आपको तो पता ही होगा कि मैंने 'प्यारे पिताजी' क्यूं नहीं लिखा. क्योंकि न आप 'प्यारे पिता' हो न 'प्यारे इंसान'. पांच साल हो गए मुझे लड़ते-लड़ते. इतनी थक गई हूं कि ये चिट्ठी लिखने का भी मन नहीं है, पर लिखनी तो है. मेरे भाइयों को ये चिट्ठी-विट्ठी लिखने का कुछ पता नहीं है. मां को आपके ड्रामों से ही फुरसत नहीं है. वो तो क्या ही लिखेंगी. वो लड़कियां भी शायद नहीं लिखें, जिनके पिता आपकी तरह हैं. क्या फायदा ऐसी चिट्ठी लिखने का. अच्छे घरों के लड़के उनसे शादी करने को मना कर देंगे. ऐसे में ताऊ-चाचा किसी बड़ी उम्र के लड़के से शादी करा दें. या चिट्ठी पढ़कर कोई गंदी गाली दे दे. इसलिए ये बातें घर की चारदीवारी में छुपा लो. छुपाना ही सही है. बताया तो बदनामी होगी. शराबियों के बच्चों को बहुत सारे डर हैं.
मैंने भी छुपाया है. आपका सच. जब मेरी दोस्त बोलती हैं कि वो अपने पापा के इतने क्लोज हैं, उनके पापा उनके हीरो हैं, तो बुरा लगता है, मेरे पापा ऐसे क्यों हैं. लेकिन अब चाहे अच्छे घर का लड़का मुझसे शादी करे या न करे. चाहे शादी ही न हो. डर नहीं है. मन है कि आपके और आपके जैसे बनने वालों के लिए खुद पर बीता सारा सच लिख दूं. क्या गुजरती है उनकी पत्नियों, बच्चों और मां -बाप के साथ.
जब आपने पीनी शुरू की थी. तब हम बच्चे थे. मालूम नहीं था कि जो आप ये शौकिया पी कर आते हो, वो कल हमारी जिंदगी का नरक बन जाएगा. आपको याद नहीं है, लेकिन हमें स्कूल मास्टर फीस ना देने के लिए क्लास के बाहर निकाल देते थे. एक-दो घंटे खड़े रहने के बाद अंदर भी बुला लेते थे.
घर आकर रोते. अगले दिन फिर स्कूल जाते. आपके पास दारू के पैसे तो थे, लेकिन हमारी किताबों के लिए एक धेला नहीं था. किताबें भी स्कूल वाले दे देते थे. बोर्ड टॉप करते और उनकी किताबों का खर्चा पूरा हो जाता.
आपको ये भी नहीं पता होगा कि आपके बेटे रात को एग्जाम्स के लिए पढ़ने की बजाय गलियों में घूम रहे होते. पंचायती भवन , शमशान खाट या नहर की तरफ. आपको खोजने कहां-कहां नहीं जाते थे. उनको भी भौंकते कुत्तों से डर लगा होगा. गली में कहीं भूत दिखे होंगे, पर आपको ढूंढ लाना भी जरूरी होता था.जब रात को मोहल्ले के बच्चे टीवी देख रहे होते, तब मम्मी मुझे रोटी बनाने को बोलकर बाहर देखने जाती. फिर कभी मुझे भेजती. कितनी ही बार मम्मी कितने ही बाबाओं के पास गईं. मम्मी कहा करतीं, 'जी इसनै कोए पिला दे है, यो तो खुद तो नहीं पीता, कोई जरूर कुछ मिला के देता है.'
मां का ये झूठ उनके मुंह से कितनी तकलीफ के बाद निकलता था, शायद आप कभी न समझ पाओ पिताजी. हमारी हालत के लिए मां को कोसना आपको चाहिए था, पर वो कोसती वो भाग्य को थी. पचास हजार रुपये की दारू का कर्जा हमने उतारा. तीन-चार साल तक कपड़े सील कर. हमारी उम्र के बच्चे बड़े हो रहे थे 'फ्यूचर प्लानिंग' के साथ. हम हो रहे थे 'गालियों की किताब' के साथ. दो रुपये की आइसक्रीम तक खाने के लिए मोहल्ले की परमिशन चाहिए होती थी.
'थारा बाप दारु पीवे और थमन आइसक्रीम भावे? चालो अड़े तै'