लिख दी गई थी. मिर्चपुर में ही फूलन देवी का मंदिर है. हर साल बसंत में यहां एक बड़ा मेला भरता है जिसमें पूरे हरियाणा से लोग आते हैं. 2009 और 2010 में इस मेले के आयोजन का ठेका दलितों को मिला. मिर्चपुर और दूसरे इलाकों में दलितों की लंबे समय से शिकायत रही है कि 'अगड़ी' जाति के लोग वाल्मीकि समाज की औरतों के साथ बदसलूकी करते रहते हैं. मिर्चपुर के इस मेले के दौरान ये बढ़ जाता था. क्योंकि भीड़ बहुत होती थी. 2010 में जब ये फिर हुआ तो वाल्मीकि जाटों के आगे अड़ गए.
शायद यही वजह रही कि तनाव कम करने की सोचकर दो वाल्मीकि बुज़ुर्ग वीर भान और रूबी के मालिक करण सिंह जाटों से माफी मांगने जाते हैं. इन्हें भी पीटा जाता है. वाल्मीकि समझ जाते हैं कि बात इतनी आसानी से खत्म होने वाली नहीं है. तो वो पुलिस से मदद मांगते हैं. मदद की जगह मिलता है हुक्म. कि जाटों से समझौता कर लो. 21 अप्रैल की सुबह नारनौंद थाने के एसएचओ विनोद कुमार काजल और नारनौंद तहसील के नायब तहसीलदार जागे राम मिर्चपुर पहुंचते हैं. इन्हीं लोगों को जाटों और वाल्मीकियों में समझौता करवाना था.
औरतों ने गहने लूटे, मर्दों  ने बस्ती जला दी
1 मई, 2010 को ओपन मैगज़ीन में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इसी वक्त तकरीबन 300-400 जाटों की भीड़ जिसमें मर्द और औरत दोनों थे, ने वाल्मीकि बस्ती को घेर लिया. उनके पास केरोसीन से भरी कैन, लाठियां और खेतों में काम आने वाले औज़ार थे. ओपन की रिपोर्ट के मुताबिक एसएचओ और तहसीलदार ने भीड़ को एक घंटा दिया कि जो करना है कर लो. पहले औरतों ने वाल्मीकि बस्ती से गहने और कैश लूटे. इसके बाद वाल्मीकि बस्ती के घरों में चुन-चुनकर आग लगा दी गई. पीड़ितों ने मीडिया से ये तक कहा कि आग लगाने से पहले उनके घरों के आसपास रखी पानी की टंकियां तोड़ दी गईं कि आग बुझाई न जा सके. सुमन और उसके पिता ताराचंद इसी आग में ज़िंदा जल गए. सुमन को पोलियो था. इसलिए उसके लिए आग से भागना बड़ा मुश्किल रहा होगा. उसका शव बाद में फायरब्रिगेड को मिला. ताराचंद की मौत अस्पताल में हुई.
सांकेतिक तस्वीर. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि आग लगाने वाले ये जानते थे कि सुमन और उसके पिता घर के अंदर हैं. (फोटोःपीटीआई)
सांकेतिक तस्वीर. कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि आग लगाने वाले ये जानते थे कि सुमन और उसके पिता घर के अंदर हैं. (फोटोःपीटीआई)

दलितों का डर कि हरियाणा में उनकी सुनवाई हो ही नहीं सकती
घटना के बाद पुलिस ने 29 जाटों को गिरफ्तार किया और SHO काजल सस्पेंड हुए. लेकिन काजल मिर्चपुर के एक जाट नेता के करीबी थे. हादसे के तीन दिन बाद मिर्चपुर के पशु चिकित्सालय में 43 खापों की एक महाखाप पंचायत हुई जिसमें गिरफ्तार जाटों को छोड़ने और SHO काजल को बहाल करने की मांग की गई. इस महाखाप में तकरीबन 2000 लोग थे. लेकिन मिर्चपुर प्रशासन को इस मीटिंग का पता ही नहीं चला.
हरियाणा सरकार ने हादसे के बाद ऐलान किया था कि ताराचंद के तीनों बेटों को नौकरी और करीब 25 लाख मुआवजा दिया जाएगा. लेकिन दलितों का भरोसा हरियाणा सरकार और पुलिस पर से पूरी तरह खत्म हो गया था. इसलिए घटना के बाद मिर्चपुर में शांति बनाए रखने के लिए केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल (CRPF) के 75 जवान हर वक्त तैनात रहते थे. ये जवान दिसंबर 2016 तक गांव में रहे. तब जाकर हालात कुछ सामान्य हुए और ये ज़िम्मेदारी स्थानीय पुलिस को दी गई.
जुलाई में कांग्रेस सरकार ने पूर्व जस्टिस इकबाल सिंह की अध्यक्षता में जांच कमीशन गठित किया. कुल 103 आरोपी गिरफ्तार हुई. इनमें से पांच नाबालिग भी थे. मामला चला 97 लोगों पर. दलितों को डर था कि हरियाणा में उनके केस की निष्पक्ष सुनवाई नहीं हो सकती. तो उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका लगा दी. इसी याचिका पर फैसला देते हुए 9 दिसंबर 2010 को सुप्रीम कोर्ट ने मिर्चपुर केस को हिसार की अदालत से दिल्ली की अदालत में शिफ्ट कर दिया.
मिर्चपुर में पीड़ितों से बात करता अनुसूचित जाति आयोग (SC कमीशन) का दल. (फोटोःपीटीआई)
मिर्चपुर में पीड़ितों से बात करता अनुसूचित जाति आयोग (SC कमीशन) का दल. (फोटोःपीटीआई)

'सुमन और ताराचंद अंदर थे, जानकर आग लगाई थी जाटों ने'
जनवरी 2011 में जाटों और वाल्मीकियों में फिर मारपीट हो गई और 100 से अधिक परिवार गांव छोड़ कर कैमरी रोड स्थित तंवर फार्म हाउस में रहने आ गए. इसी साल 31 अक्टूबर को इस मामले में पहला फैसला आया. रोहणी कोर्ट ने 15 लोगों को सजा सुनाई. इनमें से 3 लोगों को उम्रकैद हुई थी. 82 आरोपी बरी हो गए. इसके बाद मामला दिल्ली हाईकोर्ट गया. 24 अगस्त को कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि जाट समुदाय के लोगों ने वाल्मीकि बस्ती पर ''सोच-समझकर पूरी तैयारी के साथ'' हमला किया था. आरोपी ये जानते थे कि सुमन और ताराचंद घर के अंदर थे, फिर भी उन्होंने घर को आग लगा दी.
'पाकिस्तान जाएंगे, लेकिन मिर्चपुर नहीं'
मिर्चपुर कांड के बाद जब नेशनल कमीशन फॉर शेड्यूल्ड कास्ट्स ने मिर्चपुर का दौरा किया तो कमीशन के अध्यक्ष बूटा सिंह से वाल्मीकियों ने कहा कि वो अब गांव में नहीं रहना चाहते. ये क्षणिक गुस्सा लग सकता है. लेकिन बार-बार होने वाले विवाद और फिर होने वाली हिंसा से वाल्मीकियों का आजिज़ आना लाज़मी था.
2014 में सुप्रीम कोर्ट ने तंवर फार्म हाउस में रह रहे लोगों का हाल जानने के लिए दो सदस्यीय कमेटी बनाई. इसमें एक एक्सपर्ट शमीम मोदी TISS से भी थे. वही TISS जिसकी रिपोर्ट से मुज़फ्फपुर शेल्टर होम रेप केस का खुलासा हुआ था. कमिटी के सामने एक पीड़ित ने कहा था कि चाहे उसे पाकिस्तान जाकर गुलामी करनी पड़ी. मगर मिर्चपुर किसी हालत में नहीं जाएंगे. इस कमेटी ने कहा था कि मिर्चपुर के दलितों को एक टाउनशिप बनाकर कहीं और बसाना ज़रूरी है. अप्रैल 2018 में खट्टर सरकार ने ढूढर गांव में इस टाउनशिप को दीनदयालपुरम नाम से बसाने का ऐलान किया है. इसमें 256 लोगों को प्लॉट दिए जाने हैं.


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