नाम- विकास दुबे.
जिसके आगे गैंगस्टर, बाहुबली, अपराधी, हिस्ट्रीशीटर और 'शिवली का डॉन' जैसे शब्द जुड़ते हैं. इसके अलावा पूर्व प्रधान, जिला पंचायत सदस्य और नगर पंचायत अध्यक्ष जैसे पद भी उसके खाते में दर्ज हैं. उस पर 25 हजार का इनाम पुलिस ने रखा था. राजनीति और अपराध के इस पुराने कॉकटेल की वजह से एक बड़ी घटना कानपुर के शिवराजपुर में घटी. एक मामले में FIR के बादविकास दुबे पर दबिश देने गई पुलिस की मुठभेड़ हुई, जिसमें एक डीएसपी समेत 8 पुलिसवाले शहीद हो गए.
अपराधियों के पास से AK-47 तक बरामद हुई. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ कानपुर पहुंचे.

विकास दुबे (बायीं तरफ लेटेस्ट उपलब्ध तस्वीर) के कई पार्टियों में संपर्क रहे. कहा जाता है कि इस वजह से उसे संरक्षण मिलता रहा. फोटो India Today
संतोष शुक्ला हत्याकांड
कानपुर देहात के चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव का रहने वाला है विकास दुबे. बताया जाता है कि उसने कई युवाओं का गैंग बना रखा है, जो अपराध करते हैं. विकास दुबे पर यूपी के अलग-अलग ज़िलों में 60 से ज़्यादा मामले चल रहे हैं. इनमें लूट, डकैती, मर्डर जैसे कई मामले हैं. कई बार गिरफ्तार हो चुका है और ज़मानत भी हो चुकी है. साल 2000 में ताराचंद इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या में विकास दुबे का नाम आया. साल 2000 में रामबाबू यादव हत्या के तार भी विकास दुबे से जुड़े. 2004 में केबल व्यापारी दिनेश दुबे की हत्या में भी विकास दुबे आरोपी है. लेकिन जिस मामले ने उसकी तरफ सबसे ज़्यादा सिर घुमाए, वो था राज्यमंत्री संतोष शुक्ला की हत्या का मामला.

कानपुर की घटना के बाद घटनास्थल से मिली बंदूकें. फोटो: PTI
फ्लैशबैक
इसके लिए साल 1996 में चलिए. कानुपर की चौबेपुर विधानसभा क्षेत्र से बसपा से हरिकृष्ण श्रीवास्तव और बीजेपी से संतोष शुक्ला चुनाव लड़े. इस चुनाव में हरिकृष्ण श्रीवास्तव जीते. संतोष शुक्ला 1200 वोट से विधायकी हार गए. कहा जाता है कि हरिकृष्ण श्रीवास्तव की तरफ से विजय जुलूस निकाले जाने के दौरान दोनों प्रत्याशियों के गुटों के बीच विवाद हो गया था. इसमें विकास दुबे का भी नाम आया. लेकिन कहानी इतनी ही नहीं है और पूरी नहीं है. ये बस उसका एक पार्ट है. एक तीसरा किरदार भी है- लल्लन बाजपेयी. ये इस कहानी के आधार में है.

तस्वीर में दायीं तरफ हंसते हुए संतोष शुक्ला. फोटो: The Lallantop
हत्या की भूमिका
संतोष शुक्ला के भाई मनोज शुक्ला से हमने बात की. उन्होंने इस रंजिश की कुछ परतें उधेड़ीं. वो कहते हैं कि संतोष शुक्ला और विकास दुबे की सीधी लड़ाई नहीं थी. लल्लन बाजपेयी शिवली नगर पंचायत के अध्यक्ष थे. लल्लन बाजपेयी और विकास दुबे की तगड़ी जमती थी. दोनों साथ ही थे. 1996 में संतोष शुक्ला बीजेपी जिलाध्यक्ष हुआ करते थे. तब लल्लन बाजपेयी को उन्होंने ही शिवली नगर पंचायत अध्यक्ष चुनाव का बीजेपी टिकट दिया था. चुनाव हुआ. लल्लन बाजपेयी चेयरमैन हो गए.

घटनास्थल पर बड़ी संख्या में पुलिस तैनात है. फोटो: PTI
गैंग्स ऑफ शिवली
लल्लन बाजपेयी नेता हुए, तो उनकी शह पर इलाके में उगाही शुरू हो गई. उधर विकास दुबे भी अपराधी खड़े कर रहा था. उगाही को लेकर लल्लन बाजपेयी और विकास दुबे में विवाद शुरू हो गया. कई बार मारपीट हुई. विवाद बढ़ता चला गया.
मनोज कहते हैं,
1996 में विधानसभा चुनाव हुआ. संतोष शुक्ला को चौबेपुर विधानसभा सीट से बीजेपी का टिकट मिला. उनके खिलाफ हरिकृष्ण श्रीवास्तव बीजेपी छोड़कर बसपा से चुनाव लड़े और जीत गए. संतोष शुक्ला हार गए. हरिकृष्ण श्रीवास्तव ने जीतने के बाद जुलूस निकला. उसमें लल्लन बाजपेयी का भाई गया, तो उसे विकास दुबे के लोगों ने बुरी तरह मारा. लल्लन बाजपेयी भाजपा के कार्यकर्ता हो चुके थे. उन्हें लगा अगर हम समर्थकों को नहीं बचाएंगे, तो राजनीति कैसे करेंगे.

कहा जाता है कि संतोष शुक्ला (बाएं) की सीधे तौर पर विकास दुबे से दुश्मनी नहीं थी. दो लोगों के गैंगवार में उनकी मौत हुई. फोटो: The Lallantop
एक फोन, थाना और गोली
ये दुश्मनी सुलगती रही. कुछ बरस बाद 2001 में विकास दुबे ने लल्लन बाजपेयी के यहां हमला कर दिया. लल्लन बाजपेयी थे बीजेपी के आदमी. उनके 'गॉडफादर' थे संतोष शुक्ला, जो राज्य मंत्री थे. लल्लन बाजपेयी ने उन्हें फोन किया कि इन लोगों ने हमें घेर लिया. 12-15 लोग हैं. कट्टे वगैरह के साथ. संतोष शुक्ला ने कहा कि हम आ रहे हैं. वो पहले शिवली थाने गए कि फोर्स लेकर जाएंगे. शिवली थाने पर विकास दुबे और उसके लोग आ गए. थाने के अंदर संतोष शुक्ला पर विकास दुबे ने गोली चला दी.
मनोज कहते हैं, 'मुकदमा चला. विकास दुबे बरी हो गया. थाने के अंदर हत्या हुई, तो पुलिसवाले हमारे साथ खड़े नहीं हुए.'
'आज तक' से जुड़े रिपोर्टर रंजय सिंह बताते हैं,
12 अक्टूबर को थाने में संतोष शुक्ला शिकायत करने पहुंचे थे. उनके आदमी भी थे. तभी विकास दुबे और उनके आदमी आए. विवाद हो गया. संतोष शुक्ला को बचाने के लिए लॉकअप में रखा गया. लेकिन विकास दुबे ने लॉकअप में जाकर राइफल से उन्हें गोली मार दी.वो कहते हैं कि लल्लन बाजपेयी और विकास दुबे की दुश्मनी जारी रही. लल्लन बाजपेयी फिलहाल बूढ़े हो गए हैं.
2002 में सरकार बदली. मायावती की बसपा सरकार आई. बसपा से विकास दुबे जिला पंचायत सदस्य बना. जेल में रहने के दौरान शिवराजपुर से विकास दुबे ने नगर पंचायत अध्यक्ष का चुनाव जीता. मंत्री की हत्या करने के बाद उसकी बाहुबली वाली छवि बन गई. हर पार्टी में उसका संपर्क हो गया. आरोप लगते हैं कि इसी वजह से उसे संरक्षण मिलता रहा. ये सब कुछ आज इतनी वीभत्स घटना में बदल गया.
हिस्ट्रीशीटर विकास दुबे को पकड़ने गई पुलिस पर AK47 से हमला, डीएसपी समेत 8 पुलिसकर्मी शहीद