The Lallantop

एक कविता रोज़ - मंगलेश डबराल की कविता 'इन सर्दियों में'

ये सर्दियां क्यों होगी मेरे लिए पहले जैसी कठोर

Advertisement
post-main-image
फोटो - thelallantop
इलाहाबाद में एक कार्यक्रम के बाद मंगलेश डबराल दिल्ली जाने के लिए ट्रेन में सवार हुए. उन्हें स्टेशन तक छोड़ने वीरेन डंगवाल और दूसरे कवि मित्र आए हुए थे. मंगलेश डबराल ट्रेन में बैठे हुए थे, और वीरेन स्टेशन पर. वीरेन डंगवाल बार-बार मंगलेश डबराल को छेड़ रहे थे, ‘मंगू, नक्की दे दो मंगू.’ यहां मंगू मतलब मंगलेश और नक्की का सम्भावित मतलब नाक से है. ये सुनकर मंगलेश झेंप जा रहे थे. हंस रहे थे. लेकिन कुछ कह नहीं रहे थे. और वीरेन थे कि बार-बार कह रहे थे, ‘मंगू, नक्की दे दो मंगू.’ मंगलेश उकता गए. और कहा, ‘वीरेन अब तुमने एक बार भी कहा तो मैं ट्रेन से उतरकर तुम्हारी पिटाई कर दूंगा.’ ये क़िस्सा कवि और आलोचक पंकज चतुर्वेदी सुनाते हैं. कवि वीरेन डंगवाल से मंगलेश डबराल की दोस्ती के चर्चे हिंदी का साहित्य संसार बहुत अच्छे से जानता है. माउथ कैंसर की वजह से कुछ सालों पहले वीरेन डंगवाल का निधन हो गया. और 9 दिसंबर को कोरोना से मंगलेश डबराल का. लल्लनटॉप मंगलेश डबराल को भिन्न-भिन्न तरीक़ों से याद कर रहा है. कवियों से बात करके. मंगलेश डबराल के क़िस्से सुनकर. उनकी कविता सुनकर. उन्हें आप तक यूं एक कविता रोज़ के माध्यम से लाकर. और आज उनकी कविता ‘इन सर्दियों में’ पढ़िए. इन सर्दियों में मंगलेश डबराल पिछली सर्दियाँ बहुत कठिन थीं उन्हें याद करने पर मैं सिहरता हूँ इन सर्दियों में भी हालाँकि इस बार दिन उतने कठोर नहीं पिछली सर्दियों में चली गई थी मेरी माँ खो गया था मुझसे एक प्रेमपत्र छूट गई थी एक नौकरी रातों को पता नहीं कहाँ भटकता रहा कहाँ कहाँ करता रहा टेलीफोन पिछली सर्दियों में मेरी ही चीजें गिरती रही थीं मुझ पर इन सर्दियों में निकालता हूँ पिछली सर्दियों के कपड़े कंबल टोपी मोजे मफलर देखता हूँ उन्हें गौर से सोचता हुआ बीत गया है पिछला समय ये सर्दियाँ क्यों होगी मेरे लिए पहले जैसी कठोर

Advertisement
Advertisement
Advertisement
Advertisement