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Lok Sabha Election 2024: बीजेपी के मिशन 400 पर यूपी की ये सीटें लगा सकती हैं बट्टा

Lok Sabha Election 2019 में यूपी की तीन सीटें ऐसी थीं, जहां हार-जीत का अंतर दस हजार से भी कम का था. एक सीट पर तो BJP को महज 181 वोटों से जीत मिली थी.

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लोकसभा में बीजेपी को मुश्किल में डाल सकती हैं यूपी की 10 सीटें (सांकेतिक फोटो)

लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha Elections 2024) की रणभेरी किसी भी वक्त बज सकती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की अगुवाई में बीजेपी मिशन 400 (BJP's Mission 400) का लक्ष्य हासिल करने का सपना देख रही है. लिहाजा यूपी (UP Politics) की 80 लोकसभा सीटों पर जी जान लगा देना, भाजपा की जरूरत भी है और मजबूरी भी. पश्चिमी यूपी में रालोद मुखिया जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) और पूर्वांचल में सुभासपा प्रमुख ओपी राजभर (OP Rajbhar) को एनडीए (NDA) में शामिल करना इसी रणनीति का हिस्सा माना जा सकता है. बावजूद इसके देश के सबसे बड़े सूबे की दस लोकसभा सीटें ऐसी हैं, जो भारतीय जनता पार्टी के विजयरथ की राह में कांटे बो सकती हैं.

उत्तर प्रदेश में करीब दस ऐसी लोकसभा सीटें हैं, जहां पिछले चुनावों में जीत हासिल करने के लिए BJP को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ा था. ऐसी ही एक सीट है मछली शहर (Machhali Shahar Lok Sabha Seat). जौनपुर जिले में आने वाली ये संसदीय सीट यूं तो भाजपा के ही खाते में है, मगर 2019 के लोकसभा चुनावों में यहां बीजेपी प्रत्याशी बीपी सरोज को महज 181 वोटों के अंतर से जीत मिली थी.

पश्चिमी यूपी की फिरोजाबाद संसदीय सीट (Firozabad Lok Sabha Seat) भी ऐसी ही एक सीट है, जहां इस बार BJP को जीत के लिए खून-पसीना एक करना पड़ सकता है. 2019 में यहां बीजेपी के चंद्रसेन जौदान ने जीत दर्ज की थी. दूसरे नंबर पर थे सपा प्रमुख अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के चचेरे भाई अक्षय यादव (Akshay Yadav). हार जीत का अंतर 28781 वोटों का था. आप कहेंगे ये तो ठीक-ठाक अंतर है. मगर ठहरिए तो, कहानी में ट्विस्ट है. उस चुनाव में चाचा शिवपाल यादव (Shivpal Yadav) भी फिरोजाबाद से ताल ठोक रहे थे. उनके खाते में 91869 वोट भी आए थे. अबकी बार चाचा-भतीजा एक साथ हैं. और यही बीजेपी के लिए मुश्किल वाली बात है. 

वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सिंह कहते हैं, 

"फिरोजाबाद एक ऐसी सीट है जो सपा की परंपरागत सीट मानी जाती है. हालांकि यहां से कांग्रेस के राज बब्बर (Raj Babbar) ने डिंपल यादव (Dimple Yadav) को हराया था और 2019 में भी भाजपा को यहां जीत मिली थी. मगर शिवपाल का सपा में वापस आना बीजेपी को टेंशन दे सकता है. क्योंकि फिरोजाबाद का जातीय और राजनीतिक समीकरण सपा के पक्ष में जाता है. अगर चाचा शिवपाल थोड़ी सी मेहनत कर देते हैं तो बीजेपी के लिए मुश्किल हो सकती है."

शिवपाल यादव ने 2019 लोकसभा चुनावों में सपा को जमकर नुकसान पहुंचाया था (फोटो- आजतक)

बात अब डिंपल यादव की चल ही निकली है तो लगे हाथों उस सीट की चर्चा भी कर ली जाए, जहां से 2019 में डिंपल यादव को हार का सामना करना पड़ा था. यानी कि कन्नौज संसदीय सीट (Kannauj Lok Sabha Seat), जहां पिछले आम चुनाव में बीजेपी के सुब्रत पाठक ने सपा की डिंपल यादव को 12353 वोटों के अंतर से हराया था. शिवपाल फैक्टर ने यहां भी समाजवादियों के साथ खेला किया था. लिहाजा अबकी बारी भाजपा को अतिरिक्त सावधानी बरतनी पड़ेगी.

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पश्चिमी यूपी में बीजेपी की कमज़ोर कड़ियां!

वेस्ट यूपी के सबसे बड़े शहरों में से एक मेरठ में भी भाजपा की राह आसान नहीं थी. मेरठ संसदीय सीट (Meerut Lok Sabha Seat) पर बीजेपी के राजेंद्र अग्रवाल को बीएसपी (BSP) के हाजी याक़ूब पर महज़ 4729 वोटों से जीत मिल सकी थी. कुछ ऐसा ही हाल मेरठ से सटे मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट (Muzaffarnagar Lok Sabha Seat) का भी था. जहां बीजेपी के संजीव बालियान (Sanjeev Balyan) ने RLD उम्मीदवार को सिर्फ 6526 वोटों से हराया था. बदायूं संसदीय सीट (Badaun Lok Sabha Seat) पर स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) की बेटी संघमित्रा मौर्य (Sanghamitra Maurya) ने अखिलेश के चचेरे भाई और सपा उम्मीदवार धर्मेंद्र यादव (Dharmendra Yadav) को 18454 वोटों से हराया था. अबकी बार एक तरफ जहां स्वामी प्रसाद मौर्य बीजेपी का साथ छोड़ चुके हैं. वहीं दूसरी तरफ शिवपाल यादव खुद इस सीट पर समाजवादी पार्टी की तरफ से ताल ठोंक रहे हैं. लिहाजा भाजपा की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ गई हैं.

वेस्ट यूपी की ही बागपत सीट (Baghpat Lok Sabha Seat) पर भी बीजेपी को कांटे की टक्कर मिली थी. यहां से खुद RLD प्रमुख जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) मैदान में थे और 23502 वोटों से बीजेपी के सत्यपाल सिंह से चुनाव हार गए थे. अब चूंकि छोटे चौधरी NDA का हिस्सा बन चुके हैं. ऐसे में माना जा रहा है कि BJP ये सीट भी रालोद को दे सकती है. मतलब भाजपा के लिए राहत वाली बात तो है. वरिष्ठ पत्रकार राजकुमार सिंह भी कुछ ऐसी ही राय रखते हैं. 

उनका मानना है, 

"2019 में सपा-बसपा और रालोद मिलकर बीजेपी का मुकाबला कर रहे थे. मगर इस बार ऐसा नहीं है. RLD तो अब एनडीए का हिस्सा बन चुकी है. वहीं BSP भी एकला चलो रे की नीति पर है. मतलब विपक्ष बिखरा हुआ है और इसका फायदा भाजपा को मिलता नजर आ रहा है."

बागपत लोकसभा सीट पर 2019 में जयंत चौधरी ने बीजेपी को टक्कर दी थी (फोटो-आजतक)
पूर्वांचल की चुनौतीपूर्ण सीटें…

पूर्वी उ.प्र. में बागी बलिया भाजपा के लिए चुनौती बन सकता है. बलिया संसदीय सीट (Ballia Lok Sabha Seat) पर बीजेपी के वीरेंद्र सिंह मस्त (Virendra Singh Mast) को 2019 में सपा के सनातन पांडे के ऊपर सिर्फ 15519 वोटों से जीत मिली थी. इसी तरह चंदौली लोकसभा सीट (Chandauli Lok Sabha Seat) पर बीजेपी के महेंद्रनाथ पांडेय को सपा के संजय चौहान पर 13959 वोटों से जीत मिली थी. जबकि सुल्तानपुर संसदीय सीट (Sultanpur Lok Sabha Seat) से मेनका गांधी (Menka Gandhi) जैसी बीजेपी की हैवीवेट उम्मीदवार भी कड़े संघर्ष के बाद सिर्फ 14526 वोटों से चुनाव जीत पाईं थीं. उनका मुकाबला BSP के चंद्रभद्र सिंह से था.

सुल्तानपुर में मेनका गांधी को 2019 में कड़ी चुनौती मिली थी (फोटो- आजतक)

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बीजेपी का ‘अमृत मंथन’

भाजपा के रणनीतिकारों को पिछले आम चुनाव के बाद ही अंदाजा हो गया था कि 2024 में चुनौती जोरदार हो सकती है. यही वजह है कि इन दस लोकसभा सीटों पर एड़ी चोटी का जोर लगा दिया गया. प्रधानमंत्री मोदी (PM Modi) और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने इन इलाकों का दौरा किया. यहां के लिए विकास कार्यों की घोषणा की गई. विकास कार्यों की समीक्षा के लिए सूबे के दस मंत्रियों को इन दस सीटों का प्रभार दिया गया. भाजपा के आला नेताओं ने भी इन इलाकों में संगठन को मजबूत करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. यहां तक की बूथ लेवल पर भी कई सारे बदलाव किए गए ताकि भाजपा के वोटरों को हर हाल में पोलिंग बूथ तक ले आया जाए. सूत्रों की मानें तो इन सीटों पर बीजेपी अपने उम्मीदवार भी बदल सकती है. बाकी एनडीए का कुनबा बढ़ाना और इंडिया गठबंधन (INDI Block) में बिखराव का फायदा भी भाजपा को मिलने की उम्मीद तो जताई ही जा सकती है. हालांकि ये पब्लिक है, ये कब-किसे सिर पर चढ़ा दे और किसे जमीन पर पटक दे, इसका पता तो सिर्फ प्रभु, हरिराम, जगन्नाथम, प्रेमा नंदी को ही हो सकता है.
 

वीडियो: RLD प्रमुख जयंत चौधरी का चवन्नी वाला पुराना बयान क्यों वायरल हो रहा है?