साल 2011 का वो बुधवार का दिन था, यानी वर्किंग डे. दिल्ली के शेरशाह सूरी रोड पर स्थित हाई कोर्ट में भी चहल-पहल शुरू हो चुकी थी. गेट नम्बर 5 पर भी सैकड़ों लोग जमा थे. इस वक़्त इस गेट पर भीड़ इसलिए भी ज़्यादा थी, क्योंकि कई लोग, जिनके केस की सुनवाई होनी थी, अंदर जाने के लिए मिलने वाले पास के लिए लाइन लगाकर खड़े थे.
सुबह के ठीक सवा दस बजे यहां एक ज़ोरदार धमाका हुआ. चहल-पहल, भगदड़ में बदल गई. शुरुआत में जैसा अमूमन ऐसे हादसों में होता है, किसी को कुछ न पता चला कि हुआ क्या है और घटना का स्तर कितना बड़ा है. लेकिन धीरे-धीरे वकीलों से गुलज़ार रहने वाला ‘कोर्ट परमाइस’ ख़ाकी वर्दी, एंबुलेंस और मीडिया के कैमरों वाली भीड़ का गढ़ बन गया. शुरू में पता लगा कि 11 लोग मारे गए हैं लेकिन बाद में, इंडिया टुडे की 2012 की एक ख़बर के अनुसार, मृतकों की संख्या बढ़कर 17 तक जा पहुँची.
घटना का दिन और टाइमिंग टैक्टिकली चुने गए थे. बुधवार का दिन PIL दायर करने का दिन होता है. इसलिए भीड़ और दिनों की तुलना में कहीं अधिक होती है. साथ ही केवल समय ही नहीं, लोकेशन का चुनाव भी हादसे की लंबी प्लानिंग की ओर इशारा कर रहा था. उच्च सुरक्षा क्षेत्र होने के बावज़ूद वहां पर कोई CCTV कैमरा नहीं लगा था. पता लगा कि बम कथित तौर पर अमोनियम नाइट्रेट और पेंटाएरिथ्रिटोल टेट्रानाइट्रेट (PETN) का एक संयोजन था. मतलब आसान शब्दों में कहें तो ये एक हाई इंटेसिटी ब्लास्ट के वास्ते या महत्तम नुक़सान और मौतों के वास्ते प्लांट किया गया था.

उस वक्त केंद्रीय गृह सचिव आर के सिंह ने भी कहा था कि-
विस्फोट ‘मध्यम से उच्च तीव्रता’ का था और इससे दिल्ली उच्च न्यायालय के गेट 4 और 5 के बीच वाले एरिया में एक ‘गहरा गड्ढा’ बन गया था. प्रथमदृष्टया ये एक आतंकवादी समूह का लगाया इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED) लगता है.13 सितंबर, 2008 के बाद राजधानी में हुआ ये सबसे भीषण आतंकी हमला था. 3 साल पहले सितंबर के ही महीने में ही हुए पिछले सीरियल ब्लास्ट में 25 लोग मारे गए थे. तब करोल बाग, कनॉट प्लेस और ग्रेटर कैलाश में धमाके हुए थे. # जांच और न्यायिक प्रक्रिया शुरुआती जाँच से पता लगा कि इस घटना में हूजी (हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी - HuJI) का हाथ था. दरअसल harkatuljihadi2011@gmail.com से भेजे गए एक ई-मेल में दावा किया गया था कि हूजी ने 2001 के संसद पर हुए हमले के दोषी अफजल को मिले मृत्यु दंड के जवाब में ये विस्फोट किया है. लेकिन तत्कालीन गृह मंत्री पी चिदंबरम ने लोकसभा में कहा कि अभी इस नृशंस हमले के पीछे किसी भी आतंकवादी समूह की पहचान नहीं की गई है. साथ ही ख़ुद अफ़ज़ल गुरु ने दो दिन बाद ये बोलकर ख़ुद को हमले से अलग कर लिया कि-
मैं परेशान हूं कि इस सिलसिले में मेरा नाम बेवजह घसीटा जा रहा है. कुछ एजेंसियां मेरा नाम लेकर गंदा खेल खेल रही हैं. ये पहली बार नहीं है कि इस तरह के जघन्य अपराधों के लिए कुछ शरारती समूहों द्वारा मेरा नाम घसीटा गया हो. ये एक रुटीन सा बन गया है कि जब भी ऐसे विस्फोट हों तो मेरा नाम घसीटने की कोशिश की जाए, ताकि मेरे खिलाफ जनमत तैयार करके मुझे बदनाम किया जा सके. यह (बम विस्फोट या आतंकी हमला) एक कायरतापूर्ण कृत्य है और इसकी सभी को निंदा करनी चाहिए. कोई भी धर्म निर्दोषों की हत्या की अनुमति नहीं देता.

घटना के अगले दिन यानी 8 सितंबर को मीडिया और न्यूज़ एज़ेंसीज़ को एक मेल मिला. इसमें इंडियन मुजाहिद्दीन ने हमले की ज़िम्मेवारी ली. साथ ही ये भी कहा कि आने वाले मंगलवार को और भी ऐसे हमले प्लांड हैं.
बहरहाल, विस्फोट की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंपी जा चुकी थी. एनआईए प्रमुख एससी सिन्हा ने घोषणा की कि 20 अधिकारियों की एक टीम इस मामले की जांच करेगी.
पता लगा कि हूजी वाला मेल जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ के एक इंटरनेट कैफे से भेजा गया था. दूसरी तरफ़ इंडियन मुजाहिदीन वाल दूसरा ईमेल एक हॉक्स मेल पाया गया. उसे अहमदाबाद के युवक ने भेजा था, और उसने ये बात क़बूल भी कर ली.
यूं NIA का पूरा फ़ोकस पहले वाले, यानी हूजी वाले मेल पर हो गया.
दो हफ़्तों के भीतर NIA ने तीन लोगों को गिरफ़्तार किया. इसमें से दो 11वीं कक्षा के स्टूडेंट थे. यानी नाबालिग थे. और तीसरा व्यक्ति 30 वर्षीय युवक था. तीनों किश्तवाड़ से थे. इनका विस्फोट में कोई ‘बड़ा हाथ’ नहीं बताया गया, सिर्फ़ भेजी गई मेल को ड्राफ़्ट करने के अलावा. हालांकि 30 साल का आरोपी आमिर अब्बास देव बाद में अप्रूवर यानी सरकारी या इक़बाली गवाह बन गया, और उसे अदालत ने माफ़ी दे दी. लेकिन अभी टाइमलाइन को फ़ॉलो करें तो घटना के क़रीब एक महीने बाद NIA ने किश्तवाड़ के वसीम अकरम मलिक नाम के एक मेडिकल छात्र को भारत-बांग्लादेश सीमा से गिरफ्तार किया. इससे पहले पटना से भी एक संदिग्ध को गिरफ़्तार किया गया था. NIA ने दावा किया कि गिरफ्तार किए गए लोगों के आतंकवादी समूह हरकत-उल-जिहाद-अल-इस्लामी से मजबूत संबंध हैं.

NIA द्वारा अगले साल मार्च में कुल 6 लोगों के ख़िलाफ़ चार्ज़ शीट दायर की गई. इन 6 आरोपियों में से एक नाबालिग़ भी था. वसीम अकरम मलिक और कोर्ट के अप्रूवर बने आमिर अब्बास देव की बात तो हम आपको बता ही चुके हैं. बाकी तीन आरोपी वसीम का भाई जुनैद अकरम मलिक जो हिज़बुल मुजाहिद्दीन का आंतकवादी था, शाकिर हुसैन शेख उर्फ छोटा हाफिज और आमिर कमाल NIA के हत्थे नहीं चढ़ पाए थे.
उसी साल अगस्त में, स्पेसिफ़िकली 6 अगस्त, 2012 को किश्तवाड़ जिले के त्रोथिल इलाक़े में दो आतंकवादी पुलिस मुठभेड़ में मारे गए. आमिर अली और मोहम्मद शफी उर्फ साकिब. किश्तवाड़ के DIG ने दावा किया कि आमिर अली दिल्ली उच्च न्यायालय विस्फोट का मुख्य आरोपी था.
इधर NIA ने कोर्ट को एक सुनवाई के दौरान बताया कि-
इंटरनेट का शौक़ीन वसीम मलिक उन नेतृत्वहीन जिहादियों में से एक है, जिन्होंने हिजबुल मुजाहिदीन और अन्य संगठनों के आतंकवादियों के साथ साजिश रची और इस कायराना और अमानवीय आतंकवादी कार्रवाई को अंजाम दिया.बाद में स्पेशल NIA कोर्ट ने भारतीय दंड संहिता के तहत मलिक के खिलाफ आपराधिक साजिश, हत्या, हत्या के प्रयास और जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाने के आरोप तय करने का आदेश दिए. उसके खिलाफ विस्फोटक पदार्थ अधिनियम और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत आरोप तय करने का भी आदेश दिया गया. लेकिन देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप पर विशेष न्यायाधीश एच.एस. शर्मा ने कहा-
इस अपराध (यानी देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने) के लिए आरोपी के खिलाफ जो भी सामग्री उपलब्ध है, उससे कुछ ज़्यादा चाहिए होगा. सिर्फ इसलिए कि दिल्ली उच्च न्यायालय के बाहर एक बम विस्फोट हुआ था और ई-मेल में अफजल गुरु की रिहाई का संदर्भ था, देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने संबंधी अपराध नहीं बनते.2014 में वसीम अकरम मलिक द्वारा दायर की गईं पांच अलग-अलग याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा-
आपराधिक मामलों की जांच में पुलिस की सुस्ती के चलते न्याय प्रणाली कॉलेप्स हो रही है.मलिक ने इस आधार पर वैधानिक जमानत देने की मांग की थी कि पुलिस जांच पूरी करने और 90 दिनों की निर्धारित अवधि के भीतर आरोप पत्र दाखिल करने में विफल रही है. जबकि बाद में 90 दिनों की अवधि को बढ़ाकर 180 दिन भी कर दिया गया था. कुल मिलाकर 2014 के हाई कोर्ट के इस फ़ैसले से साफ़ था कि इस केस में बहुत लंबा समय लग रहा था और आगे भी तेज़ी आने की संभावना कम ही थी.

आइए अंत में विक्टिम्स के हाल भी जान लिए जाएँ. घटना के 6 साल बाद यानी 11 सितंबर, 2017 को दिल्ली उच्च न्यायालय ने अदालत के एक अधिकारी को पीड़ितों की दुर्दशा पर गौर करने का निर्देश दिया. पीड़ितों में से एक, संगीता अशोक द्वारा दायर एक अपील की पृष्ठभूमि में अदालत ने यह निर्देश जारी किया था. संगीता 7 सितंबर के ब्लास्ट में मारे गए अशोक कुमार शर्मा की पत्नी हैं.
मिंट की एक ख़बर के अनुसार, तीन बच्चों की मां संगीता ने इस अपील के साथ अदालत का दरवाजा खटखटाया कि विस्फोटों में उन्हें हुए नुकसान के बाद उनका परिवार बिखर गया था. छह साल बीत जाने के बावजूद उनके पति की पेंशन का मामला अदालत में लंबित रहा. दूसरी तरफ़ वो अपने लड़के का दिल्ली यूनिवर्सिटी का फ़ॉर्म सही ढंग से नहीं भर पाईं थीं, और बेटे के फॉर्म में बदलाव करने के बावजूद विश्वविद्यालय ने उनके अनुरोध को नजरअंदाज कर दिया. संगीता ने बताया था कि अदालत के बाहर पीड़ितों की स्मृति में लगी संगमरमर की प्लेट भी टूट चुकी है और जर्जर अवस्था में पड़ी है.
ये सिर्फ़ एक पीड़ित की दास्तां है. परिवार उस दिन 17 बिखरे थे. और यूं अफ़ज़ल गुरु की बात दोहराकर आज के शो का अंत किया जा सकता है.-
कोई भी आतंकी हमला एक कायरतापूर्ण कृत्य है और इसकी सभी को निंदा करनी चाहिए. कोई भी धर्म निर्दोषों की हत्या की अनुमति नहीं देता.ये था आज का ‘तारीख़’ कल फिर मिलेंगे एक नए एपिसोड के साथ, तब तक के लिए विदा.