पहले पढ़ते हैं कि क्या-क्या हुआ और कैसे:
1. वो पहाड़ी एरिया है. वहां उतरने के बाद आर्मी कमांडो कीचड़ और पत्थरों के बीच होते हुए 3 किलोमीटर तक चले. यहां लैंडमाइंस भी बिछे होते हैं. पाकिस्तान के कब्जे का एरिया है. पकड़े जाने का भी खतरा है. 2. पहले से अंदाज़ा था कि आतंकवादी 7 जगहों पर टिके हुए हैं. यहां से वो इंडिया में घुसने की फिराक में थे. ये सारे लॉन्च पैड भीमबर, कल, तत्तापनी और लीपा में बने हुए थे. पर इनको ये नहीं पता था कि भारत की ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ और आर्मी इंटेलिजेंस इन पर नज़र बनाये हुए है. 3. कमांडो टीम के दिमाग में 6 टारगेट थे. उसमें से तीन पूरी तरह बर्बाद कर दिए गए. कमांडो के पास टेवर और M-4 बंदूकें थीं. ग्रेनेड और स्मोक ग्रेनेड भी थे. कैमरा वाले हेल्मेट पहन रखे थे. साथ ही अंडर बैरल ग्रेनेड लांचर और रात में देखने वाले डिवाइस भी ले रखे थे. 4. पहले आतंकवादियों को सरप्राइज कर दिया गया. ये मिलिट्री अटैक की स्ट्रेटजी होती है. दुश्मन घबरा जाता है. तुरंत ही स्मोक ग्रेनेड फेंके गए. इससे आतंकवादियों में अफरा-तफरी मच गयी. इसके बाद फायरिंग शुरू हो गयी. जब तक उनको कुछ समझ आता, 38 आतंकवादी और 2 पाक सैनिक ढेर हो चुके थे. 5. कमांडोज के हेल्मेट में लगे कैमरे और एक ड्रोन लगातार लाइव अपडेट दे रहे थे. इसे आर्मी हेडक्वॉर्टर में बैठे अजित डोवाल, मनोहर पर्रिकर और दलबीर सिंह सुहाग लगातार देख रहे थे.अब पढ़िए, इस ऑपरेशन के लिए ये हथियार और हेलिकॉप्टर इस्तेमाल किए गए:
M-4

वजन: लगभग सवा तीन किलो लम्बाई: 33 इंच बैरल की लम्बाई: 14.5 इंच कैलिबर: 5.56x45 मिलिमीटर मैक्सिमम रेट ऑफ़ फायर: 950 rpm मजल वेलोसिटी: 2900 फीट पर सेकंड रेंज: 600 मीटर
ये एक हलके वजन की मैगज़ीन से लोड होने वाली शोल्डर फायरिंग गन है. अमेरिकी मिलिट्री में भी यही बन्दूक इस्तेमाल होती है. इस पर ग्रेनेड लॉन्चर भी लगा के इस्तेमाल किया जा सकता है. सेमी-ऑटोमेटिक है. इसको राइफल में क्वीन माना जाता है.
टेवर गन

वजन: लगभग साढ़े तीन किलो लम्बाई: लगभग 700 मिलीमीटर बैरल की लम्बाई: 460 मिलीमीटर कैलिबर: 5.56x45 मिलीमीटर फायरिंग रेट: एक मिनट में 900 राउंड मज़ल वेलोसिटी: 910 मीटर/सेकंड फायरिंग रेंज: 550 मीटर
ये इतनी ज्यादा स्मूथ है कि कार से शूटिंग करने, ड्राइव करते शूटिंग करने या हॉल में शूटिंग करने में एकदम आरामदायक है. इसमें पिस्टन सिस्टम का इस्तेमाल होता है. इसको डायरेक्ट इम्पिंजमेंट से बेहतर माना जाता है. इसकी सबसे अच्छी बात ये है कि इसमें हजारों राउंड लगातार फायर किये जा सकते हैं बिना किसी गड़बड़ के. M-4 इसी मामले में थोड़ा पीछे रह जाता है. 500 मीटर रेंज पर ये परफेक्ट है. हर तरह की लड़ाई में ये यूज होती है. इसके चार मोड हैं: सेफ, सेमी आटोमेटिक, बर्स्ट और फुल ऑटो. इसमें मैगज़ीन को फायरिंग वाले हाथ से ही रिलीज किया जा सकता है. बिना इस पर से हाथ हटाये. सिर्फ अंगूठे का इस्तेमाल कर. इसका ग्रिप इतना बढ़िया है कि अंधेरे में भी आराम से हाथ सधा रहता है. बस इसका ट्रिगर डिफिकल्ट है. क्योंकि इजराइल के लिए डिजाइन हुआ था. और वहां पर लोग ऐसे ही यूज करना प्रेफर करते थे. 2002 में इंडिया ने इजराइल से ख़रीदा था ये. फिर अपने यहां डेवेलप किया.
M-4 एक साफ-सुथरी चीज है. जो एकदम सधे ढंग से काम करती है. पर टेवर एकदम बिगड़ैल बच्चे की तरह है. कीचड़ में लथपथ, पर लगातार खेलता हुआ. चोट लग जाए, पर कोई फर्क नहीं पड़ता.
ध्रुव हेलिकॉप्टर

क्रू: एक या दो पायलट कैपेसिटी: 12-14 लोग लम्बाई: 15.87 मीटर ऊंचाई: 4.98 मीटर मैक्सिमम वेट जो ये ले सकता है: 5500 किलोग्राम मैक्सिमम स्पीड: 290 किलोमीटर/घंटा कॉम्बेट रेडियस: 320 किलोमीटर कितनी ऊंचाई तक जा सकता है: 6096 मीटर
1984 में ध्रुव का कॉन्सेप्ट रखा गया था. पहली बार 1992 में ये हेलिकॉप्टर उड़ा था. पर 2002 में सर्विस में आया. क्योंकि पोखरण एटम बम टेस्ट के बाद भारत पर प्रतिबन्ध लग गए थे. पैसों की भी दिक्कत हो गयी थी. ध्रुव हेलिकॉप्टर का टेल बूम बहुत ऊंचा है, इसलिए लोडिंग में आसानी रहती है. तुरंत चढ़ाओ, उतारो. इसके अलावा ये 12-14 मिसाइल, रॉकेट रखने के लिए पॉड्स भी ले जा सकता है.