कास्टिंग काउच, दो शब्द जिनको सुनते ही हमारे दिमाग में छवि बनती है एक लाचार औरत की. जो इंडस्ट्री में नाम और काम पाने की इतनी बेतहाशा चाहत रखती है कि एक बड़े, काबिल आदमी से 'ब्रेक' मिलने के नाम पर उसके साथ सोने को तैयार है. 'कॉम्प्रोमाइज़' जैसे शब्द आते हैं दिमाग में. हम कल्पना कर सकते हैं एक औरत की, जो एक भूखे दरिंदे के हाथों हैरस हो रही है. हमारी कल्पना में कभी ये नहीं आता कि जिस व्यक्ति को बिस्तर पर घसीटा जा रहा है वो कोई पुरुष भी हो सकता है. जिसे गलत ढंग से छुआ गया, गंदी नज़र से देखा गया वो एक पुरुष भी हो सकता है. कास्टिंग काउच में पुरुषों का फंसना कम ही सामने आया है. इसलिए हमें उसके बारे में मालूम नहीं पड़ता. दूसरा हम ये भी मानते हैं कि सेक्शुअल हैरेसमेंट से अगर कोई पीड़ित है तो वो औरत ही होगी. क्योंकि भोग करने की वस्तुएं औरत के ही शरीर में होती हैं. बीते दिन हिंदुस्तान टाइम्स से हुई बातचीत में दिव्या दत्ता ने बताया कि कास्टिंग काउच केवल एक्ट्रेस को ही नहीं, एक्टर्स को भी झेलना पड़ता है. बड़े डायरेक्टर उन्हें काम देने के बदले अक्सर उनसे 'सेक्शुअल फेवर' मांगते हैं. पिछले साल रनवीर सिंह से इसके बारे में बताया था:
'कास्टिंग काउच कोई झूठ नहीं. असल समस्या है. मैंने खुद इसे भोगा हुआ है. मुझे याद है कि कैसे एक बड़े फिल्मकार ने मेरा पोर्टफोलियो किनारे फेंकते हुए मुझसे 'कॉम्प्रोमाइज़' की बात की थी. उसने मुझे बेहद गलत ढंग से छुआ था. उसके पास असल में मुझसे इस तरह की बात करने की हिम्मत थी.'
रनवीर सिंह का केस इकलौता नहीं था. लगभग 10 साल पहले ऐसा ही आरोप सोनू निगम ने एक पत्रकार पर लगाया था. सोनू निगम के मुताबिक फिल्म क्रिटिक सुभाष के. झा ने उनसे शारीरिक संबंध बनाने के लिए कहा था. जब सोनू निगम ने मना किया, सुभाष ने उनके खिलाफ बुरे रिव्यू लिखने शुरू कर दिए. सोनू ने कहा था:
'अगर कोई मेरे साथ ऐसा कर सकता है तो स्ट्रगल करने वाले लोगों के साथ क्या-क्या होता होगा? मैं ऐसे लोगों से कहना चाहता हूं कि वो इन लोगों से बिल्कुल न डरें. और ऐसे दरिंदों को बता दें कि किसी कमज़ोर व्यक्ति की चुप्पी को उसकी कमजोरी न समझें!'
कई एक्टरों के मुताबिक इसमें कोई भी नई बात नहीं है. एक्ट्रेस समीरा रेड्डी ने ये तक कहा था कि ताली एक हाथ से नहीं बजती. लोग शॉर्टकट अपनाने के लिए अक्सर इस तरह का व्यापार कर लेते हैं. ये आपसी सहमति से होता है. वहीं कानून में किसी को ब्लैकमेल कर, जबरन सहमति प्राप्त कर उसके साथ सेक्स करने को रेप की केटेगरी में रखा गया है. ये बात अलग है कि इसी कानून में पुरुषों के रेप पर कुछ नहीं कहा गया है. और रेप की परिभाषा में ही ये माना गया है कि रेप सिर्फ औरत का होता है. और करने वाला पुरुष होता है. याद हैं वो 'तुम बिन पार्ट 1' और 'दिल का रिश्ता' वाले प्रियांशु चटर्जी? उन्होंने बताया था कि एक फ़िल्मकार ने उन्हें फिल्म में कास्ट करने के लिए उनसे सेक्स की मांग की थी. प्रियांशु ने कहा था:
'मैंने उसका विश्वास नहीं किया. और मना कर दिया. और अच्छा हुआ कि मना कर दिया क्योंकि मैंने देखा वो फिल्म कभी बनी ही नहीं.'
ये तो वो चंद किस्से हैं जो सामने आए हैं. क्योंकि इन पुरुषों ने खुलकर बोला है. जाने कितने ऐसे एक्टर होंगे जिनको एक्सप्लॉइट किया गया होगा. फिल्म का लालच दिया होगा जिसकी वजह से उन लड़कों ने अपने आत्मसम्मान से समझौता किया होगा. लेकिन इसके साथ कितने ही एक्ट्रेस और एक्टर हुए होंगे जिनको समझौता न करने की वजह से कभी बॉलीवुड में ब्रेक मिला ही नहीं. वो 'स्ट्रगल' करते हुए अपने अंधेरे कमरों में वापस लौट गए होंगे. जाने कितने इनमें से अपने परिवारों से लड़कर घर से भागे होंगे. इनमें से जाने कितने अच्छी क्वालिटी के एक्टर होंगे जो आज भी स्ट्रगल कर रहे होंगे. जाने कितनों का एक्टिंग से मोहभंग हो गया होगा.
फिल्म इंडस्ट्री में जब भी देह और सेक्स की बात आती है, हम लड़कियों को ही याद करते हैं. हम ये भूल जाते हैं कि इसी इंडस्ट्री में पुरुष भी 'आइटम सॉन्ग' मानसिकता के उतने ही शिकार हैं जितनी कि औरतें. औरतों के साथ-साथ पुरुषों पर भी एक तरीके का दिखने, एक तरीके से नाचने का प्रेशर है. एक अच्छी बॉडी, तिकोने चेहरे और एक मर्दाना लुक मेंटेन करने का प्रेशर है. केवल शक्ल सूरत ही नहीं, इंडस्ट्री में उनके 'गॉडफादर' होने जरूरी हैं. वरना एक्टिंग के ठेकेदार इन्हें घुसने नहीं देंगे.
पुरुषों के साथ इस तरह का उत्पीड़न केवल फिल्म इंडस्ट्री ही नहीं, लगभग हर फील्ड में होता है. ये हमें रेप और सेक्स क्राइम के बारे में एक बड़ी चीज बताता है. कि रेप या सेक्स क्राइम के पीछे मानसिकता केवल सेक्स की ही नहीं होती. बल्कि इस विश्वास की होती है कि ये अपनी ताकत को दिखाने, उसे इस्तेमाल करने का सबसे अच्छा तरीका है. ये ताकत औरत हों या पुरुष, हर उस व्यक्ति पर अपनी सत्ता स्थापित करने की कोशिश करती है जो कमजोर हो.