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GST में इतना कुछ 'सस्ता-महंगा' हुआ, लेकिन पेट्रोल-डीजल कहां रह गया?

जीएसटी और पेट्रोल-डीजल के बीच फिलहाल कोई नाता नहीं है. मतलब पेट्रोल-डीजल जीएसटी के दायरे में नहीं आता. इस पर टैक्स लगाने का अधिकार राज्यों को भी है. एक्साइज ड्यूटी केंद्र सरकार भी लगाती है.

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पेट्रोल-डीजल जीएसटी के दायरे मेें नहीं आते (India Today)

‘गुड्स एंड सर्विस टैक्स’ यानी GST में बड़े सुधारों के एलान के बाद हर तरफ यही शोर है कि क्या सस्ता हुआ और क्या महंगा. पेट्रोल और डीजल का तो कोई नाम भी नहीं ले रहा. उनकी क्या कंडीशन है? सस्ता हुआ या नहीं. टैक्स घटा या नहीं? वह GST के किस स्लैब में आएगा? 5 प्रतिशत, 18 प्रतिशत या Luxary Tax वाले 40 प्रतिशत में? जब बात महंगाई की आती है या टैक्स की आती है तो Petrol को अपने आप ‘अटेंशन’ मिलने लगता है. सबकी नजरें उधर ही होती हैं कि सरकार ने क्या फैसला लिया लेकिन इस बार तो कोई उसका नाम ही नहीं ले रहा?

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आपने सोचा, क्या वजह हो सकती है? 

वजह है (और बहुत से लोग ये जानते भी हैं) कि GST और पेट्रोल-डीजल के बीच फिलहाल कोई नाता नहीं है. मतलब पेट्रोल-डीजल GST के दायरे में नहीं आता. इस पर टैक्स लगाने का अधिकार राज्यों को भी है. Excise Duty केंद्र सरकार भी लगाती है लेकिन इससे मिलने वाले Tax से ही ‘राज्यों का घर चलता है’ और यही ‘झगड़े’ की वजह भी है कि GST के दायरे में पेट्रोल-डीजल को शामिल नहीं किया जा पा रहा. अगर ऐसा हो तो जनता की ‘मौज’ ही हो जाए. तेल की कीमत ऐसे कम होगी, जैसे जाड़े में धूप. माने टैक्स तो रहेगा लेकिन इतना नहीं रहेगा, जितना अभी है.

पेट्रोल डीजल पर कितना टैक्स है?

पेट्रोल और डीजल के रेट्स तो जनता की दुखती रग हैं. इनकी कीमतें ‘शतक मार चुकी हैं’. लेकिन कम लोगों को पता है कि जो पैसा वह पेट्रोल के लिए देते हैं उसका 50 फीसदी से ज्यादा तो टैक्स में चला जाता है. यानी, अगर ये टैक्स न हों तो पेट्रोल की कीमतें आधी हो जाएं. अब ‘इतना किस बात का टैक्स लगता है?’ का सवाल मन में आया तो जान लीजिए. पेट्रोल-डीजल पर राज्य और केंद्र दोनों ही सरकारें टैक्स वसूलती हैं. इसकी कीमत में मुख्यतः चार हिस्से होते हैं. 

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पहला- केंद्र सरकार की एक्साइज ड्यूटी. 7 अप्रैल 2025 को केंद्र ने पेट्रोल और डीजल पर 2 फीसदी की एक्साइज ड्यूटी बढ़ा दी थी, जिसके बाद से पेट्रोल पर यह 13 रुपये प्रति लीटर और डीजल पर 10 रुपये प्रति लीटर हो गया है.

दूसरा- राज्यों के वैल्यू एडेड टैक्स यानी VAT. यह अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होता है. जैसे ‘क्लियर टैक्स’ की रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली में पेट्रोल के लिए VAT तकरीबन 20 फीसदी है. वहीं, डीजल पर ये 17 फीसदी के करीब है.

तीसरा- रिटेलर्स को डीलर कमीशन दिया जाता है, जो औसतन 4 रुपये प्रतिलीटर के आसपास होता है.

चौथा- वह कीमत होती है जो तेल कंपनियां तय करती हैं. इसे बेस प्राइस कहते हैं.

इस तरह से पेट्रोल और डीजल पर करों का योगदान 50 फीसदी से ज्यादा हो जाता है.

GST के दायरे में क्यों नहीं है पेट्रोल-डीजल?

पहले ही बता चुके हैं कि राज्यों का पूरा ‘खर्चा-पानी’ ही पेट्रोल-डीजल के टैक्स से चलता है. ऐसे में अगर ये GST के दायरे में आ गया तो पूरे देश में एक ही टैक्स हो जाएगा. 

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पेट्रोल और डीजल पर सबसे ज्यादा टैक्स लगता है और राज्यों को इससे भारी रेवेन्यू मिलता है. ‘द हिंदू’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2020-21 में फ्यूल टैक्स  से केंद्र और राज्य सरकारों के संयुक्त खजाने में तकरीबन 6 लाख करोड़ जमा हुए थे. अगर इसे GST के दायरे में लाया गया तो टैक्स में कमी करना होगा. 

GST का सबसे बड़ा स्लैब भी 18 फीसदी का है. लग्जरी टैक्स वाली कैटेगरी 40 फीसदी तक सीमित है. अभी पेट्रोल-डीजल पर 50 फीसदी से ज्यादा का टैक्स मिल जाता है. 

ऐसे में राजस्व में भारी नुकसान के डर से कोई भी राज्य व्हीकल फ्यूल को GST में लाने की सहमति नहीं दे पा रहा है. इसके अलावा अपने हिस्से के टैक्स के लिए वो केंद्र सरकार पर आश्रित हो जाएंगे. 

GST में आने की कितनी संभावना?

सवाल है कि क्या आने वाले समय में पेट्रोल और डीजल को GST के दायरे में लाने की संभावना है? इसका ठीक-ठीक जवाब नहीं दिया जा सकता. यह GST परिषद के हाथ में है कि वह इस पर क्या और कब फैसला लेगा.  जुलाई 2017 में जब GST लागू किया गया था तो 5 वस्तुओं कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, पेट्रोल, डीजल और एविएशन टर्बाइन फ्यूल को इसके दायरे से बाहर रखा गया.

CGST एक्ट की धारा 9(2) में लिखा है कि पेट्रोल, कच्चे तेल और डीजल, मोटर स्पिरिट, प्राकृतिक गैस और एविएशन टरबाइन फ्यूल पर GST तभी लागू होगा जब केंद्र सरकार ‘GST काउंसिल’ की सिफारिश पर कोई नोटिफिकेशन जारी करेगी. अभी तक तो सरकार ने ऐसा कोई नोटिफिकेशन जारी नहीं किया है. हालांकि, काउंसिल की बैठकों में इस पर चर्चा होती रही है लेकिन राज्यों के विरोध की वजह से इसे GST में नहीं लाया जा पा रहा है.

GST काउंसिल का क्या रुख है?

'इंडिया टुडे' की रिपोर्ट के मुताबिक, जून 2023 में केरल हाई कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए GST Counsil को पेट्रोल-डीजल को GST के दायरे में लाने के लिए केंद्र को एक ज्ञापन भेजने और 6 हफ्तों में उचित निर्णय लेने का निर्देश दिया था. इस पर केंद्रीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 17 सितंबर को GST काउंसिल की बैठक में इसे एजेंडे में शामिल भी किया. उन्होंने इसके बाद बताया कि परिषद ने ऐसा महसूस किया है कि पेट्रोलियम उत्पादों को GST में लाने का यह सही समय नहीं है. किसी राज्य का नाम लिए बिना उन्होंने कहा कि परिषद के सदस्यों का मानना ​​था कि पेट्रोलियम उत्पादों को GST में शामिल नहीं किया जाना चाहिए. मीडिया रिपोर्टों में कहा गया कि केरल, तमिलनाडु और (तब भाजपा शासित) कर्नाटक ने इसका कड़ा विरोध किया था, क्योंकि इससे उनके राजस्व पर असर पड़ता.

GST में आया तो किस स्लैब में होगा?

जब तक सरकार की ओर से कोई नोटिफिकेशन नहीं आता, इस पर कुछ कहा नहीं जा सकता लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो अगर पेट्रोलियम प्रोडक्ट GST के दायरे में आए तो उन्हें सबसे हाई टैक्स स्लैब में रखा जा सकता है. या हो सकता है कि इन उत्पादों के लिए अलग स्लैब ही बनाया जाए, जिसमें कर की दरें सबसे ज्यादा हों. GST परिषद की पुरानी बैठकों में केंद्र और राज्यों के बीच जब इस पर बात होती थी तो इसे 28 फीसदी वाले स्लैब में रखे जाने पर चर्चा की जाती थी.

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