मथुरा के वृंदावन में एक विश्वप्रसिद्द बांके बिहारी का मंदिर है. यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार की लंबे समय से योजना थी इस मंदिर के आसपास एक कॉरिडोर का निर्माण किया जाए. वैसा ही कॉरिडोर, जैसा बनारस और मिर्जापुर में बनाया जा रहा है. साल 2022 में इस योजना का प्रस्ताव सामने आया. प्रस्ताव आने की कहानी आगे बताएंगे. पहले ताज़ा खबर बताते हैं. ताज़ा खबर ये है कि इलाहाबाद हाइकोर्ट ने यूपी सरकार के इस बांके बिहारी कॉरिडोर के प्लान को सहमति दे दी है.
आखिर क्यों पड़ी बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर बनाने की जरूरत? स्थानीय लोग इसके विरोध में क्यों हैं?
बांके बिहारी मंदिर कॉरिडोर बनाए जाने की बात सुनकर मथुरा से सांसद हेमा मालिनी ने खुशी जताई है.

दरअसल वृंदावन के रहने वाले आनंद शर्मा और अन्य लोगों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में जनहित याचिका लगाई थी साल 2022 में. इस याचिका में कहा गया कि मंदिर में रोजाना 40 से 50 हजार लोग आते हैं. वीकिन्ड के दिन ये संख्या 2 से ढाई लाख तक पहुंच जाती है. पूरे वृंदावन में भीड़ हो जाती है. भगदड़ जैसी स्थिति होती है. और जब इतनी भीड़ होती है तो प्रशासन पूरी तरह से फेल हो जाता है. यूपी सरकार और जिला प्रशासन इस पर कोई कदम नहीं उठाते हैं. उन्हें उचित कदम उठाने के लिए आदेश दीजिए.
याचिका पर सुनवाई हुई. 30 अक्टूबर 2023 को याचिका पर एक आदेश सुरक्षित कर लिया गया. 20 नवंबर को हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस प्रीतिंकर दिवाकर और जस्टिस आशुतोष श्रीवास्तव की बेंच ने ये ऑर्डर सुनाया कि यूपी सरकार कॉरीडोर का निर्माण करे. अपने फैसले के साथ हाईकोर्ट ने कुछ टिप्पणियां कीं. क्या थी वो टिप्पणियां -
1 - "राज्य सरकार मंदिर तक पहुंच मार्गों (गलियों) पर अतिक्रमण हटाने के लिए उचित कदम उठाने के लिए भी स्वतंत्र है."
2 - हम यह स्पष्ट करते हैं कि योजना के कार्यान्वयन को छोड़कर भक्तों के दर्शन में किसी भी तरह से बाधा नहीं डाली जाएगी. उचित विकल्प व्यवस्था की जाएगी.
3 - राज्य सरकार इस अदालत को सौंपी गई योजनाओं और उनके कार्यान्वयन के साथ आगे बढ़े. हम इसे राज्य सरकार के लिए खुला छोड़ते हैं. योजना को लागू करने के लिए क्षेत्र के तकनीकी विशेषज्ञों के साथ परामर्श के बाद जो भी उचित समझे, वो कदम उठाएं.
4 - कॉरिडोर के निर्माण के लिए सरकार मंदिर के बैंक खाते में जमा पैसे का इस्तेमाल न करें.
हाईकोर्ट का ये फैसला आने के बाद मथुरा की सांसद हेमा मालिनी ने अपनी खुशी जताई.
अब जानते हैं कि मामला क्या है. और इसको जानने के पहले मंदिर को समझिए. आपको वृंदावन में बहुत सारे मंदिर मिलेंगे और सुनाई देंगे. लेकिन एक ही मंदिर सबसे अधिक प्रसिद्ध है - वो है बांकेबिहारी का मंदिर. इस मंदिर में भगवान की जो मूर्ति है, उसे कहा जाता है कि वो कृष्ण और राधा का सम्मिलित रूप है. 14वीं शताब्दी में स्वामी हरीदास ने इसी वृंदावन के निधिवन नामक जगह पर भगवान कृष्ण और उनकी सखी राधा की पूजा अर्चना शुरू की, उनके लिए भजन लिखे और गाए. कहा जाता है कि एक बार भगवान के बाल स्वरूप ने उन्हें दर्शन दिए. उनका सौन्दर्य इतना विराट था कि स्वामी हरिदास और उनके भक्तों की आंखें चुंधिया गईं. और कुछ नहीं देख सके. ये देखकर स्वामी हरिदास ने भगवान से आग्रह किया कि वो ऐसे रूप में प्रकट हों कि लोग उन्हें कम से कम देख सकें. कहा जाता है कि इसके बाद भगवान एक मूर्ति के रूप में प्रकट हुए. जो काले रंग की थी. यही है वो राधा कृष्ण की एक मूर्ति, जिसकी बांके बिहारी मंदिर के अंदर पूजा होती है.
अब जब भगवान का ये स्वरूप सामने आया तो स्वामी हरिदास ने अपने छोटे भाई जगन्नाथ गोस्वामी को भगवान की पूजा अर्चना का काम सौंपा. तब से लेकर आज तक जगन्नाथ गोस्वामी की सन्ततियां बिहारीजी की पूजा अर्चना करते रहते हैं.
पहले इनकी निधिवन के पास मौजूद एक मंदिर में पूजा होती थी. बाद में साल 1862 में गोस्वामी समाज ने आपसी सहयोग से नए मंदिर का निर्माण कराया, तो प्रतिमा को नए मंदिर में स्थापित कर दिया गया. और तब से लेकर अब तक इसी मंदिर में पूजा होती है. हर साल इस मंदिर में लाखों लोगों की भीड़ दर्शन करने आती है. जन्माष्टमी और तमाम त्यौहारों के वक्त मंदिर में भीड़ की संख्या में कई गुना का इजाफा हो जाता है.
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इस मंदिर के आसपास मौजूद घर गोस्वामी समुदाय के लोगों के हैं वो यहीं रहते हैं और साल और दिन के हिसाब से अपनी पारी आने पर मंदिर में पूजा करवाने आते हैं. नियमतः मंदिर में जो चढ़ावा चढ़ाया जाता है, उसके ही कुछ हिस्से से गोस्वामी परिवार के लोगों की कमाई होती है. मंदिर का चढ़ावा बैंक की निगरानी में होता है, और चढ़ावे के लॉकर को भी बैंक के अधिकारियों की मौजूदगी में ही खोला जाता है.
अब बात करते हैं विवाद की. और इस विवाद की शुरुआत होती है एक हादसे से. साल 2022 में जन्माष्टमी का दिन था 19 अगस्त. इस दिन मंगला आरती के समय मंदिर में भीड़ थी. मंदिर में पूजा के लिए एक कच्चा-पक्का नियम है. पूजा के समय मंदिर के बाहर भयानक भीड़ जमा होती है. पुलिसवाले और मंदिर के गार्ड एक गेट से एक सीमित संख्या में मंदिर के अंदर भीड़ को आने देते हैं. भक्तों की भीड़ मंदिर के अंदर आती है, और बीच के बड़े से हॉल में जमा हो जाती है. अब मंदिर के दरवाजों को बंद कर दिया जाता है. दर्शन के बाद एक दूसरा गेट खोला जाता है, जिससे ये भीड़ बाहर जाती है. हॉल खाली होता है. और अगले दर्शन के लिए मंदिर का द्वार फिर से खोल दिया जाता है. अब 19 अगस्त के दिन जब आरती होने वाली थी, उस समय मंदिर के अंदर का हॉल पूरी तरह से भरा हुआ था. जैसे ही आरती शुरू हुई, एंट्री वाले गेट से भीड़ भारी संख्या में आने लगी. अंदर उमस और गर्मी की वजह से भक्तों की हालत खराब होने लगी. इस हाल में मंदिर में भगदड़ मच गई. इस भगदड़ की वजह से 2 लोगों की मौत हो गई. कई लोग घायल हो गए.
भगदड़ की खबर आई. प्रशासन ने जांच के आदेश दिए. दो लोगों की कमिटी बनाई गई. पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह व अलीगढ़ मंडलायुक्त गौरव दयाल. 23 अगस्त को ये कमिटी मंदिर परिसर में दाखिल हुई. 16 दिनों तक घटना की जांच की गई. और सामने आई एक जांच रिपोर्ट.
150 पेज की ये रिपोर्ट गोपनीय थी. लेकिन गाहे-बगाहे सरकारी मीटिंग्स में और सरकारी अधिकारियों की बातों में इस मीटिंग के कंटेन्ट सामने आते रहे. 17 नवंबर 2022 को मथुरा कलेक्ट्रेट में एक मीटिंग हुई. इसमें थे जिला प्रशासन के तमाम आला अधिकारी, उत्तर प्रदेश तीर्थ विकास परिषद के मुख्य कार्यपालक अधिकारी, बृज तीर्थ विकास परिषद के उपाध्यक्ष और सचिव और बांके बिहारी मंदिर के प्रबंधक. इस मीटिंग में कमिटी के रिपोर्ट पर चर्चा की गई. इसमें घटना के कारणों पर भी चर्चा थी, साथ ही घटना से बचने के उपायों पर भी चर्चा थी. क्या लिखा हुआ था?
1 - मंदिर में दर्शन का समय बढ़ाया जाए. इससे भीड़ कंट्रोल करने में मदद मिलेगी.
2 - मंदिर के अंदर का दृश्य डिजिटल स्क्रीन पर भी मंदिर के बाहर दिखाया जाए, जिससे लोग बाहर से भी दर्शन कर सकें.
3 - मंदिर में पूजा करने वाले सभी लोगों और सेवादारों को पहचानपत्र इशू किये जाएं, ताकि अवांछित तत्व अंदर न आ सकें. (बता दें कि जांच कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में मंदिर में दर्शन करने आ रहे भक्तों के साथ चोरी-छिनैती की घटनाओं को भी मार्क किया था)
अब इसके बाद आने वाले बिंदुओं ने वृंदावन में बहस का केंद्र खोल दिया. आगे कहा गया -
4 - लोगों की भीड़ देखते हुए मंदिर के प्रांगण में विस्तार की आवश्यकता है.
5 - मंदिर की मरम्मत की जाए.
6 - मंदिर से लेकर यमुना नदी तक एक विशाल कॉरिडोर का निर्माण किया जाए.
7 - मंदिर के चारों तरफ के भवनों को हटाकर के 15 मीटर चौड़ा गलियारा विकसित किया जाए.
8 - मंदिर तक आने वाली सभी गलियों को 9 मीटर तक चौड़ा किया जाए.
एक फौरी अनुवाद करें तो जांच कमिटी दुर्घटना की जांच रिपोर्ट में कॉरिडोर बनाने की संस्तुति कर रही थी. वैसा ही कॉरिडोर जैसा वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के चारों ओर बनाया गया है और मिर्जापुर में विंध्याचल मंदिर के चारों ओर बनाया जा रहा है.
यूपी सरकार की इस जांच कमिटी का एक और लक्ष्य था. वो ये कि तमाम निर्माणों के लिए बांके बिहारी मंदिर के खजाने का उपयोग किया जाए. मंदिर से जुड़े सूत्रों की मानें तो मंदिर के खजाने में इस समय लगभग ढाई सौ से पौने तीन सौ करोड़ रुपये हैं. ये पैसे भक्तों द्वारा किये जा रहे चढ़ावे से आते हैं. लेकिन मंदिर के पुजारी गोस्वामी समाज ने सरकार के इस प्लान पर प्रतिरोध दर्ज किया. कहा कि निर्माण करें, लेकिन सरकारी पैसे के उपयोग से. इसके साथ ही गोस्वामी समाज की एक और आपत्ति थी कि उनके द्वारा की जा रही पूजा अर्चना में कोई दखल न दिया जाए.
लेकिन इसके बाद वृंदावन में प्रशासन और गोस्वामी समाज के बीच एक शीत युद्ध शुरू हो गया. प्रशासन ने गोस्वामी समाज पर प्रसाद और चंदे में घपला करने के आरोप लगाए, और गोस्वामी समाज ने प्रशासन पर आरोप लगाए अंधेरे में रखने के. अब टाइमिंग पर गौर करिए. जब ये सब हो रहा था, तो वो याचिका गई हाईकोर्ट में. उस याचिका में कहा गया कि सरकार कुछ नहीं कर रही. और कोर्ट का आदेश आया कि कॉरिडोर बनाया जाए. और सरकार के पास कॉरिडोर का प्लान पहले से मौजूद था. अब इस याचिका पर एक और तारीख मुकर्रर हुई है 31 जनवरी 2024 को. उस दिन स्थिति और साफ होगी.
वृंदावन से चलते हैं अब बलात्कारी राम रहीम के जेल से बहार आने वाले मुद्दे पर.
गुरमीत राम रहीम. बलात्कार और हत्या जैसे मामलों में सजायाफ्ता राम रहीम हरियाणा की सुनारिया जेल से बाहर आ गया है. पूरे 21 दिनों के लिए. 21 नवंबर की दोपहर 1 बजकर 45 मिनट पर राम रहीम को जेल से बाहर निकाला गया. इसके बाद राम रहीम का काफिला यूपी के बरनावा आश्रम की ओर बढ़ गया. राम रहीम इस बार फर्लो पर जेल से बाहर आया है. कई बार पैरोल पर भी आ चुका है. इस पर आगे बात करेंगे पहले ये जान लीजिए कि गुरमीत राम रहीम इसी साल तीसरी बार जेल से बाहर आ रहा है, 3 साल में ऐसा 8 बार हो चुका है. अब राम रहीम के जेल से बाहर आने और चुनाव वाली टाइमिंग का संयोग तो देखिए कि-
- साल 2022 में हरियाणा के आदमपुर विधानसभा के उपचुनाव के पहले वो पैरोल पर जेल से बाहर आया था. पूरे 40 दिनों के लिए
- पंजाब में 2022 के विधानसभा चुनाव से भी ठीक पहले वो फर्लो पर 21 दिन के लिए बाहर आया
- और अब राजस्थान में 25 नवंबर को चुनाव है और वो 21 नवंबर को जेल से बाहर आ चुका है
जो बात कांग्रेस के नेता उदित राज कह रहे थे, उसकी काफी चर्चा हो रही है. बता दें कि गुरमीत राम रहीम राजस्थान में श्रीगंगानगर जिले के गुरुसर मोडिया का रहने वाला है. हरियाणा, राजस्थान और यूपी में उसके आश्रम हैं. चर्चा ये हो रही है कि श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, चूरू समेत कुछ इलाकों में उसका प्रभाव है. इसलिए चुनाव से ठीक पहले राम रहीम पर फर्लो रूपी मेहरबानी की गई है.
बात अगर समर्थन की हो रही है तो आपको बता दें कि राम रहीम बीजेपी के अलावा कांग्रेस का भी समर्थन कर चुके हैं. 2007 के पंजाब विधानसभा चुनाव में उसने कांग्रेस तो 2017 में अकाली-बीजेपी गठबंधन का समर्थन किया था. 2014 के लोकसभा और उसके बाद हरियाणा विधानसभा में उसका झुकाव बीजेपी की तरफ रहा. डेरा सच्चा सौदा के अनुयायी हरियाणा के अलावा पंजाब और हरियाणा के अलावा हिमाचल के कुछ इलाकों में भी हैं. गुरमीत राम रहीम को अब तक 8 बार पैरोल या फर्लो मिल चुकी है. ये भी देखिए कब-कब -
- 24 अक्टूबर 2020- राम रहीम 24 घंटे के सीक्रेट पैरोल पर जेल से बाहर निकाला गया था. राम रहीम को मिली ये पैरोल इतनी गुप्त थी कि बड़े स्तर के अधिकारियों तक को इसकी जानकारी नहीं थी
- 21 मई 2021- बीमार मां से मिलने के लिए एक दिन की पैरोल
-7 फरवरी 2022 को 21 दिन की फर्लो
- 17 जून 2022- पूरे 30 दिन की पैरोल मिली थी. पैरोल से बाहर निकलने के बाद राम रहीम बागपत के बरनावा आश्रम पहुंचा था
- 14 अक्टूबर 2022 को 40 दिन की पैरोल
- 21 जनवरी 2023 को 40 दिन की पैरोल
- 19 जुलाई, 2023 को 30 दिन की पैरोल
- अब 20 नवंबर 2023 को 21 दिन की फर्लो
अब समझते हैं कि ये पैरोल और फर्लो में क्या अंतर है. पहले फर्लो को समझते हैं
-फर्लो एक तरह से छुट्टी है. इसमें कैदी को कुछ दिन के लिए जेल से रिहा किया जाता है. फरलो की ड्यूरेशन को कैदी की सजा में छूट और उसके हक़ के तौर पर देखा जाता है. सज़ा में छूट माने फरलो के दिन सज़ा में ही काउंट कर लिए जाते हैं.
- फर्लो आमतौर पर सज़ायाफ्ता कैदियों को ही मिलती है, यानी ऐसे कैदी जो दोष सिद्ध होने के बाद मामले में सजा काट रहे हैं.
-आम तौर पर फरलो उन कैदियों को मिलती है जो लंबी सजा काट रहे हैं.
- जेल राज्य का मामला है, इसलिए अलग-अलग राज्यों में फरलो के नियम अलग-अलग हैं.
अब जानेंगे कि पैरोल क्या है और फर्लो से कैसे अगल है?
-पैरोल, अच्छे आचरण के चलते मिलती है, लेकिन वो शर्तों के साथ होती है
-वहीं फर्लो कोई भी जिम्मेदारी पूरी करने के लिए मिलती है और एक साल में तीन बार ही ली जा सकती है, जितने दिन की फर्लो मिलती है वो सजा में आगे नहीं जोड़े जाते जबकि पैरोल में उतने ही दिन सज़ा आगे बढ़ जाती है
अब बताते हैं कि राम रहीम किन मामलों में सजा काट रहा है. साल 2017 में राम रहीम को पंचकूला की स्पेशल CBI कोर्ट ने 20 साल जेल की सजा सुनायी थी. किसलिए. उसे अपने आश्रम में दो शिष्याओं के साथ बलात्कार करने का दोषी पाया गया था. साल 2019 में पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हत्या मामले में गुरमीत राम रहीम को उम्रक़ैद की सजा सुनाई गई थी. रामचंद्र छत्रपति सिरसा शहर में पूरा सच नाम से शाम का एक अखबार निकालते थे. डेरा में हो रहे भ्रष्टाचार पर उन्होंने खूब रिपोर्टिंग की थी. 30 मई, 2002 को उन्होंने अपने अखबार में उस साध्वी के खत पर रिपोर्ट छापी थी, जिसने राम रहीम पर रेप का इल्ज़ाम लगाते हुए प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को खत लिखा था.
इसके बाद वो डेरा के निशाने पर आ गए थे. उन्हें लगातार धमकिया दी गईं. जब उन्होंने खबरें छापनी बंद नहीं कीं, तो 24 अक्टूबर, 2002 को निर्मल और कुलदीप नाम के दो लोगों ने छत्रपति को घर के बाहर 5 गोलियां मार दीं. इसके बाद साल 2021 के अक्टूबर महीने की 18 तारीख को गुरमीत राम रहीम को हत्या के एक और मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है. मामला डेरा के ही मैनेजर रहे रंजीत सिंह की हत्या का था. और यही राम रहीम अब खुला घूम रहा है. सड़कों पर. आपको सवाल पूछने की जरूरत है कि उसके सिर पर हाथ किसका है? और साथ में कौन खड़ा है, जो बारहा उसे उसकी सजा से छुट्टी दिलवाता है.
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