इससे ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, आप कुछ भी सोचें. पर उसके बॉस को पता चला तो? उसके एचआर को पता चला तो? नौकरी जा सकती है. साथ के लोग चिल्ला-चिल्ला के कहेंगे, जा बे तू अब सो ही ले. तेरे लिए वही अच्छा है. बॉस एकदम गंभीर होकर कहेगा, जाइए अब आप अपने मन का ही कीजिए. वो कर्मचारी वहां से दुनिया के सबसे घोर पापी का खिताब लेकर विदा होगा. अगर वो ढीठ हुआ तब तो कोई बात नहीं. पर अगर सेंसिटिव निकला तो जीवनपर्यंत इस अपराधबोध से मुक्त नहीं हो सकता कि उसने सारे मेधावी और मेहनती लोगों की उपस्थिति में ये पाप किया है. क्या वाकई में दोपहर में सोना इतना बुरा है कि इसे पाप की श्रेणी में डाल दिया जाए? एक मिनट ठहर के सोचने पर कुछ और ही समझ आता है. दोपहर की नींद इंसान का ईजाद किया हुआ सबसे बड़ा सुख है. अगर लोग दोपहर में एक घंटे लोट लें, तो देश की ग्रॉस नेशनल हैपिनेस एक दिन में तीन गुनी हो जाएगी. आप दस बजे ऑफिस पहुंचेंगे. एक बजे तक काम करेंगे मस्ती में. विशिष्ट जनों की डांट भी सह लेंगे. क्योंकि दो बजे तो आपको सोना ही है. एक घंटे की नींद के बाद आप सब भूल जाते हैं. ऐसा लगता है कि गुस्सा और नफरत पिछले जन्म की बातें थीं. ये हो सकता है कि डांट लगाने वाले विशिष्ट जन और आप, दोनों ही एक नींद के बाद एक-दूसरे से मुखातिब हों और अश्रुधारा में सारा गुस्सा बह जाए. फिर मजे से आप सात बजे तक काम कर सकते हैं. इससे आपकी सेहत भी ठीक रहेगी, कलीग के साथ व्यवहार भी अच्छा रहेगा और 8 घंटे के वर्कडे का दुनिया को मूर्ख बनाने का प्लान जो चला था, वो भी चलता रहेगा. अगर सेहत के बारे में आप सिर्फ एक्सपर्ट की ही बात मानना चाहते हैं तो ये भी पढ़ लीजिए: अमेरिका के Harvard School of Public Health के मुताबिक दोपहर में सोने पर हार्ट अटैक की आशंका 33 प्रतिशत तक कम हो जाती है. नौकरी करने वालों में तो हार्ट अटैक की आशंका 64 प्रतिशत तक कम हो सकती है. अगर आप हफ्ते में 3 बार भी दोपहर में 30 मिनट तक सोते हैं, तो दिल की बीमारियां होने की आशंका 37 प्रतिशत तक कम हो जाती है.

फिर उस तरीके की रिपोर्ट्स भी हैं कि चीन में इसके बाबत बुजुर्गों पर प्रयोग किये गये और दोपहर में सोनेवाले बूढ़े बाकी की तुलना में गणित अच्छे से हल कर रहे थे. वो बुजुर्ग भी गजब होंगे जो बुढ़ौती में गणित हल कर रहे होंगे. उनको तो सोने ही देना चाहिए. ऐसी और भी बहुत रिपोर्ट्स हैं. पर आप इनको पढ़ के सिर्फ खुश हो सकते हैं. किसी को दिखा नहीं सकते. तुरंत लोग कह देंगे हमारे जवान सीमा पर लड़ रहे हैं, और तुम. अगर आपको मिथकों में भरोसा होगा तो प्राचीन काल के ऋषि मुनि भी गुफाओं में सोते ही रहते थे. और किसी ने डिस्टर्ब कर दिया तो उसे श्राप देकर भस्म भी कर देते थे. कृष्ण भगवान तो इसी का फायदा उठाकर यवन राजा को हरा पाने में कामयाब हुए थे. इस लड़ाई में यवन राजा को हराना नामुमकिन था. क्योंकि उसे कुछ वरदान मिल गया था. तो कृष्ण मैदान छोड़कर उस गुफा में भाग गये जिसमें एक ऋषि (पूर्व राजा) सो रहे थे. उन्होंने लड़ाई में देवताओं की मदद की थी और वरदान हासिल किया था कि जो उनकी नींद में दखल देगा, जल के भस्म हो जाएगा. यवन राजा को कदाचित दोपहर की नींद के बारे में पता नहीं था. उसने ऋषि को जगा दिया. इस लड़ाई के बाद ही कृष्ण भगवान का नाम रणछोड़ पड़ा था. आप कृष्ण से ज्यादा बुद्धिमान हैं क्या? आपने विष्णु भगवान की वो तस्वीर तो देखी ही होगी कि कैसे भरी दोपहरी में क्षीरसागर में शेषनाग पर अलसाये से पड़े रहते हैं. वो रात का वक्त थोड़े ही होता है. लाइटिंग के हिसाब से वो दोपहर ही लगता है. सुबह के वक्त आप वैसे बैठ ही नहीं सकते. रात में भी वैसे बैठेंगे तो बड़ा अजीब लगेगा. सोच के देखिए. दोपहर का ही वो वक्त है जब आप शेषशायी विष्णु हो सकते हैं. इस बात के लिए किसी रिपोर्ट को पढ़ने की आवश्यकता नहीं है कि पिछले पचास सालों में लोगों ने कम नींद लेनी शुरू कर दी है. जितने आपके दादाजी सोते होंगे उससे बहुत कम आप सोते होंगे. इस बीच एक और बदलाव आया है. अगर आप पिछले पंद्रह सालों के ट्रेंड को देखें तो तमाम मोटिवेशनल कोट्स और स्पीच लेकर धीरे-धीरे ये जंजाल फैला दिया गया कि दोपहर में सोना तो देश की जीडीपी कम करेगा ही, आपकी स्पिरिचुअल हेल्थ भी खराब कर देगा. पर ऐसा नहीं है. अगर आप दोपहर में सोते हैं तो देश की जीडीपी भी बढ़ेगी और हेल्थ भी अच्छी रहेगी. ये हमने ऊपर ही बता रखा है. अब आप कह सकते हैं कि किसी झूठ को सच साबित करना है तो उसे बार-बार कहें. अगर दुनिया में वर्तमान परंपरा की बात करें तो स्पेन के लोग अभी भी दोपहर में सोते हैं. वहां पर इसे सिएस्ट कहा जाता है. वहां देश की संस्कृति में ये शामिल है. सरकारी नौकरी हो चाहे प्राइवेट, लोग दोपहर में सोते हैं तो सोते हैं. कई प्राइम मिनिस्टर्स ने धमकी दी कि अब ये नहीं चलेगा, पर जनता ने नहीं माना इस बात को. वो लोग मानते हैं कि दोपहर में सोने की वजह से ही आप शाम को शाम समझ पाते हैं. जैसे रात को सोने की वजह से सुबह को सुबह समझते हैं.
इसे ऋषभ ने लिखा है.