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जानिए क्या होता है कोर्ट मार्शल जिसमें मेजर गोगोई को दोषी पाया गया है

सब जानना चाहते हैं कि क्या अब मेजर गोगोई की वर्दी छिन जाएगी?

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मेजर लीतुल गोगोई कोर्ट मार्शल के बाद 6 महीने की वरिष्ठता खो चुके हैं.
मेजर लीतुल गोगोई. कुछ के लिए ह्यूमन शील्ड वाले अफसर. बाकी के लिए एक मुश्किल घड़ी में एक अलोकप्रिय लेकिन सख्त फैसला लेने वाले अफसर. सेना ने तब मेजर गोगोई का बचाव किया था और आगे चलकर उन्हें 'चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ कमेंडेशन कार्ड' भी मिला. अब एक दूसरे मामले में इनके कोर्ट मार्शल की खबर आई है. कोर्ट मार्शल से हमारे दिमाग में आता है फिल्म पुकार का सीन. जिसमें अनिल कपूर की वर्दी फाड़ दी गई थी. लोगों को लगता है कि कोर्ट मार्शल के बाद सैनिक को फौज से निकाल दिया जाता है. लेकिन असल में ऐसा होता नहीं है. तो आसान भाषा में आज हम दो बातें समझेंगे -
>> कोर्ट मार्शल क्या होता है? >> लीतुल गोगोई के साथ क्या कैसे और क्यों होने वाला है.
मेजर गोगोई किस मामले में फंसे हैं? 53 राष्ट्रीय राइफल्स के मेजर गोगोई 23 मई, 2018 को श्रीनगर के होटल - द ग्रैंड ममता पहुंचे. उन्होंने इस होटल में 23 और 24 मई के लिए कमरा बुक किया था. कथित तौर पर मेजर गोगोई होटल में एक कश्मीरी लड़की के साथ जाना चाहते थे और होटल स्टाफ इसके खिलाफ था. विवाद हुआ तो पुलिस बुलाई गई. पुलिस मेजर गोगोई और उनके साथ होटल में मिले टेरेटोरियल आर्मी के जवान समीर मल्ला को अपने साथ ले गई. समीर मेजर गोगोई का ड्राइवर था. पूछताछ के बाद पुलिस ने तो दोनों को छोड़ दिया था लेकिन सेना ने कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के आदेश दे दिए थे. वाकये के बाद सेना प्रमुख बिपिन रावत ने कहा था कि अगर मेजर गोगोई ने कोई अपराध किया है, तो उन्हें ऐसी सज़ा दी जाएगी जो दूसरों के लिए नज़ीर बनेगी. इस साल फरवरी की शुरुआत में मेजर गोगोई और समीर मल्ला के खिलाफ समरी ऑफ एविडेंस माने सबूत पेश हुए. इसके बाद कोर्ट मार्शल की कार्रवाई शुरु हुई जो हाल ही में पूरी हुई है. अब ये कोर्ट मार्शल होता क्या है? कोर्ट मार्शल अपने आप में सज़ा नहीं होती. ये वो कार्रवाई है जिसके तहत फौजियों को सज़ा सुनाई जाती है. माने फौज की अदालत. कोर्ट मार्शल ये तय करने के लिए होता है कि किसी सैनिक से ड्यूटी के दौरान कोई गलती हुई है या नहीं. और अगर हुई है, तो उसे क्या सज़ा मिलनी चाहिए. जिनीवा कंवेंशन कहता है कि किसी युद्धबंदी पर युद्धअपराध का मामला कोर्ट मार्शल के तहत ही सुना जाए. भारत में कोर्ट मार्शल की कार्यवाही चार तरह से होती है - >> GCM माने जनरल कोर्ट मार्शल >> DCM माने डिस्ट्रिक्ट कोर्ट मार्शल >> SGCM माने समरी जनरल कोर्ट मार्शल >> SCM माने समरी कोर्ट मार्शल अलग-अलग रैंक और ड्यूटी के हिसाब से इनमें से किसी एक तरह से कार्यवाही चलती है. SCM को छोड़कर कमोबेश सिस्टम एक ही होता है. सेना में सबसे ऊपर होता है अनुशासन. अनुशासन टूटने पर सज़ा होती ही है. मिसालन बिना सूचना दिए छुट्टी से लेट लौटना. ऐसे में आरोपी को कोई छोटी-मोटी सज़ा दी जाती है. जैसे ज़्यादा देर तक ड्यूटी या कोई मेहनत भरा काम. गंभीर अपराधों के बाद सबसे पहले कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के आदेश होते हैं. इसकी रिपोर्ट आने पर देखा जाता है कि सैनिक के खिलाफ आगे कार्यवाही ज़रूरी है कि नहीं. अगस्त 2018 में सेना की कोर्ट ऑफ इंक्वायरी में मेजर गोगोई को दोषी पाया गया था. इसके बाद तय हुआ कि उनके खिलाफ डिसिप्लिनरी एक्शन माने अनुशासनात्म कार्रवाई की जाएगी. कोर्ट ऑफ इंक्वायरी के बाद समरी ऑफ एविडेंस तैयार की जाती है. इसमें मामले से जुड़े सबूतों को इकट्ठा किया जाता है. समरी ऑफ एविडेंस के बाद ज़रूरी लगने पर कोर्ट मार्शल की कार्रवाई शुरू होती है. मामले की सुनवाई हमेशा आरोपी से सीनियर रैंक का अधिकारी करते हैं. सबसे सीनियर अधिकारी पैनल का अध्यक्ष होता है. सुनवाई के दौरान आरोपी अपने पक्ष में पैरवी के लिए सेना के वकील बुला सकता है. कार्यवाही पूरी होने के बाद कोर्ट अपनी रिपोर्ट सेना के सीनियर अधिकारियों को भेजती है. इसी में सज़ा का ज़िक्र होता है. सीनियर अधिकारी चाहें तो सज़ा घटा या बढ़ा सकते हैं. सज़ा कैद, तनख्वाह में कटौती, रैंक में कमी, सीनीयॉरिटी में कमी वगैरह कुछ भी हो सकती है. सबसे बड़ी सज़ा है सज़ा ए मौत. कोर्ट मार्शल का सबसे हटकर तरीका है SCM  युद्ध या किसी इमरजेंसी के वक्त जनरल कोर्ट मार्शल के लिए वक्त नहीं होता. लेकिन सेना में गलती पर कार्रवाई होती ही है. तो समरी कोर्ट मार्शल काम आता है. इसमें आरोपी का कमांडिंग अफसर खुद ही सारी कवायद करता है और फैसला सुनाता है. समरी कोर्ट मार्शल की व्यवस्था सेना में अनुशासन और सैन्य मनोबल हर हाल में बनाए रखने के लिए होती है. 1857 के विद्रोह के बाद अंग्रेज़ फौज में सैनिकों पर कार्रवाई के लिए नियम बनाए गए. आज कोर्ट मार्शल 1950 में आए The Army Act के तहत होते हैं, लेकिन भारत की सैन्य न्यायिक व्यवस्था अंग्रेज़ों की विरासत का ही हिस्सा है. कोर्ट मार्शल में किसी सामान्य नागरिक की हत्या या रेप को छोड़कर हर अपराध पर सुनवाई हो सकती है. इन दो तरह के मामलों में सेना जांच करती है लेकिन न्यायिक प्रक्रिया सिविल अदालत में ही चलती है. क्या कोर्ट मार्शल का फैसला अंतिम होता है? कोर्ट मार्शल के फैसले को सेना के अंदर चुनौती दी जा सकती है. मिसाल के लिए अगर कर्नल रैंक के अधिकारी का फैसला है तो आरोपी ब्रिगेडियर या किसी दूसरे सीनियर अधिकारी के पास जा सकता है. अगर वहां बात न बने तो आरोपी आर्म्ड फोर्स ट्राईब्यूनल जा सकता है. इसके बाद आता है हाईकोर्ट का नंबर. हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई करती है कम से कम डिविज़न बेंच. माने एक से ज़्यादा जज. हाईकोर्ट के बाद सुप्रीम कोर्ट जाने का ऑप्शन रहता है. किस चीज़ का दोषी पाया गया है मेजर गोगोई और समीर मल्ला को? इस मामले में लड़की ने सैनिक अदालत के सामने पेश होने से इनकार किया था. उसका कहना था कि सिविल मैजिस्ट्रेट के सामने हुए उसके बयान को ही अंतिम मान लिया जाए. लड़की का कहना था कि वो अपनी मर्ज़ी से मेजर गोगोई से मिलने जा रही थी. कोर्टमार्शल की कार्रवाई में मेजर गोगोई और मल्ला पर दो दोष साबित हुए- >> लोकल लोगों से घुलना-मिलना जबकि इसकी मनाही थी >> ऑपरेश्नल एरिया में ड्यूटी से गायब रहना क्या सज़ा हुई है मेजर गोगोई को? मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मेजर गोगोई की सज़ा पर सीनियर अधिकारियों ने मुहर लगा दी है. उनसे 6 महीने की सीनियॉरिटी छीन ली जाएगी. फिलहाल ये तय नहीं है कि ये 6 महीने सर्विस के कम होंगे या पेंशन से. अगर सर्विस से कम होते हैं तो मेजर गोगोई अपने साथ कमीशन पाए अधिकारियों से छह महीने जूनियर हो जाएंगे. सेना में एक कर्नल थ्रेशहोल्ड होता है. सेना में कमीशन लेने वाला हर अफसर कर्नल के रैंक तक जा सकता है. लेकिन इससे आगे जाने के लिए तगड़ी परफॉर्मेंस होनी चाहिए और एक बेदाग रिकॉर्ड. मेजर गोगोई की सज़ा का ज़िक्र उनके सर्विस रिकॉर्ड में जुड़ेगा. और जब तक सज़ा का ज़िक्र सर्विस रिकॉर्ड में रहेगा, मेजर गोगोई के आगे बढ़ने पर गंभीर प्रश्न बना रहेगा. अगर सीनियॉरिटी पेंशन में से कटती है तो मेजर गोगोई जब भी रिटायर होंगे, उन्हें 6 महीने जूनियर मानकर रिटायर किया जाएगा. इससे उन्हें पेंशन के बाद मिलने वाले भत्तों और सुविधाओं पर फर्क पड़ेगा. अब ये मेजर गोगोई पर है कि वो आगे क्या रास्ता लेते हैं.
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