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अब्दुल कलाम सैटेलाइट मिशन के इंचार्ज थे तो सतीश धवन ने 'विफलता' की जिम्मेदारी क्यों ली थी?

तब कुछ ऐसा हुआ था कि पूरा रॉकेट सिस्टम ही बंगाल की खाड़ी में जा गिरा

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चंद्रयान 3 मिशन, सतीश धवन स्पेस सेंटर से ही लॉन्च किया गया है. धवन ने इसरो चीफ रहते हुए कलाम के एक मिशन के फेल होने पर जिम्मेदारी ली थी (फोटो सोर्स- wikimedia और X Congress)

भारत का Chandrayaan 3 मिशन ISRO चीफ एस. सोमनाथ की निगरानी में पूरा होने वाला है. जबकि इसरो के चंद्रयान-3 प्रोजेक्ट के डायरेक्टर हैं पी वीरामुथुवेल. वीरामुथुवेल और उनकी टीम की कड़ी मेहनत का नतीजा है कि अब तक चंद्रयान मिशन लैंडर विक्रम ठीक-सटीक रास्ते पर है. आगे भी सब ठीक रहा तो आज 23 अगस्त 2023 की शाम 6 बजकर 4 मिनट पर चंद्रयान का विक्रम लैंडर चांद की सतह पर उतरेगा.

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मिशन की सफलता का पहला श्रेय, वीरामुथुवेल और उनकी टीम के हिस्से आएगा. लेकिन एक किस्सा भारत के मिसाइल मैन कहे जाने वाले देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से जुड़ा है. जब उनके और उनकी टीम के एक मिशन की असफलता की जिम्मेदारी तत्कालीन इसरो चीफ सतीश धवन ने ली थी. साल 1979 में कलाम भारत के SLV-3 सैटेलाइट मिशन के प्रोजेक्ट मैनेजर थे. मिशन फेल हो गया था. सैटेलाइट बंगाल की खाड़ी में जा गिरा था. इस वक़्त इसरो के चीफ थे साइंटिस्ट सतीश धवन. जिनके नाम पर आंध्रप्रदेश प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन स्पेस सेंटर स्थापित  किया गया है. इससे ही चंद्रयान-3 को लॉन्च किया गया है. सतीश धवन ने उस वक़्त कलाम और उनकी टीम पर भरोसा दिखाया था. और मिशन के फेल होने की जिम्मेदारी खुद ली थी. और अगली बार जब ये मिशन दूसरे प्रयास में सफल हुआ तो उन्होंने कलाम को ही प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने भेजा था.

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कलाम की ही ज़ुबानी किस्सा कुछ यूं था-

फिलाडेल्फिया में व्हार्टन इंडिया इकोनॉमिक फोरम में कलाम ने एक इंटरव्यू दिया. इसमें उन्होंने भारत के भविष्य के लिए अपने नजरिए पर बात की. कई और मुद्दों से जुड़े अहम किस्से भी बताए. इस दौरान उनसे सवाल पूछा गया कि क्या आप अपने अनुभव के आधार पर एक मिसाल दे सकते हैं कि किसी असफलता पर एक लीडर को चीजें कैसे मैनेज करनी चाहिए.

इस सवाल के जवाब में कलाम कहते हैं,

"मैं आपको अपने अनुभव के आधार पर बताता हूं. साल 1973 में मैं भारत के सैटलाइट लॉन्च व्हीकल प्रोग्राम का प्रोजेक्ट डायरेक्टर बना. इसे आमतौर पर SLV-3 कहा जाता है. हमारा लक्ष्य 1980 तक भारत के 'रोहिणी' सैटलाइट को ऑर्बिट में पहुंचाना था. मुझे इसके लिए फंड और बाकी संसाधन दिए गए थे. लेकिन ये स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि सैटलाइट को 1980 तक स्पेस में लॉन्च करना है. इस लक्ष्य के लिए वैज्ञानिक और तकनीकी टीमों में हजारों लोगों ने एक साथ काम किया."

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कलाम आगे कहते हैं,

"1979 में अगस्त का महीना था. हमें लगा कि हम तैयार हैं. प्रोजेक्ट डायरेक्टर के तौर पर मैं लॉन्च के लिए कंट्रोल सेंटर गया. सैटलाइट लॉन्च से चार मिनट पहले कंप्यूटर में उन वस्तुओं की चेकलिस्ट देख रहा था, जिन्हें चेक करने की जरूरत थी. एक मिनट बाद कंप्यूटर प्रोग्राम ने लॉन्च रोक दिया. डिस्प्ले से पता चला कि कुछ कंट्रोल कॉम्पोनेंट्स सही ऑर्डर में नहीं थे. मेरे एक्सपर्ट्स- जिनमें से चार या पांच मेरे साथ थे, उन्होंने मुझसे बताया कि चिंता की बात नहीं है. उन्होंने अपने कैलकुलेशंस कर लिए थे. रिजर्व में पर्याप्त फ्यूल था. इसलिए मैंने कंप्यूटर को बायपास कर दिया और मैन्युअल मोड पर स्विच करके रॉकेट लॉन्च कर दिया. पहली स्टेज में सब कुछ ठीक रहा. दूसरी स्टेज में, एक दिक्कत खड़ी हो गई. सैटलाइट, ऑर्बिट में जाने के बजाय, पूरा रॉकेट सिस्टम बंगाल की खाड़ी में गिर गया. ये एक बड़ा फेलियर था."

मिशन फेल होने के बाद क्या हुआ?

कलाम आगे बताते हैं,

"उस दिन इसरो के चेयरमैन प्रोफ़ेसर सतीश धवन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई थी. लॉन्च का समय सुबह के 7 बजे का था. और प्रेस कॉन्फ्रेंस का वक़्त 7 बजकर 45 मिनट का था. दुनिया भर के पत्रकार इसरो के श्रीहरिकोटा स्थित सैटलाइट लॉन्च साइट पर आए हुए थे. प्रोफ़ेसर धवन, इसरो के नेता थे. उन्होंने खुद प्रेस कॉन्फ्रेंस की. उन्होंने विफलता की जिम्मेदारी ली. उन्होंने कहा कि टीम ने कड़ी मेहनत की थी. लेकिन और ज्यादा टेक्निकल सपोर्ट की जरूरत थी. उन्होंने मीडिया को भरोसा दिलाया कि अगले साल टीम जरूर सफल होगी. मैं प्रोजेक्ट डायरेक्टर था. ये मेरी विफलता थी. इसके बावजूद उन्होंने इसरो के चेयरमैन के तौर पर इसकी जिम्मेदारी ली."

अगले साल मिशन सफल हुआ

कलाम आगे बताते हैं,

"अगले साल जुलाई 1980 में हमने फिर से सैटलाइट लॉन्च करने की कोशिश की. इस बार हम सफल हुए. पूरा देश उत्साहित था. फिर से एक प्रेस कॉन्फ्रेंस हुई. प्रोफ़ेसर धवन ने मुझे अलग बुलाया और कहा, आज आप प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करिए.

कलाम के मुताबिक उन्होंने उस दिन एक सबक सीखा. जब विफलता आई तब ऑर्गनाइजेशन के लीडर ने उसकी जिम्मेदारी ली. और जब सफलता मिली तो उन्होंने इसका श्रेय अपनी टीम को दे दिया. एपीजे अब्दुल कलाम का कहना था कि उन्हें मैनेजमेंट का ये अनुभव किसी किताब से नहीं, रियल लाइफ से मिला.


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