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सौरभ गांगुली के बीसीसीआई से जाने का असली कारण क्या है?

गांगुली के बीसीसीआई के अध्यक्ष पद से हटने पर राजनीतिक भूचाल क्यों आ गया?

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सौरव गांगुली (बाएं) और रोजर बिन्नी (दाएं) (फोटो: इंडिया टुडे)

तारीख 14 सितंबर 2022. लंबी सुनवाई के बाद क्रिकेट प्रशासन पर सुप्रीम कोर्ट एक बड़ा फैसला आया. खबर क्या बनी ? हेडलाइंस छपी BCCI की जीत हुई सौरभ गांगुली और जय शाह अगल 3 साल अपने पद पर बने रहेंगे है. 18 अक्टूबर की तारीख ये खबर मूर्त रूप लेती. लेकिन उससे पहले खेल हो गया. कहते हैं क्रिकेट अनिश्चिचितताओं का खेल है, लेकिन भारतीय क्रिकेट को चलाने वालों का भी खेल कम अनिश्चितता से भरा नहीं है. खबर है कि सौरभ गांगुली की जगह अब BCCI के अगले अध्यक्ष पूर्व क्रिकेटर रोजर बिन्नी होंगे.

11 और 12 अक्टूबर की तारीख, BCCI यानी भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड में पदाधिकारियों के चुनाव के लिए मुकर्रर थी. पदाधिकारियों के नाम भी तय थे. ऐसा माना जा रहा था कि पुराने पदाधिकारी रिपीट होंगे. मगर एक मीटिंग हुई और गेम बदल गया. किसने की ये मीटिंग और कौन लोग शामिल थे? इस सवाल के जवाब पर भी आएंगे. मगर सबसे पहले चीजों को शुरू स्ट्रक्चर वाइज समझा जाए. BCCI में 5 बड़े पद होते हैं

1. प्रेसिडेंट
2. सेक्रेटरी
3. ट्रेजरर
4.वाइस प्रेसिडेंट
5.ज्वाइंट सेक्रेटरी

इसके अलावा एक बड़ा पद और होता है. IPL चेयरमैन का है. गांगुली प्रेसिंडेट थे, जय शाह सेक्रेटरी, ट्रेजरर अरुण धूमल, वाइस प्रेसिडेंड राजीव शुक्ला और ज्वाइंट सेक्रेटरी थे जयेश जॉर्ज. और IPL प्रेसिडेंट की कुर्सी ब्रजेश पटेल नाम के क्रिकेट प्रशासक के पास थी. इन सब का कार्यकाल 3 साल का होता है. 3 साल पूरे हुए तो दोबारा चुनाव का वक्त आया. चुनाव होता उससे पहले सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया. फैसला क्या था ? वो जानने से पहले ये जान लें कि मामला सुप्रीम कोर्ट में गया क्यों था ?

दरअसल 2018 में लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों के बाद  BCCI का नया संविधान लागू हुआ. संविधान के मुताबिक जिस भी पदाधिकारी ने राज्य या BCCI में दो कार्यकाल पूरे किए हैं. वो अगले 3 साल तक कोई पद BCCI में नहीं ले सकता था. मतलब ये कि उसे 3 साल का कूलिंग पीरियड यानी गैप लेना होता. आमतौर पर BCCI के ज्यादातर पदाधिकारी राज्यों के क्रिकेट बोर्ड से आते हैं. तो ऐसे में वो BCCI में एक ही कार्यकाल पूरा कर सकते थे.

इसी संविधान के खिलाफ सौरभ गांगुली सुप्रीम कोर्ट गए. मांग की गई कि इसमें बदलाव किया जाए. फैसला BCCI के पक्ष में आया. इस प्रावधान से राहत मिल गई. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मुताबिक अब BCCI में लगातार दो बार पद लिया जा सकता है. उसके बाद 3 साल का कूलिंग पीरियड लागू होगा.

फैसला पक्ष में आया तो माना गया, अध्यक्ष, सेक्रेटरी समेत तमाम पदाधिरी रिपीट हो सकते हैं. जय शाह रिपीट हुए, लेकिन गांगुली का पत्ता कट गया. यहीं से विवाद शुरू हुआ. TMC ने इसे मुद्दा बना दिया. आरोप लगाया कि बंगाल चुनाव में सौरभ गांगुली बीजेपी में शामिल नहीं हुए, इसलिए उन्हें BCCI से बाहर कर दिया गया.

बंगाल चुनाव के बीच चर्चा थी कि सौरभ गांगुली बीजेपी में शामिल हो सकते हैं, लेकिन चुनाव से ऐन पहले गांगुल अस्पताल में भर्ती हो गए थे. खबर आई कि हर्ट में कुछ दिक्कत है. खैर बात आई-गई हो गई. लेकिन अब TMC कल को आज से जोड़कर आरोपों की शक्ल दे रही है. जवाब बीजेपी की तरफ से भी आया. बीजेपी नेता दिलीप घोष का कहना है कि सौरभ गांगुली ने कभी नहीं कहा कि वे राजनीति में आना चाहते हैं, उनके जबरदस्ती बीजेपी में भेजा जा रहा था. राज्य में TMC की सरकार डूब रही है इसलिए उनके नेता इस तरह के आरोप बीजेपी पर लगा रहे हैं.

खेल पर राजनीति और राजनीति का खेल. गजब माया है. इससे कोई इंकार नहीं कर सकता कि सत्ता चाहे किसी की भी हो राजनीति दिलचस्पी क्रिकेट में हमेशा रहती है. केपी साल्वे से लेकर शरद पवार तक या फिर अनुराग ठाकुर से लेकर जय शाह तक.  क्रिकेट प्रशासकों के पॉलिटिकल कनेक्शन का लंबा इतिहास है. हम वर्तमान की बात करते हैं. अब ये लगभग तय है कि 1983 वर्ड कप के हीरो रोजर बिन्नी अध्यक्ष होंगे. उपाध्यक्ष कांग्रेस नेता राजीव शुक्ला होंगे. ट्रेजरर की कुर्सी बीजेपी विधायक और मुंबई बीजेपी के अध्यक्ष आशीष शेलार के पास जाने वाली है. ज्वाइंट सेक्रेटरी देवोजीत साइकिया होंगे जो हेमंता बिस्व सर्मा के करीबी बताए जाते हैं. बाकी जय शाह तो हैं ही. सारे नामों का आधिकारिक ऐलान 18 अक्टूबर को हो जाएगा. अब सवाल है कि गांगुली का पत्ता कैसे कटा? इस पर खेल पत्रकारों का कहना है कि पिछले करीब 15 सालों में किसी को भी दो बार से ज्यादा बीसीसीआई के अध्यक्ष का पद नहीं मिला. और एक तरह से जय शाह ही बीसीसीआई चला रहे थे, तो लगभग गांगुली का जाना तय था.  

मतलब ये कि सौरभ गांगुली का जाना लगभग तय हो चुका हुआ था. TMC आरोप लगा रही है कि इसके पीछे भी राजनीति है. खबर है कि कुछ दिनों पहले दिल्ली में एक बड़ी मीटिंग हुई. सूत्रों के मुताबिक मीटिंग में क्रिकेट प्रशासकों के साथ गृहमंत्री अमित शाह भी थे. इस दौरान लंबे समय तक BCCI चलाने वाले एन श्रीनिवासन ने सौरभ गांगुली के कार्यकाल पर सवाल खड़े कर दिए. उन्होंने गांगुली कार्य प्रणाली पर भी सवाल उठाए. कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंट्रेस्ट की बात सामने आई. जैसे टीम इंडिया की स्पॉन्सर कोई और कंपनी है और दादा किसी और कंपनी का प्रचार कर रहे थे. ऐसे तमाम मुद्दों पर बात हुई. आखिर में रोजर बिन्नी का नाम सामने आया, अध्यक्ष के तौर पर. अब सवाल है कि रोजर बिन्नी ही क्यों ?

इस पर खेल पत्रकारों का कहना है कि अब ये एक चलन बन चुका है कि बीसीसीआई अध्यक्ष के पद पर एक क्रिकेटर ही दूसरे क्रिकेटर की जगह लेता है. और रोजर बिन्नी कर्नाटक क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष हैं और काफी सीनियर क्रिकेटर भी हैं. गांगुली भी अध्यक्ष बनने से पहले बंगाल क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष थे. इसके अलावा दूसरे क्रिकेटरों की उम्र काफी हो चुकी है इसलिए उनके नामों पर विचार नहीं किया गया.

रोजर बिन्नी के अध्यक्ष बनने की कहानी समझ ली. अब जरा राजनीति के पहलू को भी समझते हैं. आपको याद हो तो जब BCCI में भ्रष्टाचार के आरोप लगे थे, तब प्रशासकों की एक समिति बनी थी. जिसे CoA के नाम से जाना गया. उसके अध्यक्ष पूर्व CAG विनोद राय रहे. सदस्य लेखक रामचंद्र गुहा भी थे. 2020 छपे इंडियन एक्सप्रेस के एक आर्टिकल में गुहा आरोप लगाते हैं कि भारतीय क्रिकेट को अमित शाह और एन श्रीनिवासन चला रहे हैं. गागुली को हटाए जाने में भी राजनीति की बात कही जा रही है, लेकिन क्रिकेट में राजनीति का होना क्या गलत है? इस पर खेल पत्रकारों का कहना है कि आज क्रिकेट को इतना बड़ा करने का श्रेय भी एक राजनेता को ही जाता है. और बीसीसीआई एक ऐसी जगह है जहां तमाम राजनीतिक पार्टियों के नेता एक साथ आते हैं. और राजनीति से क्रिकेट को काफी फायदा भी हुआ है, वहीं दूसरे खेलों में ऐसा नहीं है इसलिए वे खेल काफी पीछे रह गए.

खेल पत्रकारों के अलावा पूर्व CAG विनोद राय भी क्रिकेट में राजनीति और चंद परिवारों के दबदबे को बुरा नहीं मानते. 

देखिए वीडियो: केंद्रीय मंत्री के घर हुई मीटिंग में एन. श्रीनिवासन ने क्या बता दिया, जिससे जय शाह बने रहे, गांगुली को जाना पड़ा?