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'महाभारत' सीरियल के 'समय', जिन्हें कभी 'भीष्म पितामह' ने लाइन में लगाया था

'गांधी' फिल्म बनाने वाले रिचर्ड एटेनबरो ने उनको दिया था बहुत सारा रुपया.

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'मैं समय हूं' (महाभारत सीरियल); हरीश भिमानी अपनी पत्नी के साथ
"मैं समय हूं." बीआर चोपड़ा की 'महाभारत' के हर एपिसोड की शुरुआत ऐसे ही होती. इसी आवाज़ से. ये आवाज़ है हरीश भिमानी की. वे 22,000 से ज़्यादा विज्ञापन, डॉक्यूमेंट्री, फिल्म, सीरियल में अपनी आवाज़ दे चुके हैं. इंटरनेशनल लेवल के प्रोग्राम में एंकरिंग करते हैं. रॉयल अल्बर्ट हॉल से लेकर मैडिसन स्क्वेयर तक. टीवी और रेडियो से उनका गहरा नाता रहा है.
हरीश भिमानी ने 'राज्यसभा टीवी' के प्रोग्राम 'गुफ़्तगू' पर फिल्म पत्रकार इरफ़ान से बात की.
रेडियो सुनने की चीज़ है
हरीश भिमानी अपने बचपन के बारे में बताने लगे-
सुनकर बहुत कौतूहल होता था. ये कौन लोग हैं, जो रेडियो के अंदर इस तरह बोलते हैं. हमारे आसपास तो कोई इतने सुंदर ढंग से नहीं बोलता. पिताजी को कहा कि मुझे भी रेडियो में जाना है. पिताजी दंग रह गए. बोले कि रेडियो सुनने के लिए होता है. रेडियो चलाओ, अच्छी-अच्छी बातें सुनो, सुनकर बंद करो. कभी-कभार सिनेमा के गीत भी सुन लो. लेकिन रेडियो में जाने की मत सोचो.
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राज्यसभा टीवी से बात करते हुए हरीश भिमानी (साभार: राज्यसभा टीवी)

रेडियो के अंदर छुपे हुए आदमी
रेडियो ऐसी चीज़ थी कि गहनों को हाथ लगा लो, लेकिन रेडियो को नहीं. एक दिन पिताजी घर पर नहीं थे. हरीश ने चुपके से रेडियो उतारा. मां रसोई में काम कर रही थीं. एक ज़ोर की चीख सुनकर चौंक गईं. देखा कि हरीश को करंट लग गया था. उन्होंने रेडियो को पीछे से खोला हुआ था. रेडियो के अंदर बैठे हुए लोगों को बाहर निकालने के लिए.
मां ने माथा पकड़ लिया. समझाया कि ऐसे थोड़े ना होता है कि रेडियो के अंदर आदमी बैठे हों.
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हरीश भिमानी की एक पुरानी तस्वीर (साभार: महाभारत फेसबुक पेज)

पहले रेडियो ऑडिशन में कहा गया- गिनती सुनाओ
हरीश कॉलेज जाने लगे. पास में मिला आकाशवाणी का दफ़्तर. जहां वे रेडियो वाले बैठते थे, जिन्हें वे बचपन से ढूंढ रहे थे. एक दिन वहां ऑडिशन चल रहे थे. लाइन में आगे एक लंबा लड़का खड़ा था. उसने उन्हें अपने सामने लाइन में लगा लिया.
उनका पहला ऑडिशन था. बहुत से सवाल पूछे गए. उस सब के बाद कहा -
"25 से शुरू कर गिनती सुनाओ."
गिनती बहुत टेढ़ा मामला होता है. आदमी इकतीस को इक्कतीस बोल देता है. या उनचास को उन्नचास. लेकिन उन्हें इसका सही ज्ञान था. आखिरकार दो लोगों को चुना गया. एक हरीश और दूसरा वो लंबा लड़का, जिनका नाम था मुकेश खन्ना. वही, जिन्होंने महाभारत में भीष्म पितामह का रोल किया है. साथ ही 'शक्तिमान' भी बने हैं.
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हरीश भिमानी

"यहां तो लूट मची है"  
आकाशवाणी में उन्हें 15 रुपए मिलते थे. वहां से उन्होंने 'विविध भारती' का रुख किया. वहां पर किसी ने कहा,
"तुम्हारी आवाज़ में तो कॉमेंट्री है."
इस बात का मतलब उन्हें फिल्म्स डिवीज़न जाकर समझ आया. वहां डॉक्यूमेंट्री बनती थी. शुक्रवार को टीवी पर चलने वाली न्यूज़ रील भी तैयार होती थी. उन्होंने पूछा कि पैसा कितना मिलेगा. बताया गया - दस मिनट के लिए 125 रुपए. हैरानी से उनका मुंह खुला रह गया. बोले कि यहां तो लूट मची हुई है.
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मराठी डॉक्यू-फीचर 'माला लाज वाटत नाही' में सर्वश्रेष्ठ वॉइस ओवर के लिए हरीश को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार मिला

न्यूज़ एंकर बनकर स्टार हो गए
दूरदर्शन पर फीचर फिल्म दिखाए जाना शुरू हुआ था. उस फिल्म के बीच में आती थी ख़बरें. जिन्हें पढ़ने का मौका हरीश को मिला. एक और ऑडिशन के बाद. इतने पॉपुलर हो गए कि जहां भी जाते, लोग घेर लेते. हर कोई उन्हें पहचान लेता.
एशियन पेंट्स वालों की उन पर नज़र पड़ी. रेडियो पर आने वाले उनके विज्ञापन के लिए. विज्ञापन भी मिला, साथ ही 'गीत गुंझार' प्रोग्राम भी मिल गया. जो रेडियो में टॉप का प्रोग्राम था. इस तरह वे बन गए 'द संडे ब्रॉडकास्टर'. टीवी पर भी आ रहे थे और रेडियो पर भी.
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कलिंग लिट्ररी फेस्टिवल में हरीश भिमानी

'दीदी से मिलना है'
फिर एक शख्स ने उन्हें एप्रोच किया. बोले-
सीधी बात पूछ रहा हूं. सीधा जवाब देना. तुम बोलने वाले बहुत घुमा-घुमाकर बोलते हो. लता जी का कॉन्सर्ट है. उसकी एंकरिंग करनी है. कितना रुपया लोगे.
हरीश बोले-
लेने की छोड़िए, पूछिए कि कितने रुपए दूंगा.
उन्हें डांट पड़ गई कि सीधी बात करो. पहले ही कह चुके हैं. बात हुई 1000 रुपए की. कुछ दिन बाद बुलावा आ गया कि आ जाना, दीदी से मिलना है. लता समय की पाबंद थी और हरीश को उस दिन देर हो रही थी. ऐसी जगह फंसे हुए, जहां यह भी नहीं कह सकते थे कि जल्दी छोड़ दो.
'गांधी' फिल्म के निर्देशक रिचर्ड एटेनबरो उनका ऑडिशन ले रहे थे. फिल्म को हिंदी में डब किया जा रहा था. शुरुआत के नैरेशन के लिए आवाज़ चाहिए थी. ऑडिशन हुआ. रिचर्ड ने कहा कि हमारे पास इसके लिए ज़्यादा पैसा नहीं है. 3500 मिलेगा. उनसे कुछ बोलते ना बना. कहा कि ठीक है.
उसके बाद कार को स्पीड से भगाते हुए लता के घर पहुंचे. वह मीटिंग भी सफल रही.
ट्विटर पर उन्होंने लता मंगेशकर के साथ एक फोटो लगाई है. जाने-माने म्यूज़िक कंपोज़र खैय्याम को श्रद्धांजलि देने के लिए.
'समय' की रफ़्तार पर महाभारत
उन्हें महाभारत में आवाज़ देने के लिए बुलाया गया. वहां पर सामने तीन बड़ी हस्तियां. जाने-माने प्रोड्यूसर-निर्देशक बी.आर.चोपड़ा. लेखक डॉक्टर राही मासूम रज़ा. विविध भारती सेवा के फाउंडर और गीतकार पंडित नरेंद्र शर्मा. हरीश ने आदतन स्क्रिप्ट मांग ली. दो पन्ने थे, जिन्हें झट से हरीश ने माइक में पढ़ दिया. उनको रोक दिया गया-
नहीं, ये तो डॉक्यूमेंट्री जैसा लग रहा है.
उस दिन काफ़ी कोशिश की. बात नहीं जमी. थक-हारकर घर चले आए. कुछ दिन बाद फिर बुलाए गए. उन्होंने पूछा कि आपको भगवान की आवाज़ चाहिए. जवाब मिला नहीं. तो आकाशवाणी की आवाज़ चाहिए? नहीं. तो फिर क्या चाहिए? राही बोले कि समझो बेटा, ये समय है.
तब हरीश ने कहा कि इंसान नहीं, भगवान नहीं. तो कुछ ऐसा करें कि आवाज़ तो मेरी हो, लेकिन आवाज़ की लय ग़ैर-मानवीय हो. राही बोले कि अरे बेटा, हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े-लिखे को फ़ारसी क्या. शुरू हो जाओ. हरीश प्रैक्टिस करने लगे. मैं समय हूं.
ज़ोर से आवाज़ आई कि बस यही. इसे बदलना नहीं. इसी को पकड़े रहना. रिकॉर्डिस्ट से पूछा कि ये रिकॉर्ड हुआ है ना. हरीश बोले कि ये तो मैं ऐसे ही प्रैक्टिस कर रहा था. बहुत धीमा बोला है. अब करता हूं सही से. राही अड़ गए कि नहीं, यही सही है. हरीश ने कहा कि लोग बोर हो जाएंगे इतना धीमा सुनकर. टीवी बंद कर देंगे. लेकिन राही, बी.आर.चोपड़ा और नरेंद्र शर्मा, तीनों को ही वह जम गया था. बाद में वही स्टाइल इतिहास में दर्ज हो गया.
लीजिए, उनको लाइव प्रोग्राम में यह नैरेशन करते हुए सुनिए -



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