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अतीक अहमद जेल से कैसे साजिश रचता है? खुलासा हो गया!

अतीक अहमद को सता रहा फर्जी एनकाउंटर का डर, सुप्रीम कोर्ट में दायर की याचिका

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अतीक अहमद

आज यानी 1 मार्च की सुबह होते सोशल मीडिया पर बुल्डोजर के तस्वीरें पोस्ट की जा रही है. लोग लिखने लगे बाबा का बुल्डोजर मिट्टी में मिलाने निकल पड़ा है. थोड़ी देर बार विजुअल भी आने लगे. प्रयागराज में अतीक अहमद के करीबी खालिद जफर के घर पर बुलडोजर चला. जफर का मकान धूमनगंज थाना क्षेत्र के चकिया मोहल्ले में मौजूद है. ये वही थाना है जिसके एरिया में उमेश पाल की हत्या हुई. सुबह जब मोहल्ले की तरफ मकान गिराने के लिए प्रयागराज विकास प्राधिकरण की टीम पहुंची, तो लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा. मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि इसी घर में अतीक का परिवार किराए पर रहता था. साल 2020 में अतीक के घर पर बुलडोजर चला था और इसके बाद 2021 से अतीक की पत्नी शाइस्ता परिवार समेत इसी मकान में रह रही थीं.

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बुलडोजर कार्रवाई के दौरान घर से देशी और विदेशी हथियार भी बरामद हुए हैं. इन हथियारों में तलवार, पिस्टल और राइफल शामिल हैं. कार्रवाई पर प्रयागराज विकास प्राधिकरण के वाइस चैयरमेन अरविंद कुमार चौहान ने बताया कि 
''घर को तोड़ा जा रहा है क्योंकि नियमों का उल्लंघन कर इसे अवैध तरीके से बनाया गया था. कार्रवाई से पहले मालिक को नोटिस जारी किया गया था और सभी आवश्यक प्रक्रियाओं का पालन किया गया था.''      

जफर को नोटिस तब दिया गया था जब उसने अतीक के परिवार को पनाह दी थी और अब उमेश पाल की हत्या के बाद बुलडोजर चल गया. आज तक की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि उमेश पाल और उनके सरकारी गनर की हत्या के बाद शूटर सबसे पहले इसी दो मंजिला मकान में आए थे, जहां उनकी मुलाकात अतीक अहमद की पत्नी शाइस्ता परवीन से हुई थी. ऐसा दावा है, इसकी कोई तस्वीर नहीं है. फिर सभी शूटर वहां से फरार हो गए थे, जिन्हें पकड़ने के लिए लगातार छापेमारी की जा रही है. अरबाज नाम के बदमाश का एनकाउंटर हो चुका है, लेकिन CCTV में कैद हुए चेहरे अब तक पकड़ में नहीं आए हैं. कम से कम ये शो रिकॉर्ड होने तक तो यही स्थिति है.

इन कार्रवाईयों से इतर एक और स्थिति है. राजनीति की. सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों में द्वंद चल रहा है. चुंकि हत्या ऐसे वक्त में हुई जब यूपी में विधानसभा का बजट सेशन चल रहा था. ऐसे में राजनीतिक रूप से वारदात की इंटेंसिटी भी बढ़ गई. आज सीएम योगी का सदन से एक और बयान आया. उन्होंने अपराध को लेकर एक नई तुकबंदी में अखिलेश यादव के ऊपर निशाना साधा.

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आरोप-प्रत्यारोप और विधानसभा में सवाल जवाब की शुरूआत 25 फरवरी को हुई. बजट सत्र का छठा दिन था. उमेश के मर्डर को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार पर हो रहे विपक्ष के हमलों का जवाब देने सीएम योगी आदित्यनाथ सामने आए. नेता विपक्ष अखिलेश यादव और उनके बीच काफी तीखी तकरार हुई. उस दौरान सीएम योगी ने एक लाइन कही, जो हर अखबार के लिए हेडलाइन बन गई. उन्होंने कहा था,

"ये जो अपराधी और माफिया हैं आखिर ये पाले किसके द्वारा गए हैं? क्या ये सच नहीं है कि जिसके खिलाफ FIR दर्ज है उन्हें सपा ने सांसद बनाया था? आप अपराधी को पालेंगे और उसके बाद आप तमाशा बनाते हैं. हम इस माफिया को मिट्टी में मिला देंगे."

25 फरवरी को ही योगी आदित्यनाथ ने सदन में मुलायम सिंह यादव के ''लड़के हैं लड़कों से गलती हो जाती है' वाले बयान का जिक्र किया था. इस दौरान अखिलेश ने उन्हें टोकते हुए कहा था कि चिन्मयानंद किसके गुरू थे. टोकाटाकी से योगी ने गुस्से में बाप शब्द का जिक्र कर शर्म करने की बात कही थी. अखिलेश ने तीन दिन बाद यानी 28 फरवरी को इस बयान पर पलटवार किया था.

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दरअसल उमेश पाल हत्याकांड के मुख्य साजिशकर्ता बताए जा रहे सदाकत खान की अखिलेश यादव के साथ एक तस्वीर वायरल हुई. सदाकत को अखिलेश यादव का करीबी बताया जाने लगा, इस पर अखिलेश यादव की सफाई आ गई. तस्वीर वाला मामला अखिलेश की इस सफाई पर खत्म नहीं हुआ आज विधानसभा में योगी आदित्यनाथ ने भी उनसे जवाब मांग लिया.

अब इस पर अखिलेश यादव की क्या प्रतिक्रिया विधानसभा के अंदर से आती है, उसका इंतजार रहेगा. पुलिस, प्रशासन और राजनीति की बात हो गई. अब कोर्ट से जुड़ी खबर. बाहुबली नेता अतीक अहमद ने अपनी सुरक्षा को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. अतीक अहमद ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दायर कर कहा है कि उसे यूपी में दर्ज मामलों की सुनवाई के लिए गुजरात से बाहर ना भेजा जाए. उसकी सुरक्षा और जान को खतरा है.

अतीक अहमद की ओर से वकील हनीफ खान ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. याचिका में अहमदाबाद जेल से यूपी की जेल में प्रस्तावित ट्रांसफर का विरोध किया गया. अतीक की याचिका में कहा गया है कि यूपी सरकार के कुछ मंत्रियों के बयान से ऐसा लगता है कि उनका फर्जी एनकाउंटर किया जा सकता है. मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने माफिया और आरोपियों को मिट्टी में मिला देने की बात कही है. वहीं उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक गाड़ी पलटने की आशंका भी जता चुके हैं! अगर उन्हें यूपी भी लाया जाए तो सेंट्रल फोर्स की सुरक्षा में लाया जाए. अन्यथा उनके मामलों का ट्रायल वीडीओ कॉन्फ्रेंस के जरिए ही हो. अगर पुलिस कस्टडी में रखकर ही पूछताछ करनी है, तो गुजरात में ही कोर्ट परिसर के आसपास गुजरात पुलिस की निगरानी में ही ये सब किया जाए.

ये सब याचिका में लिखा गया. मतलब साफ है कि वो यूपी नहीं आना चाहता. ये तो हुई अपडेट और खबरों की बात. अब आते हैं सवालों पर. पूर्व अधिकारियों और एक्सपर्ट से बात करने के बाद कुल 5 सवाल अहम समझ आते हैं. चूंकि हत्या की साजिश का आरोप अतीक पर है और ये भी कि हत्या की साजिश अहमदाबाद की साबरमती जेल में रह कर रची गई. तो कुछ सवाल उठते हैं-

1. जेल में रहकर तंत्र चलाने वाले माफियाओं का क्या कोई तोड़ नहीं है? क्या सरकार और सिस्टम उन्हें रोक पाने में असमर्थ है?

2. ज्यादातर माफिया अपना तंत्र इसीलिए चला लेते हैं क्योंकि उनके खिलाफ गवाही नहीं होती. या तो डर के मारे गवाह पलट जाते हैं या फिर उन्हें मार दिया जाता है. जैसे प्रयागराज में हुआ? तो गवाहों के प्रोटेक्शन का सिस्टम क्या है?

3.किसी अपराधी को सजा मिलने में इतना वक्त क्यों लग जाता है? क्योंकि उसे टाइम पर सजा होती नहीं है और जेल में रहकर वो अपना पूरा सिस्टम डेवलप कर लेता है. डर का धंधा वहीं से चलता है?

4. ये जो हत्या हुई है वो एक संगठित अपराध है, सरकार का दावा है कि उसने संगठित अपराध को खत्म कर दिया है, सरकार में मौजूद नेता दावा करते हैं कि माफिया अब यूपी में सब्जी बेच रहे हैं. ऐसे में इस तरह की बड़ी वारदात का हो जाना किसका फेलियर है? लोकल पुलिस या इंटेलिजेंस विभाग? जिम्मेदार कौन है? जिम्मेदारी तय होनी चाहिए. क्योंकि ये खेतीबाड़ी के विवाद में हुई हत्या नहीं है,पूरी तरफ से फुलप्रूफ प्लान बनाकर किया गया संगठित अपराध है.

5. घटना के 5 दिन बाद भी पुलिस सीसीटीवी में दिखे मुख्य आरोपियों तक नहीं पहुंच पाई है, क्या उसके कवरअप लिए बुल्डोजर चलाया जा रहा है? घटना हो जाने के बाद अचानक क्यों याद आया कि मकान अवैध था? अवैध था तो पहले क्यों नहीं गिराया? हर अवैध प्रॉपर्टी पर सख्त कार्रवाई तो होनी ही चाहिए. क्योंकि न्याय होना और न्याय होते दिखना. दोनों में बड़ी महीन लकीर का फर्क है.

हमने आपको इस प्रकरण के सभी पहलू बताए. इन सबसे एक बात तो साफ है, कि खुलेआम, दिन दहाड़े ऐसी घटना का होना सीधे-सीधे लखनऊ की सत्ता को चुनौती है. आपने ध्यान दिया हो तो किसी भी हमलावर ने चेहरा तक नहीं ढंका था, मतलब क्या वो दिखाना चाहते थे कि उनके मन में पुलिस का कोई डर नहीं है? अब तक हुई तमाम कार्रवाई में एक आरोपी का एनकाउंटर हुआ है. बाकी सभी फरार हैं. हो सकता है कि आने वाले दिनों में वो भी पकड़े जाएं या फिर भागने की कोशिश में मारे जाएं. गुर्गों पर आज नहीं तो कल कार्रवाई हो जाएगी. मगर असल सवाल सरगना का है. जिस पर जेल में रहकर ही साजिशें करने का आरोप है. क्या उस पर कोई ठोस कार्रवाई हो पाएगी?  क्योंकि इस पूरे मसले में भी एक गैस भरी है. डर की गैस. ऐसी वारदातें उस डर की गैस को फैलाती हैं. माफिया की वसूली बढ़ जाती है और उसकाका तंत्र फिर से उठ खड़ा होता है. और इससे असली लिक्विड पेट्रोलियम गैस के दाम बढ़ जाने वाली खबर हवा हो जाती है. जैसा हमने आपको शुरू में ही बताया था.

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