हमारी पैदाइश से पहले से हमारे घर में एक रेडियो+टेप+FM है. 5 बैंड वाला. डुअल स्पीकर वाला. अब खैर उसके जीवाश्म बाकी हैं जो झोले से निकालते ही बिखर जाते हैं. बड़े भाई साहब ने उसके अंतिम दिनों में उसे डंडे से बजाया. हम समझदार हुए. अक्षर जोड़ के पढ़ने लायक. तो कैसेटों कॉ बॉक्स देखा. उनमें सबसे ज्यादा "अनूप जलोटा भजन माला" की थी. वॉल्यूम 3-4-5 इस तरह करके. रोज भोर होते ही एक धुन बजने लगती थी भजनों की. चदरिया झीनी रे झीनी, राधा ऐसी भयी श्याम की दीवानी, जग में सुंदर हैं दो नाम वगैरह. उनके भजन सुनने वाला तो हर आध्यात्मिक टेस्ट वाला बंदा है. उसकी बात फिर कभी करेंगे. पहले बात अनूप जलोटा की. नैनीताल में 29 जुलाई, 1953 में पैदा हुए. करियर की शुरुआत में ऑल इंडिया रेडियो जॉइन किया. कोरस सिंगर के रूप में. कोरस सिंगर क्या होता है? भीड़ का गाने में एक आवाज. तो कोरस सिंगर से शुरू होकर अनूप भजन सम्राट बन गए. अगर ऐसा सोचते हो तो रुको दोस्त. काफी कुछ मिस कर गए तुम. अनूप जलोटा ने गायकी में पहले नाम कमाया गजलों से. घर में बड़े बुजुर्ग म्यूजिक के शौकीन हों. खास तौर से गजलों के. तो उनसे पूछना. अपन कहानी आगे बढ़ाएं उसे पहले उनकी एक गजल सुन लो. https://www.youtube.com/watch?v=AhVO4dpTYwY तो गजलों से इनका इश्क मुड़कर भजनों में कैसे जा लगा. आशिकी और मयकशी की बातें करते हुए कैसे अध्यात्म की लाइन पकड़ ली. इस बात को जगजीत सिंह की कही एक बात से समझा जा सकता है. जगजीत खुद गजल सम्राट कहे जाते हैं अपने यहां. और करियर के आखिरी दिनों में वो भी भजन गाने लगे. तो दोनों में कुछ कॉमन है. https://www.youtube.com/watch?v=TMHTqpp9NjU जगजीत ने कहा था कि अपने देश में भजन की मार्केट अच्छी है. माने धर्म में प्रसिद्धि और पैसा दोनों बराबर तेजी से बढ़ते हैं. गजलें सुनने वालों की गिनती बहुत कम है. लेकिन धरम करम करने वाले तो सब हैं. सवेरा होते ही घंटी टनटनाने लगती है. अगरबत्ती की खुशबू बिखर जाती है. साथ में भजन की धीमी आवाज. तो साफ बात है कि भजन के प्रशंसक भी ज्यादा होंगे और जरूरतमंद भी. खुद अनूप ने एक इंटरव्यू में यही बात कही थी कि भजन गाने में सम्मान और पैसा दोनों मिलता है. लोग भावविभोर हो जाते हैं. पैर तक छूने लगते हैं जो बड़े भक्त होते हैं. https://www.youtube.com/watch?v=XwLFwDZe2NI अनूप जलोटा का एक किस्सा फेमस है. उन्होंने खुद अपने एक रेडियो इंटरव्यू में सुनाया था. एक फिल्म थी 'एक दूजे के लिए.' उसका गाना था 'सोलह बरस की बाली उमर को सलाम.' इंटरनेट युग आने से पहले ये गाना नव प्रेमियों के प्रेम पत्रों में लिखकर जाता था. इसकी शुरुआत होती थी अनूप जलोटा की आवाज में
कोशिश करके देख लें दरिया सारे नदियां सारी
दिल की लगी नहीं बुझती, बुझती है हर चिंगारी ये लाइन गवाने के लिए म्यूजिक डायरेक्टर ने इनसे संपर्क साधा. पूछा कि "क्या प्राइज लेंगे इतने का?" अनूप बोले बावले हो क्या? इतने अच्छे गाने में एक इतनी सुंदर लाइन गाने को दे रहे हो. और पूछते हो क्या लोगे? मैं कुछ न लूंगा इसके लिए.

ये जो ऊपर फोटो देख रहे हो ये स्वयं अनूप जलोटा हैं. सत्य सांईंं के गेटप में. एक फिल्म बनी थी, सत्य साईं की लाइफ पर. उसमें पहली बार एक्टिंग की थी अनूप ने. अपने एक्टिंग एक्सपीरिएंस के बारे में बताया कि बाबा का रोल करने में मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं हुई. काहे कि 50 साल तक उनसे संपर्क रहा. हां एक्टर के तौर पर ये पहली फिल्म है. इसलिए गलतियां हुई होंगी. वो डायरेक्टर जाने.
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