कट टू
दिसंबर, 2013. एक कानून बना. लोकपाल और लोकायुक्त कानून. केंद्र में जो काम लोकपाल का होता है, वही राज्य में लोकायुक्त करते हैं. यहां हम लोकपाल की ही बात करेंगे. पहले ये कि अभी ये बात क्यों कर रहे हैं. उसके बाद लोकपाल के बैकग्राउंड, उसके स्ट्रक्चर वगैरह पर चर्चा करेंगे.
अभी चर्चा क्यों?
मार्च, 2019 में देश के पहले लोकपाल बने: पिनाकी चंद्र घोष. सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस. 23 मार्च, 2019 को उन्हें राष्ट्रपति ने शपथ दिलाई थी. लेकिन एक साल तक मामला 'ठन-ठन गोपाल' वाला ही रहा. शिकायतें दर्ज करवाने को लेकर कोई तय फॉर्मेट नहीं था. अब करीब 11 महीने बाद सरकार ने शिकायत दर्ज कराने को लेकर नियम जारी किए हैं. मिनिस्ट्री ऑफ पर्सनल, पब्लिक ग्रीवांसेज एंड पेंशंस ने 2 मार्च को इसे लेकर नोटिफिकेशन जारी किया है.

पिनाकी घोष सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस रह चुके हैं. फोटो: विकीमीडिया
क्या हैं शिकायत के नियम
- ऐक्ट के सेक्शन 14 का सब-सेक्शन 1 (a) कहता है कि पब्लिक सर्वेंट के ख़िलाफ़ शिकायतों पर फुल बेंच फैसला लेगी कि ये शिकायत लेनी है या नहीं.
- सेक्शन 14 (1) (ii) के मुताबिक, पूछताछ कैमरे की निगरानी में होगी. अगर लोकपाल को लगता है कि शिकायत खारिज करने लायक है, तो पूछताछ के रिकॉर्ड न ही प्रकाशित करवाए जाएंगे और न ही किसी को उपलब्ध कराए जाएंगे.
- अगर मौजूदा प्रधानमंत्री या पूर्व प्रधानमंत्री के खिलाफ शिकायत होती है, तो फुल बेंच तय करेगी कि इस पर सुनवाई शुरू हो या नहीं. किसी केंद्रीय मंत्री या सांसद के खिलाफ शिकायत पर तीन सदस्यों की समिति फैसला करेगी कि शिकायत लेनी है या नहीं.
- जांच पूरी होने तक लोकपाल को शिकायत करने वाले की आइडेंटिटी को सुरक्षित रखना होगा, जब तक शिकायतकर्ता खुद किसी संबंधित अथॉरिटी को अपनी आइडेंटिटी नहीं बता देता.
- नियमों में ये भी बताया गया है कि अगर शिकायत अवैध, अस्पष्ट, ओछी है, तो उसे ख़ारिज किया जा सकता है. अगर शिकायत किसी पब्लिक सर्वेंट के ख़िलाफ़ नहीं है, तो भी शिकायत ख़ारिज हो सकती है. इसके अलावा अगर उस पर किसी कोर्ट, ट्रिब्यूनल, अथॉरिटी में मामला पेंडिंग है, तब भी शिकायत ख़ारिज हो सकती है.

कार्मिक मंत्रालय की तरफ से शिकायतों करने के नियम जारी किए गए हैं. फोटो: Ministry website
- अगर किसी भ्रष्टाचार के बारे में शिकायत की जा रही हो, तो वो भ्रष्टाचार सात साल के पीरियड में होना चाहिए.
- शिकायत के लिए हलफनामे के साथ गैर ज्यूडिशियल स्टैम्प पेपर भी देना होगा. किसी को फंसाने की नीयत से गलत शिकायत करना दंडनीय अपराध होगा और इसके लिए एक साल तक की कैद और एक लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है.
- शिकायत के साथ अपना आईडी प्रूफ भी देना होगा. अगर कोई ऑर्गनाइजेशन, कॉर्पोरेशन, कंपनी या ट्रस्ट शिकायत करते हैं, तो उसे अपना रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट भी शिकायत के साथ देना होगा.
- शिकायत व्यक्तिगत रूप से, डाक से या इलेक्ट्रॉनिक तरीके से की जा सकती है. इलेक्ट्रॉनिक रूप से शिकायत साधारण अंग्रेजी में की जा सकती है. इलेक्ट्रॉनिक रूप से शिकायत करने पर 15 दिनों के अंदर उसकी हार्ड कॉपी भी जमा करनी होगी.
- इसके अलावा शिकायत के लिए हिंदी, गुजराती, असमी, मराठी समेत आठवीं अनुसूची में शामिल 22 भाषाओं में से कोई भी भाषा इस्तेमाल की जा सकती है.
- आर्मी ऐक्ट, नेवी ऐक्ट, एयर फोर्स ऐक्ट और कोस्ट गार्ड ऐक्ट के तहत पब्लिक सर्वेंट के ख़िलाफ़ शिकायत नहीं की जा सकती.
लोकपाल का बैकग्राउंड
- लोकपाल एक एंटी करप्शन संवैधानिक संस्था है. इसे ऐक्ट के तहत बनाया गया है. इस संस्था के अध्यक्ष को बोलचाल में लोकपाल ही कहा जाता है.
- लोकपाल बिल (जो कि अब ऐक्ट बन चुका है) की मांग पुरानी थी. 1960 के दशक से इसकी मांग उठ रही थी. 1963 में पहली बार ये विचार संसद में आया. तब कानून मंत्रालय के बजट आवंटन पर चर्चा हो रही थी.
- 'लोकपाल' शब्द सासंद लक्ष्मीमल्ल सिंघवी ने दिया था. इसके लिए अंग्रेजी शब्द इस्तेमाल होता है. Ombudsman. ये कॉन्सेप्ट स्वीडन से लिया गया है. 1809 में ये संस्था बनाई गई थी. Ombudsman दुनियाभर में नागरिक शिकायतों की सबसे पुरानी लोकतांत्रिक संस्था है.
- 1966 में पहला प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) बना था. इसने पब्लिक सर्वेंट के करप्शन को लेकर दो स्वतंत्र अथॉरिटी की सिफारिश की. एक केंद्र के लिए और एक राज्य के लिए.
- 1968 में संसद में पहली बार लोकपाल बिल लाया गया. लेकिन पास नहीं हुआ. 2011 तक इसे पास करने के 11 प्रयास हुए, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.
- 2002 में संवैधानिक समीक्षा आयोग (कॉन्सटीट्यूशन रिव्यू कमीशन) के प्रमुख एमएन वेंकटचेलैया ने लोकपाल और लोकायुक्तों की नियुक्ति की सिफारिश की, लेकिन उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को इस दायरे से बाहर रखा जाए.
- 2005 में दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग ने कहा कि बगैर देर किए लोकपाल की नियुक्ति होनी चाहिए.
- 2013 में संसद में लोकपाल बिल पास होकर ऐक्ट बना. 2016 में इस ऐक्ट में बदलाव के लिए लोकसभा सहमत हुई.
- 27 अप्रैल, 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने हड़काया कि लोकपाल की नियुक्ति में देरी हो रही है.
- कई राज्यों में लोकपाल की तरह लोकायुक्त मौजूद हैं, जबकि कई राज्यों में नहीं हैं. उन्हें दी गई शक्तियां अभी पर्याप्त नहीं हैं.
कौन लोकपाल नियुक्त करता है?
इसके लिए पांच लोगों की एक कमिटी होती है:
प्रधानमंत्री
लोकसभा स्पीकर
लोकसभा में विपक्ष का नेता
भारत के चीफ जस्टिस या उनकी तरफ से नॉमिनेट किया गया हाईकोर्ट का कार्यरत जस्टिस होते हैं
कोई प्रतिष्ठित न्यायवेत्ता, जिसे चार सदस्यों की सिफारिश पर राष्ट्रपति ने नॉमिनेट किया हो.
लोकपाल बनने के लिए क्या शर्तें होनी चाहिए
सुप्रीम कोर्ट का पूर्व चीफ जस्टिस या जस्टिस, जिसके पास इंटीग्रिटी (सत्यनिष्ठा) हो.
भ्रष्टाचार विरोधी नीति, सार्वजनिक प्रशासन, सतर्कता, बीमा और बैंकिंग, कानून और प्रबंधन जैसे मामलों में कम से कम 25 सालों का अनुभव या ज्ञान हो
कम से कम 45 साल उम्र हो
उसकी टीम में कौन लोग होंगे.
लोकपाल की टीम में कौन होंगे
लोकपाल की बेंच में लोकपाल के अलावा अधिकतम आठ सदस्य होंगे, जिसमें 50 फीसदी ज्युडिशियरी से जुड़े रहे होंगे. इनमें सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज या हाईकोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस हो सकते हैं.
आधे लोग नॉन ज्यूडिशियरी फील्ड से होंगे, लेकिन उन्हें भी भ्रष्टाचार विरोधी नीति, सार्वजनिक प्रशासन, सतर्कता, बीमा और बैंकिंग, कानून और प्रबंधन जैसे मामलों में कम से कम 25 साल का अनुभव या ज्ञान हो
50 फीसदी सदस्य अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी, अल्पसंख्यक और स्त्रियों के बीच से होंगे.
प्रशासनिक सुधार आयोग के मुताबिक, लोकपाल और लोकायुक्त:
- वे स्वतंत्र और निष्पक्षता दिखाएंगे. - उनकी जांच और कार्रवाई गुप्त रूप से होगी. - उनकी नियुक्ति जहां तक संभव हो, गैर-राजनीतिक हो. - उनका स्तर देश में उच्चतम न्यायिक अथॉरिटी के बराबर होगा. - वे अपने विवेक के हिसाब से अन्याय, भ्रष्टाचार और पक्षपात से संबंधित मामलों को देखेंगे.
- उनकी कार्रवाई में न्यायिक दखलअंदाजी नहीं होगी.
लोकपाल के काम और ताकत
- लोकपाल के क्षेत्राधिकार में प्रधानमंत्री, मंत्री, सांसद, ग्रेड A, B, C, D अफसर आते हैं. इसके अलावा लोकपाल किसी बोर्ड, कॉरपोरेशन, सोसायटी, ट्रस्ट या स्वायत्त संस्था के चेयरपर्सन, सदस्य, अफसरों और डायरेक्टर्स की भी जांच कर सकता है.
- ज्युडिशियरी को इससे बाहर रखा गया है, जबकि स्वीडन में ज्युडिशियरी ओमबुड्समैन के तहत आती है.
- प्रधानमंत्री के ख़िलाफ आरोप के निपटारे के लिए विशेष प्रक्रिया अपनाई जाएगी. प्रधानमंत्री लोकपाल के दायरे में है, लेकिन बहुत सारे विषयों में वे लोकपाल से परे हैं. अगर इंटरनेशनल रिलेशन, इंटरनल सिक्योरिटी, पब्लिक ऑर्डर, एटॉमिक एनर्जी और स्पेस से जुड़े मामले हैं, तो फुल बेंच इस पर फैसला लेगी और दो-तिहाई बहुमत से उसे पास होना चाहिए.
- अगर कोई सोसायटी, ट्रस्ट या संस्था को 10 लाख रुपए से ऊपर का विदेशी पैसा मिलता है.
- प्रक्रिया के दौरान अधिकारियों की तरफ से भ्रष्ट तरीके से कमाई गई संपत्ति को जब्त करने का अधिकार.
- मामले के निपटारे के लिए एक साल की समय-सीमा तय की गई. विशेष परिस्थितियों में इसे एक और साल के लिए बढ़ाया जा सकता है.
- मुकदमे विशेष अदालत में चलाए जाएंगे.
- लोकपाल शुरुआती पूछताछ अपनी विंग के पास भेज सकता है. अगर पहली नज़र में उसे लगे, तो मामला CBI, CVC जैसी किसी जांच एजेंसी को भी मामला भेजा जा सकता है.
- शुरुआती जांच शिकायत दायर होने के बाद करीब 90 दिनों के अंदर पूरी हो जानी चाहिए.
लोकपाल की कमियां
- किसी पब्लिक सर्वेंट के खिलाफ लोकपाल स्वत: संज्ञान नहीं ले सकता.
- शिकायत अगर सही साबित नहीं हुई, तो शिकायत करने वाले को सजा का प्रावधान है. इससे कई लोग शिकायत नहीं करते हैं.
- अनाम शिकायत की व्यवस्था नहीं है. मतलब कोई चुपचाप किसी पब्लिक सर्वेंट के ख़िलाफ़ शिकायत करना चाहे, तो दिक्कत होगी.
- जिस सरकारी कर्मचारी के खिलाफ शिकायत की गई है, उसे सरकार की तरफ से कानूनी सहायता भी मिलती है.
- भ्रष्टाचार के बाद सात साल के भीतर शिकायत करने की कंडीशन.
जिस लोकपाल के लिए सालों आंदोलन हुआ आखिरकार वो मिलने वाला है