नाम बदलने की अपनी धुन को उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अजय सिंह बिष्ट ने जस्टिफाई करते हुए कहा कि लोग अपने बच्चों का नाम रावण या दुर्योधन क्यूं नहीं रखते?
क्या अमित शाह के नाम में लगा 'शाह' फ़ारसी है?
अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर ने अमित शाह के नाम के बारे में जो बड़ा बयान दिया है, उसमें कितनी सच्चाई है?
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फोटो - thelallantop
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दूर से ये एनालॉजी सही लगती है लेकिन इसमें कई पेंच हैं और थोड़ा सा सोचने पर ताश के पत्तों की तरह भरभरा के गिर पड़ती है.
# अव्वल तो किसी का नाम बदल के रावण से राम नहीं फैज़ाबाद से अयोध्या और इलाहाबाद से प्रयागराज किया गया है. न ही इलाहाबाद रावण है और न ही प्रयागराज राम. ऐसे ही उत्तर प्रदेश से इतर बात की जाए तो न ही गुड़गांव कंस है और न गुरुग्राम कृष्ण.सजेशन: एनालॉजी तो तब सही होती जब जालंधर का नाम बदल के लवनगर कर दिया होता.

# दूसरा अपने बच्चे का नाम रखना किसी मां-बाप का निजी निर्णय है, और लोग तमाम विरोध के बावज़ूद विवादास्पद नाम रखते हैं. हालिया रखे गए नामों में ‘तैमूर’ एक उदाहरण है. साथ ही कोई व्यक्ति होश संभालने के बाद अपना नाम बदलकर जो चाहे वो रखे. लेकिन शहर, गांव, जिले, राज्य और गलियों आदि के नाम बदलने के कई सामजिक और आर्थिक परिणाम होते हैं. और ज़्यादातर ये परिणाम नहीं दुष्परिणाम होते हैं. जी हां आर्थिक भी. मेरे गृह राज्य का नाम उत्तरांचल से बदल के उत्तराखंड करने का आर्थिक नुकसान मैं देख चुका हूं. तब रोडवेज़ की गाड़ियों को पेंट करने में ही इतना खर्च हो गया होगा जितने में दसियों नई वॉल्वो आ जातीं.

बहरहाल इस नाम बदलने की राजनीति में एक नया मोड़ आया है क्यूंकि हर पक्ष का एक विपक्ष होता है.
याद रखिए विवाद दरअसल बूमरैंग हैं, जो लौटकर आप तक आते ही हैं.और अबकी बार ये बूम रैंग भाजपा के सर्वेसर्वा अमित शाह को जाकर लगा है.
प्रसिद्ध इतिहासकार इरफान हबीब ने कहा है कि अमित शाह वो सबसे पहला नाम होना चाहिए जिसे बदला जाए. उनके अनुसार अमित शाह का उपनाम 'शाह' गुजराती नहीं फारसी मूल का है. बल्कि खुद ‘गुजरात’ शब्द भी पर्शियन मूल का ही शब्द है.
हबीब ने बीजेपी सरकार की तुलना पाकिस्तान से करते हुए कहा है कि, पाकिस्तान में भी या तो सारी चीज़ों (नामों) का इस्लामीकरण कर दिया गया है या उन्हें हटा दिया गया है.

इरफान हबीब अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं और तथ्यों के साथ अपनी बात रखते हैं. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हबीब स्वीपिंग कमेंट्स देने के लिए नहीं जाने जाते. इसलिए उनकी कही हुई बात की तह तक जाने के लिए हमने अजीत वडनेरकर से संपर्क किया. अजीत शब्दों और उनके मूल, उनकी उत्पत्ति को लेकर होने वाले शोधों में डेढ़ दशक से ज़्यादा समय से पूरी तरह समर्पित हैं. वे शब्दों के सफ़र के तीन पड़ाव तय कर चुके हैं. मतलब उनकी शब्दों का सफ़र नाम की पुस्तक के तीन भाग आ चुके हैं और तीनों के ही कई एडिशन बिक चुके हैं.
जब कभी भी मुझे किसी शब्द, उसके ऑरिजन आदि को लेकर संशय होता है मैं उनसे ही बात करता हूं. उनके अनुसार –
# शाह को फ़ारसी समझने में बुराई नहीं मगर भारत के सभी शाह फ़ारसी समरूपों से प्रभावित नहीं है. मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में साहू तेली होते हैं. यह साहू मूलतः साह, साधु से ही आ रहा है. साहूकार यानी प्रभावशाली वर्ग.
# कुलीन, आर्य, भद्र के अर्थ में साधु आम शब्द है. इसके अलावा जिसकी साधना पूरी हो गई हो, उस मुनि को भी साधु कहते हैं. साधु का एक अन्य अर्थ भी शब्दकोश बताते हैं– वह है महाजन, सूदखोर अथवा सौदागर.

# साधारणतः विपरीतार्थी समझे जाने वाले इस शब्द के मूल में देखें तो प्राचीनकाल में कुलीनों-धनिकों को भी दयालु, कृपालु, श्रेष्ठ जैसे संबोधन ही मिले हुए थे. श्रेष्ठ से ही सेठ जैसा शब्द भी बना है. तब साधु शब्द से ही अगर साहू शब्द भी चल पड़ा हो तो कोई आश्चर्य नहीं.
# भाषाविज्ञानी तो साहूकार शब्द के मूल में साधु शब्द ही देखते हैं. भारतीय समाज में यूं तो साहूकार शब्द का नकारात्मक प्रभाव है मगर अपने मूल अर्थ में यह साधु+कार्य से प्रेरित है. साधुता के कार्य करने वाला कुलीन. इसे यूं समझें कि प्रायः सभी नीतिशास्त्र, धर्मशास्त्र धनी-कुलीनों के जो लक्षण बताते हैं उनमें परोपकार, दयालुता और उदारता जैसे गुण ही प्रमुख रहे हैं. यही कुलीनों के साधुकार्य रहे हैं. साधु साधु एक प्रसिद्ध उक्ति है जो प्रायः भद्रकर्मों को देख-जान कर कही जाती है.
# कालांतर में कलयुगी लक्षणों के साथ मूल साधु कर्म पीछे छूट गए और साहूकार का असली चेहरा उभरा जिसमें न तो दया नज़र आती है न ही परोपकार. देखा जाए तो आज के दौर में तो न साधु का फेर सही न साहूकार का चक्कर. साह शब्द भी इससे ही जन्मा है और साहू भी. मूलतः ये सभी शब्द व्यापार, व्यवसाय और मुद्रा से जुड़े हुए हैं. देश के विभिन्न क्षेत्रों में साहू और साह व्यापारी जातियों के उपनामों के रूप में भी प्रचलित हैं.
# इसी साह का रूप शाह भी होने लगा जो वणिक, वैश्य बनिया है. यूं बहादुर, नवाब, राजा, सिंह आदि की तरह से शाह उपाधि भी थी. मुस्लिम दौर में हिन्दुओं को अनेक उपाधियां ख़ैरात की जाती थीं. ये शासकों की कूटनीति थी. पर तमाम शाहधारी लोगों को फ़ारसी शाह से सम्बद्ध कर देना अजीब किस्म की जल्दबाजी होगी. कौन कौन मोदी शाह फ़ारसी शब्दावली से आए और कौन कौन मोढ़ और साह से रूपान्तरित हैं, ये तो उन्हें ही अपनी वंशावली और कार्य-व्यापार के आधार पर स्पष्ट करना होगा.
# अब ज्ञान के बाद कुछ ह्यूमर और व्यंग -
ऊपर की बातों से पता चलता है कि मेरा उपनाम ज़्यादा हिंदू है क्यूंकि वो ‘साह’ है. दर्पण साह. अमित शाह चाहें तो अपना उपनाम परिवर्तित करके साह कर सकते हैं. मुझे कोई दिक्कत नहीं. वैसे मुझे याद हो आता है जब 2017 में यूपी के साथ-साथ उत्तराखंड के इलेक्शन हो रहे थे और अमित शाह अल्मोड़ा आए थे तो पोस्टर में उनका नाम अमित साह कर दिया गया था. क्यूंकि वहां, अल्मोड़ा में शाह नहीं है और साह ढेर सारे.
अगर नाम बदलने से वोट मिलते हैं तो अदल-बदल अच्छी है. पहले वोटों और सीटों की खातिर दल-बदल होते थे अब नामों के अदल बदल हो रहे हैं. ये नया ट्रेंड है और यूं मेरे देश की राजनीति भी ‘बदल’ रही है. (पन इंटेंडेड)
आखिर देश के बाकी सारे मुद्दे हल कर लिए गए हैं. कोई भूखा नहीं सोता. और हर कोई बिस्तर में सोता है. और अगर नींद न आए तो दस कदम की दूरी पर हॉस्पिटल है. लेकिन इन दस कदमों को भी चलने की ज़रूरत नहीं, मेट्रो और सिटी बस का डोर स्टेप पिकअप है. लेकिन वो भी लेने की ज़रूरत नहीं डॉक्टर घर आता है. उस थ्री बीएचके के घर, जो प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत सरकार ने आपको उपलब्ध करवाया है.ये शहर (फिर चाहे वो गुरुग्राम हो प्रयागराज या अयोध्या) है अमन का यहां पे सब शांति शांति शांति. तो अब बैठे ठाले क्या करें करना है कुछ काम शुरू करो अंताक्षरी लेकर हरी का नाम. म से बॉम्बे आई मीन मुंबई...
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