तलध्वज:

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भगवान बलभद्र के रथ को 'तलध्वज' बुलाते हैं. जैसे कि हम जानते हैं, भगवान कृष्ण ही जगन्नाथ हैं और कृष्ण के भाई हैं बलराम. जो अपने दुश्मानों को मारने के लिए हल का इस्तेमाल करते थे. अब ये रथ बलराम का ही है, तो इसे हल ध्वज भी बुलाया जाता है. मान्यता है कि बलभद्र के फर्श पर एक आईना ऐसा था जिससे वो सारा यूनिवर्स देख सकते थे. इस आईने का एक प्रतीक उनके रथ में भी दिखाई देता है.1. इस रथ का कवर हरे-नीले रंग का होता है. साथ ही इसमें लाल रंग भी होता है, जो हर रथ में कॉमन है. आज कल तो ये हरा ज़्यादा हो गया है. पहले नीला होता था. शायद बारिश से नीला रंग फीका पड़कर हरा होने लगा होगा. ;) बाद में हरे कवर ही बनने लगे होंगे. बलभद्र को नीलंबर भी कहते हैं. ये हरे-नीले का कॉन्सेप्ट वहीं से आया है.
2. ऑब्वियस बात है इतने बड़े रथ में अकेले बलभद्र तो जाएंगे नहीं. तो उन्हें इस रथ में राम और कृष्ण की मेटल की मूर्तियां कंपनी देती हैं. वैसे ही जैसे पूल में कैब बुलाकर आप दूसरे लोगों के साथ चले जाते हो वैसे ही कार पूलिंग की संस्कृति भगवान जी ने विकसित की होगी. यू नेवर नो.
3. हर रथ के ऊपर एक झंडा लहराता है. इस रथ के झंडे को उन्मानी कहते हैं. हर रथ के सबसे ऊपर अलग-अलग नागदेवता कुंडली मारकर बैठे रहते हैं. तलध्वज रथ के ऊपर अनंत नाग होते हैं. वो नाग जिनकी पीठ पर खड़े हुए हमें विष्णु भगवान कई फोटोज़ में दिखते हैं.
4. अब ये भगवान का रथ है, तो इसकी रक्षा के लिए कम से कम एक देवता तो रहते ही होंगे. बलभद्र के रथ की रक्षा भास्कर देवता करते हैं, अब आपके किसी दोस्त या भाई का नाम भास्कर है तो आपको पता होगा कि इसका मतलब सूरज होता है.
5. देवता जिस जगह बैठते हैं उसको सिंहासन कहते हैं. अब सिंहासन है तो सजेगा ही. इसके बैकग्राउंड और इसमें लगे पत्ते पेंट किए जाते हैं. सिंहासन के राइट साइड शिव भगवान की मूर्ति होती है, वहीं लेफ्ट साइड हाथ जोड़े, वीणा बजाते हुए नारद जी की.

6. इस रथ के गेटकीपर्स का नाम 'नंद' और 'सुनंद' है. रथ को चलाने वाले को सारथी कहा जाता है. ओह प्लीज! ये बात किसको पता नहीं होगी. महाभारत के युद्ध में जिस तरह अर्जुन के रथ के सारथी कृष्ण थे. वैसे ही इस रथ का भी एक सारथी है, जिसका नाम 'मताली' है.
7. पुराने ज़माने में रथ को घोड़े ही खींचा करते थे. इसका डेमो हम आज भी घोड़ा-गाड़ी में देख लेते हैं. खैर अब जो रथ बनाए जाते हैं, उनमें नकली घोड़े पेंट करके फिट किए जाते हैं. घोड़ों का नाम तीव्र, घोरा, दीर्धश्रम और स्वर्णनभ है. इन चारों में काला पेंट किया जाता है.
8. इसमें बलभद्र को कई देवता कंपनी देते हैं. उनके साथ ही हरिहर, नतंबर, गजंतक, त्रिपुरारी, प्रलंबरी, रुद्र, गणेश, त्रयंबका और स्कंद देवता की मूर्तियां भी होती हैं. ये सारी लकड़ी की बनाई गई मूर्तियां होती हैं.
9. इन तीनों रथ में अंतर पता करना है तो इनकी हाइट और एरिया जानना ज़रूरी है. तलध्वज रथ की हाइट लगभग 45 फीट की होती है. इसका फर्श 33 फीट का होता है. सिंहासन वाला इलाका 34 वर्ग फीट का होता है.
10. रथ को खींचने के लिए पहिये लगे होते हैं. इस रथ में 14 पहिये होते हैं. हर पहिये का डायामीटर 6.5 फीट रखा जाता है.
11. इन रथों की खास बात है. ये पूरे लकड़ी के बने होते हैं. उसमें भी फिक्स होता है कि कितने लकड़ी के टुकड़े लेने हैं. तलध्वज में 731 लकड़ी की टुकड़े यूज़ होते हैं.
12. रथों को रस्सी से खींचा जाता है. हर रथ की रस्सी का नाम भी अलग-अलग है. बलभद्र के रथ की रस्सी को वासुकि कहते हैं. पौराणिक कथाओं में वासुकि को वो नाग बताया जाता है, जिसकी पीठ पर धरती टिकी हुई है. हमें भी पता है ऐसा नहीं है और ये कहानी है.
नंदीघोष:
भगवान जगन्नाथ के रथ का नाम नंदीघोष है. इसका एक और नाम है कपि ध्वज. इस रथ के ऊपर लगे झंडे को त्रिलोक्यमोहिनी बुलाते हैं. त्रिलोक्यमोहिनी, वो जिसने तीनों लोकों पर अपना जादू बिखेर रखा है. श्री कृष्ण की इमेज भी ऐसी है जो सबका दिल जीत लेते हैं. तो इसलिए उनके रथ के झंडे का नाम उनकी पर्सनैलिटी पर काफी सूट करता है. ये रथ इंद्र देवता ने भगवान विष्णु को गिफ्ट में दिया था. इस रथ में मदनमोहन की मेटल की मूर्ति भी रखी जाती है, मदनमोहन एक्चुअल में जगन्नाथ ही हैं. रथ के सबसे ऊपर कल्याण सुंदर देवता की मूर्ति होती है. बाहर रथ की रक्षा के लिए कई देवताओं की मूर्ति मौजूद रहती है. बाहर इस रथ की रक्षा देवता हिरण्यगर्भ करते हैं. हम विष्णु को चार हाथों में से दो हाथ में शंख और चक्र पकड़े देखते हैं. वही इस रथ के हथियार भी हैं.1. इस रथ को बनाने में 742 लकड़ी के टुकड़े यूज़ होते हैं.
2. इसकी हाइट लगभग 45 फीट और 6 इंच की रखी जाती है.
3. इसका कवर लाल और गोल्डन पीले रंग का होता है. भगवान जगन्नाथ को कृष्ण के रूप में जाना जाता है. जिन्हें पीतांबर भी कहते हैं. इसलिए रथ में गोल्डन पीला रंग इस्तेमाल होता है.
4. रथ का फर्श 34 फीट और 6 इंच का होता है. वहीं सिंहासन का इलाका 35 वर्ग फीट का होता है.

6. रथ के गेट को नंदीमुख कहते हैं. द्वारपाल का नाम जया और विजया. सारथी का नाम दारुक. इस रथ से चार सफेद घोड़े जुड़े होते हैं, इनके नाम हैं शंख, बालहक, श्वेत और हरितस्व.
7. इसमें हनुमान, राम, लक्ष्मण, नारायण, कृष्णा, गोवर्धनधारी, चिंतामणी, राघव और नरसिंह देवताओं की मूर्तियां भी होती है.
8. इस रथ में 16 पहिये होते हैं. हर पहिये का डायामीटर 7 फीट रखा जाता है.
9. जिस रस्सी से ये रथ खींचा जाता है, उसे शंखचूड़ कहा जाता है. कथाओं में शंखचूड़ एक दैवीय नाग है, जिसका सिर ऊपर से सफेद है.
देवदलन:
सुभद्रा के रथ का नाम देवदलन है. इसे दर्प दलन भी बुलाते हैं. विष्णु जी का सुदर्शन चक्र, सुभद्रा के साथ इस रथ की सवारी करता है. बलभद्र और जगन्नाथ की छोटी बहन है सुभद्रा. इसलिए दोनों भाई बहन की रक्षा के लिए सुदर्शन को साथ भेजते हैं. इस रथ के ऊपर लगे झंड़े को नदंबिका कहते हैं और इसकी रक्षा त्रिपुरासुंदरी करती है. रथ के ऊपर भक्तिसमेध, सुमेधा और चमरहस्त देवताओं की मूर्ति होती है. श्री और भू देवियों की मूर्तियां भी रथ के ऊपर बनी रहती है.बाहर से इस रथ की रक्षा देवी उग्रचंडी करती हैं. रथ के अंदर देवता शक्तिशप्त, जया, विजया, घोरा, अघोरा, सूक्ष्म और ज्ञान रक्षा करते हैं. इस रथ का हथियार पद्म-कालहारक है. इस रथ के सिंहासन के आस-पास भी कमल और पत्तों के शेप पेंट किए जाते हैं. सिंहासन के राइट और लेफ्ट साइड में जया और विजया की पंखे पकड़ी हुईं मूर्तियां होती हैं.
1. रथ की द्वारपाल गंगा और यमुना हैं, दोनों हमारे देश की सबसे पॉपुलर नदियां हैं. रथ को ड्राइव सुभद्रा के पति अर्जुन करते हैं, मतलब वो रथ के सारथी हैं. अर्जुन को हम महाभारत के लिए जानते ही हैं, वो सुभद्रा के भाई मतलब कृष्ण जी के भी अच्छे दोस्त हैं.
2. रोचिका, मोचिका, जीता और अपराजिता, ये राइमिंग नाम इस रथ से जुड़े चार घोड़ों के हैं. वैसे नाम से लग रहा है घोडियां भी हो सकती हैं. इन पर गहरा लाल पेंट किया जाता है.
3. रथ में देवी विमला, चामुंडा, भद्रकाली, हरचंडिका, मंगला, वरही, कात्यायिनि, जयदुर्गा और कालीमाता की मूर्तियां हैं.
4. रथ को 711 लकड़ी की टुकड़ों से बनाया जाता है.

5. रथ का फर्श 31 फीट और 6 इंच का होता है. वहीं सिंहासन का इलाका 33 वर्ग फीट का होता है.
6. इसकी हाइट लगभग 44 फीट और 6 इंच की है.
7. इसका कवर लाल और काले रंग का होता है. पुरी के श्रीमंदिर में सुभद्रा को कई जगह शक्ति के रूप में भी दिखाया गया है. काला रंग माता काली से जुड़ा है, इसलिए सुभद्रा के रथ के कवर में काला रंग भी होता है.
8. इस रथ को जिस रस्सी से खींचा जाता है, उसे स्वर्णचूड़ कहते हैं. पौराणिक कथाओं में ये एक दैवीय सांप है, जिसका सिर ऊपर से सोने का है.
इस स्टोरी के लिए इनपुट '
सुभाष पाणी' की बुक
'रथ यात्रा' से लिए गए हैं.