
कॉलेज का अमिताभ बच्चन
उनकी शिक्षा इंदौर के गुजराती कॉमर्स कॉलेज से हुई. छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे. कॉलेज में काफी लोकप्रिय थे लेकिन छात्र राजनीति की वजह से नहीं. दरअसल उस दौर के सुपर स्टार अमिताभ बच्चन की वो बढ़िया मिमिक्री किया करते थे. इस वजह से कॉलेज के तमाम कार्यक्रमों में उनकी अच्छी मांग हुआ करती थी. कद लंबा होने और अमिताभ की मिमिक्री करने की वजह से कॉलेज में उन्हें अमिताभ नाम से ही जाना जाता था.जिसके घर में रहती थी एक नदी
भोपाल में उनके घर का नाम 'नदी का घर' है. यह दरअसल उनके गैर सरकारी संगठन समग्र नर्मदा का मुख्यालय भी था. नर्मदा के प्रति ख़ास दिलचस्पी. हाल में हुए नमामि देवी नर्मदे यात्रा में तय किया गया कि नर्मदा के दोनों तरफ पेड़ों की कतार लगाई जाए. यह आइडिया दरअसल 2008 में अनिल दवे ने ही दिया था. क्योंकि नर्मदा ग्लेशियर से निकलने वाली नदी नहीं है इसलिए उसको बचाने के लिए अलग किस्म के उपाय करने जरुरी हैं. अमर कंटक से लेकर भंरूच तक उन्होंने राफ्टिंग की. इस यात्रा के जरिए उन्हें नर्मदा और उससे जुड़े मसलों पर बुनियादी समझ हासिल की. उन्होंने नर्मदा के किनारे की गुफाओं और उससे जुड़े मिथकों पर किताब लिखी - अमर कंटक से अमर कंटक.कुशल रणनीतिकार
1999 तक वो पर्दे के पीछे संघ का काम करते रहे. 99 में जब उमा भारती चुनाव लड़ने के लिए भोपाल आईं तो उन्हें भारती के मीडिया प्रभारी की जिम्मेदारी सौंपी गई. इस ज़िम्मेदारी को उन्होंने बखूबी निभाया भी. लेकिन रणनीतिकार के रूप में उनकी असली पहचान 2003 में सामने आई. भोपाल में एक पता है - 74 बंगलो. यहां पर बीजेपी के नेता गौरीशंकर शेजवार का भी बंगला भी था. फरवरी 2003 में एक टीम जुटाई गई. टीम का नाम रखा गया जावली. आपको बताते चलें कि जावली वो जगह है जहां शिवाजी ने अफजल खान को मारा था.
मई 2003 में मध्य प्रदेश के महू में चुनाव प्रचार के दौरान मशाल होटल में एक बैठकी लगी. बैठकी में थे कप्तान सिंह सोलंकी, बाबू लाल गौर, शिवराज सिंह चौहान, गौरीशंकर शेजवार, कैलाश जोशी और अनिल माधव दवे. अगले दिन वैंकैय्या नायडू और उमा भारती महू पहुंचने वाले थे. आयोजन था महू संकल्प पत्र को रिलीज करने का. संकल्प पत्र के दो बिंदुओं पर कैलाश जोशी और बाबूलाल गौर में असहमति हो गई. इस पर बहस करते हुए सुबह की चार बज गई. अंत में संकल्प पत्र ड्राफ्ट हुआ. तभी एक दुर्घटना हो गई. जिस कंप्यूटर पर इसे ड्राफ्ट किया गया था वो अचानक से खराब हो गया. अनिल दवे ने इस मामले को संभाला. सुबह 11 बजे के कार्यक्रम में सबके पास संकल्प पत्र पहुंच चुका था. सही समय पर दवे ने सब चीजों का ठीक से प्रबंधन कर लिया था.हलांकि प्रदेश में उनकी छवि कभी जननेता की नहीं रही है. वो अच्छे रणनीतिकार की पहचान रखते थे. इस बार सिंहस्थ कुम्भ पिछले प्रयाग के महाकुम्भ से 18 गुना ज्यादा खर्चीला था. इसकी कमान अनिल दवे के पास ही थी. इसके बाद उज्जैन से 7 किलोमीटर दूर निनौरा गांव में बीजेपी का वैचारिक कुम्भ हुआ. इसमें 100 करोड़ रुपए की लागत आई थी, जिसमें नरेंद्र मोदी के लिए बनी वीआईपी झोपड़ी भी शामिल थी. हालांकि नरेंद्र मोदी इस झोपड़ी में नहीं रुके लेकिन दवे के मैनेजमेंट को देख कर उन्हें दिल्ली जरूर बुला लिया. इसके एक महीने बाद ही अनिल दवे को राज्यसभा का दूसरा कार्यकाल मिल गया. 15 जुलाई 2016 में मंत्रीमंडल में हुए फेर-बदल में उन्हें पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दिया गया.

नई नजीर गढ़ कर गए

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