रिदम चनाना नाम की एक लड़की ने दिल्ली मेट्रो में बिकीनी पहने ट्रैवल क्या किया, हाहाकार मच गया. लोगों ने वीडियो बनाया और जैसा कि अपेक्षित ही था, ये वीडियो भयंकर वायरल भी हुआ. पुरानी रवायत पर चलते हुए सोशल मीडिया दो धड़ों में बंट गया. एक धड़ा रिदम के साथ खड़ा है, जो कहता है कि पहनावा एक निजी पसंद-नापसंद का विषय है. दूसरा धड़ा रिदम को अश्लील बताकर खारिज करने में लगा हुआ है. अब सोशल मीडिया पर कब क्या चलता है, इसपर किसी का नियंत्रण नहीं.
मेट्रो में बिकिनी पहन घूमी लड़की और उर्फी जावेद को ये नियम जान लेना चाहिए!
वायरल बिकिनी गर्ल पर ये बात हर कोई जानना चाहेगा...

लेकिन इस बहस के बीच ये भी देख लेना चाहिए कि अश्लीलता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बीच संतुलन को भारत का कानून कैसे देखता है. इंडिया टुडे के लिए अनीशा ने इस विषय पर विस्तार से एक रिपोर्ट की है. भारत में अश्लीलता से जुड़े क्या नियम और क़ानून हैं, अश्लीलता और असभ्यता में क्या फर्क है, और क्या सार्वजनिक जगह पर मनमर्जी के कपड़े पहनना सिर्फ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दायरे में आता है? इन्हीं सवालों का जवाब देने की कोशिश ये रिपोर्ट करती है.
भारत में अश्लीलता के लिए क्या क़ानून है?पहला सवाल यही है कि क़ानून की नजर में अश्लीलता क्या है?
IPC के सेक्शन 292 के तहत देश में अश्लील सामग्री को बेचना, बांटना या किसी भी रूप में प्रकाशित करना अवैध है. ये इकलौती धारा है, जिसमें अश्लीलता की परिभाषा मिलती है. इसको सरल शब्दों में समझें तो,
"कोई किताब, पैम्फ्लेट, पेपर, कोई लिखित सामग्री, कोई आकृति, ड्राइंग, पेंटिंग या कोई भी और चीज अश्लील मानी जाएगी, अगर ये कामुक है, या इसका प्रभाव कामुक अपील करता है और उन लोगों को किसी न किसी तरह से भ्रष्ट करता है जो इसमें निहित सामग्री को पढ़ते, देखते या सुनते हैं."
यहां अश्लील, कामुक आदि का क्या अर्थ निकाला जाए, इसपर सभी एकमत नहीं हैं. क्योंकि हर व्यक्ति के लिए इनका मतलब अलग हो सकता है. स्पष्टता का अभाव है. बावजूद इसके, जो वायरल वीडियो हमारे सामने है, उसपर अगर कार्रवाई होती है, तो धारा 294 के इस्तेमाल की ही संभावना ज़्यादा है. इसके तहत अश्लील कृत्य या गानों के लिए सजा तय होती है. अगर कोई व्यक्ति किसी सार्वजानिक स्थान पर कोई अश्लील काम करता है या अश्लील गाना या कोई भी अश्लील शब्द गाता या बोलता है तो उसे धारा 294 के तहत एक साल की कैद की सजा दी जा सकती है. और इस सजा को 3 महीने तक बढ़ाया जा सकता है या जुर्माना लगाया जा सकता है. या कैद और जुर्माना दोनों हो सकते हैं.
कुछ दूसरे कानून हैं जिनमें अश्लीलता और फूहड़ता जैसे विषयों की बात है. 1986 के महिला अशिष्ट रूपण (निषेध) अधिनियम यानी ‘द इंडीसेंट रिप्रजेंटेशन ऑफ़ वीमेन प्रॉहिबिशन एक्ट’ के तहत महिलाओं को गलत तरीके से दिखाने पर सजा का प्रावधान है. एक्ट के मुताबिक,
“किसी महिला को या उसके शरीर के किसी हिस्से को, इस तरह से दिखाना, जो अशोभनीय या अपमानजनक या महिलाओं को बदनाम करने वाला हो, या फिर सार्वजनिक नैतिकता को नुकसान पहुंचाने वाला हो, कानून अपराध है.”
इस एक्ट के तहत पहली बार अपराध करने पर 2 साल तक कैद की सजा और 2 हजार रुपए के जुर्माने का प्रावधान है. और अपराध दोहराने पर 5 साल तक की कैद की सजा और 10 हजार से 1 लाख रुपए तक जुर्माने का प्रावधान है.
आईटी एक्ट क्या कहता है?इन्टरनेट और सोशल मीडिया आने के बाद आईटी एक्ट बनाया गया. इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट के सेक्शन 67(A) में ‘ऑनलाइन अश्लीलता’ को स्पष्ट किया गया है.
इस धारा के मुताबिक,
“यदि कोई व्यक्ति यौन आचरण वाली कोई भी सामग्री इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रकाशित, प्रचारित करता है या ऐसा करने का जरिया बनता है तो उसे पहली बार में 5 साल तक की कैद और और 10 लाख रुपए तक के जुर्माने की सजा हो सकती है. और दोबारा ऐसे मामले में दोषी पाए जाने पर 7 साल तक की कैद और 10 लाख रुपए के जुर्माने की सजा हो सकती है.”
इस प्रावधान में ये भी साफ़ किया गया है कि सेक्शुअल कॉन्टेंट को सोशल मीडिया पर डालने में भी सजा हो सकती है.
क़ानून के जानकार क्या कहते हैं?सीनियर एडवोकेट विकास पाहवा कहते हैं कि भारतीय क़ानून के तहत अश्लीलता की परिभाषा सब्जेक्टिव है. वे कहते हैं,
“हमारे देश में अश्लीलता की परिभाषा काफी हद तक लोगों पर निर्भर करती है कि वे किसी चीज को कैसे देखते हैं. उनके नैतिकता के मानक क्या हैं. और ‘फूहड़पन ’ (Vulgarity) और अश्लीलता (Obscenity) में फर्क है. हमने मेट्रो में (वायरल वीडियो में) जो देखा, वो फूहड़ और गुस्सा दिलाने वाला था. ऐसी कोई भी चीज जिसका प्रभाव, उस चीज को देखने वाले लोगों के दिमाग को दूषित करता हो, भ्रष्ट करता हो, उसे अश्लील कहा जाएगा. सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, ये आकलन एक तर्कशील व्यक्ति के नजरिए से तय किया गया है, इसलिए ये पूरी तरह व्यक्तिपरक (सब्जेक्टिव) है.”
अश्लीलता के मामलों में पहले भी कई लोगों के खिलाफ पुलिस रिपोर्ट दर्ज की गयी हैं.
हाल ही में एक्टर रणवीर सिंह ने न्यूड फोटोशूट करवाया और उसे सोशल मीडिया पर शेयर किया. उनके खिलाफ FIR दर्ज की गई. इसी तरह मॉडल मिलिंद सोमन ने, समंदर किनारे नग्न होकर दौड़ते हुए खुद की कुछ फोटोज़ शेयर कीं. मिलिंद के खिलाफ साल 1995 में भी न्यूड फोटोशूट के चलते अश्लीलता का एक मामला दर्ज किया गया था. जो साल 2009 में ख़त्म हो गया. क्योंकि कोर्ट में कोई सबूत नहीं पेश किया गया था.
साल 1971 में ख्वाजा अहमद अब्बास केस के फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि
“सेक्स और अश्लीलता, ये दो शब्द हमेशा पर्यायवाची नहीं होते हैं और यह गलत है कि केवल सेक्स शब्द का उल्लेख करना अनिवार्य रूप से अश्लील या असभ्य या अनैतिक माना जाए.”
इसके बाद ये भी तय हुआ कि अश्लीलता को आंकने के लिए मानक किसी ऐसे व्यक्ति के न हों जो सबसे कम सक्षम और सबसे भ्रष्ट हो, बल्कि ये मानक 'तर्कसंगत' व्यक्ति के होने चाहिए. साल 2014 के ऐतिहासिक अवीक सरकार निर्णय में, सुप्रीम कोर्ट ने अश्लीलता निर्धारित करने के लिए ‘कम्युनिटी स्टैण्डर्ड टेस्ट’ करवाया.
जिसके बाद यह माना गया था कि
रिदम ने जो किया वो अपराध की श्रेणी में आता है?"किसी तस्वीर को खुद में अश्लील नहीं माना जा सकता अगर उसमें अंदरूनी भावनाओं को जगाने या किसी भी तरह की स्पष्ट यौन इच्छा को जाहिर करने या इसे देखने वाले लोगों में यौन इच्छाएं उत्तेजित करने की प्रवृत्ति न हो. केवल ऐसे सेक्सुअल मटेरियल को अश्लील माना जाएगा जिसमें कामुक विचार पैदा करने की क्षमता है, हालांकि, अश्लीलता को सामान्य विवेक वाले व्यक्ति के दृष्टिकोण से आंका जाना चाहिए."
क्या वीडियो में दिख रही लड़की ने कोई अपराध किया है? इस मामले में अश्लीलता के क़ानून के अलावा संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत, देश के नागरिकों को मिलने वाली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर भी चर्चा जरूरी हो जाती है.
साल 2014 के अवीक सरकार निर्णय में जो कम्युनिटी स्टैण्डर्ड गाइडलाइन तय की गईं, उनको मद्देनजर सवाल ये है कि, क्या उस लड़की के कपड़े अश्लील हैं, या सिर्फ एक पब्लिक स्पेस पर समाज के सभी तबकों के लोगों के लिए ये कपड़े बस अविवेकी और अनुचित हैं, माने ठीक नहीं हैं.
हाल ही में, छोटे कपड़े पहनकर सोशल मीडिया पर फोटो पोस्ट करने को लेकर, मॉडल उर्फ़ी जावेद के खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग की गई. रणवीर सिंह और मिलिंद सोमन के मामलों में भी FIR दर्ज हुई थी. हालांकि कोर्ट की तरफ से इन मामलों में कोई फैसला नहीं आया. लेकिन विकास पाहवा के मुताबिक लड़की को आपराधिक क़ानूनों और दिल्ली मेट्रो रेल कारपोरेशन के नियमों के तहत कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है.
पाहवा कहते हैं,
"हमारे समाज में लेखकों, पेंटर्स और कलाकारों के लिए कुछ सुरक्षा के उपाय हैं, अगर वे कहते हैं कि उनका कॉन्टेंट साइंस, आर्ट या किसी और सामान्य विषय की जानकारी के बारे में है और जनता के लिए उचित है. लेकिन अगर लोगों के दिमागी विवेक को प्रभावित करने के इरादे से अश्लीलता दिखाई जाती है तो ये क़ानून के मुताबिक दंडनीय अपराध है. जैसा कि इस लड़की का मामला है, जिसने ऐसे पब्लिक प्लेस पर ‘छोटे’ कपड़े पहने जहां हर तरह के लोग आते हैं."
वहीं दूसरी तरफ एडवोकेट सौदामिनी शर्मा का मानना है कि कपड़े पहनने की चॉइस एक सब्जेक्टिव मामला है. वे कहती हैं,
"एक पब्लिक प्लेस पर कोई महिला क्या पहन सकती है, इस बार में कोई डायरेक्ट लॉ नहीं है और IPC की धारा 294 के तहत केवल अश्लीलता तक बात की गई है. लेकिन बदलते सामाजिक मूल्यों के साथ, अश्लीलता की अवधारणा डायनमिक और सब्जेक्टिव हो जाती है. अदालतें भी केस-टू-केस बेसिस पर फैसला करती हैं कि किस सन्दर्भ में अश्लीलता क्या है."
वहीं एडवोकेट सौतिक बनर्जी तर्क देते हैं कि कपड़ों की चॉइस में कुछ भी अश्लील नहीं है. वे कहते हैं,
लड़की का वीडियो बनाना अपराध की श्रेणी में है?"लोगों को उसके कपड़े आपत्तिजनक लग सकते हैं. लेकिन ये सब लोग गैरजरूरी सलाह दे रहे हैं. मेरे पढ़े कानून के मुताबिक, उसने ऐसा कोई काम नहीं किया है जो IPC की धारा 294 के तहत अपराध की श्रेणी में आए. पवन कुमार बनाम हरियाणा राज्य (1996) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को याद रखना चाहिए ज्सिमें अश्लीलता के विचार को लगातार विकसित होने वाला माना गया था और अदालतों को बदलते वक़्त के साथ तालमेल बैठाने को कहा गया था. मेट्रो की वो पैसेंजर अपना काम कर रही थी. उसने किसी के लिए कोई झुंझलाहट पैदा नहीं की, कोई उपद्रव नहीं किया. वो लोग जो उसके कपड़ों से ट्रिगर हुए, उन्हें अपने ट्रिगरिंग मकैनिज्म के बारे में सोचना चाहिए. ये आपराधिक क़ानून के दायरे में नहीं आता."
एक और सवाल, क्या उस लड़की का वीडियो बनाना आपराधिक क़ानून के दायरे में आता है?
साल 2000 के आईटी एक्ट की धारा 66E किसी की ‘प्राइवेसी के उल्लंघन’ से जुड़ी है. इस धारा के तहत किसी भी व्यक्ति की सहमति के बिना उसकी निजी तस्वीरें कैप्चर करने, प्रकाशित करने या फैलाने पर सजा का प्रावधान है. इसके अलावा, आईटी एक्ट की धारा 67, इलेक्ट्रॉनिक रूप में अश्लील सामग्री के प्रकाशन पर या उसे फैलाने पर भी रोक लगाती है. और ऐसी कोई भी सामग्री जो कामुक है या लोगों को भ्रष्ट करती है तो उसे फैलाने या पब्लिश करने पर लिखित प्रावधानों के तहत दोषी को तीन साल तक की कैद और/या जुर्माने की सजा हो सकती है.
एडवोकेट सौतिक बनर्जी के मुताबिक, जिस व्यक्ति ने ये वायरल हो रहे वीडियो लिए हैं, उसे आईटी एक्ट के तहत जिम्मेदार ठहराया जा सकता है. वे कहते हैं,
"जो लोग बिना अनुमति के किसी यात्री की तस्वीरें और वीडियो लेते हैं, और फिर उन्हें जूम और एडिट करके सोशल मीडिया पर अपलोड करते हैं, उन्हें IPC और आईटी अधिनियम के तहत सजा दी जाती है. यही वक़्त है जब हम लेंस के पीछे के दिमाग से सवाल करें न कि उसके सामने जो शरीर है उससे."
हालांकि वरिष्ठ अधिवक्ता रमेश गुप्ता का तर्क है कि सार्वजनिक स्थानों पर फिल्मिंग से जुड़ा कानून स्पष्ट नहीं हैं. वो कहते हैं,
"अगर किसी महिला के प्राइवेट पार्ट्स का फोटो/वीडियो लिया जाता है या ऐसी तस्वीर जो अश्लील है, पोर्नोग्राफ़िक है या किसी की प्राइवेसी में दखल देती है, तो सजा देने के लिए आईटी एक्ट जैसे कानून हैं, लेकिन क्या कोई नियम है जो कहता हो कि पब्लिक प्लेस में कोई भी फोटो नहीं ले सकता? अगर दिल्ली मेट्रो ट्रेन में वीडियोग्राफी या फोटोग्राफी पर रोक लगाने का नियम है, तो वे कार्रवाई कर सकते हैं, लेकिन अगर कोई प्रतिबंध नहीं है, तो यह नहीं कहा जा सकता कि सार्वजनिक स्थान पर वीडियो बनाना मना है."
एडवोकेट सौदामिनी शर्मा भी कहती हैं कि ये मुद्दा जटिल है और इसमें ग्रे एरिया भी है. सौदामिनी के मुताबिक,
"हालांकि, सार्वजनिक स्थानों पर वीडियो रिकॉर्ड करना तब तक अवैध नहीं है, जब तक कि रिकॉर्डिंग किसी की प्राइवेसी पर हमला नहीं करती है या किसी दूसरे कानून का उल्लंघन नहीं करती है. अगर वीडियो रिकॉर्डिंग किसी को तंग करने या डराने के इरादे से की जाती है, या अगर किसी की सहमति के बिना उसकी अंतरंग या निजी तस्वीरों को फैलाने के लिए की गई है तो इसे कानून के तहत अपराध माना जा सकता है."
वैसे, सौदामिनी शर्मा ये भी जोड़ती हैं कि जब कोई व्यक्ति सार्वजनिक स्थान पर हो, और निजता माने प्राइवेसी की अपेक्षा न रखता हो, तब तस्वीर लेने या वीडियो रिकॉर्ड करने के लिए सहमति की आवश्यकता नहीं होती.
क्या है DMRC का स्टैंड?दिल्ली मेट्रो अधिनियम की धारा 59 के तहत मेट्रो में "अभद्रता या अश्लीलता" के लिए ट्रेन से उतारने और 500 रुपये के जुर्माने की सजा का प्रावधान है.
धारा 59 के मुताबिक,
किसी भी मेट्रो में या मेट्रो रेलवे के किसी भी हिस्से में कोई भी व्यक्ति यदि
-नशे की स्थिति में है; या
-कोई उपद्रव या अभद्रता करता है, या अपमानजनक या अश्लील भाषा का इस्तेमाल करता है; या
-जानबूझकर या किसी और तरह से किस दूसरे यात्री के लिए असुविधा पैदा करता है;
तो उसे जुर्माना देना होगा. ये जुर्माना 500 रुपए तक हो सकता है, इसके अलावा उसका टिकट जब्त करके उसे मेट्रो से या मेट्रो परिसर से हटाया जा सकता है.
इंडिया टुडे ने मौजूदा मामले पर बात करने के लिए DMRC से संपर्क किया. DMRC कॉरपोरेट कम्युनिकेशंस के प्रिंसिपल एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर अनुज दयाल की प्रतिक्रिया आई,
"DMRC अपने यात्रियों से अपेक्षा करता है कि वे सभी सामाजिक शिष्टाचार और प्रोटोकॉल का पालन करें, जो समाज में स्वीकार्य हैं. यात्रियों को ऐसी किसी भी गतिविधि में शामिल नहीं होना चाहिए या ऐसा कोई पोशाक नहीं पहननी चाहिए जो दूसरे यात्रियों की संवेदनाओं को ठेस पहुंचाए. DMRC के 'ऑपरेशंस और मेंटेनेंस एक्ट' की धारा 59 के तहत अभद्रता दंडनीय अपराध है. हम अपने सभी यात्रियों से अपील करते हैं कि मेट्रो जैसे पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम में यात्रा करते वक़्त मर्यादा बनाए रखें. हालांकि, यात्रा करते समय कपड़ों की पसंद एक व्यक्तिगत मुद्दा है और यात्रियों से उनका आचरण खुद नियंत्रित रखने की उम्मीद की जाती है."
इंडिया टुडे से बात करते हुए, DMRC के एक प्रवक्ता ने यह भी बताया कि DMRC को महिला द्वारा पहने जाने वाले कपड़ों के बारे में या मेट्रो में उसकी फोटो/वीडियो लिए जाने के संबंध में कोई शिकायत नहीं मिली.
कुल मिलाकर इस मामले में कानून पेचीदा है. लेकिन बहस की मनाही नहीं है. वो की जा सकती है. बस इतना ध्यान रहे कि ये बहस एक स्वस्थ माहौल में हो.
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