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जजों को सताता है '55' का खतरा? लीगल एक्सपर्ट ने बताया क्यों अचानक रिटायर कर दिए जाते हैं माय लॉर्ड?

प्रशांत और चित्राक्षी ने मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया कि साल 2009 से 2024 के बीच पांच हाई कोर्ट में "मास फायरिंग" के कई मामले सामने आए. एक साथ 12 जजों को रिटायर करने के आदेश जारी किए गए. लगभग 100 जज इस प्रक्रिया का शिकार हुए.

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लीगल एक्सपर्ट्स प्रशांत रेड्डी और चित्राक्षी.

हाल में लल्लनटॉप के शो ‘किताबवाला’ में लीगल एक्सपर्ट्स प्रशांत रेड्डी और चित्राक्षी आए. उन्होंने अपनी किताब ‘तारीख पर जस्टिस’ पर बात की. इस दौरान उन्होंने भारत की न्यायिक व्यवस्था की कई समस्याओं को लेकर अहम जानकारियां दीं और सवाल खड़े किए.

बातचीत के दौरान प्रशांत और चित्राक्षी ने कंपलसरी रिटायरमेंट के जरिये जजों की मास-फायरिंग की समस्या पर बात की. उन्होंने बताया,

“जब कोई जज 55 या 58 वर्ष की उम्र तक पहुंच जाता है, तब उसका मैंडेटरी रिव्यू होता है. इस दौरान उनके पूरे कार्यकाल का मूल्यांकन किया जाता है. यदि किसी सीनियर जज ने उनके खिलाफ एडवर्स एंट्री (नकारात्मक टिप्पणी) की हो तो उन्हें रिटायर कर दिया जाता है. यह प्रक्रिया पूरी तरह से गोपनीय होती है और आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए जाते हैं.”

उन्होंने मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया,

“साल 2009 से 2024 के बीच पांच हाई कोर्ट में ‘मास फायरिंग’ के कई मामले सामने आए. एक साथ 12 जजों को रिटायर करने के आदेश जारी किए गए. लगभग 100 जज इस प्रक्रिया का शिकार हुए."

इस समस्या पर जजों की एसोसिएशन की भूमिका पर उन्होंने बताया, “ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन ने इस मुद्दे पर कभी कोई आवाज नहीं उठाई. केवल गुजरात में साल 2016- 17 में कुछ जजों ने इस प्रथा को चुनौती दी थी, लेकिन वे केस हार गए. जज एसोसिएशन आमतौर पर केवल वेतन वृद्धि और आवास जैसे मुद्दों पर ही आवाज उठाते हैं.”

बातचीत के दौरान प्रशांत और चित्राक्षी ने डिस्ट्रिक्ट जज असेसमेंट करने वाली प्रक्रिया, 'यूनिट सिस्टम' पर बात की. उन्होंने बताया,

"यूनिट सिस्टम के मुताबिक, जजों को केस को निपटाने पर एक निश्चित संख्या में "यूनिट्स" मिलती हैं. लेकिन यह यूनिट सभी मामलों के लिए समान नहीं होती है. जटिल ट्रायल केस के लिए ज्यादा यूनिट दिए जाते हैं. वहीं छोटे केस में कम यूनिट्स मिलते हैं. हर तिमाही में जज को इन यूनिट्स का एक निश्चित टारगेट पूरा करना होता है. इसी से उनका परफॉर्मेंस असेसमेंट किया जाता है."

चित्राक्षी ने इस सिस्टम की खामियों को लेकर कई गंभीर चिंताएं जताईं. उन्होंने बताया,

“इस असेसमेंट को आसानी से ‘गेम’ किया जा सकता है. उदाहरण के लिए टार्गेट को पूरा करने के लिए जज, जटिल मामलों की बजाय छोटे-छोटे और सरल केसों को प्राथमिकता देते हैं. इससे यूनिट्स के टारगेट तो पूरे हो जाते हैं लेकिन जटिल मामले लंबित रह जाते हैं. इसलिए देश भर में जटिल मामलों का बैकलॉग बढ़ता जा रहा है.” 

चित्राक्षी ने बताया कि अगर जजों को जटिल मामलों को निपटाने के लिए कोई स्पेशल इंसेंटिव दिए जाएं, तो वे बिना किसी दवाब के ऐसे मामलों को भी उतनी ही तरजीह देंगे.

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