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तंगी में भरा प्रीमियम, तब भी बीमारी में नहीं मिला फायदा, लोग ऐसे ही नहीं कह रहे कि नहीं लेना बीमा!

सैलरी से ज्यादा तेजी से लोगों के प्रीमियम बढ़ रहे हैं. क्लेम सेटलमेंट में बीमा कंपनियां झटका दे रही हैं. लोगों को लग रहा है कि इतना सब झेलकर बीमा लेने का क्या फायदा है.

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अब बहुत लोग बीमा लेने से बचने लगे हैं
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सोनू विवेक

जिस हिसाब से स्वास्थ्य सुविधाओं का खर्च बढ़ रहा है बिना इंश्योरेंस (Insurance) के ये खर्चे उठाना मुमकिन नहीं है. आदमी इंश्योरेंस लेकर ये सुनिश्चित करता है कि कल को कोई अनहोनी होती है तो परिवार पर कोई आर्थिक बोझ ना पड़े. लेकिन आज की तारीख में हाल ऐसा है कि बोझ हल्का करने वाले इंश्योरेंस ही लोगों की जेब पर बोझ बन गए हैं.

सैलरी से ज्यादा तेजी से प्रीमियम के दाम बढ़ रहे हैं. हाई प्रीमियम (High Insurance premium) देने के बाद भी गारंटी नहीं है कि क्लेम मिल ही जाएगा. रिजेक्शन दर बढ़ी है. लिहाजा लोग अब इंश्योरेंस से कन्नी काटते जा रहे हैं. लोकल सर्किल्स की सर्वे इस बात को साबित करती है. सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, बीते 3 साल में करीबन 50% पॉलिसी होल्डर्स ने हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम में दिक्कतों का सामना किया है. किसी का क्लेम रिजेक्ट (Claim Insurance) हो गया तो किसी को सिर्फ आंशिक रकम मिली. 

लोकल सर्किल्स ने 327 जिलों में एक लाख लोगों के साथ ये सर्वे किया था. उसके मुताबिक, खराब हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम सर्विस से तंग आकर लोग अपना कवरेज घटाने लगे हैं. तो कई लोग पूरी तरह इंश्योरेंस से ही किनारा कर रहे हैं.

आंकड़े भी इसकी तस्दीक करते हैं. बीमा क्षेत्र की नियामक संस्था है इंश्योरेंस रेगुलेटरी एंड डिवेलपमेंट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (IRDAI). उसके आंकड़े बताते हैं कि वित्त वर्ष 2024 में 19 पर्सेंट ज्यादा हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम रिजेक्ट किए गए. इनकी रकम कुल 26 हजार करोड़ के आसपास थी. कुल क्लेम रिक्वेस्ट में से 11 पर्सेंट क्लेम रिजेक्ट कर दिए गए. जबकि, 6 पर्सेंट अभी पेडिंग पड़े हैं. सर्वे में ये भी बताया गया है कि इंश्योरेंस से किनारा करने वालों में सबसे ज्यादा आबादी तंदुरुस्त युवा हैं. 

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वित्त वर्ष 24 में 19% क्लेम रिजेक्शन बढ़े हैं.

इंश्योरेंस को लेकर लोगों के टूटते भरोसे के पीछे मुख्यतः दो वजहे हैंः-

- क्लेम की जटिल प्रक्रिया
- महंगा प्रीमियम और ऊपर से जीएसटी का बोझ

युद्ध के मैदान से कम नहीं क्लेम प्रक्रिया

इरडा का आदेश है कि अस्पतालों को कैशलेस डिस्चार्ज एक घंटे के अंदर निपटाना होगा. मगर लोकल सर्किल्स की रिपोर्ट बताती है कि 60% मरीजों को 6-48 घंटे तक इंतजार करना पड़ा. सिर्फ 8% लोगों ने कहा कि कंपनियों ने फटाफट एक्शन लिया और उन्हें तुरंत सेटलमेंट मिल गया.

सहजमनी और सेबी रजिस्टर्ड इनवेस्टमेंट एडवाइजर अभिषेक कुमार ने इंडिया टुडे को बताया कि कई क्लाइंट्स क्लेम प्रक्रिया में देरी की शिकायत करते हैं. कुछ मामलों में तो क्लेम रिजेक्ट कर दिया गया था.

ज्यादातर मामलों में पेपरवर्क में गड़बड़ी, पहले से मौजूद बीमारी के बारे में जानकारी नहीं देना, प्रीमियम का पेमेंट कभी छूट गया या मेडिकल से संबंधित जरुरी डॉक्यूमेंट्स जमा नहीं कराने पर ही क्लेम रिजेक्ट किया जाता है और पॉलिसी होल्डर और चिढ़ जाते हैं. इसलिए बेहतर होगा कि पॉलिसी लेते समय या क्लेम फॉर्म देते समय ये सुनिश्चित कर लें कि सही जानकारियां ही भरी जाएं. कम से कम इस वजह से तो क्लेम रिजेक्ट होने की संभावना खत्म हो जाए. 

टैक्स का बोझ

इंडिया में इंश्योरेंस प्रीमियम पर 18% का जीएसटी लगती है. इस वजह से भी लोग खासकर हेल्थ और टर्म लाइफ इंश्योरेंस से किनारा कर रहे हैं. सीनियर सिटीजन के लिए स्थिति और खराब है. एक तो उनका प्रीमियम पहले से महंगा होता है. ऊपर से 18% जीएसटी. उनके लिए और इंश्योरेंस का खर्चा वहन करना और मुश्किल हो जाता है.

बीडीओ इंडिया में इनडायरेक्ट टैक्स पार्टनर कार्तिक मनी ने कहा, जीएसटी लगने के बाद प्रीमियम बहुत महंगा हो जाता है. प्रीमियम और टैक्स भरने का क्या फायदा अगर जरूरत पड़ने पर क्लेम ही नहीं मिल रहा तो. इसलिए लोग अब प्रीमियम पर सवाल उठा रहे हैं.

सहजमनी के अभिषेक कुमार ने कहा, लोगों के प्रीमियम में 20 फीसदी जीएसटी होता है. अगर जीएसटी नहीं होता तो लोग इस पैसे का कवर बढ़ा सकते थे या कहीं और खर्च कर सकते थे. अगर आपके यहां मजबूत हेल्थ सिस्टम नहीं है तो इंश्योरेंस पर जीएसटी लोगों के लिए बहुत भारी बोझ बन जाता है. खासकर मिडिल क्लास के लिए.

कैसा रहेगा अगर बीमा से हट जाए टैक्स?

लोग लंबे समय से मांग कर रहे हैं कि हेल्थ और टर्म लाइफ इंश्योरेंस को जीएसटी से फ्री किया जाए. अगर सभी पॉलिसी को जीएसटी फ्री नहीं किया जा सकता तो कम से कम कम कवरेज और आवश्यक कैटेगरी में आने वाली बीमा पॉलिसी को तो छूट दी ही जा सकती है.

कुमार ने कहा, कई विकसित देशों जैसे कि कनाडा और यूरोपियन यूनियन में इंश्योरेंस पर GST और VAT से छूट दी गई है. हमारे यहां ना तो टैक्स से छूट है ना ही हेल्थ सिस्टम मजबूत है. हालांकि, कार्तिक मनी का कहना है कि अगर पॉलिसी को जीएसटी फ्री कर दिया जाता है तो बीमा कंपनियां टैक्स क्रेडिट नहीं ले पाएंगी. भरपाई करने के लिए कंपनियां प्रीमियम बढ़ाने लगेंगी. बेहतर होगा कि जीएसटी रेट हटाने की बजाय घटाकर 5 पर्सेंट कर दिया जाए. ऐसे केस में पॉलिसी होल्डर्स को फायदा मिल सकता है.

इरडा के पास बीमा क्लेम से जुड़ी शिकायतें भी आती हैं. उसमें नॉन लाइफ इंश्योरेंस सेगमेंट से ज्यादातर शिकायतें क्लेम में देरी, क्लेम रिजेक्शन या क्लेम सेटलमेंट अमाउंट से जुड़ी थीं. वित्त वर्ष 2023 में इऱडा के पास 2 लाख शिकायत आई थीं.

वित्त वर्ष 2022 में लाइफ इंश्योरेंस सेगमेंट में 15,088 क्लेम तो सीधे-सीधे रिजेक्ट कर दिए गए थे. ये सारे क्लेम 1206 करोड़ से ज्यादा की रकम के थे. ज्यादातर क्लेम कागजी गड़बड़ियों की वजह से थे. जैसे कि कहीं एड्रेस गलत था तो कहीं नॉमिनी की डिटेल गलत भरी हुई थी.

कुल मिलाकर इस सर्वे से ये पता चला है कि लोग इंश्योरेंस प्रीमियम की बढ़ती दरों से परेशान हैं. प्रीमियम मन मार कर अगर देने को राजी भी हैं तो उन्हें क्लेम प्रक्रिया पर बिल्कुल भरोसा नहीं है. इसलिए लोग अब इंश्योरेंस लेने से हिचकने लगे हैं.

अभिषेक कुमार का कहना है कि हम लोगों को हमेशा यही सुझाव देते हैं कि उनके पास एक इमरजेंसी फंड होना ही चाहिए. ताकि कल को क्लेम में कोई दिक्कत आए तो आपका काम ना रुके.

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