Foxconn को भारत लाने के पीछे Apple का मकसद था कि चीन और अमेरिका के तनाव के चलते प्रोडक्शन न रुके. रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस प्लांट में फॉक्सकॉन को तीन साल में 1 बिलियन डॉलर यानी करीब 7000 करोड़ रुपए का इंवेस्टमेंट करना था.
प्लांट में वर्कर्स को नौकरी पर रखने, उनके रहने-खाने की व्यवस्था करने का जिम्मा फॉक्सकॉन ने दूसरी ब्रोकर कंपनियों और कॉन्ट्रैक्टर्स को दे रखा था. ये लोग बिचौलिए का काम कर रहे थे. कंपनी को मैनपावर देना और कमीशन लेना. वर्कर्स से पैसा लेकर उनके लिए रहने खाने का इंतजाम करना.

Apple के iPhones की असेम्बलिंग Foxconn करती है (सांकेतिक लोगो - आज तक)
# क्यों हुआ विरोध प्रदर्शन? ये जानने के लिए रॉयटर्स ने फॉक्सकॉन (Foxconn) के प्लांट में काम करने वाली 6 महिलाओं से बात की. नाम न छापने की शर्त पर इन महिलाओं ने प्लांट में काम करने वालों के हालात की जानकारी दी. महिलाओं ने बताया कि फैक्ट्री के वर्कर्स ज़मीन पर सोते थे और एक-एक कमरे में 6 से लेकर 30 तक महिलाएं रखी जाती थीं. दो वर्कर्स ने ये भी बताया कि जिस हॉस्टल में वो लोग रहते थे, वहां के टॉयलेट्स में पानी नहीं था.
एक 21 साल की महिला कर्मचारी ने प्रोटेस्ट के बाद फैक्ट्री छोड़ दी थी. उसने बताया,
‘मेरे पिता किसान हैं, हम लोग धान और गन्ने की फसल उगाते हैं, मैं दूसरों की तरह एक शहरी नौकरी करना चाहती थीं, मुझे फॉक्सकॉन की सैलरी भी ठीक लगी तो यहां काम करने चली आई. लेकिन हॉस्टल्स में जो भी लोग रहते थे सबको हमेशा ही किसी न किसी तरह की बीमारी, स्किन एलर्जीज़, चेस्ट पेन या फ़ूड पॉइजनिंग रहती ही थी. हमने इस पर पहले ज्यादा ध्यान नहीं दिया, क्योंकि हमें लगा था कि हालात ठीक हो जाएंगे, लेकिन अब तो वहां बहुत लोग इन दिक्कतों से जूझ रहे हैं.’यहां के वर्कर्स यूनियन के मुताबिक, फॉक्सकॉन में ज्यादातर स्टाफ़ 18 से 22 साल की उम्र का है, पूरे इंडस्ट्रियल एरिया में जितनी भी कंपनियां हैं उनमें ज्यादातर महिलाएं ग्रामीण इलाकों से हैं और गरीब हैं. सैलरी भी ऐसे काम के लिए जितनी मिलनी चाहिए उसके तिहाई के करीब दी जाती है. महिलाओं को ज्यादातर इस सोच के साथ रखा जाता है कि ये यूनियन नहीं बना पाएंगीं और विरोध नहीं कर पाएंगी. #प्लांट के हालात थिरूवल्लूर जिले के सीनियर फ़ूड सेफ्टी ऑफिसर जगदीश चंद्र बोस ने रॉयटर्स को बताया कि जब उन्होंने प्लांट विजिट किया तो पाया कि डोर्मिट्री की किचन में चूहे थे, गंदगी थी, ड्रेनेज की कोई व्यवस्था नहीं थी. और वहां से जो सैम्पल्स लिए गए वो सेफ्टी स्टैंडर्ड्स पर खरे नहीं उतरे.
थिरूवल्लूर प्रशासन के मुताबिक फॉक्सकॉन प्लांट की डोर्मिट्री में रहने वाली 250 से ज्यादा महिलाओं को फ़ूड पॉइजनिंग हुई थी जिनमें से 159 को अस्पताल भेजना पड़ा. तमाम वर्कर ऐसे भी थे जो बीमार थे और काम नहीं कर पा रहे थे. हॉस्टल में कोविड-प्रोटोकॉल जैसा भी कुछ नहीं था.
16 दिसंबर को वर्कर्स ने प्रोटेस्ट की तैयारी कर ली. एक वर्कर ने रायटर्स को बताया,
‘हम तैयार थे, हमने हॉस्टल में एक दूसरे से बात की और प्रोटेस्ट करने का निर्णय लिया.’इसके बाद 17 दिसंबर 2021 को करीब 2000 फीमेल वर्कर्स सड़क पर आ गईं और प्लांट के पास के एक हाईवे को ब्लॉक कर दिया. ये महिलाएं फॉक्सकॉन प्लांट में काम करती थीं, अगले दिन आस-पास की दूसरी फैक्ट्रियों से भी वर्कर्स आ गए और एक प्लांट से शुरू हुआ विरोध एक बड़े आंदोलन में बदलने लगा. लोकल यूनियन लीडर सुजाता मोदी के मुताबिक प्रोटेस्ट के दिन पुलिस ने वर्कर्स को पकड़ना और मारना शुरू कर दिया. कुछ महिलाओं को भी मारा. और 67 महिलाओं को हिरासत में ले लिया, उनके फ़ोन जब्त कर लिए.
हालांकि पुलिस का कहना था कि न मारपीट की गई न किसी का फ़ोन लिया गया, कार्रवाई नियमों के मुताबिक ही हुई.

Foxconn की फैक्ट्री जहां वर्कर्स के प्रोटेस्ट के बाद काम बंद कर दिया गया है (फोटो सोर्स -Reuters)
# प्रशासन ने क्या किया? तमिलनाडु के नियमों के मुताबिक़ फीमेल वर्कर्स को वर्कप्लेस और उनकी हाउसिंग के लिए 120 स्क्वायर फीट की हाईजीनिक और सुरक्षित जगह दिया जाना अनिवार्य है. फ़ूड पॉइजनिंग के मामले के बाद हुए प्रोटेस्ट के चलते तमिलनाडु प्रशासन ने सख्ती बरती. उद्योग मंत्री 'थंगम थेनारासु’ ने कहा कि ये फॉक्सकॉन की ज़िम्मेदारी है. सरकार की तरफ़ से फॉक्सकॉन को स्थितियां सुधारने के लिए कहा गया. इस पर फॉक्सकॉन ने जवाब दिया कि हम कामगारों की वर्किंग और लिविंग कंडीशंस को कानूनी नियमों के तहत बेहतर करेंगे. # ऐपल ने क्या कहा- 29 दिसंबर 2021 को ऐपल और फॉक्सकॉन ने कमियों को स्वीकार करते हुए जवाब दिया.
‘कुछ डोर्मिट्रीज़ और डाइनिंग रूम्स में ज़रूरी मानकों के मुताबिक स्थितियां नहीं हैं, प्लांट का काम-काज तब तक के लिए रोक दिया जाएगा जब तक स्टैंडर्ड्स के मुताबिक सख्ती से सुधार नहीं हो जाते. हम सप्लायर्स से बात कर रहे हैं ताकि जरूरी एक्शन लिए जा सकें और स्थितियां जल्द सुधारी जा सकें.हालांकि वर्कर्स और प्लांट की बदहाली दूर करने के लिए क्या एक्शन लिए जाएंगे ये ऐपल और फॉक्सकॉन के स्पोक्सपर्संस नहीं बता सके. ये ज़रूर कहा गया कि जब तक प्लांट दोबारा नहीं खुलता तब तक वर्कर्स को उनकी सैलरी दिया जाना जारी रहेगा. # ये पहला मामला नहीं है- ये पहली बार नहीं है जब ऐपल के लिए पार्ट्स बनाने वाली किसी दूसरी कंपनी के प्लांट पर ऐसी शिकायतें आई हों. एक और कंपनी Wistron जो भारत में ऐपल के लिए पार्ट्स बनाने का काम करती थी, उसे भी दिसंबर 2020 में ऐपल ने बंद कर दिया था. यहां काम करने वाले हजारों वर्कर्स ने प्लांट में भयंकर तोड़फोड़ कर दी थी. दसियों करोड़ का नुकसान हुआ था. तब वर्कर्स का आरोप था कि उन्हें मेहनताना नहीं दिया जा रहा.
जिसके बाद ऐपल ने प्लांट को ये कहकर बंद कर दिया था कि अब दोबारा किसी ताईवानी कंपनी से तब तक कोई बिज़नेस कॉन्ट्रैक्ट नहीं होगा जब तक वर्कर्स के मुद्दे नहीं निपटा लिए जाते. हालांकि Wistron ने अपना प्लांट कुछ ही महीने बाद दोबारा शुरू कर दिया था, ये कह कर कि वर्कर्स के साथ सभी मुद्दे सुलझा लिए गए हैं.
देश के लगभग सभी बड़े राज्यों में लेबर कोड का ड्राफ्ट तैयार हो चुका है. फैक्ट्रियों में बहुत कम मेहनताने पर काम करने वाले वर्कर्स के मुद्दों पर यूं भी बात होती रहती है, वर्कर्स यूनियन भी बने हैं. लेकिन अभी तक पूरे देश में ऐसा कोई तंत्र नहीं विकसित हो पाया है जो इनकी स्थितियों की चिंता को सही दिशा देता हो. फॉक्सकॉन के प्लांट का बंद होना हाल-फिलहाल तो उन कामगार महिलाओं की जीत कहा जा सकता है जो सड़क पर निकलीं और वर्कप्लेस पर मिलने वाले अपने बेसिक राइट्स के लिए लड़ीं. लेकिन ये समस्या कितनी व्यापक है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है, देश में सैकड़ों विदेशी कॉर्पोरेट्स के प्लांट हैं और विदेशी निवेश बढ़ाने की कवायद में ये लगातार बढ़ रहे हैं.