इस पुल का निर्माण कार्य पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में 2002 में शुरू हुआ था. (फोटो-पीयुष गोयल के ट्विटर हैंडल से)
चिनाब नदी के ऊपर एक कमाल का निर्माण कार्य तेजी से आगे बढ़ रहा है. रेल मंत्री पीयूष गोयल ने बीती 25 फरवरी को इसे लेकर एक ट्वीट किया था. आगे की बात उस ट्वीट के बाद.
अचंभित कर देने वाला निर्माण कार्य हो रहा है. भारतीय रेलवे इंजीनियरिंग के एक और मील के पत्थर को हासिल करने के लिए सही ट्रैक पर है. चिनाब नदी पर बन रहे रेलवे ब्रिज का स्टील आर्च पूरा होने वाला है. यह दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल बनने के लिए बिल्कुल तैयार है.
यह तो आप ने देख लिया कि हम किस कमाल के निर्माण कार्य की बात कर रहे हैं. अब इसकी तमाम खासियतें और चुनौतियां भी जान लीजिए. लेकिन सबसे पहले इसके इतिहास की बात कर लेते हैं.
अटल की योजना, मोदी पूरी करेंगे!
पूरा बन जाने के बाद यह दुनिया का सबसे ऊंचा रेलवे पुल होगा. लाजमी में इसे अभी से इंजीनियरिंग का अद्भूत नमूना माना जा रहा है. इस पुल की परिकल्पना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में 2002 में की गई थी. उन्होंने 2004 में इस प्रोजेक्ट की नींव रखी थी. लेकिन इसके चार साल बाद ही सितंबर 2008 में इसे असुरक्षित करार देते हुए इसका निर्माण कार्य रोक दिया गया था. बाद में कांग्रेस के दूसरे कार्यकाल में यानी 2010 में पुल का काम फिर से शुरू कर दिया गया. तब इसे 2015 में पूरा करने का लक्ष्य रखा गया. लेकिन इस बीच तमाम अड़चने आती रहीं और पुल का काम डिले होता रहा. फिर 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार आने के बाद इस प्रोजेक्ट पर खास ध्यान दिया गया. इस बार इसका निर्माण कार्य 2019 में पूरा होने का लक्ष्य रखा गया. लेकिन डेडलाइन एक बार फिर बढ़ गई. अब खबरे हैं कि दिसंबर 2022 तक यह पुल पूरी तरह तैयार हो जाएगा.
ब्रिज की खासियत?
जम्मू-कश्मीर में एक जिला है रियासी. यहां दो गांव हैं. बक्कल और कौड़ी. इन्हीं दो गावों के बीच से बहती है चिनाब, जिसके ऊपर दुनिया का यह सबसे ऊंचा रेलवे पुल बनाया जा रहा है. ब्रिज कोई 1.3 किमी लंबा है. इसमें कोई खास बात नहीं है. वह है इसकी ऊंचाई में. यह पुल नदी तल से 359 मीटर की ऊंचाई पर बन रहा है. फ्रांस के एफिट टावर से भी 35 मीटर ऊंचा है यह पुल. इसके पिलर्स साधारण नहीं हैं. इस तरह के स्ट्रक्चर के लिए बहुत मजबूत आधार की जरूरत होती है. इसलिए पुल के पिलर का बेस 36.5 मीटर लंबा और 50 मीटर चौड़ा है. पुल को भूकंप से जुड़े साइज्मिक जोन-5 के हिसाब से तैयार किया जा रहा है. आप ऐसे समझें कि यह पुल रिक्टर स्केल पर 8 की तीव्रता वाला भूकंप भी झेल सकता है.

चिनाब ब्रिज बनाने में मेहराब तकनीक (हैंगिंग आर्च) का इस्तेमाल हो रहा है. यह पुल ऑनलाइन मॉनिटरिंग एंड वार्निंग सिस्टम से लैस होगा. ब्रिज के कन्स्ट्रक्शन में ब्लास्ट प्रूफ स्टील का प्रयोग हुआ है. यह ढांचा इतना ताकतवर है कि 40 किलोग्राम का विस्फोटक भी कुछ नहीं कर पाएगा. 266 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवाएं भी पुल का कुछ नहीं बिगाड़ पाएंगी. हवा की रफ्तार 90 किमी प्रति घंटे से ज्यादा होते ही पुल में लगे सिग्नल रेड हो जाएंगे. इससे ट्रेनें पहले ही रुक जाएंगी. ब्रिज में दो ट्रैक होंगे. एक की चौड़ाई 14 मीटर होगी. पुल के निरीक्षण के लिए 1.2 मीटर चौड़ा एक रास्ता भी होगा. पुल से ट्रेन गुजर रही हो तो भी मेंटेनेंस का काम किया जा सकता है. रोपवे लिफ्ट की सुविधा होगी. उसमें सेंसर लगाए जाएंगे. खराबी आने पर तुरंत पता चल जाएगा. पुल की लाइफलाइन लगभग 120 साल होगी. 100 किलोमीटर की स्पीड से ट्रेनें इस पर चल सकती हैं. पुल के निर्माण पर करीब 1200 करोड़ रुपये खर्च आ रहा है. इस प्रोजेक्ट में डीआरडीओ समेत देश के 15 बड़े संस्थान कोंकण रेलवे की मदद कर रहे हैं. 111 किमी लंबे कटरा और बनिहाल मार्ग पर रेल ब्रिज बनने से कश्मीर रेलमार्ग के जरिए देश से जुड़ जाएगा. अभी बनिहाल और बारामूला के बीच रेल है, पर कटरा-बनिहाल के बीच नहीं है.

इस प्रोजेक्ट का एक हिस्सा, जो कटरा से धरम के बीच 100 किमी लंबा है, उसमें 52 किमी का रेल मार्ग कोंकण रेलवे बना रहा है. इसमें 46.1 किमी (86%) का रास्ता टनल और 5 किमी (9%) का रास्ता ब्रिज से होकर जाता है. इस मार्ग में 17 टनल हैं. सबसे लंबी टनल 9.3 किमी लंबी है. 23 ब्रिज हैं जिनमें सबसे ऊंचा ब्रिज 91 मीटर का है.
सामने आई कई चुनौतियां
यह कहने की जरूरत नहीं कि दुनिया के सबसे ऊंचे रेल ब्रिज को बनाना आसान नहीं था. तभी तो एक बार इसे अनसेफ मानते हुए इसके काम को रोका जा चुका है. इस निर्माण कार्य को अंजाम देने के लिए इंजीनियर कई चुनौतियों से निपट रहे हैं. सबसे बड़ी चुनौती रही यहां का मौसम, जो पल-पल बदलता है. भूकंप के लिहाज से भी यह जगह काफी संवेदनशील है. यह क्षेत्र साइज्मिक जोन-4 में आता है. इसलिए पुल के निर्माण के लिए चिनाब नदी के 350 किलोमीटर के दायरे में आए पिछले 100 सालों के भूकंपों को स्टडी किया गया. इसके बाद इस पुल के डिजाइन को तैयार किया गया. इसके लिए यहां 266 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवाओं का भी अध्ययन किया गया. कागजों में डिजाइन तैयार करने के बाद अब बारी थी जमीन पर उतरने की. इस पुल को बनाने के लिए बड़ी-बड़ी मशीनों की जरूरत थी. पुल के निर्माण में लगने वाला माल यहां तक कैसे पहुंचेगा, कपंनी के पास ये भी एक बहुत बड़ी समस्या थी. इसके लिए अप्रोच रोड का निर्माण किया गया, जिससे हैवी डंपर माल और निर्माण से जुड़ी अन्य मशीनों को यहां लाया जा सके. वहीं, निर्माण के दौरान यूज होने वाला मलबा नदी में ना गिरे इसके लिए भी विशेष इंतजाम किए गए. इसके अलावा, बेस तैयार करने के लिए ब्लास्ट के जरिए पहाड़ का उतना ही हिस्सा उड़ाया गया, जितना जरूरी था. यह काम कंट्रोल ब्लास्टिंग के जरिए किया गया. यहां पहुंची मशीनें डीजल से चलती हैं. शुरू में हर हफ्ते 15 से 18 हजार लीटर डीजल की जरूरत पड़ती थी. इतनी बड़ी मात्रा में डीजल की व्यवस्था करना भी अपने आप में एक चुनौती थी. वहीं, ब्लास्ट के लिए यूज होने वाली मैगजीन को यहां तक लाना और उसकी सुरक्षा करना भी बड़ी चुनौती रही. पुल का निर्माण Afcons Infrastructure Ltd नाम की इन्फ्रास्ट्रक्चर इंजीनियरिंग कंपनी कर रही है. इसके सीनियर मैनेजर टैगोर ने एक न्यूज चैनल से बातचीत में अन्य चुनौतियों और मौजूदा हालात के बारे में बताया. उन्होंने कहा,
'जब 2005 में पुल का निर्माण शुरू हुआ तो 2000 से ज्यादा वर्कर्स काम करते थे. शुरू में यहां आसपास कुछ भी नहीं था. इतनी बड़ी वर्कफोर्स के लिए खाने का इंतजाम करना भी मुश्किल था. लेकिन इस ब्रिज की वजह से रोड बना और एरिया धीरे-धीरे विकसित हुआ. 2005 की तुलना में अब इस एरिया में सबकुछ मिल जाता है.'
टैगोर ने बताया कि कोविड-19 संकट के दौरान सिर्फ एक-दो महीने ही काम पर असर देखने को मिला. उनकी मानें तो इस दौरान पंजाब, बिहार, यूपी और केरल से आए वर्कर्स में से कोई भी अपने घर नहीं गया. सभी यहीं निर्माणस्थल पर ही रहे और काम चलता रहा. यहां काम कर रहे इंजीनियरों को यकीन है कि सभी बाधाओं को पार करने के बाद इस बार वे अपनी डेडलाइन को हासिल कर लेंगे.