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डाकू गोप्पा, जिसके मददगारों को डकैतों ने जिंदा जला दिया

बुंदेलखंड के जंगलों में पिछले 30 साल से था डकैतों का आतंक

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फोटो - thelallantop

रामगोपाल, उर्फ गोप्पा उर्फ भोले. 30 साल का वो आदमी जो मध्यप्रदेश और यूपी के जंगलों में दहशत का दूसरा नाम बना हुआ था. 29 जुलाई को यूपी एसटीएफ ने उसे गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तारी भी तब हुई जब वह चित्रकूट के मऊ थाने से कुछ दूरी पर लालता रोड के पास बोलेरो गाड़ी से परिवार के साथ कहीं जा रहा था.


एक लाख का था इनाम

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डकैत गोप्पा को यूपी एसटीएफ ने 29 जुलाई को गिरफ्तार कर लिया है.


चित्रकूट के हर्रा गांव का रहने वाला राम गोपाल उर्फ गोप्पा 2003 में ठोकिया गैंग में शामिल हुआ था. ठोकिया के मारे जाने के बाद इसने गौरी यादव गैंग में शामिल होकर चित्रकूट के जंगलों में वारदात शुरू कीं. फिलहाल रामगोपाल उर्फ गोप्पा गौरी यादव गैंग से अलग होकर अपना गैंग चला रहा था, जिसपर एक लाख पांच हजार रुपये का इनाम था. एक महीने पहले 22 जून को गोप्पा गैंग ने चित्रकूट के एक गांव में बोरिंग ठेकेदार फूलचंद पटेल के दो रिश्तेदारों का अपहरण कर लिया था. गोप्पा को जब पता चला कि गांववालों ने इसकी सूचना पुलिस को दे दी है, तो उसके साथ आदमी गांव पहुंचे और जमकर हंगामा किया. पुलिस से मुठभेड़ होने के बाद वह दोबारा गांव पहुंंचा और करीब दो करोड़ रुपये की मशीनों और ट्रकों में आग लगा दी.

...तो विरोधी डकैत ने की थी मुखबिरी

3 जुलाई को चित्रकूट की भरत कूप चौकी इलाके में डाकू ललित पटेल के गिरोह ने मध्यप्रदेश के तीन लोगों को गोली मार दी और उन्हें पेड़ से बांधकर जिंदा ही फूंक दिया. उसको शक था कि ये तीनों विरोधी डाकू गोप्पा के मददगार हैं. गोप्पा की गिरफ्तारी के बाद ये भी बात सामने आ रही है कि गोप्पा की मुखबिरी के पीछे भी 30 हजार के इनामी डकैत ललित पटेल का ही हाथ है.

30 साल से चल रहा है सिलसिला

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बुंदेलखंड में पिछले 30 साल से डकैत राज कर रहे हैं.

पाठा के इन बीहड़ों में डकैती का इतिहास तीन दशक से कुछ पुराना है जब यहां शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ आतंक का दूसरा नाम था. इसके बाद अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया उर्फ डॉक्टर ने भी इसी इलाके में दहशत फैलाई. 22 जुलाई, 2007 को स्पेशल टास्क फोर्स ने ददुआ को मार गिराया. 4 अगस्त, 2008 को ठोकिया को भी पुलिसवालों ने मार दिया.
एक साल के अंदर ही दो बड़े डकैतों के मारे जाने के बाद कुछ दिनों तक पाठा के जंगलों में शांति रही. ठोकिया के मारे जाने के बाद गैंग की कमान सुंदर पटेल उर्फ रागिया ने संभाली. रागिया गैंग के दो मुख्य सदस्य स्वदेश पटेल उर्फ बलखड़िया और राम सिंह गौड़ थे. इन दो साथियों की बदौलत रागिया ने यूपी और एमपी पुलिस को खासा परेशान किया. दोनों राज्यों की पुलिस ने इसपर इनाम घोषित कर दिया और विशेष टीमें लगा दी गईं. 25 दिसंबर, 2011 को मध्य प्रदेश पुलिस ने जिला सतना के थाना धारजुड़ी के मारकुंडी जंगल में मुठभेड़ के बाद रागिया को मार गिराया था.

मैदानी इलाकों में भी रही डकैतों की दहशत

बुंदेलखंड के पहाड़ी जंगलों के साथ ही यमुना नदी के किनारे के मैदानी क्षेत्र में बसा मऊ, पहाड़ी और राजापुर गांव वाला 'तिरहा' इलाका भी डकैतों की पनाहगाह बना. इस मैदानी इलाके में शंकर केवट, बिचैली केवट और घनश्याम केवट उर्फ नान केवट की दहशत थी. 22 मई, 2008 को शंकर केवट, इसके अगले वर्ष बिचैली और 18 जून, 2009 को करीब तीन दिन तक चली पुलिस मुठभेड़ में घनश्याम केवट को पुलिस ने मार गिराया और मैदानी इलाके में डकैतों की दहशत में कमी आ गई. पाठा के जंगलों में आतंक फैलाने वाला रागिया भी 25 दिसंबर, 2011 को पुलिस की गोलियों का शिकार हो गया.

जब आमने-सामने आ गए दो डकैत गिरोह

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डकैतों में भी आपसी वर्चस्व को लेकर लड़ाई होती रहती है.


रागिया की मौत के छह महीने बाद 12 मई, 2012 को चित्रकूट के गांव जमुनहाई की महिला प्रधान रामकली के दो देवरों की हत्या और इसके एक हफ्ते बाद बसपा नेता विजय पाल की हत्या कर डाकुओं ने नए आतंकी साम्राज्य की नींव डाल दी थी. रागिया के सिपहसालार रहे स्वदेश पटेल उर्फ बलखड़िया और राम सिंह गौड़ पाठा के जंगलों में आतंक का पर्याय बने. बुंदेलखंड के बीहड़ों में एकछत्र बादशाहत की इच्छा ने दोनों डकैतों बलखड़िया और राम सिंह गौड़ को भी आमने-सामने ला दिया.
बांदा के बदौसा क्षेत्र के कोल्हुवा के जंगल में 14 मार्च, 2013 की रात गैंगवार में बलखड़िया ने राम सिंह गौड़ की हत्या कर दी. हालांकि दो साल के अंदर ही चित्रकूट के किहुनिया गांव में पुलिस के साथ एक मुठभेड़ में 2 जुलाई, 2015 को बलखड़िया मारा गया. उसके मारे जाने के बाद इलाके में थोड़ी सी शांति थी, लेकिन ललित पटेल गिरोह की ओर से तीन लोगों को जिंदा जला दिए जाने के बाद इलाके के लोगों को दहशत में ला दिया है.

क्यों नहीं खत्म हो रहे डकैत

हथियारों की उपलब्धता

बुंदेलखंड में डकैती विरोधी अभियान से जुड़े पुलिस अधिकारी के मुताबिक डकैत सारे हथियार एक साथ लेकर नहीं चलते. जब भी कोई बड़ा डकैत मारा गया, हथियारों का जखीरा बरामद नहीं हुआ. बाद में गैंग के जिस सदस्य ने हथियारों पर कब्जा जमाया, वही मुखिया बन गया. यही वजह है कि एक के मरने के बाद दूसरे डकैत सामने आ रहे हैं. इन डकैतों के पास कितने हथियार हैं, इसकी जानकारी पुलिस को भी नहीं है. बबुली कोल से मुठभेड़ कर चुके एक थानाध्यक्ष बताते हैं कि डकैतों की राइफलें 400 मीटर तक मार करती हैं. इससे पता चलता है कि ये सेमी ऑटोमैटिक राइफलों का इस्तेमाल कर रहे हैं. एसटीएफ को पुलिस और पीएसी के प्रतिबंधित बोर के कारतूसों और खोखों की सप्लाई डकैतों को होने की जानकारी मिली है.

पुलिस पर भारी डकैत

चित्रकूट और बांदा में डकैतों से निपटने के लिए एंटी डकैती सेल, स्पेशल टास्क फोर्स, क्राइम ब्रांच और सर्विलांस की चार टीमें लगी हैं, लेकिन हाथ कुछ नहीं आ रहा. एंटी डकैती सेल में तैनात एक अधिकारी के मुताबिक सबसे बड़ी समस्या मुखबिरों को लेकर है. ज्यादातर मुखबिर डकैतों का निशाना बन चुके हैं. एंटी डकैती सेल में तैनात एक सिपाही ने बताया कि पुलिसवालों को मिली बुलेट प्रूफ जैकट का वजन 25 से 30 किलो है जिसे ज्यादा देर तक नहीं पहना जा सकता।

इलाके की उपेक्षा

डकैतों के पनपने को लेकर बुंदेलखंड और खासकर चित्रकूट और बांदा से लगे बीहड़ इलाकों की उपेक्षा भी जिम्मेदार है. चित्रकूट यूपी के सबसे पिछड़े जिलों में शुमार है. डकैतों से प्रभावित इलाकों में तो स्थिति और भी बदतर है. मानिकपुर में रहने वाले समाजसेवी सुधीर सोनकर के मुताबिक गांवों के युवा मुखबिर के तौर पर डकैतों से जुड़ते हैं और बाद में गैंग में शामिल हो जाते हैं.

माननीयों की मेहरबानी

पिछले महीने चित्रकूट आए प्रदेश के परिवहन मंत्री स्वतंत्र देव सिंह ने डकैतों के बारे में कहा था कि ये घर के कुछ बिगड़ैल बच्चे हैं, जो राह भटक गए हैं. उन्हें सही रास्ते पर लाने की जरूरत है.
चित्रकूट के मानिकपुर के नागर गांव में 13 जून की रात इनामी डाकू बबुली कोल गैंग की मौजूदगी की सूचना के बाद पुलिस की तीन टीमों ने घेराबंदी की थी, लेकिन गैंग को बचाने के लिए ग्रामीणों ने पुलिस पर पथराव किया और डाकू भाग गए. पुलिस ने नागर गांव की प्रधान चुन्नी देवी के पति और कुछ लोगों को डकैतों को संरक्षण देने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया. इससे नाराज बांदा-चित्रकूट से बीजेपी सांसद भैरों प्रसाद मिश्र की एसपी प्रताप गोपेंद्र सिंह से नोकझोंक भी हो गई. बीजेपी सांसद के दबाव में मानिकपुर थानाध्यक्ष का निलंबन और सीओ का ट्रांसफर कर दिया गया. सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सागर दीक्षित बताते हैं कि डकैतों ने समर्थक नेताओं के लिए बीहड़ से फरमान जारी किया. हुक्मउदूली करना जान का खतरा मोल लेने जैसा था. इसी प्रभाव के कारण आतंक का पर्याय रहा डाकू ददुआ 'किंग मेकर' कहलाता था.

अब भी सिरदर्द हैं ये सरगना

बबुली कोल, 30 वर्ष

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बबुली कोल चित्रकूट के गांव डोडामाफी के मजरा सोसायटी कोलान का रहने वाला है. इसपर यूपी सरकार ने 5 लाख रुपये और मध्य प्रदेश सरकार ने 30,000 रुपये का इनाम रखा है. डाकू बलखड़िया के मरने के बाद बबुली ने गैंग की कमान संभाली. इसकी टीम में 18 सदस्य हैं. कई राज्यों में वॉन्टेड 60,000 रुपये का इनामी लवलेश कोल और 22,000 रुपये का इनामी राजोला चौधरी गैंग के मुख्य सदस्य हैं. यह चित्रकूट जिले के थाना कर्वी, मारकुंडी, मानिकपुर और थाना बहिलपुरवा समेत कई इलाकों में सक्रिय है.

ललित पटेल, उर्फ सत्यनारायण उर्फ जोकर पटेल (40 वर्ष)

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ललित पटेल पैदा तो कर्वी में हुआ था, लेकिन फिलहाल वह मध्य प्रदेश के सतना जिले के पौसलहा नया गांव में रह रहा है. यह पहले मारे जा चुके डकैत ठोकिया की मौसी का लड़का है. ठोकिया के मारे जाने के बाद ललित ने अपना गैंग बनाया जो पिछले तीन साल से यूपी के चित्रकूट और सतना जिलों के सीमावर्ती इलाकों में सक्रिय है. इस गैंग में 12 से अधिक सदस्य हैं. नत्थू नवासी और राजा नवासी ललित पटेल गैंग के मुख्य सदस्य हैं. ललित पटेल पर 50,000 रुपये का इनाम है.

गौरी यादव, उर्फ उदयभान यादव (42 वर्ष)

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यह मूलतः मध्य प्रदेश के सतना जिले का है. वर्ष 2005 में गौरी यादव ने गैंग बनाकर पाठा के जंगलों में वारदात शुरू कीं. वर्ष 2009 में बांदा पुलिस ने गिरफ्तार किया लेकिन दो साल बाद जमानत पर बाहर आकर फरार हो गया. मई, 2013 में गौरी ने बलिपुरवा गांव में दिल्ली से एक मामले की जांच करने आए दरोगा भगवान शर्मा की हत्या कर दी और इसी के साथ उसने अपहरण और वसूली का सिलसिला भी शुरू कर दिया. 50,000 रुपये के इनामी गौरी यादव के लोग पिछले कुछ दिनों से शांत हैं.

कैसे काम करता है नेटवर्क

ठिकाना

डकैत पहाड़ियों पर ऐसी जगह ठिकाना बनाते हैं जहां से आने-जाने वालों पर नजर रख सकें. वे ठिकाना बदलते रहते हैं.

सदस्य

गिरोह में आकस्मिक और हार्डकोर दो तरह के सदस्य होते हैं. आकस्मिक कुछ समय के लिए शामिल होते हैं. हार्डकोर पुराने अपराधी होते हैं.

पहचान

दस्यु गैंग का सरगना और हार्डकोर सदस्य पहचान छिपाए रहते हैं. पुलिस के आने पर आकस्मिक सदस्यों को ही आगे कर बाकी भाग निकलते हैं.

मदद

जंगलों में मौजूद गांव ही इनकी पनाहगाह होते हैं, जहां से उन्हें राशन मुहैया होता है. बदले में डकैत इन्हें आर्थिक मदद और सुरक्षा देते हैं.

अपराध

डकैत तेंदूपत्ता तोड़ने, खनन और सरकारी निर्माणकार्यों में कमिशन से पैसे जुटाते हैं. खौफ पैदा करने के लिए अपहरण और हत्या भी करते हैं.

मुखबिर

गांव वाले ही डकैतों के मुखबिर होते हैं. जब मुखबिर धोखा दे देता है, तो वे उनकी हत्या कर देते हैं और ऐसा करके वे गांववालों में दहशत फैलाते हैं। कुछ पुलिसवाले भी मुखबिरी करते हैं.

हथियार

ज्यादातर सेमी ऑटोमैटिक हथियारों का इस्तेमाल करते हैं. एक गिरोह के पास तीन से चार शार्पशूटर मौजूद होते हैं. मुठभेड़ः हर गिरोह का अपना इलाका होता है. ज्यादातर एक-दूसरे के इलाके में अतिक्रमण नहीं करते. ये लोग पुलिस मुठभेड़ से बचने की कोशिश भी करते हैं.


इस ख़बर का इनपुट इंडिया टुडे से लिया गया है.




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