ये था 14वीं सदी का पहला दशक. दूसरा दशक और विपत्तियां लाया. बारिशें तेज़ हो गईं. जो रही-सही फसलें थीं, वो बह गईं. अकाल आया. ख़बर फैली कि भूख के मारे लोग अपने बच्चों को खा रहे हैं. लोगों को लगा, ये बाइबल में वर्णित स्याह घुड़सवार के आने का संकेत है.

बाल्टिक सागर और उसके आस-पास के देश (स्क्रीनशॉट: गूगल मैप्स)
डार्क हॉर्समैन के आने का संकेत
क्या है घुड़सवार की ये कहानी? बाइबल की परंपरा में चार घुड़सवारों का ज़िक्र है. इस कहानी के मुताबिक, ईसा मसीह फिर से दुनिया में आएंगे. मगर उनके आने से पहले चार विनाशकारी घटनाएं होंगी. इन घटनाओं का संकेत लेकर आएंगे, चार घुड़सवार. इनमें से तीसरा घुड़सवार काले रंग के घोड़े पर आएगा. काले घोड़े का मतलब, अकाल और आबादी का ख़ात्मा. लोगों ने समझा, ये कयामत उसी डार्क हॉर्समैन के आने का संकेत है. हो-न-हो, अब अंत नज़दीक है.
मगर असल आफ़त तो अभी आनी बाकी थी. ये आफ़त शुरू हुई, 14वीं सदी के 5वें दशक में. साल, 1347. अक्टूबर का महीना. इस महीने इटली के जेनोआ शहर का एक व्यापारिक जहाज़ क्रीमिया होते हुए सिसिली पहुंचा. ये जहाज़ समझिए कि अपने साथ मौत लेकर आया था. इसके नाविकों को अजीब सी बीमारी थी. उनकी कांख और धड़ के निचले हिस्से पर एक कांटेनुमा नोंक सी उभर आती. अंडे के आकार की इस स्याह नोंक से खून और मवाद निकलने लगता. फिर देखते-ही-देखते उनके पूरे शरीर पर काले रंग के फोड़े निकल आते. उसे खून की उल्टियां होने लगतीं. दर्द से तड़पता हुआ बीमार इंसान कुछ ही दिनों में दम तोड़ देता.

जेनोआ, क्रीमिया और सिसिली (स्क्रीनशॉट: गूगल मैप्स)
ब्लैक डेथ
जहाज़ियों के साथ आई ये बीमारी संक्रामक थी. उनसे होते हुए ये बीमारी महामारी में तब्दील हो गई. ये जितना फैलती गई, उतनी ही मारक होती गई. पहली बार लक्षण उभरने के चौबीस-अड़तालीस घंटों में लोग मरने लगे. पूरा यूरोप इस महामारी की चपेट में आ गया. 1347 से 1352 के बीच अकेले यूरोप के करीब दो करोड़ लोगों की जान गई इस महामारी से.
कौन सी महामारी थी ये? इस महामारी का नाम था, ब्यूबॉनिक प्लेग. ये महामारी पहले भी कई बार फैल चुकी थी दुनिया में. मगर 14वीं सदी में फैले प्लेग को इतिहास की सबसे विनाशक महामारी माना जाता है. इसके कारण दुनिया की करीब एक तिहाई आबादी ख़त्म हो गई. लोगों ने इसे नाम दिया- ब्लैक डेथ.
आप पूछेंगे, इस ब्यूबॉनिक प्लेग का ज़िक्र आज कैसे? इसलिए कि अभी चीन से इस बीमारी की ख़बर आई है. चीन का एक हिस्सा है- इनर मंगोलिया. वहां बयान नूर नाम का इलाका है. वहां से ब्यूबॉनिक प्लेग के मरीज़ की पुष्टि हुई है. इसके कारण चीन ने लेवल तीन की चेतावनी जारी की है. वॉर्निंग सिस्टम में सबसे हाई अलर्ट होता है लेवल चार. ये वाली वॉर्निंग लेवल तीन की है. यानी संवेदनशीलता में दूसरे नंबर पर. इस चेतावनी में लोगों को दो मुख्य निर्देश दिए गए हैं.

रिपोर्ट
क्या हैं ये निर्देश-
पहला निर्देश: ब्यूबॉनिक प्लेग की आशंका वाले लोगों की जानकारी तुरंत प्रशासन को दी जाए. दूसरा निर्देश: जंगली जानवरों से दूर रहें. न उनका शिकार करें, न उन्हें खाएं.
अभी मौजूद जानकारी के मुताबिक, ये बीमारी अभी छोटे स्तर पर ही है. लेकिन तब भी इसे नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता. वजह ये कि ये बीमारी काफी संक्रामक होती है. ये काफी तेज़ी से फैलती है. सही समय पर इलाज न मिले, तो जान जाने की आशंका मज़बूत होती है.
अब सवाल है कि प्लेग फैलता कैसे है?
ये बीमारी फैलती है एक बैक्टीरिया से. इस बैक्टीरिया का नाम है- जरसीनिया पेस्टिस. ये जीवाणु ज़्यादातर चूहों, जंगली खरगोशों, गिलहरियों और मर्मेट जैसे जीवों में पाया जाता है. मर्मेट ऊंचे ठंडे इलाकों में पाई जाने वाली गिलहरी की एक प्रजाति है.
इन संक्रमित जीवों से फैलते हुए ये बीमारी इंसानों तक कैसे पहुंचती है? इसके दो मुख्य रास्ते होते हैं. पहला ज़रिया हैं, पिस्सू. जो संक्रमित जीवों को काटते हैं और उनके भीतर मौजूद जरसीनिया पेस्टिस जीवाणु पिस्सू के साथ लग जाता है. ये पिस्सू आगे जिस किसी भी जानवर या इंसान को काटेगा, वो भी संक्रमित हो जाएगा. संक्रमण फैलने का एक डायरेक्ट ज़रिया भी है. फ़र्ज कीजिए कि इंसान किसी संक्रमित जीव के संपर्क में आया. इससे जीवाणु उसके सिस्टम में भी पहुंच जाएगा.

मर्मेट, ऊंचे ठंडे इलाकों में पाई जाने वाली गिलहरी की एक प्रजाति है. (फोटो: एएफपी)
कितने तरह के प्लेग होते हैं?
प्लेग के दो मुख्य प्रकार होते हैं. एक, ब्यूबॉनिक प्लेग. दूसरा, न्यूमॉनिक प्लेग. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, ब्यूबॉनिक प्लेग में जान जाने का अनुपात 30 से 60 पर्सेंट तक हो सकता है. जबकि न्यूमॉनिक प्लेग इससे भी ज़्यादा जानलेवा होता है. अगर शुरुआत में ही इलाज न मिले, तो न्यूमॉनिक प्लेग से ग्रस्त मरीज़ का मरना तय है. ब्यूबॉनिक प्लेग के मुकाबले न्यूमॉनिक प्लेग ज़्यादा तेज़ी से फैलता है. WHO के मुताबिक, ये इतना संक्रामक है कि अगर सावधानी न बरती जाए तो जल्द ही महामारी का रूप ले लेता है.
तो क्या प्लेग अब भी वैसे ही मारक होते हैं, जैसे पहले के ज़माने में हुआ करते थे? जवाब है, नहीं. मेडिकल साइंस की तरक्की के कारण हमें प्लेग से जुड़े सारे सवालों के जवाब पता हैं. हमें पता है कि इस बीमारी के फैलने की वजह क्या है. हमें पता है कि किस तरह के जीवों के संपर्क में नहीं आना है. इसका इलाज भी मुमकिन है. लेकिन इसके बावजूद समय-समय पर दुनिया के अलग-अलग इलाकों से प्लेग के मामले सामने आते रहते हैं. सबसे ज़्यादा प्रभावित देश हैं- कॉन्गो, मेडागास्कर और पेरू. मेडागास्कर में तो हर साल सितंबर से अप्रैल तक प्लेग सीज़न चलता है. हर साल वहां करीब 400-500 प्लेग के केस सामने आते हैं. 2017 में ये काफी बड़े स्तर पर फैल गया था. 114 में से 55 ज़िले इससे प्रभावित हुए थे. अगस्त से नवंबर के बीच ही करीब ढाई हज़ार प्लेग के केस सामने आए. इनमें से 202 की जान चली गई.

अगस्त से नवंबर के बीच प्लेग से 202 लोगों की जान चली गई. (स्क्रीनशॉट: डब्लूएचओ रिपोर्ट)
इनर मंगोलिया और प्लेग
अफ्रीकी देशों के अलावा चीन के इनर मंगोलिया से भी प्लेग की ख़बरें आती रहती हैं. वहां प्लेग के मुख्य वाहक हैं, पहाड़ों में पाए जाने वाले जंगली मर्मट. लोग खाने के लिए उनका शिकार करते हैं. ऐसे में कई बार वो किसी संक्रमित मर्मट के संपर्क में आकर ख़ुद भी संक्रमित हो जाते हैं.
पिछले साल मई में भी इनर मंगोलिया से ऐसी ही ख़बर आई थी. पता चला कि मर्मट का कच्चा मांस खाने से एक पति-पत्नी को ब्यूबॉनिक प्लेग हो गया. दोनों को समय पर इलाज नहीं मिला और वो मर गए. जिस इलाके की ये घटना थी, वो रूस की सीमा के पास है. उस रास्ते कई पर्यटक मंगोलिया घूमने आते हैं. जब उस जोड़े के प्लेग से मरने की ख़बर फैली, तो प्रशासन हरकत में आया. पर्यटकों समेत इस इलाके के किसी भी इंसान के बाहर जाने पर पाबंदी लगा दी गई. छह दिनों का क्वारंटीन पूरा करने के बाद ही लोग बाहर निकल सके.
इस घटना के छह महीने बाद, नवंबर 2019 में फिर से यहां प्लेग का खौफ़ फैला. इस खौफ़ की शुरुआत हुई एक पति-पत्नी की ख़बर से. ये बीमार जोड़ा इनर मंगोलिया से अपना इलाज करवाने पेइचिंग पहुंचा था. यहां अस्पताल में जांच हुई, तो पता लगा कि उन्हें न्यूमॉनिक प्लेग है. ये दोनों पति-पत्नी संक्रमित स्थिति में इनर मंगोलिया से पेइचिंग पहुंचे थे. आशंका थी कि रास्ते में उनके संपर्क में आए लोग भी संक्रमित हो सकते हैं. ऐसे में प्रशासन को चाहिए था कि वो तुंरत वॉर्निंग जारी करे. इस बीमार जोड़े के संपर्क में आए लोगों की तत्काल पहचान हो और उन्हें क्वारंटीन में रखा जाए. मगर प्रशासन ने ऐसा किया नहीं. उस जोड़े के प्लेग ग्रसित होने की बात पता चली 3 नवंबर को. और इसके नौ दिन बाद 12 नवंबर को सरकार ने इसका ऐलान किया. प्लेग के संक्रामक स्वभाव को देखते हुए ये बहुत बड़ी लापरवाही थी.

नवम्बर 2019 में भी चीन की लापढ़वाही सामने आई थी. (स्क्रीनशॉट: सीएनएन)
चीन ने सरकारी लापरवाही के सबूत मिटाने की कोशिश
प्रशासन की इस लापरवाही से ली जिफेंग नाम की एक डॉक्टर को बहुत गुस्सा आया. ली जिफेंग पेइचिंग के उसी अस्पताल में डॉक्टर थीं, जहां इनर मंगोलिया के उस बीमार जोड़े का इलाज हो रहा था. ली जिफेंग ने 'वीचैट' नाम के चाइनीज़ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक पोस्ट डाली. इसमें सरकारी लापरवाही का कच्चा-चिट्ठा लिखा था. कुछ ही देर में प्रशासन ने ली की उस पोस्ट को हटा दिया. लेकिन तब तक ये पोस्ट चीन में वायरल हो चुका था. लोग इस लापरवाही पर सवाल उठाने लगे. वो इतने संवेदनशील मामले में प्रशासन द्वारा जानकारी छुपाने और लेटलतीफ़ी दिखाए जाने से नाराज़ थे. लोग लिख रहे थे कि एक तो प्लेग इतनी डरावनी बीमारी है. ऊपर से प्रशासन जिस तरह से जानकारियां छुपाता है, वो और डरावनी स्थिति है.

ली जिफेंग नाम की एक डॉक्टर ने लापरवाही की बात सामने ला दी. (स्क्रीनशॉट: वीचैट)
लोगों की नाराज़गी पर सरकार ने क्या प्रतिक्रिया दिखाई? वही, जो वो हमेशा दिखाते हैं. सेंसर करो, कंट्रोल करो. न्यू यॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, प्रशासन ने ऑनलाइन पोर्ट्ल्स को निर्देश भेजा. कहा, बातचीत फिल्टर करो. इस मसले पर जितने पोस्ट आएं, उन्हें ब्लॉक कर दो. सेंसर्स का इस्तेमाल करके ये मुद्दा ऑनलाइन मीडियम से गायब ही कर दो पूरी तरह.

प्रशासन सेंसर्स करके मुद्दा गायब कर रही थी. (स्क्रीनशॉट: न्यूयॉर्क टाइम्स)
चीन पर भरोसा कैसे हो?
अब इसी इनर मंगोलिया से फिर प्लेग की ख़बर आई है. वैसे तो प्लेग का इलाज मौजूद है. इस लिहाज से चीन से आई प्लेग की ये हालिया ख़बर पहली नज़र में डरावनी नहीं है. आशंका की वजह है चीन का रवैया. वहां से आ रही जानकारियों को लेकर हमेशा अंदेशा रहता है. वो सही हैं कि नहीं, इसकी पुष्टि का कोई ज़रिया नहीं होता. वहां जानकारियों की लीपापोती करने का भी लंबा अतीत रहा है. ऐसे में हमें नहीं पता कि चीन के इनर मंगोलिया में अभी प्लेग को लेकर जो वॉर्निंग दी गई है, उसकी असल स्थिति क्या है. कितने केस हैं प्लेग के वहां? इक्का-दुक्का ही हैं या ज़्यादा, हम पक्के तौर पर नहीं कह सकते.
2002 में जब सार्स के सैकड़ों केस थे, तब भी चीन इक्का-दुक्का मामले बता रहा था. ऐसे में हमें नहीं पता कि चीन की सरकार इन बीमारियों के प्रति कितनी गंभीर हुई है. कोरोना, सार्स, इबोला और प्लेग जैसी संक्रामक बीमारियां. ये वैसे भी घातक हैं. अगर सिस्टम की लापरवाही और बदइंतज़ामी भी मिक्स हो जाए, तो वो ज़्यादा बड़ी आबादी के लिए ख़तरा बन सकती हैं.
विडियो- क्या चीन अब रूस के व्लेदीवस्तोख़ सिटी पर कब्जा दिखाने की कोशिश करेगा?