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अनिल कपूर जिस सिलेंडर जैसी मशीन में बंद दिखे वो काम क्या करती है?

अनिल कपूर के वीडियो को लोगों ने मजाक समझ लिया, लेकिन ऐसा है नहीं.

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अनुपम खेर ने अनिल कपूर से इस मशीन का उनकी जवानी से कनेक्शन पूछा है (फोटो सोर्स- ट्विटर Anupam Kher और India Today)

बॉलीवुड एक्टर अनुपम खेर ने अपने दोस्त अनिल कपूर का एक वीडियो ट्विटर पर शेयर किया. और पूछा,

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“आपने बताया नहीं आप चांद पर जा रहे हो. क्या इस मशीन का आपकी जवानी के राज से कुछ लेना-देना है?”

लोगों ने भी कई कॉमेंट किए. किसी ने अनिल से कहा आपको नासा वाले ढूंढ रहे हैं, तो किसी ने उनको टाइम मशीन में बिठा बता दिया. असल में इस वीडियो में अनिल कपूर एक सिलेंडर के आकार की मशीन में लेटे हैं. और अंदर से ऑल ओके का इशारा कर रहे हैं. ये किसी फिल्म की शूटिंग का भी सीन नहीं है. फिर ये मशीन आखिर क्या है? और अनिल कपूर इस मशीन में क्या कर रहे हैं?

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अनिल कपूर हाइपरबारिक ऑक्सीजन थेरेपी देने वाली मशीन में बैठे हैं. ये थेरेपी क्या है? इसकी मशीन कैसे काम करती है? इसके फायदे क्या हैं? क्या इस मशीन के कुछ खतरे भी हैं? इन सभी सवालों पर आज विस्तार से बात करेंगे.

हाइपरबारिक ऑक्सीजन थेरेपी

HBOT यानी हाइपरबेरिक ऑक्सीजन थेरेपी एक तरह का ट्रीटमेंट है. इस थेरेपी के दौरान, खून में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाने के लिए एक हाईप्रेशर वाले चेंबर में रहना होता है. चेंबर में प्योर ऑक्सीजन भरी रहती है. कार्बन मोनोऑक्साइड की पॉइजनिंग, स्कूबा डाइविंग से डिकंप्रेशन यानी (शरीर में Nitrogen के बबल्स भर जाना), घाव, गहरी चोट और गैंग्रीन जैसे इंफेक्शन की स्थिति में हाइपरबेरिक ऑक्सीजन थेरेपी से मरीज का इलाज किया जाता है. इस थेरेपी के कई और उपयोगों पर रिसर्च की जा रही है. स्किन हेल्थ से लेकर ब्रेन इंजरी तक.

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अंग्रेजी न्यूज़ मैगजीन फोर्ब्स के मुताबिक, ऑक्सीजन का स्तर बढ़ाकर इलाज करने की पद्धति ब्रिटेन में 16वीं शताब्दी से ही है. लेकिन इस थेरेपी का ज्यादा इस्तेमाल नहीं किया गया. फिर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान HBOT थेरेपी से गोताखोरों में डिकंप्रेशन की दिक्कत का इलाज किया गया. उसके बाद साल 2000 से इसका इस्तेमाल और बढ़ गया. हालांकि HBOT के इस्तेमाल और फायदों को लेकर अभी भी साइंटिफिक रिसर्च की जा रही हैं.

HBOT डिवाइस कैसे काम करती है

अमेरिका के फ्लोरिडा में हार्ट एंड फैमिली हेल्थ इंस्टीट्यूट में काम कर रहे डॉक्टर अहमत एर्गिन फोर्ब्स से बात करते हुए कहते हैं,

"स्वाभाविक रूप से हवा में जिस स्तर पर ऑक्सीजन मौजूद है, HBOT में उससे ज्यादा स्तर पर ऑक्सीजन दी जाती है."

एर्गिन के मुताबिक, HBOT के ट्रीटमेंट के दौरान चेंबर के अंदर एटमॉस्फेरिक प्रेशर बढ़ जाता है जिससे मरीज के खून में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है. इससे घायल कोशिकाओं के इलाज और उनके फिर से बनने में मदद मिलती है. इस थेरेपी से न केवल ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ती है बल्कि सूजन भी ठीक होती है. दर्द और चोटों को ठीक होने में कम वक़्त लगता है.

चेंबर का प्रेशर कितना रहता है?

डॉ. रेनी गिलियड अमेरिका के इंस्टिट्यूट फॉर एक्सरसाइज एंड एनवायर्नमेंटल मेडिसिन में हाइपरबारिक मेडिसिन प्रोग्राम के डायरेक्टर हैं. उनके मुताबिक,

“HBOT के दौरान, मरीज को एक हाईप्रेशर चेंबर में रखा जाता है. यहां हाईप्रेशर से मतलब है कम से कम 1.4 एटमॉस्फेरिक प्रेशर एब्सोल्यूट (ATA). जहां ATA, हाइपरबारिक ऑक्सीजन थेरेपी के दौरान लगने वाले दबाव की यूनिट है.”

आसान भाषा में समझें तो ये दबाव, वायुमंडलीय दबाव से कम से कम डेढ़ गुना ज़्यादा है. इसके बाद मरीज को चेंबर में 100 फीसद शुद्ध ऑक्सीजन दी जाती है.

डॉ गिलियड कहते हैं,

“HBOT के जरिए हम फेफड़ों से खून के जरिए शरीर के टिशूज तक जाने वाली ऑक्सीजन का प्रेशर बढ़ा देते हैं.”

गिलियड के मुताबिक, इस ऑक्सीजन की डिलीवरी के दौरान रुक-रुक कर, यानी कई बार हाइपर ऑक्सीजेनेशन होता है. माने थोड़ी-थोड़ी देर बाद मरीज के शरीर का ऑक्सीजन लेवल बढ़ जाता है. और इस बढ़े हुए ऑक्सीजन लेवल के चलते घायल टिशूज ठीक हो सकते हैं और, दूसरी कई बीमारियों का भी इलाज किया जा सकता है.
लेकिन सवाल ये है कि बढ़ा हुआ ऑक्सीजन स्तर बीमारियां कैसे ठीक कर सकता है?

HBOT से इलाज कैसे?

डॉ गिलियड के मुताबिक, अगर डोज़ ठीक रखी जाए तो इस थेरेपी में हीलिंग प्रॉपर्टीज हैं. वे बताते हैं इस थेरेपी से खून और शरीर की कोशिकाओं में रिएक्टिव ऑक्सीजन और नाइट्रोजन के बनने से ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस होती है. ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस माने शरीर में फ्री रेडिकल्स की संख्या बढ़ना. ये शरीर के लिए हानिकारक स्थिति होती है. लेकिन डॉ गिलियड कहते हैं कि थेरेपी के जरिए कंट्रोल्ड अमाउंट में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस होने से शरीर की कोशिकाओं में कई ऐसी प्रक्रियाएं सक्रिय हो जाती हैं जो शरीर के लिए फायदेमंद रहती हैं. HBOT से क्या और कितना फायदा होगा ये इस बात पर निर्भर करता है कि ट्रीटमेंट किस तरह किया गया है और जिस मरीज को ये थेरेपी दी गई है, उसके शरीर की जरूरत क्या है.

HBOT से क्या फायदे हैं?

लिथुआनिया यूनिवर्सिटी ऑफ़ हेल्थ साइंसेज के साइंटिफिक जर्नल मेडिसिना में HBOT के फायदों पर एक रिसर्च पब्लिश हुई थी. फ़ोर्ब्स ने डॉ गिलियड के हवाले से भी HBOT के कुछ सकारात्मक प्रभावों की एक लिस्ट छापी है-

-नई ब्लड वेसेल यानी रक्त नलिकाएं बनने में मदद मिलती है जिससे, रक्त संचार बेहतर होता है.
-स्टेम सेल की तादाद और उनकी एक्टिविटी बढ़ती है.
-कोलेगन प्रोटीन का उत्पादन सुधरता है.
-सूजन कम होने में मदद मिलती है.
-सर्जरी या रेडिएशन के बाद टिशूज में फाइब्रोसिस यानी टिशूज का डैमेज होना नियंत्रित होता है.
-इस्किमिया यानी खून में ऑक्सीजन की कमी से होने वाली बीमारी का उपचार.
-शरीर के संक्रमण ठीक करना
-रक्त नलिकाओं में हवा या गैस फंसने पर उसे खून में घोलना.
HBOT के इन्हीं प्रभावों के कारण कई बीमारियों में इसका इस्तेमाल किया जाता है.

HBOT से इन बीमारियों का इलाज

डॉक्टर एर्गिन कहते हैं,

"डाइविंग और कार्बन मोनोऑक्साइड के चलते डिकंप्रेशन की बीमारी के अलावा, खून की कमी, दिमाग की बीमारी, गहरी चोट, ठीक न होने वाले घाव, गैंग्रीन, डायबिटीज की वजह से होने वाले घाव, रेडिएशन से होने वाले घाव, घावों के संक्रमण और सुनाई न देने की समस्याओं का इलाज इस थेरेपी से किया जा सकता है."

कुछ स्टडीज के मुताबिक, स्ट्रेस डिसऑर्डर्स में भी ऑक्सीजन थेरेपी से फायदा मिलता है. और रिसर्चर्स इस बात पर भी रिसर्च कर रहे हैं कि क्या थेरेपी का कॉस्मेटिक मेडिसिन के सेक्टर में इस्तेमाल हो सकता है. माने क्या इससे उम्र बढ़ने और त्वचा से जुड़ी हुई दिक्कतों को भी दूर किया जा सकता है. अनुपम खेर भी यही सवाल, अनिल कपूर से पूछ रहे थे कि क्या ये मशीन उनकी जवानी का राज है.

हालांकि डॉक्टर एर्गिन कहते हैं कि सबसे एक्साइटिंग तो यही है कि जब किसी इंफेक्शन या चोट से उबरने के सारे पुराने इलाज बेकार साबित होते हैं तो इस थेरेपी से सफल इलाज होने की संभावना है.

ये तो थी थेरेपी से होने वाले संभावित फायदे की बात. लेकिन क्या इसके कुछ नुकसान या खतरे भी हैं?

HBOT के खतरे

HBOT के साइड इफेक्ट्स में सबसे आम है- मिडिल इयर बारोट्रॉमा. ये कान से जुड़ी हुई मेडिकल कंडीशन है. डॉक्टर गिलियड के मुताबिक, हाइपरबारिक चेंबर में ऐसा महसूस हो सकता है जैसा एक हवाई जहाज के नीचे उतरते वक़्त महसूस होता है. ऐसे में कानों पर दबाव पड़ सकता है. मरीज को इस बढ़े हुए प्रेशर के साथ संतुलन करना होता है. हालांकि ये बड़ी दिक्कत नहीं है. और प्रॉपर ट्रेनिंग और मेडिकल स्टाफ के सुपरविजन में इस दिक्कत को कम किया जा सकता है. लेकिन लापरवाही हुई तो कान का पर्दा फट सकता है, सुनाई देना तक बंद हो सकता है.

इसके अलावा HBOT के कुछ रेयर बैड इफेक्ट्स भी हैं. रेयर इसलिए कि ये दुष्प्रभाव आम तौर पर नहीं होते, लेकिन हो सकते हैं. जैसे, साइनस या पल्मोनरी बारोट्रॉमा- ये टिशूज के डैमेज हो जाने की बीमारी है. इनके अलावा पास की नजर कमजोर हो सकती है, ऑक्सीजन टॉक्सिसिटी हो जाती है, दौरे आ सकते हैं या डिकम्प्रेशन हो सकता है. इसलिए ही इस ऑक्सीजन थेरेपी के जरिए डॉक्टर्स की निगरानी में सावधानी से इलाज किए जाने की सलाह दी जाती है.

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