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JMM की पूरी कहानी जो झारखंड में सरकार बनाने जा रही है

पार्टी के नाम का बांग्लादेश से क्या कनेक्शन है?

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झार याने जंगल/झाड़ी. खंड यानी जमीन. जंगलों की जमीन, झारखंड के विधानसभा चुनाव के नतीजों में झारखंड मुक्ति मोर्चा आगे चल रही है. हेमंत सोरेन के मुख्यमंत्री बनने की संभावना नजर आ रही है. (तस्वीर: बाईं ओर शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन, देन ओर झारखंड के जननायक बिरसा मुंडा की तस्वीर और उनकी मूर्ति)
साल 2000. भारत के नक़्शे पर तीन नए राज्य सामने आए. छत्तीसगढ़,उत्तराखंड और झारखंड.
गाना गूंज रहा था- अलग भइल झारखंड, अब खईह सकरकंद.
आजादी के समय से ही अपनी अलग पहचान के लिए लड़ रहा झारखंड आखिरकार एक अलग राज्य बन चुका था. इसमें महती भूमिका निभाने वाली पार्टी थी, झारखंड मुक्ति मोर्चा. 15 नवंबर, 1972 में बनी. झारखंड के सबसे बड़े जननायक बिरसा मुंडा की जयंती के मौके पर.
पार्टी के अध्यक्ष शीबू सोरेन हैं. कार्यकारी अध्यक्ष, उनके बेटे हेमंत सोरेन. 2019 के विधानसभा चुनावों में झामुमो सबसे बड़ी पार्टी बनती दिख रही है. झामुमो, कांग्रेस और राजद का गठबंधन बहुमत का आंकड़ा छूता नज़र आ रहा है. गठबंधन की जीत हुई तो हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बन जाएंगे.
इस विधानसभा चुनाव के नतीजों के बहाने एक नज़र, झारखंड और झामुमो के इतिहास पर.
Jmm Symbol झारखंड मुक्ति मोर्चा का चुनावी निशान. तीर और कमान को आदिवासी विद्रोहों के इतिहास से जोड़कर देखा जाता है. पढ़ने को मिलता है कि अंग्रेजों और बेईमान जमींदारों के खिलाफ विद्रोह में आदिवासी विषबुझे तीरों का इस्तेमाल भी करते थे. (तस्वीर: विकिमीडिया)

झारखण्ड की मिट्टी का उलगुलान
बिरसा मुंडा. झारखंड के सबसे लोकप्रिय जननायक. अपनी धरती और उस पर अपना राज का नारा दिया. उलगुलान की शुरुआत
की. वो विद्रोह जिसमें आदिवासियों ने अपने जल, जंगल और ज़मीन पर अपनी दावेदारी के लिए आवाज़ बुलंद की. 1895 में शुरू हुए इस विद्रोह ने अंग्रेजों को बिरसा के पीछे लगा दिया. पकड़े गए, जेल में मौत हुई. लेकिन का उनका नारा झारखण्ड की मिट्टी में बसा रह गया. कोल, संथाल और मुंडा विद्रोहों की कहानी के साथ.
Birsa Munda 700 बिरसा मुंडा को झारखंड में भगवान का दर्जा प्राप्त है. उनको मानने वाले खुद को बिरसाइत कहते हैं. (तस्वीर: इंडिया टुडे/विकिमीडिया)

धरती आबा के नाम पर बनी नई पार्टी
भारत की आज़ादी के बाद बनी झारखंड पार्टी ने हमेशा से अलग झारखंड राज्य की मांग की. 1967 में पार्टी में कई फाड़ हो गए. इसी से निकली बिहार प्रोग्रेसिव हूल झारखंड पार्टी, जिसके नेता थे शिबू सोरेन. शिबू की राजनीति इस पार्टी से चलने वाले नहीं थी. उन्होंने बिनोद बिहारी महतो और कामरेड डॉक्टर एके रॉय के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा नाम की नई पार्टी शुरू की. साथ में थे निर्मल महतो, और टेक लाल महतो. 1971  में शेख मुज़ीबुर्रहमान के नेतृत्व में पूर्वी पाकिस्तान में मुक्तिवाहिनी ने लड़कर नया देश बांग्लादेश बनाया था. वहीं से झारखंड मुक्ति मोर्चा का नाम ख्याल में आया था.
शीबू सोरेन ने पार्टी की शुरुआत से ही खदान मजदूरों की नेतागिरी की. इनमें से ज़्यादातर वो वर्ग था जो आदिवासी नहीं था. झामुमो की राजनीति रही बाहरी बनाम भीतरी की. झारखंड में झारखंडियों को सभी अधिकार. लेकिन झामुमो का कोई भी मुख्यमंत्री पद पर टिक नहीं पाया.
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शिबू के बड़े बेटे दुर्गा सोरेन राजनीति में उतर चुके थे. हेमंत का कोई प्लैन नहीं था राजनीति में आने का. लेकिन दुर्गा की अचानक हुई मौत के बाद हेमंत को मैदान में उतरना पड़ा. अपने पिता की विरासत संभालने के लिए. (तस्वीर: ट्विटर)

झामुमो के हाथ से फिसलती सत्ता
2000 में झारखंड के बनते ही पहले मुख्यमंत्री बने बाबूलाल मरांडी. बीजेपी से. मुश्किल से सवा दो साल टिक पाए. उनके बाद आए अर्जुन मुंडा. बीजेपी से ही. इन दोनों के बाद शिबू सोरेन का नंबर आया. लेकिन मुश्किल से दस दिन टिक पाए. बात है मार्च 2005 की. अर्जुन मुंडा ने वापस सत्ता कब्जा ली. बीजेपी और झामुमो के बीच चल रहे इस टग ऑफ वॉर में लंगड़ी लगाई मधु कोड़ा ने. निर्दलीय रहते सीएम बन गए. पर वो भी दो साल से ज्यादा टिक नहीं पाए. सितंबर 2006 से अगस्त 2008 तक. इसके बाद कभी राष्ट्रपति शासन और कभी शिबू सोरेन के बीच झारखण्ड की जनता इधर-उधर होती रही. विकास की उम्मीद लगाए.
बीजेपी और कांग्रेस दोनों के समर्थन से झामुमो सत्ता में आई.  2009 में बीजेपी के समर्थन से शिबू जीते थे, लेकिन अगले साल ही समर्थन बीजेपी ने वापस ले लिया. राष्ट्रपति शासन लगा. फिर समझौता हुआ. अर्जुन मुंडा सितंबर, 2010 से जनवरी, 2013 तक मुख्यमंत्री रहे. उपमुख्यमंत्री की सीट पर हेमंत सोरेन आए. दिसंबर, 2012 में डिप्टी सीएम हेमंत सोरेन ने अर्जुन मुंडा से रोटेशन फॉर्मूले पर स्थिति साफ करने के लिए कहा. 3 जनवरी, 2013 को अर्जुन मुंडा ने लिखित में जवाब दिया कि रोटेशन फॉर्मूले जैसा कोई समझौता हुआ ही नहीं था. झामुमो ने बीजेपी से समर्थन वापस ले लिया. फिर राष्ट्रपति शासन लगा. झामुमो ने उंगलियां चटकाईं. कांग्रेस से समर्थन लेकर सरकार बना ली.  जुलाई, 2013 में पहली बार हेमंत सोरेन को मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला. झामुमो से दूसरे मुख्यमंत्री. डेढ़ साल में उनका कार्यकाल खत्म हो गया.
Hemant Soren 700 हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झामुमो ने भाजपा और कांग्रेस दोनों के साथ गठबंधन किया, लेकिन दोनों बार ही सरकार नहीं चल पाई .

इनके बाद आए रघुबर दास. बीजेपी की तरफ से. 2014 में चल रही मोदी लहर के दौरान जीते. झारखण्ड के अब तक के 19 साल के इतिहास में पहले मुख्यमंत्री बने जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया. यही नहीं, झारखंड के पहले गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री बनने का सेहरा भी इन्हीं के सिर बंधा. चार लोगों के बीच फुटबॉल बनी सत्ता इनके हाथों में काबिज हुई, तब थोड़ी स्थिरता आई. मुख्यमंत्री के कार्यकाल में कहा गया कि राज्य में ईसाइयों और ईसाई संगठनों के खिलाफ कम कर रहे हैं रघुबर. धर्म परिवर्तन के खिलाफ क़ानून लेकर आए. धर्म परिवर्तन के खिलाफ अखबारी विज्ञापन चले. और कहा गया कि जन आंदोलनों से निकले रघुबर अब भाजपा के धड़े में शामिल हो चुके हैं.
पार्टनर, फिर इनकी पॉलिटिक्स क्या है?
झामुमो जब अस्तित्व में आई, तब इसे संथालों की पार्टी कहा जाता था. संथाल जनजाति झारखंड की आदिवासी जनसंख्या का सबसे बड़ा हिस्सा है, और संथाल परगना को झारखंड की राजनीति का केंद्रबिंदु भी कहा जाता है. लेकिन समय के साथ इसने खुद को सभी आदिवासी जनजातियों का प्रतिनिधि बना लिया. झारखंड विकास मोर्चा और ऑल झारखण्ड स्टूडेंट्स यूनियन ऐसा नहीं कर पाए.
रघुबर दास के नेतृत्व में बीजेपी सरकार ने कई निर्णय ऐसे लिए जिनसे राज्य की आदिवासी जनजाति के बीच डर बैठा. छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट (1908) और संथाल परगना टेनेंसी एक्ट (1949) में बदलाव लाने के लिए बिल पेश किए गए.  इन एक्ट्स के तहत आदिवासियों की खेती वाली ज़मीन को किसी गैर-आदिवासी व्यक्ति को बेचना या ट्रान्सफर करना गैर कानूनी था. बीजेपी सरकार ने संशोधन का प्रस्ताव देकर इन शर्तों को हटाने के लिए बिल पेश किया. एसेम्बली में तो ये पास हो गए, लेकिन गवर्नर द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें लौटा दिया. इन सभी क़दमों के साथ साथ रघुबर दस का गैर आदिवासी होना, और एंटी इनकम्बेंसी फैक्टर झामुमो के फेवर में रहा. झामुमो ने अपने मैनिफेस्टो में सभी आदिवासी जनजातियों के लिए 28 फीसद आरक्षण की भी घोषणा की थी.
Droupadi Raghubar 700 गवर्नर द्रौपदी मुर्मू के साथ रघुबर दास. गवर्नर ने संशोधन वाले बिल लौटा दिए, और पूछा इनसे आदिवासियों का क्या भला होगा. (तस्वीर: इंडिया टुडे)

इस पूरे चुनाव में देखने वाले बात ये रही कि कांग्रेस कहीं भी प्रचार में नहीं आई. दोनों दल अपने-अपने अलग प्रचार करते रहे. कांग्रेस के पोस्टर्स से झामुमो और झामुमो के पोस्टर से कांग्रेस नदारद नज़र आई.


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