
यह आर्टिकल हमें IIMC में पढ़ाई कर रहे शुभम सिंह ने भेजा है. शुभम ने हमसे वादा किया था कि दोनों पक्षों को आपके सामने प्रस्तुत करने का पूरा प्रयास करेंगे. उनका प्रयास कितना सफल हुआ है, पढ़ो और बताओ. अपने विचार भी कमेंट करना मत भूलियेगा.
कौन कमबख्त पढ़ने के लिए क्लास करता है. हम तो अटेंडेंस के लिए करते है. 'ये किसी फिल्म का डायलाग नहीं है. हकीकत है. ये पुकार है. ये आवाज़ है देश के प्रतिष्ठित विश्व विद्यालय के छात्र-छात्राओं की. 2014 में सत्ता परिवर्तन के बाद से नेहरू और उनके नाम से जुड़ा यह विश्व विद्यालय लगातार चर्चा में है. कभी विश्व विद्यालय में टैंक रखने को लेकर तो कभी ‘भारत की बर्बादी’ के नारे को लेकर. 2016 में तो गूगल बाबा भी एंटीनेशनल का पता पूछने पर जेएनयू ही पहुंचाते थे. अब ताज़ा बवाल है मजबूरी में क्लास करने का. ये मजबूरी है 75 फीसदी क्लास अटेंड करने की. अगर नहीं करेंगे तो स्कॉलरशिप रुक जाएगी. परीक्षा में बैठने नहीं दिया जाएगा.

यूनिवर्सिटी प्रशासन की तरफ से जारी सर्कुलर
पूरे भारत से स्टूडेंट्स यहां पढ़ने आते हैं.. ये कैंपस मिनी भारत जैसा है. यूजीसी की गाइडलाइन से चलने वाले इस विश्व विद्यालय का अपना भी संविधान है. इस संविधान के तहत जेएनयू की प्रवेश परीक्षा में जो बच्चे देश के दूर और पिछड़े इलाके से आते है उन्हें 5 नंबर एक्स्ट्रा मिलता है. लड़कियों को भी 5 अतिरिक्त अंक देने का प्रावधान है. इसी संविधान के तहत यहां क्लास में हाजिरी लगाने की कोई बाध्यता नहीं है. इस विश्व विद्यालय में शिक्षक छात्रों से कैंपस के किसी ढाबे पर क्लास लेते हुए देखे जा सकते हैं. वो भी चाय और पकोड़े के साथ. ये पढ़ने और पढ़ाने वाले के आपसी तालमेल से होता है. अब अगर जेएनयू वाले पढ़ना नहीं चाहते और सिर्फ राजनीति ही करते तो इतने सालों से जेएनयू देश में टॉप पर कैसे बना हुआ है? ऐसी क्या बात है कि जेएनयू को सर्वेश्रेष्ठ यूनिवर्सिटी का राष्ट्रपति पुरस्कार मिला है? वर्तमान रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण तथाकथित देशद्रोहियों का अड्डा माने जाने वाले जेएनयू से ही अपने ज्ञान अर्जित करके निकली है.

अटेंडेंस अनिवार्य करने पर प्रदर्शन शुरू हुए
क्यों हुआ प्रदर्शन
48 साल से चली आ रही इस शिक्षा पद्धति से न तो पढ़ने वाले को कोई दिक्कत हुई और न पढ़ाने वाले को. तो फिर ऐसा क्या हो गया कि जेएनयू में इस चीज़ को लेकर अचानक से हाय-तौबा मच गई. बीते 22 दिसम्बर को जेएनयू में विश्वविद्यालय प्रशासन ने एक सर्कुलर जारी किया था. इस सर्कुलर में कहा गया कि अकादमिक काउंसिल ने एक दिसंबर को आयोजित अकादमिक काउंसिल की 144वीं बैठक में सभी पंजीकृत छात्रों की उपस्थिति अनिवार्य करने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी है. शीतकालीन सत्र 2018 से सभी विभागों मतलब बीए, एमए, एमफिल और पीएचडी के छात्र-छात्राओं के लिए अटेंडेंस ज़रूरी होगी. यहीं से विरोध के सुर जेएनयू के आसमान में गूंजने लगे. अपने प्रोटेस्ट कल्चर के लिए प्रसिद्ध जेएनयू ने अपनी परंपरा के साथ न्याय किया.
प्रदर्शन की एक और तस्वीर
अनिवार्य उपस्थिति के फरमान को लेकर छात्रों ने कुलपति से चर्चा करना चाही. कुलपति के न मिलने पर नाराज कुछ छात्रों ने जेएनयू के प्रशासनिक ब्लॉक का घेराव किया और विश्व विद्यालय के दो वरिष्ठ रेक्टर को घंटों भवन से नहीं निकलने दिया. इस घटना को लेकर छात्रों के (खासकर जेएनयू के) मुद्दे पर हमेशा सक्रिय रहने वाली दिल्ली पुलिस ने विश्व विद्यालय के कुछ छात्रों के खिलाफ दो FIR दर्ज की. जेएनयू में मचे बवाल के बीच प्रशासन ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर जेएनयू छात्रसंघ को एडमिन ब्लॉक में प्रदर्शन न करने की सख्त हिदयात दी. कोर्ट ने एडमिन ब्लॉक के 100 मीटर के दायरे में प्रदर्शन पर रोक लगा रखी है. हालांकि कोर्ट ने साबरमती ढाबे के पास शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने की छूट दे रखी है.
क्या है तकनीकी दिक्कत
जवाहरलाल नेहरू विश्व विद्यालय के छात्र ‘जहां ज्ञान बंट रहा वहां से अर्जित करो’ की पद्धति पर चलते है. छात्र विश्व विद्यालय में दाखिला लेने के पहले दिन से ही केवल एक कॉलेज या विषय तक ही सीमित नहीं रहते. वे दूसरे कॉलेज और सेंटरों के विषय भी चुनते हैं. इसीलिए उनकी उपस्थिति का कोई लेखा-जोखा नहीं रखा जाता. अब इस 75 फीसदी अनिवार्यता से छात्रों की हाजिरी का हिसाब-किताब कैसे रखा जाए ये सबसे बड़ा और जटिल सवाल है. जेएनयू छात्रसंघ अध्यक्ष गीता कुमारी के अनुसार प्रशासन ने अपना फरमान तो जारी कर दिया है लेकिन इसको लेकर कोई रास्ता नहीं सुझाया है. यहां पर छात्रों के नंबर और उनकी स्कॉलरशिप उनके द्वारा कक्षा में किए गए प्रदर्शन पर निर्भर होता है. इसमें सेमिनार, प्रजेंटेशन, समय-समय पर होने वाले टेस्ट जैसी कई तरह की प्रक्रिया शामिल होती है.
कैंपस में छपे परचे
इस आदेश के आने से सबसे बड़ी दिक्कत शोध कर रहें छात्रों के साथ होगी. एम.फिल के द्वितीय वर्ष के छात्र एवं पीएचडी कर रहे छात्रों के लिए जेएनयू में कोई क्लास नहीं होती. इन छात्रों को अपना पूरा ध्यान रिसर्च पर लगाना होता है. इनमें से कई शोधार्थी ऐसे होते है जो किसी विश्व विद्यालय में पढ़ा रहे होते है या किसी दुसरे संस्थान में शोध के लिए गए होते है. अब इन्हें हर दिन हाज़िरी लगाने के लिए कैंपस में आना होगा.
इस मुद्दे पर सब एकजुट
75 फीसदी अटेंडेंस के विरोध में सभी छात्र संगठन एक साथ मैदान में है. जेएनयू छात्र संघ अध्यक्ष गीता कुमारी का कहना है “हमारे कुलपति हमसे बात करने को तैयार नहीं है. हमारे उपर नियमों को थोपा जा रहा है. हम पढाई के विरोध में नहीं है. हम इस तरह के फरमान का विरोध कर रहें हैं.” एबीवीपी के जेएनयू इकाई के प्रवक्ता विजय जी का कहना है "विद्यार्थी परिषद् इस अनिवार्य अटेंडेंस का विरोध करती है लेकिन सबके विरोध करने का तरीका अलग है. हमनें कोर्ट के किसी आर्डर की अवमानना न करते हुए संवैधानिक तरीके से विरोध जताया है" .छात्रसंघ के साथ साथ शिक्षक संघ भी प्रशासन द्वारा जारी नए फरमान के विरोध में है.शिक्षक संघ की अध्यक्ष आयशा किदवई ने कहा कि ग़ैरहाज़िरी से निपटने के लिए कई अन्य तरीके पहले से मौजूद थे. लेकिन अनिवार्य उपस्थिति उनमें शामिल नहीं थी. किदवई ने अपने पत्र में कहा "हम इस जबरन थोपे हुए आदेश का कोई भी अंश लागू नहीं करना चाहते. क्योंकि हमारे शैक्षणिक तौर-तरीके छात्रों को सिखाने के लिए थे केवल उनकी मौजूदगी भर के लिए नहीं." जेएनयू के शिक्षक संघ के जॉइंट सेक्रेटरी सुधीर कुमार सूथर का कहना है कि यह एक मानवीय दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए सिस्टम के अटपटे नियमों के खिलाफ लड़ाई है. एक्टिविस्ट मधु किश्वर ने 17 फरवरी की रात ट्वीट किया कि ये बेहद चौकाने वाली बात है. कि एकेडमिक काउंसिल के बिना पास किए जेएनयू के कुलपति ने इसको लागू कर दिया. मधु किश्वर एकेडमिक काउंसिल की सदस्य भी हैं.

तस्वीर का दूसरा पहलू
8 हज़ार पढ़ने वालों और 600 के आसपास पढ़ाने वालों के बीच में कोई तो होगा जिसको रोज क्लास जाने का मन करता होगा. उसे कुलपति द्वारा जारी किए सर्कुलर फरमान नहीं लगते होंगे. चूंकि जेएनयू हर तरह के विचारों को समाहित करने के लिए जाना जाता है इसलिए ऐसे लोग भी यहां मिलेंगे जो इस आदेश का समर्थन करते है. इस बारे में जेएनयू के लाइफ साइंस के प्रोफेसर अतुल जोहरी का कहना है जेएनयू ऑर्डिनेंस 1970 के 10(c) का क्लॉज़ है. जिसके तहत यह कहा गया है कि संकाय प्रमुख ये सुनिश्चित करें कि अटेंडेंस की प्रक्रिया पूरी हो रही है.जेएनयू यूजीसी के तहत चलता है जो केवल 30 अतिरिक्त छुट्टियों की इजाज़त देती है. इसलिए 75 फीसदी अनिवार्य उपस्थिति करना ही पड़ेगा. इस प्रक्रिया से किस तरह का बदलाव आएगा? इस सवाल पर अतुल जोहरी ने बताया कि इससे ड्रॉपआउट रेट घटेगा और ज्यादा से ज्यादा छात्र प्लेसमेंट की प्रक्रिया में भाग ले सकेंगे. क्यू.एस. रैंकिंग में एक पैमाना प्लेसमेंट का भी होता है. इससे विश्व विद्यालय की रैंकिंग विश्वस्तर पर बढ़ेगी. भारत के कई अच्छे संस्थान आईआईटी और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस में ही नहीं इंग्लैंड के कैंब्रिज यूनिवर्सिटी, जो अपनी एकेडमिक गुणवत्ता के लिए जाना जाता है उसमें भी अनिवार्य उपस्थिति का प्रावधान है.
जेएनयू में चौथे साल के शोधार्थी दिनेश अशोक है. उनके हिसाब से "भारत में जितने भी विश्व विद्यालय है वो यूजीसी के निर्देशानुसार चलते हैं. उसके हिसाब से 75 फीसदी उपस्थिति अनिवार्य है. जेएनयू भी यूजीसी के दायरे में आता है इसलिए जेएनयू की ज़िम्मेदारी है उन नियमों का पालन करें. रही बात शोध करने वाले छात्रों के नजरिये की तो स्नातक और परास्नातक छात्रों को एक कैटेगरी में रख कर नियम बनाने चाहिए. एमफिल पीएचडी वाले छात्रों को लिए अलग नियम होने चाहिए." इनके अलावा शोध छात्रा प्रज्ञा का कहना है "भारतीय शिक्षा व्यवस्था दो तरह की होती है. दूरस्थ और रेगुलर. जेएनयू एक रेगुलर रेगुलर कोर्स प्रदान करने वाला विश्व विद्यालय है. उसी के तहत मैंने प्रवेश परीक्षा पास kr है और मुझे फ़ेलोशिप भी मिल रही है. इसलिए मैं यूजीसी के नियमों को पालन करने के लिए प्रतिबद्ध हूं." वहीं रसियन से ग्रेजुएशन कर रहे गौरव के अनुसार अटेंडेंस होना जरूरी है. अनिवार्य उपस्थिति न होने से चाइनीज और जर्मन जैसे कोर्स में बहुत से छात्रों के बैक आ गए हैं.
जेएनयू के पूर्व छात्र और डेवलपमेंट स्टडीज में जेआरएफ में दूसरा स्थान लाने वाले शान का कहना है "अटेंडेंस होना बहुत जरूरी है. जिससे कक्षा में निरंतर आने जाने से कोर्स के प्रति ध्यान लगा रहता है. मेरे अगर अच्छे नम्बर आए हैं तो उसमें क्लास अटेंड करने का बहुत बड़ा योगदान है."
जेएनयू में आए इस नए संकट का सबसे दुखद पहलू प्रशासन और छात्रों के बीच संवाद नहीं होना है. एक तरफ छात्र संगठन जेएनयू में आए इस नए सर्कुलर को मानने को तैयार नहीं है वहीं प्रशासन अकादमिक जगत में सुधार की बात को लेकर अपने रुख पर अड़ियल है. प्रशासन और छात्रों के टकराव से नुकसान जेएनयू का हो रहा है. दिल्ली हाईकोर्ट ने 9 मार्च तक अनशन और प्रदर्शन करने पर रोक लगा रखी है. ऐसा करने पर जेएनयू प्रशासन को पुलिस बुलाने का अधिकार भी है. छात्रसंघ ने 7 मार्च को जनमत संग्रह कराने का ऐलान किया है.
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