अपने पिता के कदमों पर चलते हुए सरफराज़ खान ने भी हिंदी फिल्मों में एक्टिंग करनी शुरू की. उनके 20 साल (1993-2013) लंबे एक्टिंग करियर में उनके खाते में महज़ 11 फिल्में दर्ज हैं. और इसमें भी चार फिल्में ऐसी हैं, जिससे सलमान खान या उनका परिवार किसी न किसी तरह से जुड़ा रहा है. सरफराज़ 'तेरे नाम' और 'वॉन्टेड' जैसी फिल्मों में काम कर चुके हैं. आखिरी बार वो प्रभु देवा डायरेक्टेड फिल्म 'रमैया वस्तावैया' में दिखाई दिए थे. अपने पिता की मृत्यु के बाद सरफराज़ ने मीडिया से बातचीत की. इस बातचीत में सरफराज़ ने बताया कि जिस इंडस्ट्री को वो अपना परिवार समझते थे, जिनके सामने वो खेलते-कूदते बड़े हुए. जिसे उनके पिता ने इतना कुछ दिया. वो इंडस्ट्री उनके पिता के आखिरी समय या उनकी मौत के बाद भी उनकी खोज-खबर लेने का समय नहीं निकाल सकी.

अपने दो बेटों के साथ कादर खान.
सरफराज़ इस मसले पर मीडिया से बात करते हुए कहते हैं -
इंडियन फिल्म इंडस्ट्री ऐसी ही हो गई है. इस इंडस्ट्री में कई सारे कैंप बन गए हैं. लोग बंट गए हैं. कहा जाता है, जो चीज़ नज़र से बाहर हो जाती है, वो ज़ेहन से भी बाहर हो जाती है. और ऐसी मानसिकता का कुछ किया भी नहीं जा सकता. मेरे पिता हमेशा हम भाइयों से कहा करते थे कि किसी से कभी कोई उम्मीद मत रखना. हम इसी विश्वास के साथ बड़े हुए कि जीवन में जो जरूरी है वो करो लेकिन उसके वापस आने कि कोई उम्मीद मत रखो.गोविंदा ने ट्वीट करते हुए कादर खान को अपना फादर फिगर बताया था. इस बारे में जब सरफराज़ से पूछा गया, तो उन्होंने ये क्या-
हालांकि दुख तो होता है, और वो कभी-कभी सामने भी आ जाता है. ये दुख तब और बढ़ जाता है, जब कादर खान की मौत के बाद कुछ लोगों को छोड़कर कोई उनके बेटों को फोन करने की जहमत नहीं उठाता है. इस इंडस्ट्री में कई लोग हैं, जो मेरे पापा के काफी करीबी थे. लेकिन एक आदमी ऐसा था, जिसे मेरे पापा बहुत प्यार करते थे - बच्चन साहब (अमिताभ बच्चन). जब भी हम उनसे पूछते कि फिल्म इंडस्ट्री में सबसे ज़्यादा वो किसे मिस करते हैं, उनका फौरन जवाब होता था- बच्चन साहब. और मुझे पता है ये प्यार दोनों ओर से था. मैं चाहता हूं कि बच्चन साहब जानें कि मेरे पिता अपने आखिरी समय तक उनके बारे में बात करते थे.
गोविंदा से पूछिए कि उन्होंने कितनी बार अपने फादर फिगर का हाल-चाल लिया? पापा के गुज़रने के बाद क्या उन्होंने हमें एक बार भी फोन किया? फिल्म इंडस्ट्री में यही रवायत पड़ गई है. भारतीय सिनेमा को इतना कुछ देने वाले कलाकार जब बूढ़े हो जाते हैं, काम करना बंद कर देते हैं, किसी को उनसे मतलब नहीं रह जाता. भले ही इंडस्ट्री के तमाम बड़े नाम रिटायर हो चुके सीनियर्स के साथ फोटो खींचा लें. लेकिन वो प्रेम बस फोटो खिंचाने तक ही सीमित रहती है. उससे ज़्यादा कुछ नहीं.कादर खान के तीन बेटे हैं. तीनों ही टोरंटो में आस-पास ही रहते हैं. कादर खान 2017 में इंडिया से कनाडा इलाज करवाने गए थे लेकिन वो लौटकर कभी इंडिया नहीं आ पाए. उनका अंतिम संस्कार भी कनाडा में ही कर दिया गया है.
आप देखिए ललिता पवार जी और मोहन चोटी जी किस हालत में मरे हैं. वो तो अच्छा हुआ मेरे पापा के तीन लड़के थे, जो उनकी देखभाल करते थे. बाकियों का क्या, जिनके पास न किसी तरह का आर्थिक सहयोग होता है और न ही इमोशनल सपोर्ट? कादर खान के फैन ये जानकर खुश होंगे कि जब वो मरे, तब वो उन लोगों से घिरे हुए थे, जिनसे वो सबसे ज़्यादा प्यार करते थे. मौत के वक्त पापा के चेहरे पर एक मुस्कान थी. मैं दुनिया में किसी भी चीज़ से ज़्यादा उस मुस्कान को ज़िंदगीभर संजोकर रखूंगा.
पापा को टोरंटो में उपलब्ध बेस्ट मेडिकल केयर मुहैया थी. बावजूद इसके उनका आखिरी समय बहुत दुख भरा रहा. वो ऐसी अपक्षयी (डीजनरेटिव) बीमारी से जूझ रहे थे, जिसकी वजह से उनकी कुछ भी करने की इच्छा खत्म हो गई थी. मेरे पापा का हिंदी सिनेमा में बहुत योगदान था. हम उनकी इसी याद को अपने साथ रखेंगे. सम्मान के साथ उसे प्रासंगिक बनाए रखेंगे. फिलहाल हम सभी उनके जाने का शोक मना रहे हैं. लेकिन मैं दुनियाभर में उनके फैंस को आश्वस्त कर देना चाहता हूं कि हम फिल्म इंडस्ट्री को उन्हें भुलाने नहीं देंगे.
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