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जब एक धर्म गुरु के कहने पर 913 लोगों ने एक साथ आत्महत्या कर ली

और इसका खामियाजा ओशो को भुगतना पड़ा.

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ये हादसे के बाद की तस्वीर है. पूरे कंपाउंड में लाशें बिछी थीं. ये किसी आतंकवादी का काम नहीं था. नस्लीय भाईचारे और बराबरी जैसी अच्छी बातें करने वाला एक शख्स इंसानों को दिमाग पर इतना हावी हो गया कि वो लोग उसकी बात मानकर आत्महत्या करने को राजी हो गए. एक-दो नहीं, बल्कि 918 लोग. (बाईं तरफ ओशो, दाईं तरफ जिम जोन्स और बीच में जोन्सटाउन मास सुसाइड)
जिम जोन्स. ये नाम था उसका. 47 साल का लंबा-चौड़ा आदमी. वैसा ही चौड़ा माथा. थोड़ी फैली हुई नाक. बालों में बाईं तरफ से निकली हुई मांग. अक्सर थ्री-पीस में दिखता. सजा-धजा. आंखों पर धूप का चश्मा पहने. मगर उस दिन शाम हो चली थी. उसकी नंगी आंखें साफ दिख रही थीं. सामने की तरफ करीब 918 लोग बैठे थे. वो जहां बैठे थे, उस इमारत के बाहर कुछ और इमारतें थीं. उसके पार चारों तरफ घना जंगल था. ऐमजॉन रेनफॉरेस्ट के हरे-भरे जंगल. दक्षिण अमेरिका का ये हिस्सा गुयाना नाम के मुल्क में था. जंगल के बीच बनी ये इमारतें एक शहरनुमा चीज थी. इस शहर को बनाया और बसाया था 'पीपल्स टेंपल' ने. ये 'पीपल्स टेंपल' एक किस्म का धर्म था. ठीक-ठीक कहें, तो कल्ट था. दुनिया के ज्यादातर धर्म शुरुआत के समय कल्ट ही थे. इस कल्ट का भगवान था जिम जोन्स.
18 नवंबर, 1978: जोन्सटाउन मास सुसाइड इस शहर में वो ही रहते थे, जो ये धर्म मानते थे. बाहर की दुनिया से उनका कोई नाता नहीं था. भगवान के नाम पर शहर ने नाम पाया था- जोन्सटाउन. जिस दिन का ये किस्सा है, उस दिन यहां कुल 918 लोग मरे थे. इनमें से 909 ने सामूहिक आत्महत्या की थी. एक साथ. सायनाइड पीकर. जोन्स के कहने पर. इनमें करीब 304 बच्चे थे. इनके अलावा एक मां और उसके तीन बच्चे भी थे. ये जोन्सटाउन में नहीं थे. जॉर्जटाउन में थे. जो मां थी, वो जोन्स की भक्त थी. जोन्स ने उन्हें भी आत्महत्या करने का निर्देश दिया. मां ने पहले बच्चों को मारा, फिर खुद की जान ले ली. यानी कुल मौतें हुईं 909+4=913. ये सब आत्महत्याएं थीं. इनके अलावा पांच हत्याएं हुई थीं. अमेरिकी सांसद रेयान और उनके साथ आए चार और लोगों का मर्डर हुआ था. 909+4+5=918. ये सारी मौतें एक ही दिन हुईं. ये घटना 'जोन्सटाउन मास सुसाइड' कहलाती है. ये तारीख थी 18 नवंबर, 1978.
नेटफ्लिक्स की इस सीरीज में ओशो की कहानी है. ओशो के पुणे में होने की, फिर अमेरिका चले जाने की. वहां रजनीशपुरम बसाने की. कैसे क्या हुआ, कहां चीजें बिगड़ीं, ये सब. अच्छी बात ये है कि आप असली किरदारों के मुंह से चीजें जानते हैं.
नेटफ्लिक्स की 'वाइल्ड वाइल्ड कंट्री' नाम की सीरीज में ओशो की कहानी है. ओशो के पुणे में होने की, फिर अमेरिका चले जाने की. वहां रजनीशपुरम बसाने की. कैसे क्या हुआ, कहां चीजें बिगड़ीं, ये सब. अच्छी बात ये है कि आप असली किरदारों के मुंह से चीजें जानते हैं.

अभी क्यों सुना रहे हैं जोन्सटाउन का किस्सा? नेटफ्लिक्स पर एक सीरीज शुरू हुई है. बहुत चर्चित हो रही है. नाम है - वाइल्ड वाइल्ड कंट्री. ओशो पर बनी सबसे सही चीजों में से एक. ऑरिजनल फुटेज, ऑरिजनल कहानी, ऑरिजनल कैरेक्टर. इसमें जोन्सटाउन का भी जिक्र आया. कहने वाले कहते हैं कि अगर जोन्सटाउन न हुआ होता, तो शायद ओशो की कहानी और लंबी, और बड़ी होती. उन्हें अमेरिका ने अरेस्ट न किया होता. उन्हें हिंदुस्तान वापस नहीं लौटना पड़ता. और शायद इतनी कम उम्र में उनकी मौत भी नहीं होती. जोन्सटाउन के कारण लोग बहुत डर गए थे. उन्हें लगने लगा कि शायद रजनीशपुरम (अमेरिका में ओशो ने जो शहर बसाया था) भी दूसरा जोन्सटाउन होगा.
कौन था जिम जोन्स? जेम्स वॉरेन जोन्स. ये पूरा नाम था उसका. 'पीपल्स टेंपल' नाम का कल्ट शुरू किया था इसने. कल्ट और धर्म में क्या फर्क होता है, आपको आगे बताएंगे. उसके भक्त उसको ईसा मसीह सा मानते थे. जोन्स खुद ईसाई था. विचारधारा उसकी समाजवादी थी. वो ही समाजवाद कि सब बराबर हैं. सबको बराबरी से चीजें मिलनी चाहिए. 1950 के दशक में कभी उसने ये कल्टबाजी शुरू की. अमेरिका में एक प्रांत है- इंडियाना. वहीं पर. फिर कैलिफॉर्निया चला आया. वहां इसके अजीबोगरीब तौर-तरीकों के किस्से उड़े. उसके ऊपर कई आरोप लगे. मामला उछला, तो ये भागकर गुयाना पहुंच गया. वहीं पर इन लोगों ने जंगल साफ करके एक शहर बसाया. नाम रखा- पीपल्स टेंपल ऐग्रीकल्चरल प्रॉजेक्ट. ये कागजी नाम था. असली नाम तो जोन्सटाउन था.
बाईं तरफ खड़ा है जिम जोन्स. दाहिनी तरफ उसकी पत्नी मरसेलिन है. मरसेलिन भी उस दिन मर गई थी. जोन्स के बेटे बच गए. क्योंकि जब ये हुआ, तब वो एक फुटबॉल टूर्नमेंट में हिस्सा लेने जोन्सटाउन से बाहर गए हुए थे.
बाईं तरफ खड़ा है जिम जोन्स. दाहिनी तरफ उसकी पत्नी मरसेलिन है. मरसेलिन भी उस दिन मर गई थी. जोन्स के बेटे बच गए. क्योंकि जब ये हुआ, तब वो एक फुटबॉल टूर्नामेंट में हिस्सा लेने जोन्सटाउन से बाहर गए हुए थे.

आदमी किस तरह का था ये जोन्स? जोन्स बहुत अच्छी बातें करता था. रंगभेद के खिलाफ. अन्याय के खिलाफ. पूंजीवाद के खिलाफ. गैर-बराबरी के खिलाफ. उस समय अमेरिका में अश्वेत आबादी को सबसे ज्यादा जिस चीज से फर्क पड़ता था, वो था नस्लीय भेदभाव. इसीलिए जोन्स के भक्तों में बहुत बड़ी तादाद अफ्रीकी-अमेरिकी (अश्वेत) लोगों की थी. हालांकि कई श्वेत अमेरिका, यहूदी भी उसके भक्त थे. वो संस्कार वगैरह की भी बातें करता था. कि जिससे शादी हुई है, बस उसके साथ ही सेक्स करो. लेकिन वो खुद बाइसेक्शुअल था. मतलब, औरतों और मर्दों दोनों के साथ सेक्स करता था. फिर अपने बचाव में कहता है कि वो दूसरों की खुशी के लिए ऐसा करता है. बाकी जितना पता है, उस हिसाब से वो भयंकर शक्की इंसान था. अक्सर अपने भक्तों की परीक्षा लिया करता था.
क्या होता था इस जोन्सटाउन में? गुयाना ने एक खास वजह से पीपल्स टेंपल को अपने यहां बसने दिया. उन दिनों वेनेजुएला और अमेरिका के बीच ठनी रहती थी. वेनेजुएला की सीमा गुयाना से सटी हुई थी. गुयाना को डर था कि कहीं अगर अमेरिका ने वेनेजुएला पर हमला किया, तो वो भी चपेट में आएगा. चूंकि पीपल्स टेंपल में ज्यादातर लोग अमेरिकी थे, तो उसे लगा अमेरिका अपने लोगों की जान खतरे में नहीं डालेगा. ये जोन्सटाउन 3,800 एकड़ जमीन पर फैला था. 1974 से बनना शुरू हुआ. 1977 की गर्मियों में पीपल्स टेंपल के सैकड़ों भक्त अपना घर-बार छोड़कर जोन्सटाउन पहुंच गए.
ये शहर चारों तरफ बड़ी-बड़ी मीनारों से घिरा था. जैसे समंदर किनारे वो रोशनी फेंकने वाले लाइट हाउस होते हैं. इनके ऊपर पहरेदार होते थे. बंदूक थामे पहरा देते थे. ताकि कोई भी शहर से बाहर न जा सके. ये एक किस्म का यूटोपियन शहर था. जैसे हर धर्म अपने माननेवालों को एक जन्नत का ख्वाब दिखाता है. वैसे ही ये जोन्सटाउन इस कल्ट के लोगों का 'प्रॉमिस्ड लैंड' था. यहां हर चीज जोन्स की मर्जी से होती थी. लोग दिनभर खटते थे. खटने से फ्री होते, तो उनकी क्लास लगती. उसमें उनको समाजवाद पढ़ाया जाता. बाहर की दुनिया से उनका कोई लेना-देना नहीं था. वो शहर से बाहर कहीं नहीं जा सकते थे.
ये तस्वीर 2011 में ली गई थी. ये जोन्सटाउन साइट है. घने जंगलों से घिरा. ऐमजॉन रेनफॉरेस्ट के बीच. 1974 में यहीं पर जिम जोन्स ने ये शहर बसाया था. इस वादे के साथ कि ये शहर और यहां के लोग दुनिया के लिए मिसाल बनेंगे. जोन्स का वादा खत्म हुआ 918 आत्महत्याओं को साथ. जोन्स को अपना भगवान मानने वाले इन सारे लोगों ने उसके कहने पर सायनाइड पी लिया था. जोन्स ने उनसे कहा था- ये खुदकुशी नहीं है, क्रांति है.
ये तस्वीर 2011 में ली गई थी. ये जोन्सटाउन साइट है. घने जंगलों से घिरा. ऐमजॉन रेनफॉरेस्ट के बीच. 1974 में यहीं पर जिम जोन्स ने ये शहर बसाया था. इस वादे के साथ कि ये शहर और यहां के लोग दुनिया के लिए मिसाल बनेंगे. जोन्स का वादा खत्म हुआ 918 जानों के साथ. जोन्स को अपना भगवान मानने वाले इन सारे लोगों ने उसके कहने पर सायनाइड पी लिया था. जोन्स ने उनसे कहा था- ये खुदकुशी नहीं है, क्रांति है.

बच्चों को ढाल की तरह इस्तेमाल करता अगर कोई भागने की कोशिश करता या कोई बात नहीं मानता, तो उसको सजा दी जाती थी. जैसे- कुएं के ऊपर रातभर उल्टा लटका देना. पीटना. ड्रग्स देना. जोन्सटाउन में कई सारे बच्चे थे. जोन्स इन बच्चों को किसी ढाल की तरह इस्तेमाल करता. उसको लगता था कि अगर किसी ने भागने की कोशिश की, तो भी उसको अपने बच्चों के मोह में रुकना होगा. इसीलिए जोन्सटाउन के पहरेदार सबसे कड़ी नजर बच्चों के ऊपर ही रखते थे. सुबह से शाम तक उन्हें एक कम्युनिटी हॉल में रखा जाता. इस दौरान उनके मां-बाप काम कर रहे होते थे. शाम को बस थोड़ी देर के लिए उन्हें बच्चों से मिलने दिया जाता था. कहते हैं कि जोन्सटाउन के किसी बच्चे को बाहर निकालकर ले जाना बिल्कुल नामुमकिन था. जोन्स अपने भक्तों से एक खाली कागज पर साइन करवाता था. फिर जब कोई भागने की कोशिश करता, तो जोन्स इसी ब्लैंक पेपर के बहाने उनको ब्लैकमेल करता.
दिक्कत कब शुरू हुई? इतने बंदोबस्त के बाद भी कुछ लोग जोन्सटाउन से भागने में कामयाब रहे. मगर उनके बच्चे वहीं छूट गए. ऐसा ही एक जोड़ा था टिम और ग्रेस का. उनका पांच साल का बेटा जॉन जोन्सटाउन में था. उसे वापस पाने के लिए टिम और ग्रेस ने कानूनी लड़ाई लड़ी. इसके अलावा कुछ ऐसे लोग थे, जिनके अपने घर-बार छोड़कर जोन्सटाउन चले गए थे. इन सबने मिलकर अमेरिकी सांसद लियो रेयान से अपील की. कि वो जोन्सटाउन जाकर जांच करें. इनका आरोप था कि जोन्सटाउन में लोगों का शोषण किया जाता है. उन्हें जबरन वहां बंधक बनाकर रखा गया है.
लाशें सड़ने लगी थीं. लाशों के साथ क्या किया जाए, ये सोचने में ही बहुत वक्त लग गया. फिर अमेरिकी एयर फोर्स के विमान आए और लाशों को अपनी जमीन पर वापस लेकर गए.
लाशें सड़ने लगी थीं. लाशों के साथ क्या किया जाए, ये सोचने में ही बहुत वक्त लग गया. फिर अमेरिकी एयर फोर्स के विमान आए और लाशों को अपनी जमीन पर वापस लेकर गए.

मास सुसाइड की हालत कैसे बनी? 17 नवंबर, 1978. रेयान कुछ पत्रकारों और अधिकारियों के साथ जोन्सटाउन पहुंचे. पहले दिन तो सब ठीक रहा. जोन्स की पत्नी खुद उन्हें जोन्सटाउन दिखाने ले गई. फिर अगले दिन रेयान की टीम दोबारा वहां पहुंची. जैसे ही वो निकलने वाले थे, वैसे ही जोन्सटाउन के कुछ लोग उनके पास पहुंचे. उन्होंने रेयान से कहा कि वो वापस अपने घर लौटना चाहते हैं. जोन्स को इस बात की कतई उम्मीद नहीं थी. उसे गुस्सा आया. तभी उसके एक समर्थक ने रेयान पर चाकू से हमला कर दिया. रेयान बच गए और वहां से भाग गए. जोन्स ने अपने कुछ लोगों को उनके पीछे भेजा. जिस समय रेयान और उनके साथ के चार लोग विमान में बैठ रहे थे, उसी वक्त जोन्स के भेजे लोगों ने उनकी हत्या कर दी. जोन्स को मालूम था कि रेयान की हत्या के बाद अमेरिका उसे नहीं छोड़ेगा. उसने अपने भक्तों को जमा किया. उन्हें डराया. कहा कि अगर उन सबने आत्महत्या नहीं की, तो उनका अंत बहुत बुरा होगा. अमेरिकी सैनिक उन्हें और उनके बच्चों को कसाइयों की तरह कत्ल कर देंगे. जोन्स से कहा कि मरकर वो एक बेहतर दुनिया में पहुंचेंगे. उसके भाषण का एक छोटा सा हिस्सा पढ़िए:
अपने बच्चों पर दया कीजिए. बुजुर्गों पर रहम कीजिए. ऐसे जहर पीजिए, जैसे प्राचीन ग्रीस में लोग पिया करते थे. हम खुदकुशी नहीं कर रहे हैं. ये क्रांति है. अब हम पीछे नहीं लौट सकते. वो (अमेरिकी सैनिक) हमें जिंदा नहीं छोड़ेंगे. वो और झूठ बोलेंगे. और सांसद आएंगे यहां. अब हमारे बचने की कोई उम्मीद नहीं है. हो सकता है कि आप भाग जाएं, लेकिन बच्चे पीछे रह जाएंगे. वो लोग इन बच्चों को कसाइयों की तरह कत्ल कर देंगे. अगर आपने खुद अपनी जान ली, तो आपका नाम इतिहास में अमर हो जाएगा. लोग कहेंगे कि उन लोगों ने अपने जीने का तरीका खुद तय किया.
ये जोन्सटाउन की ही तस्वीर है. काला चश्मा और गोल हैट लगाए हुए जो आदमी खड़ा है, वो ही है जिम जोन्स.
ये जोन्सटाउन की ही तस्वीर है. काला चश्मा और गोल हैट लगाए हुए जो आदमी खड़ा है, वो ही है जिम जोन्स.


हत्या या आत्महत्या? एक बहुत बड़े से टब में अंगूर के फ्लेवर का सॉफ्ट ड्रिंक भरा गया. इसमें सायनायड और वेलियम जैसा खतरनाक जहर मिला था. सबसे पहले जहर पिलाया गया एक साल के बच्चे को. सिरींज में जहर भरकर उसके मुंह में डाल दिया गया. मांओं ने पहले बच्चों को जहर दिया. फिर खुद जहर पी गईं. कुछ लोग अपने पांव पीछे खींचने लगे. उनकी हिम्मत जवाब दे गई थी. ऐसे लोगों को जोन्स ने जहर पीने के लिए मनाया. कई ऐसे लोग जिन्होंने जहर पीने से इनकार किया, उनको जबरन जहरीला इंजेक्शन लगाया गया. 70 से ज्यादा लोगों के शरीर पर इंजेक्शन के निशान थे. जहर पीने के बाद लोग बाहर आंगन में जमा हो गए. जोन्स ने उनसे कहा कि मरते समय वो इज्जत से मरें. रोएं-तड़पें नहीं. बल्कि चुपचाप जमीन पर लेटकर आंखें बंद कर लें. मिनटों में 909 लोग मर गए. पूरे आंगन में लाशें बिछी थीं. जोन्स ने खुद जहर नहीं पिया. जब उसकी लाश मिली, तो उसके सिर पर गोली का निशान था. माना गया कि उसने किसी से कहकर अपने ऊपर गोली चलवाई. बाद में जब इस शहर की तलाशी हुई, तो कई घरों में लोगों की लिखी चिट्ठियां मिलीं. एक ने लिखा था-
जोन्सटाउन, दुनिया की सबसे सुकून वाली जगह. इससे ज्यादा प्यार करने वाला समाज कभी बना ही नहीं. जिम जोन्स की वजह से ये जन्नत बस पाया.
कई ऐसी भी चिट्ठियां मिलीं, जिनमें लोगों ने अपनी वसीयत लिखी थी. अपनी सारी संपत्ति रूस की कम्युनिस्ट पार्टी के नाम कर गए थे.
लोग कहते हैं कि ये आत्महत्याएं नहीं थीं. बल्कि सामूहिक नरसंहार था. किसी को मौत का डर दिखाकर, बर्बादी का डर दिखाकर जहर पीने के लिए तैयार करना भी तो मर्डर ही है. इन 909 के अलावा उस दिन पांच हत्याएं भी हुई थीं. रेयान और उनके साथ आए लोगों की. इसके अलावा जोन्स ने जॉर्जटाउन में रहने वाली अपनी एक भक्त को भी खुदकुशी करने को कहा था. उसने पहले अपने बच्चों को मारा. फिर अपनी जान ले ली. कुल मिलाकर इस एक दिन में 918 लोग मरे थे.
नवंबर 2011 की इस फोटो में नजर आ रहे हैं विल्फ्रेड जूपिटर. वो एक कब्र के पास खड़े हैं. उस कब्र के अंदर जो शख्स लेटा है, वो इसी जोन्सटाउन मास सूसाइड में मारा गया था. उस दिन कुल 918 लोग मारे गए. 909 जोन्सटाउन में. पांच रेयान और उनके. और जॉर्जटाउन में चार लोगों का एक परिवार, जहां मां ने ही अपने बच्चों को मार डाला. उसे भी जोन्स ने आत्महत्या करने का निर्देश दिया था.
नवंबर 2011 की इस फोटो में नजर आ रहे हैं विल्फ्रेड जूपिटर. वो एक कब्र के पास खड़े हैं. उस कब्र के अंदर जो शख्स लेटा है, वो इसी जोन्सटाउन मास सुसाइड में मारा गया था. उस दिन कुल 918 लोग मारे गए. 909 जोन्सटाउन में. पांच रेयान और उनके. और जॉर्जटाउन में चार लोगों का एक परिवार, जहां मां ने ही अपने बच्चों को मार डाला. उसे भी जोन्स ने आत्महत्या करने का निर्देश दिया था.

जोन्स बहुत पहले से इसकी तैयारी कर रहा था? जोन्सटाउन में बचे लोग कहानी सुनाते हैं. कि जैसा मास सुसाइड 18 नवंबर को हुआ, उसकी प्रैक्टिस बहुत पहले से हो रही थी. जोन्सटाउन में जगह-जगह लाउडस्पीकर लगे थे. कई बार आधी रात के वक्त एकाएक उस पर तेज-तेज सायरन बजने लगता. फिर जोन्स की आवाज गूंजती. वो कहता कि दुश्मनों ने जोन्सटाउन पर हमला कर दिया है. जंगल में से गोलीबारी की आवाज भी आती. ये गोलीबारी असल में जोन्स के ही लोग करते. मगर जोन्सटाउन में रहने वाले सोचते कि सच में हमला हुआ है. फिर कल्ट की कुछ औरतें हाथ में ट्रे लेकर आती थीं. उसमें साइनायड मिला ड्रिंक होता था. सबसे कहा जाता कि इसे पी जाओ. जो अपनी मर्जी से नहीं पीते, उन्हें जबरन पिलाया जाता. लोग डरकर भागते नहीं थे. उन्हें लगता कि भागे, तो गोली मार दी जाएगी. फिर जब बहुत देर तक साइनायड का असर नहीं होता, तो लोग हैरान होते. फिर जोन्स उनसे कहता कि ये सब रिहर्सल था. ताकि ये परखा जा सके कि वो कितने भरोसेमंद है. बात मानते हैं कि नहीं. ऐसा कई बार होता.
कल्ट और धर्म में क्या फर्क होता है? आप देखेंगे, तो धर्म और कल्ट एक से लगेंगे. मगर इनके बीच एक बड़ा फर्क ये है कि ज्यादातर धर्म पुराने हैं. कल्ट नए. दुनिया के ज्यादातर धर्म जब शुरू हुए, तब वो कल्ट की ही शक्ल में थे. शुरुआत में उन्हें धर्म नहीं माना गया. वो तो समय बीतते-बीतते उनका दायरा बढ़ा और लोग उनसे जुड़ते गए. जैसे ईसाई धर्म. इसे कल्ट से धर्म बनने में 300 साल से ज्यादा का वक्त लग गया. इसके अलावा भी धर्म और कल्ट के बीच कई बुनियादी फर्क हैं. कल्ट में आपको घर-बार छोड़ना पड़ता है. बिल्कुल अलग-थलग. आपके हाथ में पैसे नहीं होते. आप किसी बाहरी से बात नहीं कर सकते. धर्म अपनी बातों को, अपने आदर्शों का खुलेआम प्रचार करता है. कल्ट रहस्यनुमा होते हैं. गिने-चुने लोगों के बीच. इसमें कल्ट को खड़ा करने वाला ही सबसे बड़ा होता है. सब उसकी मर्जी से होता है. कल्ट का फाउंडर मर जाए या फिर उसको जानने वाले मर जाएं, तो ज्यादातर कल्ट खत्म हो जाते हैं. मगर जो कल्ट बचे रहते हैं, बरकरार रहते हैं, वो ही आगे चलकर धर्म बन जाते हैं.
पीपल्स टेंपल नाम के इस कल्ट में ज्यादातर लोग अफ्रीकी-अमेरिकी मूल के थे. ऐसे लोग जो नस्लीय भेदभाव से नाराज थे. ये उनकी नाराजगी और निराशा ही तो थी. जिसकी वजह से वो अपना सब कुछ छोड़कर एक नई दुनिया बसाने जोन्स के पीछे-पीछे आ गए.
पीपल्स टेंपल नाम के इस कल्ट में ज्यादातर लोग अफ्रीकी-अमेरिकी मूल के थे. ऐसे लोग जो नस्लीय भेदभाव से नाराज थे. ये उनकी नाराजगी और निराशा ही तो थी. जिसकी वजह से वो अपना सब कुछ छोड़कर एक नई दुनिया बसाने जोन्स के पीछे-पीछे आ गए.

इस घटना को होने से रोका जा सकता था? इस दिन की एक ऑडियो रिकॉर्डिंग है. इसमें जोन्स और उसके कुछ साथियों की आवाज रिकॉर्ड है. माना जाता है कि ये आत्महत्या वाले दिन ही रिकॉर्ड किया गया था. इसमें जिम जोन्स का लंबा-चौड़ा भाषण है. जिसमें वो लोगों को अपने हाथों अपनी और अपने बच्चों की जान लेने के लिए राजी कर रहा है. इस रिकॉर्डिंग के कुछ हिस्सों से लगता है कि जिम ने भागकर रूस जाने की कोशिश की थी. लेकिन वक्त की कमी के कारण ऐसा नहीं हो पाया. रिकॉर्डिंग में कई जगह बच्चों के रोने की आवाजें हैं. इससे ऐसा लगता है कि जोन्स की बात सुनकर लोग दहशत में थे. इस घटना पर काफी कुछ कहा गया. लिखा गया. फिल्में बनीं. ऐसा नहीं था कि जिम जोन्स पर पहले किसी को शक न हुआ हो. वो जब कैलिफॉर्निया में था, तब भी उसकी हरकतें संदिग्ध थीं. उसके तौर-तरीके परेशान करने वाले थे. उसके ऊपर कई मामले भी चल रहे थे. इन सबसे बचकर वो गुयाना भाग गया.
आम कहावत का हिस्सा बन गया जोन्सटाउन उस कल्ट से जुड़े कई लोग अपनी बात कहने को बचे रहे. ये ऐसे लोग थे जो जोन्सटाउन से भाग गए थे. या फिर ऐसे जो जोन्स को मानते तो थे, लेकिन जोन्सटाउन गए नहीं थे. इनमें से ज्यादातर लोगों का कहना था कि जोन्सटाउन में रहने वाले लोग (जोन्स के भक्त) बहुत भले थे. गैर-बराबरी और शोषण के सताए हुए. ये वो लोग थे, जो अपनी मौजूदा दुनिया से नाराज थे. सिस्टम से निराश थे. जोन्स की बातों से उनके अंदर उम्मीद जगी थी. उन्हें लगता था कि वो ऐसा समाज बना रहे हैं, जो बाकी दुनिया के लिए मिसाल है. इस घटना की यादों से जुड़ी एक कहावत है अमेरिका में. ड्रिंकिंग द कूल-किड. मतलब, अपने दोस्तों के दबाव में खतरनाक से खतरनाक काम को अंजाम देना. जैसे जोन्स के दबाव में उन लोगों ने आत्महत्या की, वैसे ही. ये बहुत नेगेटिव मतलब में इस्तेमाल होता है.
ये हैं डेबरा लेटन. जोन्सटाउन से बचकर जिंदा हैं. इन्होंने एक किताब लिखी- सिडक्टिव पॉइजन. जिस दिन जोन्सटाउन में मास सूसाइड हुआ, उससे दो महीने पहले डेबरा वहां से भाग आई थीं.
ये हैं डेबरा लेटन. जोन्सटाउन से बचकर जिंदा हैं. इन्होंने एक किताब लिखी- सिडक्टिव पॉइजन. जिस दिन जोन्सटाउन में मास सुसाइड हुआ, उससे दो महीने पहले डेबरा वहां से भाग आई थीं.

शायद इसीलिए अमेरिका ओशो को नहीं झेल पाया जोन्सटाउन के बाद अमेरिका में कल्ट लीडर्स को बहुत शक की नजर से देखा जाने लगा. ऐसी स्थिति खतरनाक तो थी ही. कि सैकड़ों लोग एक इंसान को इतना मानने लगें कि उसके इशारों पर जान ले भी लें और दे भी दें. ओशो के साथ अमेरिका में जो हुआ, उसके पीछे शायद जोन्सटाउन भी एक वजह थी. जोन्सटाउन के बाद अमेरिका ऐसी कोई घटना नहीं होने देना चाहता था. ओशो के तौर-तरीके, मनोवैज्ञानिक इलाज का उनका तरीका बहुत अलग था. उनकी बातें भी अपने दौर से कहीं आगे की थीं. इन्हीं वजहों से ओशो को भी शक की नजर से देखा गया. कह सकते हैं कि अगर जोन्सटाउन न हुआ होता, तो शायद ओशो को भी ऐसा बैकलैश न झेलना पड़ता. हादसों का असर कई तरीकों से निकलता है. कहते हैं कि इंसान का मोटा होना, यानी उसके शरीर में वसा की मोटी परतें जम जाना भी लंबे हादसों की निशानी है. इंसान के शुरुआती दिनों के हादसे. जब खाना खोजना बड़े संघर्ष का काम था. महीनों खाना नहीं मिलता था. भूख से मौत हो जाती थी. तब इंसान के शरीर ने खुद को इन हालातों के लिए तैयार करना शुरू किया. वो शायद उसे जब खूब खाना मिलता, तो वो बुरे वक्त के लिए फैट जमा कर लेता. हमने कहा न, हादसों का असर कई तहों में होता है.
जोन्सटाउन घटना बहुत खौफनाक थी. इससे मालूम चला कि चांद के पार जाने का रास्ता खोजने वाला इंसानी दिमाग असल में कितना कमजोर और लाचार हो सकता है. 



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