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राजीव गांधी को मेंढक क्यों कहा करते थे करुणानिधि?

करुणा के बारे में कहा जाता है कि वो 60 साल लगातार विधायक रहे, लेकिन यह सच नहीं है.

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करुणानिधि- पेरियार और अन्नादुरई की छांव से निकल तमिलनाडु के सबसे लोकप्रिय नेता बनने तक का सफर तय किया.

आदमी मर जाता है. फिर उसे अलग अलग ढंग से याद किया जाता है. करुणानिधि को कैसे किया जाए. एक फौरी तरीका है. बता दिया जाए कि अन्नादुरई के बाद डीएमके के मुखिया बने. और सीएम भी. सीएम पांच बार रहे. कुल 19 साल. और पार्टी अध्यक्ष आखिरी तक. कुल 50 साल. 51वां चल रहा था.

पर करुणानिधि इतने समय तक एक राजनीतिक ठिए को कैसे थामे रहे. सिर्फ पॉलिटिक्स इसकी वजह नहीं थी. वजह थी उनकी राइटिंग, जो द्रविड़ आंदोलन से जन्मी थी. हिंदी वाले इस आंदोलन को कैसे समझें. इतना जान लें. ये जाति प्रथा के विरोध में था. ये एक सांस्कृतिक, सामाजिक, साहित्यिक, सिनेमाई और फिर राजनीतिक आंदोलन था. इसका फायदा क्या हुआ. आजादी से पहले ही तमिलनाडु के ओबीसी तबके को, जो कि वहां का 70 फीसदी था, समझ आ गया. आगे बढ़ना है तो पढ़ो. संघर्ष करना है तो पढ़ो. शोषण का जवाब देना है तो पढ़ो. पढ़ाई पर खूब जोर. और फिर सत्ता में आने पर इन पढ़े लिखों को सरकारी तंत्र में, नौकरी में आरक्षण मिला. उद्योग धंधे शुरू करने के लिए मदद मिली. ये वो चीजें थीं, जिन्होंने तमिलनाडु को अव्वल प्रदेश बनाया. इसमें बिलाशक शुरुआती दो दशक के कांग्रेस राज, उस पर भी कामराज का योगदान था. उन्हें आर वेंकटरमन जैसा काबिल उद्योग मंत्री भी मिला था. ये वही वेंकटरमण हैं, जो बाद में देश के उपराष्ट्रपति और राष्ट्रपति बने.


जब करुणा ज्यादा बीमार हुए तो पीएम मोदी उनसे मिलने चेन्नई पहुंचे थे.
जब करुणा ज्यादा बीमार हुए तो पीएम मोदी उनसे मिलने चेन्नई पहुंचे थे.

खैर करुणानिधि पर लौटते हैं. वह बोलते खूब थे. जबान क्या थी, दोधारी तलवार थी. जिसे धार मिली थी तमिल संस्कृति और साहित्य की सान पर. करुणा लिखते भी थे. शुरुआत बाल मैगजीन से हुई. फिर मुरासली निकालने लगे. 1942 में. अभी भी आती है. अब ये डीएमके का मुखपत्र है. 1949 से फिल्मों की स्क्रिप्ट लिखनी भी शुरू की. पहली फिल्म थी राजकुमारी. इसमें लीड रोल में थे मलयालम बैकग्राउंड के एमजी रामचंद्रन मेनन. बाद में दोनों पक्के दोस्त बने. फिर और भी पक्के दुश्मन. पहले करुणानिधि, दूसरे एमजीआर.


एमजीआर और करुणा कभी दोस्त रहे लेकिन बाद में दोनों के बीच आखिर तक लड़ाई चलती रही. (फोटो- रेडिफ)
एमजीआर और करुणा कभी दोस्त रहे लेकिन बाद में दोनों के बीच आखिर तक लड़ाई चलती रही. (फोटो- रेडिफ)

करुणानिधि सिर्फ फिल्में ही नहीं लिखते थे. कविताएं, उपन्यास और नाटक भी. उनका लेखन करियर अखबार के लिए लेखों और नाटकों से ही शुरू हुआ. मगर फिल्मों के लिए लिखने के बाद वह घर-घर में जाने जाने लगे. आप यूं समझो कि जो जलवा सलीम जावेद का था, उसका दस गुना करुणानिधि का था. पचास के दशक में एक फिल्म आई थी पराशक्ति. इसमें शिवाजी गणेशन लीड रोल में थे. तब वह नए नवेले हीरो थे. बाद में स्टारडम हासिल किया. पराशक्ति एक औरत पर हुए अत्चायार की कहानी है. एक पंडित, एक जमींदार और एक साहूकार कैसे उसका शोषण करते हैं. आखिरी में कोर्ट में गणेशन पूरे समाज को, इसके घटिया तंत्र को लताड़ लगाते हैं. ये करुणानिधि की लिखी पंक्तियां थीं. जो बाद में एक किस्म का एंट्री पास बन गईं. कमल हासन के मुताबिक हम पराशक्ति के डायलॉग दोहरा कर ये साबित करते थे कि हम एक्टिंग सीख गए हैं.


फिल्म का एक सीन जिसमें शिवाजी गणेशन एक अदालत में खड़े दिख रहे हैं.
फिल्म का एक सीन जिसमें शिवाजी गणेशन एक अदालत में खड़े दिख रहे हैं.

करुणानिधि अपने सेंस ऑफ ह्यूमर के लिए भी विख्यात और कुख्यात थे. आपके पाले के हिसाब से ख्याति तय हो सकती है. उनके सपोर्टर इसे कमाल का बताते थे. विरोधी बिलो द बेल्ट कहते थे. पांच उदाहरण सुनिए. फिर गुनिए. आप किस तरफ हैं.

पहला किस्सा

1985 के लोकसभा चुनाव. प्रधानमंत्री राजीव गांधी का गठजोड़ था एडीएमके के एमजी रामचंद्रन के साथ. एमजीआर के विरोध में थे डीएमके के करुणानिधि. उनका गठजोड़ जनता पार्टी के धड़ों और कम्युनिस्टों के साथ था. राजीव गांधी ने एक चुनावी रैली में करुणानिधि के गठजोड़ की खिल्ली उड़ाते हुए कोयंबटूर की एक चुनावी रैली में कहा कि उनका हाल केकड़ों से भरी बाल्टी सा है. जैसे ही कोई रेंगकर ऊपर चढ़ता है और बाहर आने की कोशिश करता है. बाकी उसे अंदर खींच लेते हैं.

करुणानिधि ने अगली रैली में राजीव के इस तंज का जवाब दिया. वह बोले, केकड़ा अपनी घातक पकड़ के लिए जाना जाता है. हमारी पकड़ है. जनता पर. इसलिए हमें केकड़े कहलाए जाने में कोई दिक्कत नहीं. लेकिन अगर हम केकड़ा हैं तो एआईएडीएमके और कांग्रेस आई का गठजोड़ मेंढक और चूहे के साथ जैसा है. मेंढक चूहे को पानी में खींचेगा और चूहा मेंढक को जमीन पर. ऐसे में न उनकी जमीन पर पकड़ रहेगी न पानी में. तब आएगा एक बाज और एक ही छपट्टे में दोनों को खा जाएगा.


करुणानिधि ने सीधे राजीव गांधी को चैलेंज किया था.
करुणानिधि ने सीधे राजीव गांधी को चैलेंज किया था.

ये तो हुई रूपक की बात. नतीजों में बाज साबित हुए एमजीआर. करुणानिधि की पार्टी को लगातार तीसरे चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. वह इस बार खुद विधानसभा चुनाव नहीं लड़े थे. वह पिछली विधानसभा के कार्यकाल शुरू होने के दो बरस बाद ही 1982 विधायकी छोड़ चुके थे. उन्होंने इस्तीफा दिया था भारत सरकार की श्रीलंका नीति के विरोध में. करुणानिधि हमेशा ही तमिल कारकों के साथ रहे. इसलिए श्रीलंका में उत्तरी इलाकों में तमिलों पर हो रहे अत्याचार में उनका पक्ष स्पष्ट था. जबकि केंद्र सरकार श्रीलंका की सरकार के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध चाहती थी.

करुणानिधि को लगा कि उनके इस्तीफे का राजनीतिक फायदा होगा. मगर एक बरस के अंदर ही उन्हें समझ में आ गया कि असली लड़ाई तो विधानमंडल में ही लड़ी जाएगी. इसलिए वह विधान परिषद के रास्ते 1983 में फिर विधायक बन गए. करुणानिधि के बेटे स्टालिन जरूर 1985 का चुनाव लड़े थे और कांग्रेस के कैंडिडेट से दो हजार वोटों से हार गए थे. इंदिरा की हत्या के बाद उपजी लहर में शायद ही कोई विरोधी बचा हो.

दूसरा किस्सा

एमजीआर की पार्टी एआईएडीएमके 1985 में लगातार तीसरी बार तमिलनाडु में चुनाव जीती. तीन वजहें रहीं जीत की.

1. इंदिरा लहर. राजीव नए नवेले प्रधानमंत्री थे. उन्होंने खूब प्रचार किया. एआईएडीएमके और कांग्रेस गठबंधन के लिए.

2. एमजीआर के प्रति सहानुभूति. एमजीआर एक बरस से बीमार थे. चुनावों के वक्त वह न्यू यॉर्क में भर्ती थे. किडनी ट्रांसप्लांट हुआ था उनका. वहीं से उन्होंने वोटरों से अपील की.

3. एमजीआर की खास और पार्टी की पूर्व प्रचार प्रमुख, जयललिता जयराम. वह भी एमजीआर की तरह सिनेमाई बैकग्राउंड से थीं. वह भी लच्छेदार जुबान में भाषण देती थीं. एमजीआर की गैरमौजूदगी में ये जयललिता ही थीं, जिन्होंने करुणानिधि के धारदार बयानों का जवाब दिया.


जवानी के दिनों में करुणानिधि. 60 के दशक के बाद काला चश्मा उनका ट्रेडमार्क बन गया.
जवानी के दिनों में करुणानिधि. 60 के दशक के बाद काला चश्मा उनका ट्रेडमार्क बन गया.

लेकिन दो साल में ही सब कुछ बदल गया. एमजीआर गुजर गए. साल के आखिरी महीने में. और फिर उनकी पार्टी में फूट पड़ गई. एक धड़ा जयललिता के साथ. एक पत्नी जानकी रामचंद्रन के. कांग्रेस ने जानकी का सपोर्ट किया. वह मुख्यमंत्री बन गईं. उन्हें बहुमत साबित करने के लिए तीन हफ्ते मिले. लेकिन फिर राजीव गांधी को खबर मिली कि अन्ना द्रमुक के समर्थक उनके ही विधायकों को तोड़ने में लगे हैं. बहुमत साबित करने के लिए जो दिन तय हुआ, उसी दिन सुबह राजीव ने नॉर्थ ईस्ट से पार्टी के प्रदेश मुखिया जीके मूपनार को फोन किया और कहा, सरकार गिरा दो. लेकिन सदन में स्पीकर ने पक्षपातपूर्ण व्यवहार किया. जूतम पैजार हुई. लाठीचार्ज हुआ. और फिर विवादित ढंग से जानकी ने बहुमत सिद्ध कर दिया. राजीव ने यह अकड़ बर्दाश्त नहीं की. तमिलनाडु सरकार बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया. 1989 की शुरुआत में वहां चुनाव हुए.

ये चतुष्कोणीय चुनाव था. एक तरफ द्रमुक, करुणानिधि के नेतृत्व में. 1977 से सत्ता में लौटने का ख्वाह देखता. दूसरी तरफ, कांग्रेस. राजीव गांधी की लोकप्रियता के सहारे. जीके मूपनार को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करती. तीसरी तरफ, जानकी रामचंद्रन, पति एमजीआर का नाम लेकर मैदान में. और जयललिता. अपने धड़े को असली एआईएडीमके बताने वाली. जयललिता का चुनाव निशान था मुर्गा. करुणानिधि इसकी खूब खिल्ली उड़ाते. कहते जब मुर्गा बांग देता है तब कौन आता है. मुर्गा नहीं आता. सूरज आता है. सूरज उगता हुआ. ये करुणानिधि की पार्टी का चुनाव निशान था.


करुणानिधि राजीव गांधी के साथ, बाद में उनकी हत्या में करुणा के शामिल होने के आरोप लगे थे.
करुणानिधि राजीव गांधी के साथ, बाद में उनकी हत्या में करुणा के शामिल होने के आरोप लगे थे.

नतीजे आए और सूरज उगा. करुणानिधि तीसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने. हालांकि दो साल में ही उन्हें चंद्रशेखर की सरकार ने लिट्टे से संबंधों के इल्जाम में चलता कर दिया. चंद्रशेखर पर राजीव गांधी का दबाव था. उनके ही समर्थन से चंद्रशेखर की सरकार चल रही थी. इसके अलावा एआईएडीएमके के 11 सांसदों का भी दबाव था.

तीसरा किस्सा

1989 के चुनाव में एक और नई बात हुई. वीडियो कैसेट से चुनाव प्रसार. देश ने इसका सबसे मॉर्डन संस्करण 2014 के चुनाव में देखा. जब नरेंद्र मोदी का प्रचार करती हुई एलईडी से सजी गाड़ियां गांव कस्बों में घूमीं. 89 में इसकी शुरुआत कांग्रेस ने की. फिर एआईएडीएमके ने जयललिता और एमजीआर की फिल्में वीडियो पर दिखानी शुरू कीं. गांवों में गाड़ियां जातीं. उन पर कलर टीवी बंधे होते. और उन पर ये फिल्में चलतीं. सिनेमाघरों में भी ये फिल्में नए सिरे से रिलीज की गईं. करुणानिधि यहां पर अपने दोनों मुख्य विरोधियों पर इक्कीस साबित हुए.

डीएमके ने तीन वीडियो फिल्म बनाईं. इन तीन कैसेट्स के टाइटल थे-

1. सोलवाडा शीवोम यानी हमें वही करना चाहिए जो हम कहते हैं

2. उदमपेर्वा ओडिवा यानी प्रिय भाई, आओ और सुनो

3. कलईगनार वेत्री मुरासु यानी कलईनार की जीत

पहली फिल्म की कहानी में बोफोर्स मेन थीम है. पत्नी कांग्रेस सपोर्टर है. पति उसे डीएमके के पक्ष में समझाता है. तब पत्नी कहती है, मैंने कांग्रेसियों से घूस ली थी. पब्लिक मीटिंग में जाने और वोट के लिए. इस बातचीत के दौरान ही उसकी पढ़ी लिखी ननद आती है और बोफोर्स घोटाले के बारे में बताती है. तब पत्नी राजीव गांधी के मोह से मुक्त होती है.


जयललिता और करुणानिधि के बीच पूरे करियर में खींचतान चलती ही रही.
जयललिता और करुणानिधि के बीच पूरे करियर में खींचतान चलती ही रही.

तीसरी फिल्म में दो औरतें पानी के लिए झगड़ रही हैं. फिर दोनों एक दूसरे पर अपने पति के साथ सोने का इल्जाम लगा रही हैं. ये रेफरेंस है जानकी और जयललिता के लिए. जो एमजीआर की विरासत पर दावा कर रह थीं.

चौथा किस्सा

1991 में चुनाव हुए तो जयललिता जीतीं. कांग्रेस के सपोर्ट से. पहली बार मुख्यमंत्री बनीं. उनकी वह शपथ पूरी हुई जो विधानसभा में मारपीट के बाद उन्होंने सदन से बाहर आकर ली थी. दोबारा सदन में तभी आऊंगी जब सीएम बन जाऊंगी. लेकिन उनकी पांच साल की सरकार विवादों में रही. सबसे ज्यादा विवाद हुआ उनकी सहेली शशिकला के भतीजे सुधाकरन की शाही शादी पर.


तमिल राजनीति में करुणा का अपना करिश्मा था लेकिन अब इस स्पेस को कौन भरेगा?
तमिल राजनीति में करुणा का अपना करिश्मा था लेकिन अब इस स्पेस को कौन भरेगा?

1996 में कार्यकाल पूरा होने पर चुनाव हुए. डीएमके ने अपनी सबसे बड़ी जीत दर्ज की. खुद जयललिता चुनाव हार गईं. जीत के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस के लिए पहुंचे करुणानिधि. एक पत्रकार ने कहा, कब होगी आपकी ताजपोशी. करुणा ने अपने विट का प्रदर्शन करते हुए कहा. मेरे सर को देखिए. इस पर बाल तक नहीं टिकते. ताज कहां से टिकेगा. ये दोधारी बयान था. वह एक झटके में ताज और राजशाही के प्रतीकों को ध्वस्त कर रहे थे.

पांचवा किस्सा

2001 में करुणानिधि सरकार ने अपने पांच साल पूरे किए. चुनाव हुए. इस बार वह खेत रहे और जयललिता ने जोरदार वापसी की. इसी हार के बाद 30 जून की रात करुणानिधि को रात 1 बजे घर से पुलिस घसीट कर ले गई थी. हालांकि केंद्र सरकार के दखल के बाद उन्हें एक हफ्ते में ही जमानत मिल गई. बाद में कोर्ट में वह केस खारिज हो गया, जिसके बिना पर गिरफ्तारी हुई थी. क्या था ये इल्जाम. यही कि करुणानिधि ने चेन्नई में बने फ्लाईओवर के लिए 12 करोड़ रुपये का गबन किया था.


पुलिस करुणानिधि के घर में घुसी और इस तरह घसीटते हुए गिरफ्तार कर लिया | The Lallantop
पुलिस करुणानिधि के घर में घुसी और उन्हें इस तरह घसीटते हुए गिरफ्तार कर लिया गया था.
Posted by The Lallantop
on Tuesday, August 7, 2018

पांच साल जयललिता सरकार चली. 2006 के चुनाव में डीएमके ने कांग्रेस के समर्थन से वापसी की. और तब करुणानिधि ने आखिरी यानी पांचवीं बार मुख्यमंत्री के पद की शपथ ली. उनके कार्यकाल के तीसरे बरस में ही सेहत खराब रहने लगी. तभी लोकसभा चुनाव आए. साल था 2009. उन्होंने ज्यादातर प्रचार व्हीलचेयर पर बैठकर किया. एक बार एक रैली में उनकी तबीयत खराब हुई. एयर एंबुलेंस से चेन्नई लाना पड़ा. रास्ते में डॉक्टर उनका मुआयना कर रहे थे. किसी बातचीत के दौरान उनके मुंह से एक्पायर यानी खत्म होना निकला. डॉक्टर दवाइयों के संबंध में बात कर रहे थे. मगर करुणानिधि को लगा कि उनके बारे में बात हो रही है. उनका सेंस ऑफ ह्यूमर फिर हिलोरे मारने लगा. वह बोले, एक्सपायर ही होना होता तो तुम लोगों के पास क्यों आता.

मगर मौत तो एक दिन आती ही है. 7 अगस्त को वह 94 साल के करुणानिधि के सिरहाने आ गई. वह गुजर गए. द्रमुक राजनीति का एक दौर उनके साथ गुजर गया. पीछे रह गए उनके अफसाने.




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