
FIAF Awards यानी इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फिल्म अवॉर्ड ट्रॉफी.
# FIAF Awards कब से शुरू हुए और किसे दिए जाते हैं? FIAF Awards की शुरुआत साल 2001 में हुई. हर साल होने वाले इस फंक्शन में फिल्म से जुड़े लोगों को ये सम्मान दिया जाता है. वो लोग जिन्होंने किसी ना किसी तरीके से फिल्मों या फिल्म से जुड़ी चीज़ों को सहेजने में योगदान दिया हो. इस अवॉर्ड के लिए हर साल दुनिया भर से नॉमिनेशन्स आते हैं. जिसके बाद FIAF की एक्ज़ीक्यूटिव कमेटी इसके विनर की अनाउंसमेंट करती है.

साल 2001 में ये अवॉर्ड डायरेक्टर मार्टिन स्कोर्सेसे को दिया था. (फोटो क्रेडिट- FIFA ऑफिशियल वेबसाइट)
# अमिताभ बच्चन को कैसे मिला अवॉर्ड? दरअसल अमिताभ बच्चन बीते कई सालों से इंडिया की नॉन प्रॉफिट ऑर्गनाइज़ेशन 'फिल्म हैरिटेज फाउंडेशन' का हिस्सा हैं. ये फाउंडेशन साल 2014 में शुरू की गई थी. ऐसे समझिए कि इसका काम भी वही है जो इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फिल्म आर्काइव्स कर रही है. ये फाउंडेशन इंडिया में बनने वाली हर तरह की फिल्मों को सहेजने का काम करती है. इस फाउंडेशन की ओर से ही अमिताभ बच्चन का नाम FIAF Awards 2021 में दिया गया था. जिसके बाद वो इंडिया के पहले ऐसे स्टार बन गए हैं, जिन्हें ये अवॉर्ड दिया गया है.

इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ फिल्म अवॉर्ड शो के वर्चुअल फंक्शन में अमिताभ बच्चन.
# अमिताभ का क्या है कॉन्ट्रीब्यूशन बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमिताभ बच्चन ने अपने मुंबई वाले घर में अपनी 60 फिल्मों की ओरिजनल कॉपी को प्रिज़र्व करके रखा है. यहां ये बताना ज़रूरी है कि उस समय की फिल्म 16 एमएम (समय के साथ इसमें भी बदलाव आते गए) की रील्स पर बनाई जाती थीं. जिन्हें खास तरह के टेम्प्रेचर पर स्टोर करके रखा जाता है. वरना ये रील्स बेकार हो जाती हैं. सिर्फ यही नहीं, फिल्म हैरिटेज फाउंडेशन के माध्यम से अमिताभ अक्सर ये अपील भी करते हैं कि लोग किसी ना किसी तरह इस फाउंडेशन को सपोर्ट करें और अपना कॉन्ट्रीब्यूशन दें. ताकि आने वाली पीढ़ियों को हमारे फिल्मी इतिहास के बारे में पता हो.

फिल्म रील्स को स्टोर कुछ इस तरह से किया जाता है.
# भारत में हर साल कितनी फिल्में बनती हैं? ऊपर पढ़कर शायद आपका दिमाग सिर्फ बॉलीवुड या साउथ इंडस्ट्री में बनने वाली फिल्मों पर ही गया होगा. मगर आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि भारत, हर साल 36 भाषाओं में लगभग 2000 फिल्मों को प्रोड्यूस करता है. इंडिया उन 10 मेजर फिल्म इंडस्ट्रीज़ में से एक है जो इतनी बड़ी संख्या में फिल्में बनाते हैं. मगर इन सभी फिल्मों के संरक्षण के लिए पूरे भारत में सिर्फ दो संस्थाएं है. एक सरकारी और दूसरी गैर सरकारी.
सरकारी संस्था है 'नेशनल फिल्म आर्काइव्स ऑफ इंडिया'. जिसके फाउंडर हैं पीके नायर. ये राष्ट्रीय फिल्म संग्रहालय पुणे में स्थित है. दूसरा है 'फिल्म हैरिटेज फाउंडेशन'. जिसे चलाते हैं शिवेन्द्र सिंह. # क्यों ज़रूरी है ये आर्काइव्स? अब सवाल आता है कि ये आर्काइव्स आखिर इतने ज़रूरी क्यों हैं? क्योंकि दुनिया भर में हर साल हज़ारों फिल्में बनाई जाती हैं. कुछ फिल्में सक्सेसफुल रहती हैं. मगर कुछ फिल्में बुरी तरह पिट जाती हैं. आज से 100 साल बाद इन सभी फिल्मों का लेखा-जोखा जानने के लिए ज़रूरी है कि इन्हें संभाल कर रखा जाए. नेशनल फिल्म आर्काइव्स ऑफ इंडिया की मानें तो रील्स में रिकॉर्ड की गई फिल्मों की क्वालिटी आज भी सबसे बेहतर मानी जाती है.

# बहुत सी फिल्मों की नहीं है ओरिजनल कॉपी साल 1931 में आई पहली बोलती फिल्म 'आलम आरा' और पहली रंगीन फिल्म 'किसान कन्या' की ओरिजनल कॉपी का आज कोई रिकॉर्ड नहीं है. शिवेन्द्र सिंह ने बीबीसी को बताया कि,
''इंडिया में बनी 1,138 मूक फिल्मों में से सिर्फ 29 फिल्मों के ओरिजनल्स हमारे पास मौजूद हैं. इनमें से 80 प्रतिशत फिल्में उस समय की बम्बई में बनाई गई थी. कुछ समय पहले मुंबई के एक वेयरहाउस में करीब 200 फिल्मों के नेगेटिव्स और प्रिंट्स मिले थे. जिन्हें बस ऐसे ही छोड़ दिया गया था.''सरकारी ऑडिटर्स की मानें तो 31 हज़ार फिल्मों की रील्स या तो खराब हो चुकी हैं, या किसी ना किसी तरह से खत्म हो चुकी हैं. उनके कोई भी रिकॉर्ड नहीं है. # अमिताभ बच्चन ने क्या कहा था दो साल पहले कोलकाता में हुए इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में अमिताभ बच्चन ने कहा था,
''हमारी पीढ़ी भारतीय सिनेमा के दिग्गजों के अपार योगदान को पहचानती है, लेकिन दुख की बात ये है कि उनकी ज़्यादातर फिल्में आग की लपटों में चली गई हैं या कूड़े के ढेर में छोड़ दी गई हैं.''अमिताभ बच्चन को ये अवॉर्ड अमेरिकी फिल्म डायरेक्टर मार्टिन स्कोर्सेसे और क्रिस्टोफर नोलन ने दिया है. इन दोनों को ही साल 2001 और 2017 में इस अवॉर्ड से सम्मानित किया जा चुका है. अगर आपने ये शो नहीं देखा तो यहां देख सकते हैं-
"हमारी फिल्मों को हैरिटेज करने में बहुत सारी कमियां हैं. अगर हमने जल्दी ही इस पर एक्शन नहीं लिया तो आने वाले 100 सालों में उन लोगों की कोई पहचान नहीं होगी जो हमसे पहले सिनेमा में योगदान दे गए हैं."