The Lallantop

छह साल तक ग्वादर पोर्ट के काम को लटका देने वाला शख्स अब बनेगा RAW चीफ

ये बलूचिस्तान के एक्सपर्ट हैं. पाकिस्तान और अफगानिस्तान में तगड़ा नेटवर्क है इनका.

post-main-image
अनिल कुमार धस्माना

भारत के मौजूदा आर्मी चीफ, एयरफोर्स चीफ और IB डायरेक्टर 31 दिसंबर को रिटायर हो रहे हैं. इन पदों के लिए अफसरों का चुनाव कर लिया गया है. रॉ प्रमुख का पद भी 31 जनवरी, 2017 को खाली हो रहा है. इस पद पर एक ऐसे शख्स को चुना गया है, जिसने पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ग्वादर पोर्ट के काम को बीच में लटका दिया था. जी हां, छह साल तक लटकाए रखा चीन और पाकिस्तान को. कौन ये शख्स, जिसके बारे में कहा जाता है कि उनका एक ही मकसद है, 'काम पूरा होना चाहिए.' कौन है ये जिसने 'ऑपरेशन बंबई बाजार' चलाकर जुर्म का सफाया किया.


तो आपको बता दें, देश की खुफिया एजेंसी 'रिसर्च ऐंड एनालिसिस विंग' (RAW) के मुखिया के लिए जिसे चुना गया है वो हैं अनिल कुमार धस्माना. अनिल मध्य प्रदेश काडर के 1981 बैच के IPS अधिकारी हैं, जिन्होंने अपने शुरुआती दिनों में इंदौर में काम किया और फिर केंद्र सरकार की तरफ से कई महत्वपूर्ण जगहों पर तैनात किए गए. अनिल का इतिहास देखने पर साफ पता चलता है कि उन्हें इस पद के लिए क्यों चुना गया है. आइए जानते हैं उनके बारे में...

कहां से हुई शुरुआत अनिल कुमार धस्माना
अनिल कुमार धस्माना

मूल रूप से उत्तराखंड के रहने वाले अनिल धस्माना IPS बनने के बाद मध्य प्रदेश के अलग-अलग शहरों में तैनात रहे, लेकिन उन्हें पहचान मिली इंदौर वाली पोस्टिंग से. अनिल इंदौर में 1988 से 1991 तक एसपी रहे, जो बतौर एसपी उनकी पहली पोस्टिंग थी. वहां उनका काम इतना शानदार था कि सरकार ने उन्हें वहां से गुजरात भेज दिया. वो काफी वक्त तक कच्छ और भुज में पोस्टेड रहे. अनिल के काम से सरकार इतनी इंप्रेस रही कि बाद में उन्हें दिल्ली बुला लिया गया.

दिल्ली में काम करते हुए अनिल को सीनियर लेवल तक अपनी क्षमता दिखाने का मौका मिला, जिसके बाद सरकार को अहसास हुआ कि अनिल विदेशों में भी काम आ सकते हैं. फिर उन्हें मॉरीशस से लेकर मालदीव और जर्मनी में पोस्टिंग मिली, जहां उन्होंने खुद को बखूबी साबित किया. धस्माना कैबिनेट सचिवालय में विशेष सचिव पद पर भी रहे हैं. वो पिछले 13 सालों से RAW से जुड़े हैं और एजेंसी के स्पेशल डायरेक्टर भी रहे.


बलूचिस्तान के एक्सपर्ट धस्माना नक्शे में बलूचिस्तान
नक्शे में बलूचिस्तान

अनिल पाकिस्तान और इस्लाम से जुड़े मामलों के एक्सपर्ट हैं. रॉ से जुड़ने के बाद उन्होंने बलूचिस्तान पर बहुत काम किया. मौजूदा वक्त में सरकार के पास बलूचिस्तान को समझने और इससे जुड़ी रणनीति तैयार करने के लिए धस्माना से बेहतर कोई अफसर नहीं है. धस्माना काउंटर-टेररिज्म और इस्लामिक मामलों के बड़े जानकार हैं. भारत सरकार बलूचिस्तान मामले को जिस तरह भुनाना चाहती है, उसके लिए धस्माना की नियुक्ति बेहद महत्वपूर्ण है.

नेटवर्क के बूते रोके रखा ग्वादर पोर्ट का काम ग्वादर पोर्ट की एक तस्वीर
ग्वादर पोर्ट की एक तस्वीर

पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ग्वादर पोर्ट को डेवलप करने में चीन ने काफी पैसा खर्च किया है, लेकिन बलूचिस्तान के लोग इससे हमेशा नाराज रहे, क्योंकि इसमें उन्हीं के रिसोर्सेस का इस्तेमाल किया गया, जबकि फायदा चीन को होता है. धस्माना का पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अच्छा नेटवर्क है, जिसके बूते उन्होंने 6 सालों तक ग्वादर पोर्ट के डेवलपमेंट का काम रोके रखा. ये उनकी बड़ी उपलब्धियों में से एक है.


डोभाल के करीबी भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल
भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल

धस्माना भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA) अजीत डोभाल के करीबी और विश्वस्त हैं. डोभाल भी पाकिस्तान और अफगानिस्तान के एक्सपर्ट हैं और बतौर जासूस वो पाकिस्तान में रह भी चुके हैं. इन दोनों के नेतृत्व में भारत पाकिस्तान में बड़ी कूटनीतिक बढ़त हासिल कर सकता है. लंदन और फ्रैंकफर्ट जैसी राजधानियों में काम कर चुके धस्माना सार्क और यूरोप डेस्क की जिम्मेदारी भी संभाल चुके हैं.


क्या कहते हैं उनके साथी

धस्माना के साथ काम कर चुके अधिकारी बताते हैं कि वो ऐसे शख्स हैं, जिनका एक ही मकसद होता है कि काम पूरा होना चाहिए. वो चाहे किसी भी तरह से हो और उसके लिए चाहे जिसके साथ संपर्क बनाना पड़े. ग्वादर पोर्ट का काम रोकने वाली बात का जिक्र भी एक सीनियर अधिकारी ने ही किया था. तगड़ा नेटवर्क बनाकर काम करना ही धस्माना की खासियत है.


एजेंडे में फिट होते हैं धस्माना स्वतंत्रता दिवस, 2016 पर लाल किले से भाषण देते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
स्वतंत्रता दिवस, 2016 पर लाल किले से भाषण देते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

इस साल स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से भाषण देते हुए बलूचिस्तान का जिक्र किया था. उस समय बलूच जनता ने मोदी का समर्थन किया था और मोदी ने कहा था, 'मैं बलूचिस्तान, गिलगित और PoK के लोगों का शुक्रिया अदा करता हूं. जिन लोगों को मैंने देखा तक नहीं है, उनकी तरफ से इतना प्यार मिलना सुखद है. वो भारत के प्रधानमंत्री को शुक्रिया कह रहे हैं. ये 125 करोड़ भारतीयों का सम्मान है.'

मोदी के इस कदम से पाकिस्तानी हुकूमत में खलबली मच गई थी. माना गया कि अब भारत पाकिस्तान की अंदरूनी राजनीति में अपना दखल बढ़ाने जा रहा है. और अब धस्माना की नियुक्ति बताती है कि बलूचिस्तान भारत सरकार के जेहन में मजबूती से बना हुआ है.


जब बन गए थे इंदौर के हीरो

धस्माना की इंदौर वाली पोस्टिंग इसलिए यादगार है, क्योंकि वहां उन्होंने 'ऑपरेशन बंबई बाजार' चलाकर जुए, सट्टे और प्रॉस्टीट्यूशन के अवैध धंधों को बंद कराया था और ये सारे रैकेट चलाने वाले कुख्यात अपराधी बाला बेग का साम्राज्य खत्म किया था. ये सितंबर, 1991 की बात है, जब 'मिनी मुंबई' में अवैध धंधे चरम पर थे. बाला बेग का घर ऐसी भूल-भुलैया में था कि वहां पुलिस भी घुसने से डरती थी. उस समय किसी मामले की वजह से बंबई बाजार इलाका तनावग्रस्त था और लोगों ने पुलिस चौकी पलट दी थी.


अनिल कुमार धस्माना
अनिल कुमार धस्माना

जवाब में धस्माना फोर्स के साथ बाला के घर पहुंचे, तो महिलाओं ने घरों के ऊपर से पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया. इस पथराव में धस्माना के गनमैन छेदीलाल दुबे घायल हो गए थे और बाद में उसी चोट की वजह से उनकी मौत हो गई थी. इससे गुस्साए धस्माना ने ऑपरेशन बंबई बाजार ऑपरेट किया और बेग परिवार के सारे अड्डे खत्म करवा दिए. इस ऑपरेशन में बाला का पूरा साम्राज्य खत्म कर दिया गया था. इंदौर से धस्माना की विदाई के वक्त शहर का पूरा पुलिस महकमा इकट्ठा हुआ था और पुलिसवालों ने काफी दूर तक पैदल चलकर उन्हें विदाई दी थी.


घर-परिवार

मूल रूप से उत्तराखंड के रहने वाले अनिल के पिता महेशानंद धस्माना सिविल एविएशन विभाग में काम करते थे. चार बेटों और तीन बेटियों के अपने परिवार के साथ महेशानंद बाद में दिल्ली शिफ्ट हो गए थे. इससे पहले तक अनिल की पढ़ाई उनके गांव के स्कूल में ही हुई थी. उनका परिवार बताता है कि परिवार बड़ा होने की वजह से जब अनिल को पढ़ने का माहौल नहीं मिल पाता था, तो वो पढ़ने के लिए बाहर निकल जाते थे. कई बार तो उन्होंने स्ट्रीट लाइट के नीचे बैठकर पढ़ाई की.

धस्माना की नियुक्ति उत्तराखंड के लिए भी खास है, क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े महत्वपूर्ण पदों पर तैनात NSA अजीत डोभाल, DGMO अनिल भट्ट और अब आर्मी चीफ बनने जा रहे बिपिन रावत भी मूलत: उत्तराखंड से ही हैं.


कब होगी नियुक्ति

रॉ के मौजूदा चीफ राजिंदर खत्री 31 जनवरी, 2017 को अपना दो साल का कार्यकाल खत्म करने जा रहे हैं, जिसके बाद धस्माना कुर्सी संभालेंगे. रॉ चीफ का कार्यकाल दो साल का ही होता है. हालांकि, सरकार चाहे तो जरूरत के मुताबिक किसी का कार्यकाल बढ़ा भी सकती है.




ये भी पढ़ें:

इंदिरा गांधी के टाइम में भी सीनियर की अनदेखी कर बना था नया आर्मी चीफ