छत्तीसगढ़ में एक बिल पर राज्यपाल और भूपेश बघेल सरकार के बीच विवाद हो गया है. राज्यपाल अनुसूईया उइके (Governor Anusuiya Uikey) ने बिल साइन नहीं किए हैं. मामला है छत्तीसगढ़ में आरक्षण बिल से जुड़ा. नया आरक्षण बिल 1 दिसंबर को छत्तीसगढ़ विधानसभा में पास होने के बाद संवैधानिक मान्यता के लिए राज्यपाल के पास गया था. इस नए बिल में कुल 76 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है. अब राज्यपाल अनुसूईया उइके ने बिल पर साइन करने से मना करते हुए कहा है कि अगर ये मामला कोर्ट में गया तो सरकार 76 प्रतिशत आरक्षण का बचाव कैसे करेगी.
छत्तीसगढ़ सरकार के आरक्षण बिल पर राज्यपाल ने साइन करने से क्यों मना किया, पूरा मामला जानिए
आरक्षण को लेकर छत्तीसगढ़ में क्या विवाद चल रहा है?

राज्यपाल ने कहा कि इस बिल पर बिना सोचे समझे साइन करना ठीक नहीं है. उन्होंने कहा,
'हाल ही में हाईकोर्ट ने 2012 के विधेयक में 58 प्रतिशत आरक्षण के प्रावधान को अवैधानिक कर दिया था. इससे प्रदेश में असंतोष का वातावरण था. आदिवासियों का आरक्षण 32 से घटकर 20 प्रतिशत पर आ गया था. इसके बाद राज्य में इसका विरोध हुआ था. इस बिल को लेकर मैंने सीएम भूपेश बघेल को एक पत्र लिखकर कहा था कि अध्यादेश लाना हो तो अध्यादेश लाइए, विशेष सत्र बुलाना हो तो वह बुलाइए. लेकिन मेरे सामने ये सवाल है कि जब कोर्ट 58 प्रतिशत आरक्षण को अवैधानिक घोषित कर चुका है तो यह 76 प्रतिशत कैसे हो गया.'
अनुसूईया उइके ने कहा कि मैं साइन कर दूं, कल कोई कोर्ट चला गया तो क्या होगा. उन्होंने कहा कि SC, ST, OBC और जनरल वर्ग के संगठनों ने आवेदन देकर विधेयक की जांच करने की मांग की है. उन आवेदनों के बाद अब जांच हो रही है.
विवाद किस बात पर है?अब आते हैं कि विवाद किस बात का है. पहले नए बिल की बात. नए बिल में छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जनजाति के लिए 32 फीसदी आरक्षण, अनुसूचित जाति के लिए 13 फीसदी आरक्षण, ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण और EWS के लिए चार फीसदी रिजर्वेशन का प्रावधान किया गया है. जबकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि कहीं भी आरक्षण की लिमिट 50 फीसदी से ज्यादा नहीं हो सकती.
नए बिल को लाने के पीछ कारण ये है कि 19 सितंबर 2022 को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य के शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में 58% आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया था. तब हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश अरूप कुमार और न्यायमूर्ति पीपी साहू की पीठ ने आरक्षण की 58% सीमा को रद्द किया. पीठ ने कहा था कि आरक्षण की सीमा को 50% से अधिक नहीं बढ़ाया जा सकता.
असल में 58 फीसदी आरक्षण की ये व्यवस्था छत्तीसगढ़ में सन 2012 से थी. सीधे चलते हैं साल 2012 में. छत्तीसगढ़ में साल 2012 से पहले तक SC को 16, ST को 20 और OBC 14 प्रतिशत आरक्षण मिलता था. यानि 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था. तब राज्य में भाजपा के नेतृत्व वाली रमन सिंह सरकार थी. तब की सरकार ने 2012 में आरक्षण को बढ़ाकर 58% कर दिया. इस नए नियम के तहत SC को 16 प्रतिशत से घटाकर 12 प्रतिशत, ST को 20 से बढ़ाकर 32 प्रतिशत और OBC को पहले की ही तरह 14 प्रतिशत आरक्षण मिलना शुरू हो गया.
रमन सिंह सरकार के इस फैसले का काफी विरोध हुआ. फैसले को 2012 में ही छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट में चुनौती दी गई. एक दशक तक चले केस में 19 सितंबर 2022 को अदालत ने 58% आरक्षण के फैसले को असंवैधानिक बताकर नकार दिया. हालांकि, हाई कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि बढ़े आरक्षण के तहत जिन उम्मीदवारों को नियुक्तियां मिल गई हैं, वे बरकरार रहेंगी. लेकिन आगे आने वाली भर्तियों में कोर्ट के बताए नियमों के अनुसार ही नियुक्तियां की जाएंगी.
Chhattisgarh में बड़ी आदिवासी आबादी
बात ये है कि छत्तीसगढ़ के लिए आदिवासी आरक्षण एक बड़ा मुद्दा है. 2011 के जनगणना के आंकड़ों के हिसाब से छत्तीसगढ़ में 30.62 % आबादी अनसूचित जनजाति या आदिवासियों (ST) की थी. वहीं 12.82% आबादी SC की है. अब ऐसे में जब अगले साल ही राज्य में चुनाव होने हैं, तो BJP-कांग्रेस दोनों ही पार्टी इस मुद्दे पर सक्रिय दिख रही हैं.
Video: छत्तीसगढ़ में आदिवासी आरक्षण का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, क्या है पूरा मामला?