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जवानों का बाल भी बांका नहीं कर पाएगी दुश्मनों की गोली,जब सेना को मिलेगा 'अभेद' बुलेटप्रूफ जैकेट

अभेद(Abhed) नाम के इस Bulletproof Jacket की खासियत है इसका वजन. पहले के बॉडी आर्मर के मुकाबले ये 3-4 किलोग्राम हल्का है.

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बुलेटप्रूफ जैकट में सेना के जवान (PHOTO-X)

महाभारत से जुड़ा एक प्रसंग है जिसमें इंद्र देव कर्ण के पास जाकर उसका कवच और कुंडल भिक्षा में मांगते हैं. कहा जाता है कि अगर ये घटना न होती तो अर्जुन के लिए कर्ण को हराना संभव नहीं होता. यानी हमारे प्राचीन काल से ही युद्ध के दौरान कवच एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते आए हैं.

अब आते हैं आज के युद्ध में. बंदूकों के अविष्कार से पहले तीर और तलवार से युद्ध लड़े जाते थे. उस समय के योद्धा लोहे के तारों या धातु से बने बख्तरबंद को पहनते थे. ये न सिर्फ तीरों से बल्कि भाले और तलवार से भी सुरक्षा प्रदान करता था. समय बीतने के साथ बारूद और बंदूक का निर्माण हुआ. लोहे के बने बख्तरबंद में इतनी ताकत नहीं थी कि वो गोली को रोक सके. साल 1538 में इटली के एक मिलिट्री लीडर Francesco Maria I della Rovere ने उस समय के सबसे बेहतरीन आर्मरर (वो जो शरीर को बचाने के लिए कवच बनाते हैं) Filippo Negroli को एक मज़बूत और भरोसेमंद बॉडी आर्मर बनाने के लिए कहा. ये ऐसा आर्मर था जो उस समय की मस्कट बन्दूकों की मार से लोगों को बचा सकता था. आगे चलकर इंग्लिश सिविल वॉर के जाने-माने लीडर Oliver Cromwell की सेना ने अपने साथ बचाव के लिए लॉब्सटर(एक समुद्री जीव) की पूंछ जैसा एक हेलमेट इस्तेमाल करना शुरू किया. इसके साथ ही उन्होंने इस्तेमाल किया cuirass नाम का एक आर्मर जो छाती और पीठ के हिस्से को गोलियों से बचाता था.

16 वीं सदी का एक बॉडी अर्मर (PHOTO- Bitannica)

समय के साथ जैसे-जैसे बंदूकें एडवांस हुईं , वैसे-वैसे बॉडी आर्मर भी विकसित हुए. पर इस कड़ी में सबसे महत्वपूर्ण साल रहा 1893. इस साल पोलैंड के एक कैथलिक पादरी Casmir Zeglen ने रेशम का इस्तेमाल कर एक बुलेटप्रूफ वेस्ट बनाई. इसे उन्होंने हत्या के जब-तब होने वाले प्रयासों से बचने के लिए बनाया था. वजह थी एक घटना. उस साल शिकागो के मेयर Carter Harrison Sr की हत्या हुई थी. पादरी Zeglen पर इस घटना का ऐसा असर हुआ कि उन्होंने वेस्ट बनाने की सोची जो कुछ हद तक गोलियों से बचाव करने में सक्षम थी. पर उस समय रेशम की अधिक कीमत की वजह से इसका उत्पादन बहुत ही सीमित रहा.

फिर साल 1901 में उन्होंने एक पोलिश व्यक्ति Jan Szczepanik के साथ पार्टनरर्शिप में रेशम से बनी वेस्ट पर और काम किया. उन्होंने रेशम के साथ लिनेन और ऊन को मिलकर एक परत तैयार की जो काफी हद तक गोलियों को रोकने में सक्षम था. इस वेस्ट को ख्याति तब मिली जन स्पेन के राजा King Alfonso 13 वें की जान इसे पहनने के कारण बच गई. आगे समय के साथ इस क्षेत्र में कई विकास हुए. पर उस समय सेना में सैनिकों की सुरक्षा शासकों के लिए कोई खास मायने नहीं रखती थी. उन्हें लगता था कि सैनिकों की सुरक्षा के लिए खर्च करना अधिक महंगा साबित हो सकता है.

प्रथम विश्वयुद्ध में ब्रिटिश सेना ने 1915 में सैनिकों के लिए आधिकारिक तौर पर एक बॉडी आर्मर को कमीशन तो किया ओर ये भी सीमित था. इस आर्मर में नॉयलॉन का इस्तेमाल किया गया था. आगे चलकर ब्रिटिश सेना ने आंकलन किया कि अगर सैनिकों ने युद्ध बॉडी आर्मर पहना होता तो एक तिहाई जानें बचाई जा सकती थीं. बावजूद इसके द्वितीय विश्वयुद्ध में भी सेनाओं ने कोई इन्हें कोई खास तवज्जो नहीं दी. इस समय तक एक नई किस्म की वेस्ट जिसे Flak Jacket कहा जाता था, वो आ चुकी थीं. ये न सिर्फ गोलियों से बल्कि बमों के छर्रों से भी सुरक्षा प्रदान करती थी.

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समय के साथ बदलते बॉडी आर्मर (PHOTO-Britannica) 

फिर आया 70 का दशक जिसे बुलेटप्रूफ जैकेट की दुनिया में क्रांति का साल कहा जाता है. इस साल केवलार प्लेट का निर्माण हुआ. ये पहले के आर्मर की तुलना में  वजन में हल्का था इसलिए इसे खूब ख्याति मिली. ये इतना पॉपुलर हुआ कि बॉलीवुड की एक फिल्म Tango Charlie में अजय देवगन का किरदार एक उग्रवादी की लाश से इस कपड़े को निकाल कर अपने साथी को दिखाता है. फिर आगे चलकर आई सेरामिक प्लेट जिसके बारे में हम आगे समझेंगे कि ये कैसे काम करती है. 2020 में अमेरिकन और चीनी वैज्ञानिकों ने एक नए किस्म का रेशम डेवलप किया. इसे स्पाइडर सिल्क के नाम से जाना जाता है. जेनेटिक तौर पर मोडीफ़ाई किये गए रेशम के कीड़ों से तैयार ये रेशम वजन में हल्का और गोलियों के मुकाबले अधिक प्रभावी सिद्ध हुआ. और आज की तारीख में लगभग हर उन्नत सेना बुलेटप्रूफ जैकेट का इस्तेमाल करती है. इसी क्रम में भरत की DRDO से जुड़ी एक खबर आई है. तो समझते हैं कि क्या बनाया है DRDO ने?

अभेद, नाम से जाहिर है किसी ऐसी चीज की बात हो रही है जिसे भेदा नहीं जा सकता. जैसे कर्ण का कवच अभेद था. ऐसी ही एक चीज भारत के डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट विंग (DRDO) और आईआईटी दिल्ली(IIT Delhi) ने तैयार किया है. इसका नाम है 'अभेद' बुलेटप्रूफ जैकेट. ये एक ऐसी जैकेट है जो सैनिकों को 360 डिग्री की सुरक्षा देगी. खबर आई है कि इस जैकेट के प्रोडक्शन के लिए IIT Delhi ने 3 भारतीय कंपनियों को इसकी टेक्नोलॉजी ट्रांसफर माने इसकी तकनीक साझा कर दी है. अब ये 3 कंपनियां मिलकर इस बुलेटप्रूफ जैकेट का निर्माण करेंगी. तो समझते हैं कि क्या है इस जैकेट की खासियत और कैसे ये सुरक्षाबलों को दी जाने वाली पुरानी जैकेट्स से अलग है.

प्रोटेक्शन 

सेना और सुरक्षाबलों को दिए जाने वाले गियर्स और इक्विपमेंट्स में सबसे अहम मानी जाती है उनकी बुलेटप्रूफ जैकेट. सुरक्षाबल कई सारे उपकरण अपने साथ रखते हैं जैसे बैलिस्टिक हेलमेट, नाइट विजन डिवाइस और बुलेटप्रूफ जैकेट. एक ऑपरेशन के दौरान जरूरत के हिसाब से और भी गियर्स इस्तेमाल किए जाते हैं पर हेलमेट और जैकेट इनमें सबसे महत्वपूर्ण हैं. एक जवान जब किसी कॉम्बैट (लड़ाई) सिचुएशन में होता है, उस समय उसका पूरा ध्यान दुश्मन पर होता है. 

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सेना को इशू की जाने वाली स्टैंडर्ड लेवल III बुलेटप्रूफ जैकेट (PHOTO-India Today)

जवान ऐसे ट्रेंड होते हैं कि उन्हें अपनी जान की फ़िक्र कम, मिशन की अधिक होती है. पर हर एक जवान की जान उतनी ही कीमती है जितनी हमारी और आपकी. ऐसे में उनकी सुरक्षा के लिए बनाए जाते हैं बुलेटप्रूफ हेलमेट और जैकेट. क्योंकि इंसान की शरीर के बाकी अंगों जैसे हाथ या पैर में गोली लग जाए तो मुमकिन है कि जान बच जाए, पर सिर या छाती में गोली लगने पर जान बचने की संभावना बहुत ही कम बचती है. ऐसे में बुलेटप्रूफ जैकेट जैसे गियर की उपयोगिता बढ़ जाती है. 

कैसे काम करता है?

गोली जब बंदूक की नली से बाहर निकलती है, तब उसकी रफ़्तार 2 हज़ार किलोमीटर प्रति घंटा से भी ज्यादा होती है. अगर बात करें आज का जमाने में आतंकियों के सबसे फेवरेट हथियार एके 47 की तो इसकी गोली की रफ्तार 2580 किलोमीटर प्रति घंटा होती है. इतनी स्पीड से आ रही गोली किसी मेटल यानी धातु तक को भेद सकती है. ऐसे में बुलेटप्रूफ जैकेट में लगे कई लेयर्स गोली को पहले धीमा करते हैं, फिर उसे इंसान के शरीर से टकराने से रोकते हैं.

bulletproof jacket explained
 बॉडी आर्मर के हिस्से  (FIGURE: Classification of body armour system. Roy et al. 2019)

बुलेटप्रूफ जैकेट गोली को धीमा कैसे करता है इसके लिए सबसे अच्छा उदाहरण है क्रिकेट या फुटबॉल का. जब फुटबॉल को खिलाड़ी गोलपोस्ट में मारता है और वो नेट से टकराती है. तब हमें नेट में लहरें सी बनती दिखाई देती हैं. इसके पीछे की वजह है, फुटबॉल की गतिज ऊर्जा. गतिज ऊर्जा के नाम से ही साफ है, गति की वजह से मिलने वाली ऊर्जा. इसी गतिज ऊर्जा को सोखने या एब्जॉर्ब करने का काम गोल पोस्ट का नेट करता है. इससे जिससे नेट में ऊर्जा बंट जाती है. बुलेटप्रूफ जैकेट में मौजूद हार्ड परत का काम गोली की रफ्तार को कम करना और इसकी ऊर्जा को सोखने का होता है. ये ऊर्जा तीन तरीकों से फैलकर कम होती है.  

ब्रिटल फेलियर- जिस तरह चीनी मिट्टी की प्लेट टूटती है ठीक वैसे ही इस परत में जब गोली लगती है, तो ये उसके शॉक से टूटकर उसकी ऊर्जा को फैलाकर उसे कम कर देती है.

डिलेमिनेशन- जैसे प्लाईबोर्ड कई परतों में होता है, उसी तरह की परतें बुलेटप्रूफ जैकेट में भी होती हैं. ये परतें शॉक एब्जॉर्ब कर ऊर्जा को कम कर देती हैं.

प्लास्टिक डिफॉर्मेशन-  डिफॉर्मेशन का मतलब है आकार में बदलाव. जैसे किसी धातु की परत में हथौड़ा मारने पर उसका आकार बदल जाता है, ठीक वैसे ही प्लास्टिक डिफॉर्मेर्शन में धातु की परत गोली की ऊर्जा से अपना आकार बदल लेती है. आकार बदलने की वजह से गोली की ऊर्जा और रफ्तार कम हो जाती है.

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आर्मर के हिस्से हो (PHOTO: Lopez-Puente et al., 2005)

इसी तरह आपने देखा होगा कि क्रिकेट में कैच लेेते वक्त खिलाड़ी अपना हाथ पीछे ले जाते हैं. ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि गेंद की ऊर्जा को कम करके आसानी से रोका जा सके. ठीक यही काम करती है बुलेटप्रूफ जैकेट की इस दूसरी लेयर. इसे कंपोजिट लेयर भी कहा जाता है. कंपोजिट लेयर को लैब्स में तैयार किए गए  फाइबर से बनाया जाता है. इस फाइबर को जैकेट की लेयर में कसकर बुन दिया जाता है. शुरुआती दिनों इस लेयर में केवलार नाम के एक मटेरियल का इस्तेमाल किया जाता था. केवलार, आम कपड़े से काफी मजबूत होता है. फिर इसमें केवलार से ज्यादा मजबूत पॉलीइथाइलीन फाइबर का इस्तेमाल किया जाने लगा. 

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केवलार की आविष्कारक स्टेफनी क्वोलेक (PHOTO-Wikipedia)

मैटेरियल कोई भी हो,  इसका मेन काम है गोली को ‘कैच’ करने का. जैसे क्रिकेट की गेंद को कैच किया जाता है. इसकी कई परतें एक के बाद एक तहकर, बुलेट प्रूफ जैकेट में लगाई जाती हैं. इससे ये हार्ड प्लेट से आने के बाद गोली की बची हुई ऊर्जा को, फुटबॉल के नेट की तरह अपने में फैलाकर कम करता है.  इस परत का काम अचनाक कम हुई गोली की रफ्तार के शॉक से शरीर के अंगों को बचाना भी है. इसके बाद भी गोली में कुछ ऊर्जा बची रहे तो रियर प्लेट काम आती है. ये प्लेट आमतौर पर एल्युमिनियम की बनी होती है. जैसे प्लास्टिक डिफॉर्मेशन काम करता है, वैसे ही ये प्लेट गोली की ऊर्जा को कम करती है.

अभेद जैकेट

अभेद का पूरा नाम है Advanced Ballistics for High Energy Defeat- ABHED. इस जैकेट में सेरामिक के तौर पर स्वदेश में बने बोरोन कार्बाइड सेरामिक का इस्तेमाल किया गया है. इस जैकेट की जो सबसे बड़ी खासियत बताई जा रही है, वो है इसका वजन. अभेद का वजन कम से कम 8 किलोग्राम और अधिकतम 9.3 किलोग्राम है. अलग-अलग बीआईएस (BIS) मानकों के हिसाब से जैकेट का वजन कम या ज्यादा हो सकता है.

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अभेद बुलेटप्रूफ जैकेट (PHOTO-PIB)

BIS माने ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैण्डर्ड एक संस्था है जो अलग-अलग चीज़ों के क्या मानक होंगे ये तय करती है. जैसे आपने बाइक के हेमलेट में आईएसआई(ISI Mark Helmets) मार्क देखा होगा. उसी तरह BIS सेना के लिए बनने वाले बुलेटप्रूफ जैकेट्स के मानक तय करती है. अभेद जैकेट को कई बार, हर तरह की कंडीशंस में टेस्ट किया गया है. इसमें तेज़ रफ़्तार से आती हुई गोली से लेकर सैनिक की सुविधा/असुविधा का भी टेस्ट किया गया है. चूंकि इसे भारत में ही बनाया गया है, ऐसे में ये भारत के रक्षा क्षेत्र को स्वदेशी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा.

अभेद जैकेट जवानों को कई तरह की गोलियों और बमों के छर्रे से बचाएगी. बुलेटप्रूफ जैकेट्स में फायरिंग टेस्ट्स को आमतौर पर 10 मीटर से अंजाम दिया जाता है. अभेद भी जवानों को 
- एके 47 की 7.62×39 मिलीमीटर 
- 5.56 मिलिमीटर की एस एल आर, या थ्री नॉट थ्री जो पुलिस को इशू हुआ करती है.
- 9 मिलिमीटर की गोली जो ग्लॉक पिस्टल, रेवोल्वर या उज़ी मशीनगन में लगती है.
- बमों के छर्रे, ग्रेनेड्स के टुकड़े

टेक्नोलॉजी ट्रांसफर

सरकार द्वारा जारी प्रेस रिलीज़ में बताया गया है कि DRDO, IIT Delhi और कई कंपनियों के बीच करार हुए हैं. इसमें अभेद के टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के अलावा स्वदेशी बैलिस्टिक मैटेरियल और हीट प्रोटेक्टिव कपड़ों के लिए भी करार साइन हुए हैं. अभेद के टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के तहत तीन कंपनियों को इसकी तकनीक ट्रांसफर की गई है. ये कंपनियां हैं 
- MIDHANI - मिश्रा धातु निगम, कानपुर 
- SMPP प्राइवेट लिमिटेड, दिल्ली 
- AR Polymers(MKU), कानपुर

जल्द ही सेना को इसकी खेप मिलने लगेगी. इस बीच उठता है एक सवाल कि बाकी के देश मसलन अमेरिका और चीन किसी तरह के बुलेटप्रूफ जैकेट का इस्तेमाल करते हैं?

चीन- चीन अपनी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लिए 'टाइप 07' बॉडी आर्मर का इस्तेमाल करता है. ये जैकेट सैनिकों को उच्च लेवल की प्रोटेक्शन देता है. टाइप 07 जैकेट निश्चित तौर पर अच्छी प्रोटेक्शन देता है पर इसके साथ दिक्कत है इसका वजन. चीन का आर्मर वजन में भारी है जो सैनिक की मूवमेंट पर असर डालता है.

अमेरिका- अमेरिका के सैनिक 'इंटरसेप्टर' नाम का बॉडी आर्मर इस्तेमाल करते हैं. दुनिया में मौजूद सभी बुलेटप्रूफ जैकेट्स में में अमेरिकन इंटरसेप्टर बहुत ही उन्नत माना  जाता है. पर इसके साथ भी वही समस्या है जो चीन के आर्मर में है. इसका वजन अभेद की तुलना में काफी ज्यादा है.

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