सरकार के निर्देशानुसार, आपके क्षेत्र में इंटरनेट सेवाएं अगली सूचना आने तक बंद कर दी गई हैं.पिछले एक-डेढ़ साल में हमारा इस मैसेज से एक से ज्यादा बार वास्ता पड़ चुका है. किसी प्रकार के संकट या उसके होने की आशंका के चलते सरकार इंटरनेट सेवाओं को अस्थायी रूप से बंद कर दे रही है. 2019 में अयोध्या का फैसला आने के वक्त कई जगह एहतियातन इंटरनेट बंद किया गया था. एंटी-CAA प्रोटेस्ट के दौरान भी सरकार ने कई शहरों में इंटरनेट बंद किया. अनुच्छेद-370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर में लंबे समय तक इंटरनेट बंद रहा. वहां ये सेवा अभी तक पूरी तरह बहाल नहीं हुई है. कुछ इलाकों में आज भी "वर्चुअल कर्फ्यू" लगा हुआ है. वहीं, एक दिन पहले गणतंत्र दिवस के मौके पर दिल्ली में आयोजित किसान रैली में हिंसा हुई तो राजधानी और उससे सटे कई इलाकों में इंटरनेट सेवा बंद करने का फैसला फिर लिया गया. इस रिपोर्ट में जानेंगे उस कानून के बारे में, जो सरकार को ये शक्ति देता है कि वो जरूरत पड़ने पर इंटरनेट या संचार सेवाएं बंद कर सकती है. इतिहास 1857 की क्रांति भले ही अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पाई, लेकिन इसने अंग्रेज सरकार को बुरी तरह हिला दिया था. अब उसकी कोशिश थी कि दोबारा ऐसी क्रांति न भड़क पाए. इसलिए उसने प्रेस की स्वतंत्रता पर लगाम लगाने का काम शुरू किया. इसके लिए 1857 में ही तत्काल प्रभाव से लाया गया 'गैगिंग ऐक्ट'. इसके मुताबिक, कोई भी अखबार निकालने से पहले सरकार से अनुमति व लाइसेंस लेना अनिवार्य था. कहा गया कि कोई भी अखबार भड़काऊ लेख या सरकार विरोधी बातें नहीं लिखेगा.
As per government instructions, internet services have been stopped in your area till further notice.
फिर 1870 के बाद अंग्रेज सरकार ने अपना फोकस क्षेत्रीय प्रेस को नियंत्रित करने पर शिफ्ट किया. उस समय अंग्रेज़ी भाषा का मीडिया कम था. लोग भी अपनी क्षेत्रीय भाषाओं में लिखा हुआ पढ़कर उससे ज्यादा जुड़ाव महसूस करते थे. इसलिए ‘वर्नैकुलर मीडिया’ पर पाबंदियां लगाई जानी शुरू हुईं. दि इंडियन एक्सप्रेस में इससे जुड़ा एक किस्सा भी है.
‘आनंद बाजार पत्रिका’ उस समय का बड़ा मीडिया समूह था. ब्रिटिश अधिकारी सर एश्ले ईडन एक बार आनंद बाजार पत्रिका के संपादक शिशिर कुमार घोष से मिलने पहुंचे. कहा कि अखबार के एडिटोरियल कंटेंट पर अंतिम निर्णय ब्रिटिश सरकार को दिया जाए. संपादक शिशिर कुमार ने साफ इन्कार कर दिया. बाद में मार्च 1878 में ब्रिटिश सरकार कानून ले आई. नाम था ‘वर्नैकुलर प्रेस ऐक्ट’. इसके जरिये क्षेत्रीय मीडिया पर कड़े प्रतिबंध लगाए गए. उनका लिखा हर कंटेंट अब ब्रिटिश सरकार की नजर में था.

इंडियन टेलिग्राफ ऐक्ट 1885 लेकिन 1885 में अंग्रेज सरकार गैगिंग ऐक्ट और वर्नैकुलर ऐक्ट से भी एक कदम आगे निकल गई. अब नया कानून लाया गया- इंडियन टेलिग्राफ ऐक्ट 1885. हमने जिस सवाल के साथ इस रिपोर्ट की शुरुआत की थी, उसका जवाब यही कानून है.
इंडियन टेलिग्राफ ऐक्ट 1885 कुछ संशोधनों के साथ आज भी देश में लागू है. इंटरनेट या अन्य संचार सेवाएं इसी कानून के तहत बंद की जाती हैं.इंडियन टेलिग्राफ ऐक्ट के तहत केंद्र या राज्य सरकार को आपातकाल या लोक सुरक्षा के लिए फोन कॉल्स को प्रतिबंधित करने, उसे टैप करने तथा निगरानी करने का अधिकार प्राप्त है. ऐक्ट के नियम 419 और 419 ए में इसका जिक्र है. सेवाएं प्रतिबंधित या बंद करने का अधिकार इंडियन टेलिग्राफ ऐक्ट के भाग 2 में सरकार के विशेषाधिकारों का उल्लेख है. इसमें कहा गया है,
केंद्र सरकार, राज्य सरकार या इनका संबंधित अधिकारी किसी व्यक्ति, व्यक्तियों के समूह के भेजे संदेशों को इंटरसेप्ट कर सकता है, मैसेज सेवा को बाधित कर सकता है. ऐसा इन परिस्थितियों में किया जा सकता है: किसी लोक आपात की स्थिति होने पर, लोक सुरक्षा का हित मालूम होने पर, देश की प्रभुता और अखंडता के लिए जरूरी हो, विदेशी राज्यों से मैत्रीपूर्ण संबंधों या लोक व्यवस्था के हित में या किसी अपराध को रोके जाने के लिए.इस संबंध में एक और क्लासिफिकेशन है. सरकारी एजेंसियों को अधिकार है कि वे गृह मंत्रालय से परमिशन लेकर किसी व्यक्ति, संस्था या फलां जगह की कम्युनिकेशन सर्विसेज को टैप कर सकती हैं या प्रतिबंधित कर सकती हैं. वहीं, वित्त मंत्रालय और CBI को बाद में ये अधिकार भी दिया गया कि वे सुरक्षा या जरूरी कार्रवाई की वजह से गृह मंत्रालय की पहले से परमिशन लिए बिना भी 72 घंटे तक ऐसा कर सकते हैं.