काकी सियारामशरण गुप्त
उस दिन बड़े सवेरे जब श्यामू की नींद खुली तब उसने देखा घर भर में कोहराम मचा हुआ है. उसकी काकी उमा, एक कम्बल पर नीचे से ऊपर तक एक कपड़ा ओढ़े हुए भूमि-शयन कर रही हैं. और घर के सब लोग उसे घेरकर बड़े करुण स्वर में विलाप कर रहे हैं. लोग जब उमा को श्मशान ले जाने के लिए उठाने लगे तब श्यामू ने बड़ा उपद्रव मचाया. लोगों के हाथों से छूटकर वह उमा के ऊपर जा गिरा. बोला, “काकी सो रही हैं. उन्हें इस तरह उठाकर कहां लिये जा रहे हो? मैं न जाने दूं.” लोग बड़ी कठिनता से उसे हटा पाए. काकी के अग्नि-संस्कार में भी वह न जा सका. एक दासी राम-राम करके उसे घर पर ही संभाले रही. यद्दपि बुद्धिमान गुरुजनों ने उन्हें विश्वास दिलाया कि उसकी काकी उसके मामा के यहां गई हैं. परन्तु असत्य के आवरण में सत्य बहुत समय तक छिपा न रह सका. आस-पास के अन्य अबोध बालकों के मुंह से ही वह प्रकट हो गया. यह बात उससे छिपी न रह सकी कि काकी और कहीं नहीं, ऊपर राम के यहां गई हैं.
एक दिन उसने ऊपर एक पतंग उड़ती देखा. न जाने क्या सोचकर उसका हृदय एकदम खिल उठा. विश्वेश्वर के पास जाकर बोला “काका मुझे पतंग मंगा दो.” पत्नी की मृत्यु के बाद से विश्वेश्वर अन्यमनस्क रहा करते थे. “अच्छा, मंगा दूंगा.” कहकर वे उदास भाव से और कहीं चले गये. श्यामू पतंग के लिए बहुत उत्कंठित था. वह अपनी इच्छा किसी तरह रोक न सका. एक जगह खूंटी पर विश्वेश्वर का कोट टंगा हुआ था. इधर-उधर देखकर उसने उसके पास स्टूल सरकाकर रखा. और ऊपर चढ़कर कोट की जेबें टटोली. उनमें से एक चवन्नी का आविष्कार करके तुरन्त वहां से भाग गया. सुखिया दासी का लड़का भोला श्यामू का समवयस्क साथी था. श्यामू ने उसे चवन्नी देकर कहा, “अपनी जीजी से कहकर गुपचुप एक पतंग और डोर मंगा दो. देखो खूब अकेले में लाना. कोई जान न पावे.”काकी के लिए कई दिन तक लगातार रोते-रोते उसका रुदन तो क्रमश: शांत हो गया, परन्तु शोक शांत न हो सका. वर्षा के अनंतर एक ही दो दिन में पृथ्वी के ऊपर का पानी अगोचर हो जाता है. परंतु भीतर ही भीतर उसकी आर्द्रता जैसे बहुत दिन तक बनी रहती है. वैसे ही उसके अन्तस्तल में वह शोक जाकर बस गया था. वह प्राय: अकेला बैठा-बैठा शून्य मन से आकाश की ओर ताका करता.
भोला श्यामू से अधिक समझदार था. उसने कहा “बात तो बड़ी अच्छी सोची परन्तु एक कठिनता है. यह डोर पतली है. इसे पकड़कर काकी उतर नहीं सकतीं. इसके टूट जाने का डर है. पतंग में मोटी रस्सी हो, तो सब ठीक हो जाए.” श्यामू गंभीर हो गया. मतलब यह, बात लाख रुपये की सुझाई गई है. परन्तु कठिनता यह थी कि मोटी रस्सी कैसे मंगाई जाए. पास में दाम है नहीं और घर के जो आदमी उसकी काकी को बिना दया-मया के जला आए हैं, वे उसे इस काम के लिए कुछ नहीं देंगे. उस दिन श्यामू को चिंता के मारे बड़ी रात तक नींद नहीं आई. पहले दिन की तरकीब से दूसरे दिन उसने विश्वेश्वर के कोट से एक रुपया निकाला. ले जाकर भोला को दिया और बोला “देख भोला, किसी को मालूम न होने पाए. अच्छी-अच्छी दो रस्सियां मंगा दे. एक रस्सी ओछी पड़ेगी. जवाहिर भैया से मैं एक कागज पर ‘काकी’ लिखवा रखूंगा. नाम की चिट रहेगी, तो पतंग ठीक उन्हीं के पास पहुंच जाएगी.”पतंग आई. एक अंधेरे घर में उसमें डोर बांधी जाने लगी. श्यामू ने धीरे से कहा, “भोला, किसी से न कहो तो एक बात कहूं.” भोला ने सिर हिलाकर कहा “नहीं, किसी से नहीं कहूंगा.” श्यामू ने रहस्य खोला. कहा “मैं यह पतंग ऊपर राम के यहां भेजूंगा. इसे पकड़कर काकी नीचे उतरेंगी. मैं लिखना नहीं जानता, नहीं तो इस पर उनका नाम लिख देता.”
भोला सकपकाकर एक ही डांट में मुखबिर हो गया. बोला “श्यामू भैया ने रस्सी और पतंग मंगाने के लिए निकाला था.” विश्वेश्वर ने श्यामू को दो तमाचे जड़कर कहा “चोरी सीखकर जेल जाएगा? अच्छा, तुझे आज अच्छी तरह समझाता हूं.” कहकर फिर तमांचे जड़े और कान मलने के बाद पतंग फाड़ डाला. अब रस्सियों की ओर देखकर पूछा “ये किसने मंगाई?” भोला ने कहा “इन्होंने मंगाई थी. कहते थे, इससे पतंग तानकर काकी को राम के यहां से नीचे उतारेंगे.” विश्वेश्वर हतबुद्धि होकर वहीं खड़े रह गए. उन्होंने फटी हुई पतंग उठाकर देखी. उस पर चिपके हुए कागज पर लिखा हुआ था “काकी.”दो घंटे बाद प्रफुल्ल मन से श्यामू और भोला अंधेरी कोठरी में बैठे-बैठे पतंग में रस्सी बांध रहे थे. अकस्मात शुभ कार्य में विघ्न की तरह उग्र रूप धारण किये विश्वेश्वर वहां आ घुसे. भोला और श्यामू को धमकाकर बोले “तुमने हमारे कोट से रुपया निकाला है?”