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पुतिन के एक फैसले की वजह से करोड़ों लोग भूखे सोएंगे?

रूस ने अनाज सप्लाई की डील तोड़कर क्या हंगामा खड़ा कर दिया है?

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रूस ने अनाज सप्लाई की डील तोड़कर क्या हंगामा खड़ा कर दिया है?

24 फ़रवरी 2022 से पहले तक यूक्रेन के अनाज से दुनियाभर में 40 करोड़ लोगों का पेट भरता था. ये संख्या अमेरिका की कुल आबादी से भी ज़्यादा है. यूक्रेन गेहूं, मक्का, सूरजमूखी के तेल. जौ और खाद के सबसे बड़े उत्पादक देशों में से है. उसकी पैदावार का बड़ा हिस्सा उन देशों में जाता था, जो भुखमरी, अकाल, महंगाई की समस्या से जूझ रहे थे. जैसे, यमन, इथियोपिया, सोमालिया, लीबिया, सीरिया, इराक़, पाकिस्तान, आदि. इसी अनाज की वजह से लोगों की भूख मिट रही थी और महंगाई भी काबू में रहती थी.

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फिर एक सुबह सबकुछ बदल गया. रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन में स्पेशल मिलिटरी ऑपरेशन चलाने का आदेश दिया. ये रूस-यूक्रेन युद्ध की शुरुआत थी. पुतिन को भरोसा था कि उनकी सेना कुछ ही दिनों में यूक्रेन को जीत लेगी. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. यूक्रेन ने करारा जवाब दिया. शुरुआती बढ़त के बाद रूस को पीछे हटना पड़ा. हालांकि, उन्होंने दक्षिण की तरफ़ कंट्रोल बनाए रखा.

यूक्रेन के दक्षिण में क्या है?

एक तरफ़ क्रीमिया और सेवस्तोपूल है. इन दोनों पर रूस ने 2014 में कब्ज़ा कर लिया था. इसके अलावा कई बड़े बंदरगाह हैं. ब्लैक सी यानी काला सागर के किनारे पर. इसी रूट से यूक्रेन अपना अनाज बाहर भेजता था. लेकिन युद्ध शुरू होने के बाद से रास्ता लगभग बंद हो गया. बिना रूस की मर्ज़ी के कोई जहाज नहीं निकल सकता था. ऐसे में अनाज और खाद की सप्लाई ठप पड़ गई. इसके चलते कई देशों में भुखमरी और महंगाई का संकट बढ़ गया. पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी इसका असर दिखा.

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फिर यूनाइटेड नेशंस की एंट्री हुई. उसने और तुर्किए ने मिलकर पुतिन को मनाया. ताकि वो ब्लैक सी से होने वाली अनाज की आपूर्ति को ना रोकें. आख़िरकार, जुलाई 2022 में तुर्किए में समझौता हुआ. इसके तहत, यूक्रेन को अनाज की सुरक्षित सप्लाई का हक़ मिल गया. रूस ने अनाज के जहाजों पर हमला नहीं करने का फ़ैसला किया. इसको ब्लैक सी ग्रेन डील या हिंदी में कहें तो ‘काला सागर अनाज समझौता’ नाम दिया गया.

पिछले एक बरस में इस डील की डेडलाइन कई बार बढ़ाई जा चुकी है. एक मौके पर रूस ने बीच में ही डील तोड़ दी थी. फिर वो वापस आ गया था. लेकिन 17 जुलाई को रूस ने इससे हटने का फ़ाइनल ऐलान कर दिया. बोला, हमारी कुछ शर्तें हैं. नहीं मानोगे तो डील आगे नहीं बढ़ाएंगे. ये हमारा अंतिम फ़ैसला है.

इस ऐलान ने पूरी दुनिया में हड़कंप मचा दिया है. करोड़ों लोगों पर भुखमरी का ख़तरा मंडरा रहा है. साथ महंगाई की तलवार भी लटकने लगी है.

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तो आइए हम जानते हैं,

- ब्लैक सी ग्रेन डील की पूरी कहानी क्या है?
- रूस ने डील को आगे बढ़ाने से मना क्यों कर दिया?
- और, डील टूटने का सबसे ज़्यादा असर किन पर पड़ेगा?

पहले बैकग्राउंड समझ लेते हैं.

यूक्रेन को यूरोपीय महाद्वीप का ब्रेड बास्केट कहा जाता है. यानी, किसी प्रांत, देश या महादेश का वो इलाका, जो बाकी हिस्से के लिए पर्याप्त अनाज उपलब्ध कराता हो. इस मामले में यूक्रेन ना सिर्फ़ यूरोप, बल्कि बाकी दुनिया के देशों के लिए भी ब्रेड बास्केट की भूमिका निभाता रहा है. रूस के हमले से पहले तक निर्यात के मामले में उसकी पोजिशन कुछ ऐसी थी.

- सूरजमुखी के तेल में पहला.
- जौ में तीसरा.
- मक्के में चौथा.
- और, गेहूं में पांचवां.

2021 में यूक्रेन ने लगभग 01 लाख करोड़ रुपये के अनाज का निर्यात किया था. 2016 से 2021 के बीच यूक्रेन ने 87 प्रतिशत गेहूं अफ़्रीका और एशिया के विकासशील देशों में भेजा था. इन देशों में गेहूं भोजन का अभिन्न हिस्सा है. कई देशों में कोरोना महामारी और इंटरनल कॉन्फ़्लिक्ट की वजह से भी खाने की कमी थी. कुछ देशों में आबादी का एक बड़ा हिस्सा बाहर से मिलने वाली मदद पर निर्भर है. ऐसे 120 देशों में यूएन, यूक्रेन के अनाज के ज़रिए मदद पहुंचाता था. यानी, ग्लोबल फ़ूड सप्लाई को मेंटेन रखने में यूक्रेन की काफ़ी अहम भूमिका थी.

फिर आया फ़रवरी 2022 का महीना. 24 फ़रवरी की सुबह पुतिन ने अपनी सेना को हमले का आदेश दिया. उससे पहले भाषण में बोले, अगर किसी ने हमारे के आंतरिक मामलों में दखल दिया तो अंज़ाम बुरा होगा. ऐसा अंज़ाम, जिसे इतिहास याद रखेगा. पुतिन की चेतावनी का इशारा नेटो की तरफ़ था. कुछ ही समय बाद रूसी सेना यूक्रेन की राजधानी किएव के रास्ते में थी. यूक्रेन पर हमला बढ़ता जा रहा था. इस बीच बैठकों, दबावों और प्रस्तावों का दौर जारी था. पुतिन ने हमला रोकने के लिए तीन शर्तें रखीं.

- क्रीमिया पर रूस की संप्रभुता को मान्यता दी जाए.
– यूक्रेन का विसैन्यीकरण हो. यानी उसकी सैन्य क्षमता कम की जाए.
– और, यूक्रेन अपनी तटस्थ स्थिति सुनिश्चित करे.

यूक्रेन इसके लिए तैयार नहीं हुआ. उसने लड़ने का इरादा किया. लड़ाई आज के समय में भी जारी है. रूस को किएव और दूसरे अहम शहरों से पीछे हटना पड़ा. लेकिन ब्लैक सी के बंदरगाहों पर उसका नियंत्रण बना रहा. इन्हीं बंदरगाहों से यूक्रेन अनाज की सप्लाई करता था. ये बंदरगाह थे - ओडेसा, कोर्नोमोर्स्क और पिवदेन्यी. रूस ने कब्जे़ के बाद ब्लैक सी के रास्ते को ब्लॉक कर दिया. उसने समंदर में माइंस बिछा दीं और अपने नौसैनिक जहाज भी गश्त पर लगा दिए.

ब्लॉकेड के कारण यूक्रेन का लगभग 02 करोड़ टन अनाज फंस गया. ये अनाज UN के फ़ूड प्रोग्राम के तहत अफ्रीका और मिडिल-ईस्ट के ग़रीब मुल्कों में भी पहुंचाया जाना था. कुछ हिस्सा विकासशील देश खरीदते थे. घेराबंदी के कारण पूरी दुनिया में महंगाई बढ़ी. भुखमरी और अकाल का संकट विकराल हुआ. जो देश मदद वाले अनाज पर निर्भर थे, उनकी हालत और ख़राब हुई. फिर मई 2022 में यूरोपियन यूनियन (EU) ने ज़मीनी रास्ते से अनाज का निर्यात करने का फ़ैसला किया. इन लैंड रूट्स को ‘सॉलिडेरिटी लेन्स’ का नाम दिया गया. EU ने इसके लिए लगभग 10 हज़ार करोड़ रुपये की रकम दी. लेकिन ज़मीन के रास्ते सप्लाई करना ना सिर्फ़ मुश्किल था, बल्कि महंगा भी था. इसमें समय की खपत भी ज़्यादा होती थी.

इसलिए, बैकडोर से यूएन और रूस के क़रीबी देश इसका हल तलाश रहे थे. अप्रैल 2022 में यूएन के सेक्रेटरी-जनरल अंतोनियो गुतेरेस ने यूक्रेन और रूस का दौरा किया. ब्लैक सी से निकलने वाले जहाजों को तुर्किए से होकर भी गुज़रना होता था. इसलिए, गुतेरेस ने तुर्किए के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन से मुलाक़ात की. अर्दोआन, पुतिन और ज़ेलेन्स्की दोनों के साथ संपर्क में थे. वो युद्ध की शुरुआत से ही शांति की अपील कर रहे थे. उन्होंने बातचीत का मंच मुहैया कराया.

यूएन और तुर्किए की पहल पर मई-जून में समझौते की शर्तें तैयार हुईं. फिर 22 जुलाई 2022 को इस्तांबुल में डील पर दस्तख़त हुए. उस मौके पर गुतेरेस और अर्दोआन बतौर गवाह मौजूद रहे.

इस समझौते में क्या था? चार बिंदुओं में जान लेते हैं –

- नंबर एक.

रूस, यूक्रेन से अनाज और खाद लेकर जाने वाले जहाजों को ब्लैक सी में सुरक्षित रास्ता देगा. वो इन जहाजों पर हमले भी नहीं करेगा. और, उन बंदरगाहों को भी निशाना नहीं बनाएगा, जहां से अनाज का निर्यात हो रहा है.

- नंबर दो.

इस्तांबुल में जॉइंट को-ऑर्डिनेशन सेंटर (JCC) की स्थापना की जाएगी. इसमें रूस, यूक्रेन, यूएन और तुर्किए के प्रतिनिधि शामिल होंगे. ये सेंटर यूक्रेन के तीन बंदरगाहों से निकलने वाले अनाज और खाद के जहाजों पर निगरानी रखेगा. साथ ही उनमें रखे सामान की जांच-पड़ताल भी करेगा.

नंबर तीन.

- इन जहाजों के के साथ यूक्रेन का सुरक्षा दस्ता भी चलेगा. ये दस्ता समुद्र में बिछाई बारूदी सुरंगों से बचने में मदद करेगा.

नंबर चार.

- ब्लैक सी के ज़रिए रूसी अनाज और उर्वरक के निर्यात की सुविधा भी प्रदान की जाएगी.

शुरुआत में समझौते की डेडलाइन 19 नवंबर 2022 तक की रखी गई. लेकिन 17 नवंबर को ही इसे 120 दिनों के लिए आगे बढ़ा दिया गया. मार्च 2023 में दूसरी बार और मई में तीसरी बार 60-60 दिनों के लिए डील को एक्सटेंड किया जाता रहा. इस दौरान रूस लगातार ये नाराज़गी जताता रहा कि उसके साथ बईमानी की जा रही है. समझौते की सभी शर्तों की नहीं माना जा रहा है.

17 जुलाई को रूस ने आधिकारिक तौर पर डील छोड़ने का ऐलान कर दिया. रूसी सत्ता-प्रतिष्ठान के केंद्र क्रेमलिन के प्रवक्ता दमित्री पेस्कोव ने कहा, ब्लैक सी एग्रीमेंट आज से खत्म हो रहा है. जैसा कि राष्ट्रपति महोदय ने पहले कहा था, डेडलाइन 17 जुलाई की थी. दुर्भाग्यवश, समझौते में रूस से जुड़ी चिंताओं का समाधान नहीं हो रहा था.

रूस की आपत्ति की दो मुख्य वजहें बताई जा रही हैं. पहली है, रूस के खाद और अनाज के निर्यात में कमी. रूस का कहना है कि उन्हें आश्वासन दिया गया था कि उनके खाद और अनाज का निर्यात बढ़ेगा. लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है. पश्चिमी देशों द्वारा लगाए प्रतिबंधों के चलते कृषि उत्पादों का निर्यात भी नहीं हो पा रहा है.

दूसरी आपत्ति यूएन के वादे से जुड़ी है. रूस ने कहा कि हमने डील इसलिए साइन की थी, ताकि ग़रीब मुल्कों तक अनाज की आपूर्ति हो सके. लेकिन यूक्रेन उच्च और मध्यम आय वाले देशों को अनाज की सप्लाई कर रहा है. UN ने भी इस बात को सही बताया है. लेकिन साथ में कहा कि गरीब मुल्कों में भी अनाज की सप्लाई की जा रही है. यूएन की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़े के अनुसार, यूक्रेन के कुल अनाज निर्यात का 44 प्रतिशत हिस्सा विकसित देशों को गया था. बाकी हिस्सा विकासशील और अल्प-विकसित देशों तक पहुंचा था.

अब सवाल ये उठता है कि डील टूटने का दुनिया पर क्या असर पड़ेगा? वर्ल्ड फ़ूड प्रोग्राम (WFP) की रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई 2022 के बाद से यूक्रेन के अनाज का एक बड़ा हिस्सा इथियोपिया, अफ़ग़ानिस्तान, यमन, सूडान जैसे देशों को गया है. पूरी दुनिया में अनाज की कीमतों में 23 प्रतिशत की कमी आई. इंटरनैशनल रेस्क्यू कमिटी की रिपोर्ट के मुताबिक, डील ने 79 देशों में लगभग 35 करोड़ लोगों को खाद्य सुरक्षा मुहैया कराई. 

अब दुनियाभर से आए रिएक्शन के बारे में जान लेते हैं.

यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर ज़ेलेन्स्की बोले, किसी को भी किसी देश की फ़ूड सिक्योरिटी को ख़तरे में डालने का हक़ नहीं है. हमें रूस की मंज़ूरी के बिना अनाज की सप्लाई जारी रखनी चाहिए. लेकिन क्या ये इतना आसान है? अगर रूस की मंजूरी के बिना सप्लाई रूट को चालू किया गया तो क्या हो सकता है? जहाजों को किस तरह का ख़तरा हो सकता है?

इस डील में तुर्किए की भी अहम भूमिका रही है. अर्दोआन ने कहा, अगले महीने पुतिन से होने वाली मीटिंग में डील पर बात करेंगे. इससे पहले उन्होंने उम्मीद जताई थी कि पुतिन इस डील को जारी रखना चाहते हैं. अमेरिका बोला, इस डील के कारण पूरी दुनिया में महंगाई घटी थी और खाने का संकट काबू में आया था. रूस का फ़ैसला ख़तरनाक और चिंताजनक है.
यूएन ने भी रूस के फ़ैसले पर चिंता जताई है. डील जारी रखने की अपील की है. यूएन ने रूस को मनाने की कोशिश भी शुरू कर दी है.

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