आज जाति के आधार पर बांटे गए समाज को ‘बहुजन’ की पहचान देने वाले नायक कांशीराम का जन्मदिन है. चार बरस पहले हमारे संपादक सौरभ द्विवेदी ने उत्तर प्रदेश की पूर्व-सीएम मायावती और कांशीराम से जुड़ा एक क़िस्सा लिखा था. आज कांशीराम की जयंती पर पढ़िए वो क़िस्सा.
कांशीराम ने एक बात बोली, मायावती का भविष्य तय हो गया!
आज कांशीराम की जयंती है.

मायावती अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत से ही दयाशंकर सिंह जैसों के टट्टी बोल सुनती आ रही हैं. इसकी शुरुआत तब हुई थी, जब उन्होंने अपना घर छोड़कर दिल्ली के करोल बाग में बामसेफ के दफ्तर में रहना शुरू किया था. फिर जब वह बामसेफ के मुखिया कांशीराम के कमरे पर जाकर रहने लगीं, तब इन बातों ने खूब जोर पकड़ा. लोग यह भी भूल गए कि कांशीराम उस कमरे में नहीं रहते. टूर पर रहते हैं. लोग ये भी भूल गए कि मायावती के साथ उनका भाई सिद्धार्थ भी रहता है. क्योंकि लोगों के लिए बहुत आसान होता है. किसी भी औरत को एक झटके में जमीन पर ले आना. बस वेश्या ही तो कहना है.
मायावती के राजनीतिक जीवन की शुरुआत के बारे में पत्रकार अजय बोस ने लिखा है. अपनी किताब में. इसका टाइटल है 'बहन जी, ए पॉलिटिकल बायोग्राफी ऑफ मायावती.' इसमें वह लिखते हैं कि जब से 21 साल की मायावती बामसेफ मूवमेंट में सक्रिय हुईं, लोगों को दिक्कत होने लगी. कांशीराम उन्हें लगातार उत्साहित करते. मंच संभालने के लिए, दलित समाज को उनकी दुर्दशा के लिए जिम्मेदार लोगों के बारे में बताने के लिए. मायावती अपने तेजाबी भाषणों के चलते मशहूर होने लगीं. न तो वह गांधी को बख्शती थीं, और न ही सवर्णों को.
उधर मायावती के पिता प्रभु दास को बेटी की ये सक्रियता रास नहीं आ रही थी. वह चाहते थे कि मायावती IAS की तैयारी करे या फिर घर बसा ले. एक दिन झगड़ा बहुत बढ़ गया. उन दिनों मायावती दिल्ली के प्राइमरी स्कूल में टीचर थी. प्रभु दास ने अल्टीमेटम दे दिया. घर में रहोगी तो मेरे हिसाब से. कांशीराम और बामसेफ से मतलब छोड़ना होगा. मायावती ने बाप का घर छोड़ दिया. करोल बाग में बामसेफ का दफ्तर था. वहीं आ गईं, अपना कपड़ों से भरा सूटकेस, कुछ किताबें और जमा पूंजी लेकर. कांशीराम तब टूर पर थे. कुछ दिनों में लौटे. उन्होंने मायावती को ढांढस बंधाया. मायावती बोलीं कि अब मैं अपना जीवन मिशन में लगाना चाहती हूं. न मुझे शादी करनी है, न परिवार से बंधकर रहना है. कांशीराम को अपनी इस शिष्या का ये संकल्प प्रभावित कर गया.

मायावती ने कांशीराम के भरोसे को कम नहीं होने दिया. वह सुबह उठकर स्कूल जातीं. लौटकर संगठन का काम करतीं. शाम को कॉलेज जाकर लॉ की ईवनिंग क्लास अटेंड करतीं. कुछ महीनों के बाद कांशीराम ने मायावती से कहा, "दफ्तर के बजाय मेरे घर में आकर रह लो. मैं अकसर संगठन के काम से बाहर ही रहता हूं."
कांशीराम का घर भी क्या था. पार्टी दफ्तर के पास ही एक किराये का कमरा था. मायावती ने समाज की बकवास की परवाह किए बिना कांशीराम का प्रस्ताव मान लिया. उनके इस फैसले से समाज और पार्टी में घटिया अफवाहें उड़नी शुरू हो गईं. मगर वह इससे शुरुआती समय में बेपरवाह रहीं. उन्होंने कमरे में अपने साथ रहने के लिए अपने सबसे प्यारे छोटे भाई सिद्धार्थ को भी बुला लिया.
कुछ महीनों के बाद मायावती लोगों की खुसफुस से परेशान हो गईं. एक दिन वह गुस्से में कांशीराम के पास पार्टी दफ्तर पहुंची. इस घटना का जिक्र खुद मायावती ने अपनी आत्मकथा में किया है. वह लिखती हैं, "मैंने मान्यवर से कहा, ठीक यह रहेगा कि मैं अपनी जमा-पूंजी से एक कमरे वाला मकान खरीद लूं. मुझे कोई किराये पर तो कमरा देगा नहीं."
कांशीराम ने मायावती को समझाया:
"समाज की औरतों और दलितों के प्रति यही सोच तो हमें बदलनी है."
आज मायावती देश की सबसे बड़ी दलित नेता हैं. यूपी की चार-चार बार सीएम रहीं. दलितों की हालत में बदलाव हो रहा है. मगर लोगों की सोच दुरुस्त होने में शायद सदियां लग जाएं. वर्ना कोई दयाशंकर सिंह ये कह पाता किसी मायावती के बारे में!
वीडियो: क्या और कैसे होते हैं कांशीराम आवास और क्या हैं यहां के किस्से