
(इस लेख को लिखा है दिल्ली से विशी सिन्हा ने. विशी सिन्हा ने ट्रिपल आई टी – इलाहाबाद से इनफार्मेशन सिक्योरिटी में एमएस करने के अलावा लॉ की पढ़ाई भी की है. खेल और इतिहास में विशेष रुचि है. दाल-रोटी का खर्च निकालने के लिए फिलहाल दिल्ली स्थित एक आईटी कंपनी में लीगल मैनेजर का काम करते हैं. जीवन का उद्देश्य है पढ़ना. खेल और इतिहास जगत पर इनके आर्टिकल्स काफी रुचि लेकर पढ़े जाते हैं. अपनी मित्रता के दायरे में ‘सर्टीफाईड सज्जन’ के नाम से मशहूर विशी सिन्हा एक हंसमुख व्यक्तिव के धनी हैं. उनका इतिहास का अध्ययन बेजोड़ है. आज उनका लिखा एक ऐसा ही पीस जो एक सदी पुरानी ऐतिहासिक घटना पर है.)
नई दिल्ली में एक प्रसिद्ध मेडिकल कॉलेज है - मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज. इस कॉलेज कॉम्प्लेक्स में लोकनायक जयप्रकाश नारायण अस्पताल, जी.बी. पन्त अस्पताल, गुरु नानक आई सेंटर और सुश्रुत ट्रॉमा सेंटर हैं. इसी मेडिकल कॉलेज में मोर्चुअरी से ओल्ड गर्ल्स हॉस्टल जाने वाली सड़क पर चलते क़दम अचानक दाहिनी तरफ एक शिलापट देखकर ठिठक जाते हैं. शिलापट के बगल में एक बड़ा सा लोहे का गेट है, जो पहली बार में देखने पर बंद जान पड़ता है. उसे धक्का देकर अन्दर जाने पर आप खुद को एक उपेक्षित पड़े पार्क में पाते हैं, जहां इतिहास की एक भुलाई जा चुकी दास्तान आपका इन्तजार कर रही होती है.
उन दिनों भारत के वायसराय लॉर्ड हार्डिंग थे. तब तक के उनके छोटे से कार्यकाल में कई बड़ी उपलब्धियां उनके नाम के साथ जुड़ गई थीं. मसलन – 1909 का मार्ले-मिन्टो सुधार, जिसने धार्मिक आधार पर अलग निर्वाचन मंडल का प्रावधान कर विभाजन की नींव डाल दी थी, को सफलतापूर्वक लागू करवाना, किंग जॉर्ज पंचम की सफल भारत यात्रा और राजधानी को कलकत्ता से नई दिल्ली स्थानांतरित करना. उन्हीं दिनों ब्रिटिश हुकूमत की शक्ति, सर्वोच्चता और प्रभाव का प्रदर्शन करने के लिए एक शोभा-यात्रा निकालने का निर्णय लिया गया. 23 दिसम्बर 1912 की सुबह यह शोभा-यात्रा बड़े ही धूम-धाम के साथ निकली, जिसमें देसी राजा-महाराजाओं ने भी ब्रिटिश झंडे - यूनियन जैक के तले शिरकत की और जिसमें खुद वायसराय अपनी पत्नी के साथ एक सुसज्जित हाथी पर विराजमान थे.

1908 में दिल्ली का चांदनी चौक कुछ ऐसा दिखा करता था.
मुग़ल बादशाह शाहजहां की पुत्री जहां आरा द्वारा डिजाइन किया गया चांदनी चौक उन दिनों भी एक विख्यात बाजार था, जहां देश के विभिन्न हिस्सों से लोग खरीदारी करने आया करते थे. 1908 में शुरू की गयी ट्रॉम सर्विस चांदनी चौक का मुख्य आकर्षण हुआ करती थी. बाद में 1963 में इसे बंद कर दिया गया, जिसे फिर से चलाए जाने की बात हो रही है. शोभा-यात्रा के समय ट्रॉम सर्विस रोक दी गई थी. वायसराय और देसी राजाओं की इस शानदार शोभा-यात्रा को देखने के लिए सड़क के दोनों तरफ और मकान की छतों पर भारी भीड़ इकट्ठी हो रखी थी. वायसराय के साथ हाथी पर उनकी पत्नी लेडी हार्डिंग और एक कुशल महावत भी मौजूद थे.
अपनी पूरी शानो-शौकत एवं ठाट-बाट के साथ शोभा-यात्रा चांदनी चौक से लाल किले की तरफ बढ़ रही थी. दोनों तरफ की इमारतों से लोग फूल बरसा रहे थे. समय हो रहा था सुबह 11 बजकर 45 मिनट. जैसे ही वायसराय का हाथी कटरा धूलिया स्थित पंजाब नेशनल बैंक की इमारत के सामने से गुजरा, ऐसा लगा जैसे कोई फूलों की बड़ी सी गेंद वायसराय के सिंहासन के पीछे सहारे वाले तख्ते से टकराई और वापस उछलकर महावत को लगी. तत्काल एक कर्णभेदी धमाका हुआ और घना धुआं फ़ैल गया. कुछ पल तक तो किसी की समझ में नहीं आया कि क्या हुआ.

भारत के वायसराय रहे लॉर्ड हॉर्डिंग पर बम फेंका गया था, जो उन्हें न लगकर किसी और को लग गया.
धमाके का प्रभाव किस्मत से जिधर वायसराय लॉर्ड हार्डिंग और लेडी हार्डिंग बैठे थे उधर न होकर बलरामपुर रियासत के महावत महावीर पर हुआ और उसके शरीर के चीथड़े उड़ गए. विस्फोट से निकली एक नुकीली कील सामने दर्शकों में बैठे एक नवविवाहित युवक के सिर में जाकर लगी और वह भी वहीं ढेर हो गया. लॉर्ड हार्डिंग, जो प्रत्यक्षतः इस हमले का निशाना थे, मामूली रूप से जख्मी हुए. पर ब्रिटिश हुकूमत की शक्ति और सर्वोच्चता पर यह बम विस्फोट करारी चोट कर गया.
पुलिस – सीआईडी. द्वारा एड़ी-चोटी का जोर लगाने और लाख मगजमारी के बाद भी लॉर्ड हार्डिंग बम कांड (जिसे "दिल्ली षड्यंत्र" नाम दिया गया) के पीछे किन लोगों की साजिश थी, इसका कोई सुराग तक नहीं हासिल कर पा रही थी. यहां तक कि साजिश में शामिल लोगों के बारे में बताने वाले को खासी बड़ी रक़म का इनाम भी दिए जाने की घोषणा की गई. तमाम तलाशियों, ख़ुफ़िया रिपोर्ट और विदेशों से आती-जाती डाक की छानबीन के बावजूद जब साल भर तक चली जांच-पड़ताल किसी सिरे न पहुंच सकी, तो कलकत्ता से जांच-पड़ताल में दक्ष अडिशनल सुपरिटेन्डेंट डी. पेट्री को बुलाया गया. संदिग्ध व्यक्तियों और ठिकानों की तलाशी एक बार पुनः जोर-शोर से ली जाने लगी.
डी. पेट्री ने अपनी जांच में पाया कि लॉर्ड हार्डिंग के काफिले पर बम फेंकने के कुछ माह पश्चात 17 मई 1913 को लॉरेंस गार्डन, लाहौर में यूरोपियन लोगों के एक समारोह स्थल पर हुए बम विस्फोट - जिसमें सिर्फ एक चपरासी रामपदार्थ मारा गया था, कोई यूरोपियन हताहत नहीं हुआ था - में और लॉर्ड हार्डिंग बम कांड में बम बनाने की सामग्री और तरीके में समानता पाई गई थी. डी. पेट्री ने यह निष्कर्ष निकाला कि दोनों बमकांड एक ही समूह के द्वारा अंजाम दिए गए थे.

लाहौर का लॉरेंस गार्डन अभी ऐसा दिखता है.
15 फ़रवरी 1914 की रात दरीबां कलां स्थित मास्टर अमीर चंद के मकान की तलाशी में डी. पेट्री को कुछ प्रतिबंधित लेख मिले, जिसकी मास्टर अमीर चंद हस्तलिखित प्रतिलिपि तैयार कर रहे थे. फिर एक ताला-जड़े कमरे का ताला तोड़कर तलाशी लेने पर एक कनस्तर में बम के खाली खोल, बम बनाने की सामग्री और सांकेतिक लिपि में लिखी कुछ नामों की सूची भी मिली. इसी सूची में एक नाम था मास्टर अवध बिहारी का जिन्हें अगली सुबह 16 फ़रवरी को उनके दरीबां में ही कूचा बुलाकी बेगम स्थित आवास से गिरफ्तार कर लिया गया. अवध बिहारी के पास मिले कागजात में से एक नाम निकला लाहौर निवासी दीनानाथ का. अगले ही दिन डी. पेट्री लाहौर में दीनानाथ नाम के सभी संदिग्ध व्यक्तियों से एक - एक कर पूछताछ कर रहे थे. और अंततः उन्हें सफलता हाथ लग ही गयी.
मास्टर अमीर चंद और मास्टर अवध बिहारी ने तो कुछ भी न बताया लेकिन दीनानाथ थोड़े दबाव में ही टूट गया और अप्रूवर बनाए जाने के एवज में सारी कहानी कह डाली. परिणामस्वरू हार्डिंग बम विस्फोट को अंजाम देने की साजिश में शामिल तकरीबन सभी लोग अगले एक हफ्ते के भीतर गिरफ्तार कर लिए गए. बंगाल में अपने गांव गए बसंत कुमार बिस्वास को उनके घर से गिरफ्तार किया गया. जोधपुर रियासत के राजकुमारों को ट्यूशन पढ़ा रहे भाई बालमुकन्द, जो भाई परमानंद के अनुज और बलिदानी भाई मतिदास के वंशज थे, को जोधपुर रियासत से गिरफ्तार कर लिया गया. इन सभी लोगों पर इनके साथियों समेत राज्य के विरुद्ध षड्यंत्र रचने, हत्या करने और विस्फोटक का इस्तेमाल कर जान लेने सरीखे आरोप लगाए गए और अभियोजन पक्ष द्वारा सबूत पेश किए गए. सेशन कोर्ट ने इनमें से तीन लोगों को फांसी की सजा सुनाई. लाहौर हाई कोर्ट में की गई अपील के जवाब में हाई कोर्ट ने चौथे आरोपी की उम्रकैद की सजा को भी फांसी की सजा में परिवर्तित कर दिया. सह-अभियुक्तों हनुमंत सहाय, बलराज और चरणदास को आजीवन कारावास की सजा दी गई.
सम्पूर्ण जांच अभियान में वाहवाही के हक़दार बने अडिशनल पुलिस सुपरिटेन्डेंट डी. पेट्री ने अपनी जाँच रिपोर्ट में लिखा कि तमाम छानबीन के बावजूद वह दो तथ्यों का अंतिम रूप से निर्धारण करने में सफल न हो सके -
1. लॉर्ड हार्डिंग पर बम किसने अपने हाथ से फेंका था?सही उत्तर उसी शख्स से मिल सकते थे, जिसने बम खुद फेंका था. पर तमाम जोर-आजमाइश और प्रलोभन के बावजूद वह मास्टर अमीर चंद, भाई बालमुकुंद और मास्टर अवधबिहारी या उनके किसी भी साथी से इन प्रश्नों के उत्तर न पा सके. हाई कोर्ट के आदेशानुसार मास्टर अमीरचंद, भाई बालमुकन्द और मास्टर अवध बिहारी को 102 साल पहले 8 मई 1915 को दिल्ली जेल में और बसंत कुमार बिस्वास को 9 मई 1915 को अम्बाला जेल में फांसी दे दी गई.
2. बम पंजाब नेशनल बैंक की बिल्डिंग से फेंका गया था या नीचे सड़क पर खड़े होकर फेंका गया था?

दिल्ली का मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज.
मौलाना आज़ाद मेडिकल कॉलेज में स्थित शहीद स्मारक इन स्वतन्त्रता सेनानियों की याद में निर्मित किया गया है, ऐन उसी जगह जहां उन्हें फांसी दी गई थी. इसे आज भी लोग "फांसी घर” के नाम से ही पुकारते हैं, जो कभी अंग्रेजों की जेल का हिस्सा हुआ करता था. शहीद स्मारक शिलापट पर एचएसआरए सदस्य मनसा सिंह समेत कुछ अन्य स्वतन्त्रता सेनानियों के नाम दर्ज हैं, जिन्होंने इसी जगह फांसी के फंदे को चूमा था, पर जिनके नाम इतिहास के पन्नों से गायब हो चुके हैं. आजादी के बाद देश के नीति-निर्माताओं ने यह निर्णय लिया कि अंग्रेजों के जेल की जो दीवारें स्वतन्त्रता सेनानियों के ऊपर ढाए गए अत्याचारों की मूक दर्शक रही हैं, जिनके समक्ष स्वतन्त्रता सेनानियों से असह्य पीड़ा सही है, उन्हें गिराकर एक विश्वस्तरीय चिकित्सा केंद्र का निर्माण किया जाय ताकि आजाद देश के नागरिक यहां आकर अपनी पीड़ा, अपने रोग का उपचार करवाएं और स्वस्थ होकर जीवन बिताएं. जिस स्थान पर देशवासियों को पीड़ा पहुंचाई जाती थी, जिस स्थान पर देशप्रेमियों ने बलिदान दिया, नए भारत में उसी स्थान पर देशवासियों की पीड़ा का निवारण किया जाए.
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