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राहुल गांधी के 'कन्हैया और राजेश' प्लान की इनसाइड स्टोरी, जो RJD को 'नाराज' कर गया

18 मार्च की देर रात Bihar Congress के अध्यक्ष पद से Akhilesh Prasad Singh की छुट्टी हो गई. और उनकी जगह औरंगाबाद के कुटुंबा से विधायक राजेश कुमार को पार्टी की कमान मिली है. इसके कई कारण हैं जिसे सिलसिलेवार ढंग से समझते हैं.

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राजेश कुमार को बिहार कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है. (एक्स)

30 नवंबर 2024. 10 तालकटोरा रोड, दिल्ली. बिहार कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष अखिलेश प्रसाद सिंह (Akhilesh Prasad Singh) का आवास. एक निजी बातचीत. बातचीत में उनके बेटे के चुनाव लड़ने का जिक्र आया. इस पर उन्होंने काफी जोर देकर कहा, लालूजी के कहने पर ही मैंने अपने बेटे को लोकसभा चुनाव लड़वाया. मकसद लालू यादव (Lalu Yadav) से अपनी नजदीकी बयां करना था. लालू यादव से नजदीकियां अब उनको भारी पड़ी है. प्रदेश अध्यक्ष के पद से उनकी विदाई हो गई है.

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18 मार्च की देर रात कांग्रेस के अध्यक्ष पद से अखिलेश प्रसाद सिंह की छुट्टी हो गई. और उनकी जगह औरंगाबाद के कुटुंबा से विधायक राजेश कुमार को पार्टी की कमान मिली है. इसके कई कारण हैं जिसे सिलसिलेवार ढंग से समझते हैं. 

कृष्णा अल्लावरु से तालमेल नहीं बिठा पा रहे थे अखिलेश

नए प्रदेश प्रभारी कृष्णा अल्लावरु की नियुक्ति से अखिलेश प्रसाद असहज थे. उनको जानकारी दिए बिना ही 10 मार्च को कांग्रेस के पटना स्थित ऑफिस सदाकत आश्रम में अल्लावरु ने कन्हैया कुमार के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंंस की. यहां ‘नौकरी दो, पलायन रोको’ यात्रा की जानकारी दी.

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दरअसल अखिलेश प्रसाद नहीं चाहते थे कि कन्हैया बिहार में एक्टिव हों. लेकिन उनके न चाहते हुए भी कन्हैया न सिर्फ बिहार आए बल्कि अब कांग्रेस के फेस के तौर पर उनकी ब्रांडिंग भी की जा रही है. 16 मार्च को मोतिहारी के भितिहरवा से कन्हैया की यात्रा शुरू हुई. यात्रा के पहले दिन से ही अखिलेश प्रसाद उनसे दूरी बनाते दिखे. यही नहीं उन्होंने कन्हैया को इस यात्रा का चेहरा मानने से भी इनकार कर दिया.

लालू यादव से वफादारी कांग्रेस को भारी पड़ रही थी!

अखिलेश प्रसाद सिंह कांग्रेस जॉइन करने से पहले राजद में थे. साल 2004 में लालू यादव ने उन्हें केंद्रीय मंत्री भी बनवाया था. इसके चलते उन पर कांग्रेस में रहते लालू यादव के लिए काम करने का आरोप लगता रहा. 23 अक्टूबर 2024 को कांग्रेस द्वारा आयोजित श्रीकृष्ण सिंह जयंती पर लालू यादव ने उनके साथ करीबी रिश्तों का इजहार भी किया था. लालू यादव ने बताया कि उन्होंने ही सोनिया गांधी को फोन कर अखिलेश प्रसाद को राज्यसभा भेजने के लिए मनाया.

अखिलेश प्रसाद और लालू यादव की जुगलबंदी का नुकसान कांग्रेस पार्टी को उठाना पड़ रहा था. आरोप लगे कि कांग्रेस लालू यादव की पॉकेट की पार्टी बन कर रह गई है. 2024 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के कैंडिडेट सेलेक्शन में भी लालू यादव की चली. इंडिया टुडे से जुड़े पुष्यमित्र ने एक फेसबुक पोस्ट में लिखा,

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 अखिलेश प्रसाद के हटाए जाने की खबर के बाद सदाकत आश्रम में जश्न का माहौल था. कई लोगों ने सोशल मीडिया पर लिखा कि कांग्रेस बंधन मुक्त हुआ. शायद इसका आशय लालू परिवार और राजद के दबाव से मुक्ति की तरफ है. 

कांग्रेस के कार्यकर्ताओं की नाराजगी अखिलेश प्रसाद की कार्यशैली से भी थी. उन पर पार्टी में मनमाने ढंग से फैसले लेने के आरोप भी लगे. प्रसाद साल 2022 से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे लेकिन फिर भी पार्टी में प्रदेश कार्यकारिणी का गठन नहीं हो सका. दैनिक भास्कर से जुड़े शंभूनाथ बताते हैं, 

बिहार में एक ऐसा तबका है जो न तो लालू यादव के साथ जाना चाहता है. और न  ही उसे NDA का साथ पसंद है. कांग्रेस उन लोगों को मैसेज देने की कोशिश में है कि वह अब अपनी राजनीति खुद करेगी किसी के इशारे पर नहीं.

पुराने वोट बैंक के रिवाइवल की कोशिश

कांग्रेस बिहार में खुद के रिवाइवल के लिए अपने पुराने वोट बैंक को साथ लाने की कवायद में जुटी है. एक समय दलित-सवर्ण और मुस्लिम बिहार में उसके वोटबैंक हुआ करते थे. इसके अलावा राहुल गांधी लगातार जातिगत जनसंख्या को लेकर मुखर हैं. जिसकी जितनी संख्या भारी उसकी उतनी हिस्सेदारी की बात कर रहे हैं. संविधान रैली के जरिए दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक अधिकारों को खतरे में बता रहे हैं. 5 मार्च को उन्होंने पूर्व कांग्रेस नेता जगलाल चौधरी की जयंती पर दलित समागम किया था. जगलाल चौधरी पासी समुदाय से आते थे. 

ऐसे में बिहार में सवर्ण (भूमिहार) अध्यक्ष उनके एजेंडे को सूट नहीं कर रहा था. सोशल इंजीनियरिंग को साधने के लिए कांग्रेस ने एक दलित समुदाय से आने वाले नेता को कमान सौंपी है. वहीं भूमिहार जाति से आने वाले कन्हैया को चेहरा बनाने की कोशिश है. जबकि कुछ दिन पहले कदवां से विधायक शकील अहमद खान को पार्टी ने विधायक दल का नेता बनाया था. इनके सहारे कांग्रेस ने दलित-सवर्ण और मुस्लिम गठजोड़ वाला बॉक्स टिक करने की कोशिश की है.

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दलित वोटों को साधने की कवायद

बिहार सरकार की जातीय सर्वेक्षण के मुताबिक, बिहार में अनुसूचित जातियों की आबादी लगभग 20 फीसदी है. जिसमें दुसाध जाति की संख्या पांच फीसदी के आसपास है. जिनका नेतृत्व चिराग पासवान के हाथों में है. वहीं मुसहर समुदाय की आबादी लगभग 3 फीसदी है. जीतन राम मांझी इनकी सदारत का दावा करते हैं. दलितों में दुसाध के बाद चमार समुदाय की आबादी सबसे ज्यादा है. 

इनकी संख्या भी लगभग पांच फीसदी है. इनका प्रतिनिधित्व अलग-अलग दलों में है. लेकिन कोई स्वतंत्र नेता या नेतृत्व विकसित नहीं हो पाया है. राजेश कुमार इसी समुदाय से आते हैं. चिराग पासवान हो या जीतन राम मांझी अपनी जाति में तो इनकी पैठ है लेकिन पूरे दलित समूह के सर्वमान्य नेता नहीं बन पाए हैं. दलित वोट अब भी बिखरा हुआ है. राहुल गांधी की कमिटमेंट और राजेश कुमार के सहारे कांग्रेस की कवायद दलित वोटों को अपनी छतरी तले लाने की है.

नया नेतृत्व तैयार करने की कोशिश 

बिहार कांग्रेस इस समय लीडरशिप क्राइसिस से जूझ रही है. कांग्रेस के पास कोई ऐसा चेहरा नहीं है जिसकी पैन बिहार स्वीकार्यता हो. पार्टी के अधिकतर बड़े चेहरे पार्टी छोड़ चुके हैं या फिर रिटायर हो गए हैं. इनमें अशोक चौधरी, महबूब अली कैसर, अनिल शर्मा और सदानंद सिंह जैसे तमाम नाम शामिल हैं. मदन मोहन झा, तारिक अनवर और शकील अहमद खान जैसे सीनियर नेता बचे भी हैं लेकिन उनमें पार्टी को आगे ले जाने का माद्दा नहीं दिखता. ऐसे में पार्टी ने नई लीडरशिप ग्रूम करने की कोशिश की है. राजनीति के लिहाज से राजेश खुद भी युवा हैं. वहीं कन्हैया की बिहार में सक्रियता भी इसी प्रोजेक्ट का हिस्सा है. कयास तो ये भी हैं कि आने वाले दिनों में पप्पू यादव भी कांग्रेस के कार्यक्रमों में सक्रिय दिखें. 

नए प्रदेश अध्यक्ष राजेश राम कौन हैं?

बिहार के नए कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश कुमार दो बार से औरंगाबाद की कुटुंबा विधानसभा सीट से विधायक हैं. और औरंगाबाद के ही ओबरा प्रखंड के रहने वाले हैं. राजेश चमार जाति से आते हैं.जोकि अनुसूचित जाति समूह में आती है. राजेश कुमार के पिता दिलकेश्वर राम भी राजनीति में रहे हैं. वे दो बार देव सीट से कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए थे. और मंत्री भी बने थे. राजेश कुमार फिलहाल विधानसभा में कांग्रेस पार्टी के चीफ व्हिप हैं. 

वीडियो: बिहार चुनाव के बाद नीतीश कुमार के साथ क्या करेगी बीजेपी? पप्पू यादव ने बताया है

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