"हर अखाड़े की परंपरा अलग अलग है. फिर अखाड़ों में जो मढ़ी होते हैं उनकी भी अपनी निर्दिष्ट परंपरा होती है. पुरी, गिरि, सरस्वती, भारती जैसे संत अपनी-अपनी परंपरा के अनुसार चलते हैं."उसके बाद 'चादर विधि' हालांकि जानकार ये बताते हैं कि एक बार अखाड़े के पंच परमेश्वर द्वारा महंत के लिए नाम पर औपचारिक मुहर लगा देने के बाद इसके लिए तारीख़ तय होती है. प्रक्रिया के बारे में बताया गया है कि सबसे महत्वपूर्ण होती है ‘चादर विधि’. इसको ‘महंतई की चादर’ कहते हैं. चादर सनातन संस्कृति में सम्मान का प्रतीक है. अखाड़े के वरिष्ठ सदस्य महंत बनने वाले को चादर ओढ़ाते हैं. इसके साथ तिलक, चंदन भी लगाया जाता है. यही वो समारोह या आयोजन होता है जिसमें अलग-अलग अखाड़ों के प्रतिनिधि भी बुलाए जाते हैं. यही प्रतिनिधि मिल कर बाद में अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष का चुनाव करते हैं. अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती बताते हैं, "धर्म के रास्ते का पालन करना स्वाभाविक रूप से ही कठिन होता है. और वो भी इस परिस्थिति में जब गुरु का शरीर सामान्य रूप से शांत न हुआ हो. ऐसी परिस्थिति में ये उनके बाद महंत बनने वाले के लिए दोहरी चुनौती होती है."
अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष कैसे चुना जाता है, वो क्या-क्या करने की ताकत रखता है, सब जान लो
संपत्ति के बारे में भी बताएंगे.

महंत नरेंद्र गिरि की आकस्मिक मौत के बाद अब अखाड़ा परिषद के नए अध्यक्ष को चुनने की प्रक्रिया शुरू होगी.
(फोटो-आजतक/पीटीआई)
देश में साधु-संतों के सबसे बड़े संगठन अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि (Mahant Narendra Giri) की मौत कई सवाल खड़े कर गई है. एक तरफ लोग जानना चाहते हैं कि नरेंद्र गिरि ने आत्महत्या की या उनकी हत्या की गई, तो दूसरी तरफ सबकी निगाहें निरंजनी अखाड़े पर लगी हुई हैं जहां नया महंत चुने जाने को लेकर रस्साकशी दिखने लगी है. अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष होने की वजह से नरेंद्र गिरि का बहुत प्रभाव था. उनकी मौत के बाद सबसे बड़ा सवाल यही है कि साधु-संतों की सबसे ताकतवर संस्था के मुखिया की कुर्सी पर कौन बैठेगा. ये भी जानना दिलचस्प है कि आखिर कैसे कोई बनता है अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष?
पहले अखाड़े के बारे में जानिए
आपने अखाड़े का नाम पहले भी सुना होगा. लेकिन वो कुश्ती वाला अखाड़ा है. यहां मामला साधु-संतों का है. इनका भी अखाड़ा होता है. भारत में जो सनातन धर्म है, उसका वर्तमान स्वरूप आदि गुरु शंकराचार्य ने स्थापित किया था. देश के चार कोनों, उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथ पुरी और पश्चिम में द्वारिका पीठ की स्थापना कर शंकराचार्य ने सनातन धर्म को फिर से स्थापित करने की कोशिश की. शंकराचार्य ने जोर दिया कि युवा साधु कसरत करके शरीर को सुदृढ़ बनाएं और कुछ हथियार चलाने में भी कुशलता हासिल करें. इसके लिए ऐसे मठ स्थापित किए गए, जहां कसरत के साथ ही हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाने लगा. ऐसे ही मठों को अखाड़ा कहा जाने लगा. शंकराचार्य ने ये भी सुझाव दिया कि मठ, मंदिरों और श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए जरूरत पड़ने पर शक्ति का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस तरह अखाड़ों का जन्म हुआ. फिलहाल देश में कुल 13 अखाड़े हैं. हिंदू धर्म के ये सभी 13 अखाड़े तीन मतों में बंटे हुए हैं. शैव संन्यासी संप्रदाय, उदासीन संप्रदाय और वैरागी संप्रदाय. ये हैं 13 अखाड़े शैव अखाड़े #श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी, दारागंज, इलाहाबाद, यूपी
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा का जिम्मा इसी अखाड़े के पास है. ये परंपरा पिछले कई साल से चली आ रही है. # श्री पंच अटल अखाड़ा, चौक, वाराणसी, यूपी
इस अखाड़े में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य ही दीक्षा ले सकते हैं. # श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी, दारागंज, इलाहाबाद, यूपी
ये अखाड़ा सबसे ज्यादा शिक्षित अखाड़ा है. इस अखाड़े में करीब 50 महामंडलेश्वर हैं. # श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती, त्रयंबकेश्वर, नासिक
ये शैव अखाड़ा है जिसमें महामंडलेश्वर नहीं होते. आचार्य का पद ही प्रमुख होता है. # श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा, बाबा हनुमान घाट, वाराणसी
सबसे बड़ा अखाड़ा है. करीब 5 लाख साधु संत इससे जुड़े हैं. # श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा, दशाश्वमेध घाट, वाराणसी, यूपी
अन्य अखाड़ों में महिला साध्वियों को भी दीक्षा दी जाती है लेकिन इस अखाड़े में ऐसी कोई परंपरा नहीं है. # श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा, गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़, गुजरात
इस अखाड़े में केवल ब्रह्मचारी ब्राह्मण ही दीक्षा ले सकते है. कोई अन्य दीक्षा नहीं ले सकता है. वैरागी अखाड़े # श्री दिगंबर अनी अखाड़ा, शामलाजी खाक चौक मंदिर, सांभर कांथा, गुजरात
इस अखाड़े को वैष्णव संप्रदाय में राजा कहा जाता है. # श्री निर्वानी अनी अखाड़ा, हनुमान गढ़, अयोध्या, यूपी
वैष्णव संप्रदाय के तीनों अनी अखाड़ों में से इसी में सबसे ज्यादा अखाड़े शामिल हैं. इनकी संख्या 9 है. # श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा, धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा, यूपी
इस अखाड़े में कुश्ती प्रमुख होती है जो इनके जीवन का एक हिस्सा है. अखाड़े के कई संत प्रोफेशनल पहलवान रह चुके हैं. उदासीन अखाड़े # श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा, कृष्णनगर, कीडगंज, इलाहाबाद, यूपी
इस अखाड़े का उद्देश्य सेवा करना है. इसमें केवल 4 महंत होते हैं जो हमेशा सेवा में लगे रहते हैं. # श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन, कनखल, हरिद्वार, उत्तराखंड
इस अखाड़े में 8 से 12 साल तक के बच्चों को दीक्षा दी जाती है. # श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा, कनखल, हरिद्वार, उत्तराखंड
इस अखाड़े में धूम्रपान की इजाजत नहीं है. इस बारे में अखाड़े के सभी केंद्रों के गेट पर इसकी सूचना लिखी होती है.
ऐसे बना भारतीय अखाड़ा परिषद
1954 में हुई एक दुर्घटना भारतीय अखाड़ा परिषद के गठन का कारण बनी. असल में सभी 13 अखाड़े हिंदू धर्म से जुड़े रीति-रिवाजों और त्योहारों का आयोजन करते रहते हैं. कुंभ और अर्धकुंभ के आयोजन में इन अखाड़ों की खास भूमिका होती है. कुंभ देश में चार जगहों पर लगता है- इलाहाबाद, नासिक, हरिद्वार और उज्जैन हैं. हर 12 साल में एक जगह पर कुंभ का आयोजन होता है. इलाहाबाद और हरिद्वार में हर छह साल में अर्धकुंभ का आयोजन किया जाता है. कुंभ और अर्धकुंभ में स्नान के दौरान इन सभी अखाड़ों को विशेष सुविधाएं मिलती हैं. नहाने के लिए विशेष प्रबंध होते हैं. इनके नहाने के बाद ही आम श्रद्धालु स्नान कर सकता है. 1954 में इसी तरह इलाहाबाद में कुंभ का आयोजन हुआ था. पहले कौन सा अखाड़ा नहाएगा इसे लेकर विवाद हुआ. उसी दौरान भगदड़ मच गई, जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत हुई. इससे पहले भी आयोजित हुए कुंभ और अर्धकुंभ के अलावा दूसरे धार्मिक आयोजनों में अखाड़ों के बीच वर्चस्व की लड़ाई चलती रहती थी. इससे बचने के लिए 1954 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की स्थापना की गई. इसमें सभी 13 अखाड़े शामिल हैं. इसी बैठक में सभी अखाड़ों के कुंभ और अर्धकुंभ में स्नान का वक्त और उनकी जिम्मेदारी तय कर दी गई थी, जिसे सभी अखाड़े अब भी मानते हैं.
अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष का काम क्या होता है?
मूल रूप से अखाड़ा परिषद बनाया ही इसलिए गया था कि अव्यवस्था खत्म की जा सके. अखाड़ा परिषद बनने के पहले कई तरह की दिक्कतें थीं. जैसे स्वयंभू महामंडलेश्वर बन जाना, अखाड़ों की अपनी मनमानी, मठों के भीतर अधिकार को लेकर खींचतान, धार्मिक आयोजनों के वक्त अखाड़ों में किसी भी तरह का तारतम्य न होना आदि. अखाड़ा परिषद ने सबसे पहले इन समस्याओं पर काबू किया. इस काम में अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष की बड़ी भूमिका होती थी. जांच के आदेश देने से लेकर किसी भी तरह का एक्शन अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष के द्वारा ही लिया जाता है. अखाड़ा परिषद भले ही किसी अखाड़े के रोजमर्रा के काम में दखल नहीं देता, लेकिन उन पर पैनी नजर तो रखता ही है. फिर भी प्रमुख रूप से उसके ये काम माने जा सकते हैं. # कुंभ मेलों को लेकर सभी तरह की व्यवस्थाओं में अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष ही फैसला लेता है. मेला प्रशासन इनके साथ सहयोग बनाकर ही स्नान और अलग-अलग अखाड़ों को जगह अलॉट करने को लेकर फैसले लेता है. # फर्जी बाबाओं पर एक्शन लेने का काम भी अखाड़ा परिषद करती है. साल 2017 में 14 फर्जी बाबाओं की ऐसी ही एक लिस्ट अखाड़ा परिषद ने जारी की थी. इनमें बाकी बाबाओं के अलावा डेरा सच्चा सौदा का गुरमीत राम रहीम, आसाराम बापू और संत रामपाल भी शामिल थे. # किसी भी नए अखाड़े को मान्यता देना या किसी अखाड़े की मान्यता रद्द करने का काम भी अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष ही करता है. जब किन्नर और महिला अखाड़े बने तो महंत नरेंद्र गिरि ने इनको मान्यता देने से इंकार कर दिया था. हमने अखाड़ों के अध्यक्षों की कमाई को लेकर मठों से जुड़े एक शख्स से संपर्क किया. उसने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष के पद पर बैठे शख्स को भले ही कोई एक मुश्त रकम नहीं मिलती, लेकिन मठों की अकूत संपत्ति पर इनका ही राज चलता है. बाघंबरी मठ के पास ही करोड़ों रुपए की जमीनें और संपत्तियां हैं. इससे आने वाले पैसे का इस्तेमाल महंत नरेद्र गिरि जैसे मठाधीश ही करते हैं. उन्हें किसी भी पद पर बैठने के लिए पैसों की दरकार नहीं होती.
कैसे होता है अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष का चुनाव?
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि दो बार अखाड़ा के अध्यक्ष रहे थे. उन्हें साल 2019 में हरिद्वार में अखाड़ा परिषद की सभा में सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुना गया था. अखाड़ा परिषद की सभा में ही अध्यक्ष का चुनाव होता है. चुनने का तरीका लोकतांत्रिक रखा गया है. इसमें सभी अखाड़ों के प्रतिनिधि हिस्सा लेते हैं. अध्यक्ष पद का चुनाव सभी 13 अखाड़ों की रजामंदी के बाद होता है. आधिकारिक तौर पर अखा़ड़ा परिषद की बैठक के आयोजन की तारीख तय की जाती है. इसके बाद सभी 13 अखाड़ों को अध्यक्ष चुनने के लिए प्रतिनिधि भेजने का निमंत्रण दिया जाता है. इसमें सभी 13 अखाड़ों के प्रतिनिधियों की मौजूदगी या रजामंदी जरूरी होती है. हर अखाड़े से दो-दो प्रतिनिधि चुनाव में शामिल किए जाते हैं. जिसमें बहुमत के आधार पर सभी की रजामंदी से अध्यक्ष का चयन किया जाता है. भले ही अध्यक्ष के लिए अलग-अलग लोगों के नाम आएं, लेकिन कोशिश यही होती है कि बहुमत वाले नाम पर ही सभी की रजामंदी बन जाए. अखाड़ा के पदाधिकारियों का कार्यकाल 6 साल का होता है, लेकिन कई बार अलग-अलग हालात और परिस्थिति की वजह से बीच में चुनाव करवाना पड़ता है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष के अलावा दूसरे पदों पर इलेक्शन की पूरी प्रक्रिया भी लोकतांत्रिक तरीके से करवाई जाती है. यहां पर महामंत्री समेत सभी प्रमुख पदाधिकारी बहुमत और सर्वसम्मति के आधार पर ही चुने जाते हैं. इसके साथ ही अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर चुने हुए प्रतिनिधि को पद से हटाया भी जाता है. अखाड़ों के कानून को तोड़ने पर कार्रवाई करने के साथ ही अखाड़े से बाहर का रास्ता भी दिखाया जाता है. जहां तक बात महंत नरेंद्र गिरि की मृत्यु के बाद अगला महंत चुनने की है तो इसके लिए प्रक्रियाएं जल्द ही शुरू हो जाएंगी. इंडिया टुडे संवाददाता शिल्पी सेन की रिपोर्ट के अनुसार इसकी पूरी प्रक्रिया इस प्रकार है.
पहले होगा 'धूल रोट'
जिले अखाड़े के अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर चुने जाने की प्रक्रिया में अखाड़े के ‘पंच परमेश्वर’ की राय भी महत्वपूर्ण होगी. महंत नरेंद्र गिरि की मौत की जांच और अंतिम संस्कार के बीच नए महंत बनाने की प्रक्रिया की तैयारी भी शुरू हो जाएगी. जानकार बताते हैं कि नए महंत को लेकर अंदरखाने अनौपचारिक मंथन शुरू हो गया होगा. हालांकि औपचारिक रूप से महंत नरेंद्र गिरि की ‘धूल रोट’ के बाद निरंजनी अखाड़े के पंच परमेश्वर की बैठक होगी. धूल रोट ब्रह्मलीन होने के तीसरे दिन होता है. इसमें रोटी में चीनी मिलाकर महात्माओं को वितरित की जाती है. प्रसाद के तौर पर चावल और दाल बांटा जाता है. सभी संत इसे ग्रहण कर मृतक के स्वर्ग प्राप्ति की कामना करते हैं. शिल्पी सेन की रिपोर्ट की मानें तो इसी में महंत के नाम पर पर औपचारिक मुहर लगेगी. धूल रोट 25 सितंबर को है. निरंजनी अखाड़े में वर्तमान में 4 सचिव थे. नरेंद्र गिरि के निधन के बाद 3 सचिव रह गए. हरिद्वार से सबसे वरिष्ठ सचिव रवींद्र पुरी के अलावा रामरतन गिरि और ओंकार गिरि भी बैठक में शामिल होंगे. इसके अलावा निरंजनी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद भी बैठक का हिस्सा होंगे. अखिल भारतीय संत समिति के राष्ट्रीय महामंत्री जीतेंद्रानंद सरस्वती कहते हैं,