
सियासत की शुरुआत में लालू ने बिहार में यादव गुट का प्रतिनिधित्व किया था, जबकि नीतीश कुमार कोइरी और कुर्मी के झंडाबरदार बने थे.
विपक्ष ने सत्ताधारी जनता दल के नेता लालू यादव को निशाने पर रखकर चुनाव प्रचार किया. जब नतीजे आए तो लालू यादव की पार्टी ने 324 सीटों में से 167 सीटें जीत लीं. लालू यादव के खाते में कुल 27.98 फीसदी वोट आए और इसी के साथ लालू यादव एक बार फिर मुख्यमंत्री बन गए.
लालू यादव को तीसरी बार मुख्यमंत्री बने करीब 8 महीने से ज्यादा का वक्त हो गया था. इस दौरान बिहार में पैसे की गड़बड़ी की आशंका सामने आई. उस वक्त के फाइनेंस कमिश्नर रहे एस विजय राघवन ने बिहार के सभी डीएम से कहा कि जिले के सरकारी खजाने से जो भी पैसा निकाला जा रहा है, उसकी पूरी जानकारी उन्हें दी जाए. उस वक्त बिहार के चाइबासा जिले में जिला कमिश्नर थे अमित खरे. वो 1985 बैच के आईएएस अधिकारी थे. चाइबासा के सरकारी खजाने की जांच के दौरान उन्हें पता चला कि जिला पशुपालन विभाग ने एक बार 10 करोड़ रुपये और एक बार 9 करोड़ रुपये निकाले हैं और उसकी डिटेल नहीं दी है. जब उन्होंने विभाग से डिटेल मांगी, तो भी उन्हें कोई डिटेल नहीं दी गई.

लालू यादव चारा घोटाले में तीन बार जेल जा चुके हैं.
आखिर में अमित खरे जनवरी 1996 में पशुपालन विभाग के दफ्तर पहुंचे. जांच-पड़ताल के दौरान उन्हें लगा कि ऑफिस में जल्दबाजी में कुछ फाइलें जला दी गई हैं और कुछ को नष्ट कर दिया गया है. कई ऐसे फर्जी बिल हैं, जिनमें 10 लाख रुपये से कम का भुगतान दिखाया गया है. 10 लाख रुपये से ज्यादा के भुगतान पर कई जरूरी दस्तावेज दिखाने होते थे, इसलिए बिल 10 लाख रुपये से कम के थे. ये भुगतान उन कंपनियों के नाम पर किए गए थे, जो थी ही नहीं. उन्हें ये लगा कि ऐसा पिछले कई साल से हो रहा है. इस पूरे हेरफेर में तकरीबन 37 करोड़ रुपये का हेर-फेर सामने आया. इसके अगले ही दिन रांची के कमिश्नर ने भी पाया कि रांची में भी ऐसी ही हेर-फेर हुई है. इसके बाद तो गुमला, रांची, पटना, डोरंडा और लोहरदगा जिले के सरकारी खजाने से भी फर्ज़ी बिलों के ज़रिए करोड़ों रुपए निकाले जाने की बात सामने आने लगी. मामला बिहार पुलिस के पास पहुंचा तो पुलिस ने मुकदमा दर्ज कर लिया. रातों-रात सरकारी खजाने की देखभाल करने वाले और पशुपालन विभाग के करीब 100 से ज्यादा अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया. इसके अलावा कई ठेकेदार और सप्लायरों को भी हिरासत में लेकर पूछताछ शुरू हुई.

बिहार कैडर के आईएएस अमित खरे ने पहली बार चाइबासा में पैसे का हेरफेर पकड़ा था.
8 महीने पहले ही चुनाव में हार झेल चुकी समता पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस को लालू यादव के खिलाफ बैठे-बिठाए बड़ा मुद्दा मिल गया. पूरा विपक्ष एकजुट होकर सीबीआई जांच की मांग करने लगा. इसके लिए पटना हाई कोर्ट की शरण ली गई. 11 मार्च 1996 को पटना हाई कोर्ट ने मामले की सीबीआई जांच के आदेश दे दिए. बिहार सरकार ने इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की और कहा कि बिहार पुलिस घोटाले का पर्दाफाश करने में सक्षम है. सुप्रीम कोर्ट नहीं माना और उसने सीबीआई जांच के आदेश दे दिए.
27 मार्च 1996 को सीबीआई ने चाईबासा के सरकारी खजाने से पैसे निकालने के मामले में केस दर्ज कर लिया. करीब एक साल बाद 10 मई 1997 में सीबीआई ने बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए राज्यपाल की मंजूरी मांगी. राज्यपाल ने मुकदमा चलाने की मंजूरी दे दी, जिसके बाद सीबीआई की ओर से पूरे मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई के संयुक्त निदेशक यूएन विश्वास को सौंप दिया गया. सीबीआई ने 17 जून 1997 को बिहार सरकार के पांच बड़े अधिकारियों को हिरासत में ले लिया. इनमें महेश प्रसाद, के अरुमुगन, बेग जुलियस, मूलचंद, और राम राज शामिल थे. इनसे पूछताछ करने के बाद सीबीआई ने 23 जून 1997 को अपना पहला आरोप पत्र दायर किया. इसमें लालू समेत 55 लोगों को आरोपी बनाया गया और आईपीसी के सेक्शन 420 (धोखाधड़ी), 120बी (आपराधिक षडयंत्र) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13बी के तहत अलग-अलग 63 मुकदमे दर्ज किए गए.

सीबीआई ने जैसे-जैसे जांच आगे बढाई, मामले में नए नए नाम सामने आते गए.
आरोप पत्र में सीबीआई ने कहा कि चारा घोटाले में शामिल सभी बड़े लोगों के संबंध राष्ट्रीय जनता दल और अन्य पार्टियों के बड़े नेताओं से रहे हैं. सीबीआई के पास इस बात के सबूत हैं कि अवैध कमाई का हिस्सा नेताओं की झोली में भी गया है. पशुपालन विभाग के अधिकारियों ने जानवरों के चारे और उनकी दवा के नाम पर फर्जी बिल लगाकर करोड़ों रुपये हड़प लिए हैं. पैसों का पूरा खेल 1990 से 1996 के बीच का है. बिहार के सीएजी (मुख्य लेखा परीक्षक) ने इसकी जानकारी राज्य सरकार को समय-समय पर भेजी थी लेकिन सरकार ने ध्यान नहीं दिया. सीबीआई ने ये भी कहा कि विधानसभा में बजट का प्रावधान नहीं किया गया और लेखानुदान के जरिए पैसे निकाले जाते रहे. सीबीआई का कहना है कि उसके पास इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि मुख्यमंत्री रहे लालू यादव को मामले की जानकारी थी. कई साल तक वो खुद ही राज्य के वित्त मंत्री भी थे, तो उनकी मंजूरी पर ही इतनी बड़ी मात्रा में पैसे निकाले गए.
जैसे-जैसे लालू यादव पर चारा घोटाले के आरोप पुख्ता होते गए, सियासत भी गरमाती गई. जिस जनता दल की बदौलत लालू यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने थे, उसी जनता दल में फूट पड़ने लगी थी और लालू के खिलाफ आवाज उठने लगी. इससे पहले कि लालू पर कोई खतरा आता, उन्होंने 5 जुलाई 1997 को नई पार्टी बनाने की घोषणा कर दी. जनता दल टूट गया और जो नई पार्टी बनी, उसका नाम रखा गया राष्ट्रीय जनता दल. पार्टी बनाने के 20 दिन के बाद ही लालू ने 25 जुलाई को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. लालू की मदद करने के लिए सामने आई कांग्रेस और शिबू सोरेन की झारंखड मुक्ति मोर्चा. 28 जुलाई 1997 को कांग्रेस और झामुमो ने लालू को समर्थन दिया और लालू यादव की पत्नी राबड़ी देवी को बिहार का अगला मुख्यमंत्री बनाया गया.

चारा घोटाले में फंसने के बाद लालू यादव ने जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल का गठन किया.
वहीं सीबीआई ने जो चार्जशीट दाखिल की थी, उसमें लालू प्रसाद यादव, बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा और पूर्व केंद्रीय मंत्री चंद्रदेव प्रसाद वर्मा के नाम शामिल थे. इसके बाद सभी आरोपियों ने हाई कोर्ट में अग्रिम जमानत की याचिका डाली. जगन्नाथ मिश्रा की याचिका तो कोर्ट ने मंजूर कर ली, लेकिन लालू यादव की याचिका खारिज हो गई. 29 जुलाई 1997 को सुप्रीम कोर्ट ने भी लालू की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी, जिसके बाद 30 जुलाई 1997 को ही सीबीआई ने लालू को गिरफ्तार कर लिया. अगले दिन कोर्ट में पेशी हुई, जहां से सीबीआई कोर्ट ने उन्हें जेल भेज दिया. करीब 135 दिन के बाद 12 दिसंबर 1997 को लालू यादव जमानत पर रिहा हो गए. चारा घोटाले के एक और मामले में 28 अक्टूबर 1998 को लालू को फिर से गिरफ्तार किया गया और बेउर जेल भेज दिया गया. 5 अप्रैल 2000 को लालू यादव के साथ ही उनकी पत्नी राबड़ी देवी पर भी आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया गया और लालू को गिरफ्तार कर लिया गया. 11 दिन जेल में रहने के बाद लालू यादव जेल से जमानत पर रिहा किया. 28 नवंबर 2000 को चारा घोटाले के एक और मामले में लालू यादव को एक दिन और जेल में रहना पड़ा था.

लालू यादव के साथ पूर्व मुख्यमंंत्री जगन्नाथ मिश्रा भी चारा घोटाले के आरोपी हैं. उनपर आरोप है कि उन्होंने घोटाला करने वाले अधिकारियों को सेवा विस्तार दिया था.
अक्टूबर 2001 में बिहार से अलग करके झारखंड राज्य बना. सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले को झारखंड ट्रांसफर कर दिया, जिसके बाद फरवरी 2002 में रांची की विशेष सीबीआई अदालत में मामले की सुनवाई शुरू हुई. मामले की बहस और गवाही नवंबर 2006 में पूरी हुई, जिसके बाद आय से अधिक संपत्ति के मामले में लालू और राबड़ी देवी को कोर्ट ने बरी कर दिया. 31 मई 2007 को स्पेशल सीबीआई कोर्ट ने लालू के दो भतीजों सहित 58 में से 57 दोषियों को सजा सुनाई. ये सजा चाइबासा के सरकारी खजाने से 48 करोड़ रुपये निकालने के मामले में हुई थी. मार्च 2012 में चारा घोटाले से जुड़े एक और केस में 44 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई. सीबीआई कोर्ट ने लालू प्रसाद यादव, जगन्नाथ मिश्र, जहानाबाद के तत्कालीन जेडीयू सांसद जगदीश शर्मा समेत 31 के खिलाफ बांका और भागलपुर कोषागार में हुई धोखाधड़ी मामले में आरोप तय किए. 17 सितंबर 2013 को रांची की विशेष सीबीआई अदालत ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा.

चारा घोटाले में कुल 53 मुकदमे दर्ज हुए थे, जिनमें से एक मामले में लालू यादव को सजा हो चुकी है. फिलहाल वो जमानत पर बाहर हैं.
30 सितंबर 2013 को जब सीबीआई जज प्रवास कुमार सिंह का फैसला आया तो कोर्ट ने लालू प्रसाद यादव और जगन्नाथ मिश्र समेत 45 को सीबीआई की विशेष अदालत ने दोषी ठहराया, लेकिन उस दिन सजा नहीं सुनाई. 3 अक्टूबर 2013 को रांची की विशेष सीबीआई अदालत ने चाइबासा कोषागार से फर्जी निकासी मामले में लालू को 5 साल और जगन्नाथ मिश्र को 4 साल की जेल की सजा सुनाई. लालू यादव पर 25 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया और उन्हें रांची की बिरसा मुंडा जेल भेज दिया गया. इसके बाद लालू यादव की लोकसभा सदस्यता खत्म हो गई और सजा पूरी होने के 6 साल बाद तक उनपर चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई.

53 मुकदमों में से 47 मुकदमों में फैसला आ चुका है और 48वें केस में फैसला होने वाला है.
चारा घोटाले के इस पूरे मामले में लालू, पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्रा, बिहार के पूर्व मंत्री विद्यासागर निषाद, पीएसी के तत्कालीन अध्यक्ष जगदीश शर्मा और ध्रुव भगत, आर के राणा, तीन आईएएस अधिकारी फूलचंद सिंह, बेक जूलियस और महेश प्रसाद, कोषागार के अधिकारी एस के भट्टाचार्य, पशु चिकित्सक डॉ. के के प्रसाद के साथ ही चारा सप्लाई करने वाले थे. सभी 38 आरोपियों में से जहां 11 की मौत हो चुकी है, वहीं तीन सीबीआई के गवाह बन गये जबकि दो ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया था. लालू यादव पर चाइबासा के सरकारी खजाने से 37.70 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी के अलावा दुमका के खजाने से 3.31 करोड़, देवघर के खजाने का 84.54 लाख रुपये, चाईबासा के एक और खजाने में से 33.61 करोड़ रुपये और डोरंडा कोषागार से 139.39 करोड़ की अवैध निकासी का मामला है. पूरा घोटाला करीब 950 करोड़ रुपये का है. पूरे मामले में दर्ज किए गए कुल 53 मामलों में 47 मामलों में फैसला आ चुका है. 48वां मुकदमा देवघर के खजाने से अवैध निकासी का था, जिसमें कोर्ट ने लालू यादव को दोषी पाया है. वहीं लालू यादव के साथ सह आरोपी रहे जगन्नाथ मिश्रा को कोर्ट ने बरी कर दिया है. तीसरा मामला चाईबासा के खजाने से पैसा निकाले जाने का था. इस मामले में कोर्ट ने लालू यादव के साथ ही जगन्नाथ मिश्रा को भी दोषी पाया है.
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